क्लस्टर अग्रिम पंक्ति प्रर्दषन सरसों पर वैज्ञानिक-कृषक परिचर्चा
पन्ना 15 जनवरी 18/कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के डाॅं. बी. एस.
किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डाॅं. आर. के. जायसवाल एवं डाॅ. आर.
पी. सिंह वैज्ञानिकों द्वारा गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिषन अन्तर्गत 100
एकड़ क्लस्टर अग्रिम पंक्ति प्रर्दषन सरसों का लक्ष्मीपुर, अहिरगुवाॅ,
बरचुआ, विक्रमपुर, गांधीग्राम, दहलानचैकी, गदराई, आदि कृषकों के खेतों पर
भ्रमण किया और कृषक परिचर्चा के दौरान प्रर्दषन के उद्देष्य एवं महत्व पर
प्रकाष डाला गया।
वैज्ञानिकों
ने फसल भ्रमण एवं परिचर्चा के दौरान बताया कि सरसों की प्रमुख कीट माहु
पौधा के तने, पत्तियों,
फूल एवं फलियांे से रस चूसकर हानि पहुंचाता है। इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड (17.8 प्रतिषत एस. एल. दवा) 100 मिलीलीटर या डायमेथियोट (30 ई. सी.) 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चहिए। वर्तमान में भ्रमण के दौरान सरसों में माहु की समस्या नही देखी गयी लेकिन देरी से बोई गयी सरसों में माहु आने की संम्भावना रहती है। सरसों में काला धब्बा, व्हाईटरस्ट, पाउडरी मिल्डयू आदि रोग पाये जाते है। काला धब्बा के नियंत्रण हेतु फास्फोमिडान (40 प्रतिषत एस. एल.) दवा 400 मिली. प्रति एकड़ और व्हाईटरस्ट हेतु डायथेन एम 45 दवा 500 मिलीलीटर प्रति एकड़ और पाउडरी मिल्डयू के लिए द्रव्य सल्फर 400 मिली. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
फूल एवं फलियांे से रस चूसकर हानि पहुंचाता है। इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड (17.8 प्रतिषत एस. एल. दवा) 100 मिलीलीटर या डायमेथियोट (30 ई. सी.) 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चहिए। वर्तमान में भ्रमण के दौरान सरसों में माहु की समस्या नही देखी गयी लेकिन देरी से बोई गयी सरसों में माहु आने की संम्भावना रहती है। सरसों में काला धब्बा, व्हाईटरस्ट, पाउडरी मिल्डयू आदि रोग पाये जाते है। काला धब्बा के नियंत्रण हेतु फास्फोमिडान (40 प्रतिषत एस. एल.) दवा 400 मिली. प्रति एकड़ और व्हाईटरस्ट हेतु डायथेन एम 45 दवा 500 मिलीलीटर प्रति एकड़ और पाउडरी मिल्डयू के लिए द्रव्य सल्फर 400 मिली. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
प्रर्दषन
के अन्तर्गत उन्नत किस्म आर. वी. एम. 2, जैव उर्वरक एजोस्पायरिलम, पी. एस.
बी., स्यूडोमोनास फ्लूरोसेन्स, एवं कीटनाषक आदि सामग्री प्रदाय की गयी।
सरसों की यह नयी किस्म है इसकी अवधि 120 दिन, उपज 16-18 क्वि. प्रति हेक्टर
है तथा तेल की मात्रा (39 प्रतिशत) पायी जाती है। सरसों की खेती में लागत
तथा कीट व्याधियों की समस्या चना की फसल की तुलना में काफी कम है। जिन
खेतों में कृषक लगातार कई वर्षो से चना, मसूर, बटरी लेने से उकठा (उगरा)
एवं इल्लियांे की समस्या बढती जा रही है। ऐसी स्थिती में फसल चक्र अपनाते
हुए दलहनी फसलों के स्थान पर सरसों की खेती करना ज्यादा लाभदायक सिद्ध हो
रही है। सरसों की फसल एक सिंचाई में अच्छा उत्पादन देती है। मिट्टी व
जलवायु सरसों की खेती के लिये उपयुक्त है। वैज्ञानिक सरसों का क्षेत्रफल
एवं उत्पादकता बढाने के लिये कृषकों को प्रषिक्षण एवं प्रर्दषन गतिविधियाॅ
आयोजित कर रहे है।
समाचार क्रमांक 124-124
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