सफलता की कहानी
"सफलता की कहानियां"
भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के अलावा विदेशों से प्रशिक्षण प्राप्त करने लोग आने लगे हैं -पन्ना टाईगर उद्यान की स्थापना यूं तो वर्ष 1981 में हुई थी, जिसे वर्ष 1994 में टाईगर रिजर्व के रूप में मान्यता मिली। लेकिन इसे आकर्षण का केन्द्र पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा बुनी गयी बाघों की विलुप्ति से पुनःस्थापना की कहानी ने बनाया है। आज यह न केवल देश-विदेश के पर्यटकों को लुभा रहा है बल्कि देश-विदेश के अधिकारी/कर्मचारियों के लिए शोध एवं अध्ययन का केन्द्र बन गया है।
पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलो मीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार ’’मडला’’ महज 25 किलो मीटर दूर है। बाघों से आबाद रहने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न कारणों से फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था। जिसके बाद इन विपरित परिस्थितियों में पार्क प्रबंधन के द्वारा भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से सितंबर 2009 में पन्ना बाघ पुनः स्थापना योजना की व्यापक रूप रेखा तैयार की गयी। योजना के अन्तर्गत 4 बाघिन व 2 वयस्क नर बाघों को बाघ पुनसर््थापना के संस्थापक बाघों की आबादी के रूप में बांधवगढ़, कान्हा एवं पेंच टाईगर रिजर्व से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया ताकि यहां पर बाघों की वंश वृद्धि हो सके।
लेकिन यह इतना आसान भी न था। योजना के मुताबिक पेंच टाईगर रिजर्व से लाया गया नर बाघ टी-3 10 दिन रहने के बाद यहां से दक्षिण दिशा में कही निकल कर नजदीकी जिलों के वन क्षेत्रों में लगभग एक माह तक स्वछंद विचरण करता रहा। पार्क प्रबंधन ने हार नही मानी। पार्क की टीम लगातार बाघ का पीछा करती रही। पार्क के 70 कर्मचारियों की टीम मय 4 हाथियों के द्वारा दिसंबर 2009 को दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल से इस बाघ को फिर से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया। पुनसर््थापित किए गए बाघ में होमिंग (अपने घर लौटने की प्रवृत्ति) कितनी प्रबल होती है इसे पहली बार देखा गया। इस बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य को अपने दृढ़ निश्चय से सफल बनाकर पन्ना पार्क टीम ने अपनी दक्षता साबित की है। बाघ टी-3 की उम्र अब 15 हो गयी है और अब वह अपने ही वयस्क शावकों से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
बाघ टी-3 से पन्ना बाघ पुनसर््थापना की सफलता की श्रृंखला प्रारंभ हो गयी। पार्क की सुरक्षा प्रबंधन एवं सृजन की अभिनव पहल को पहली ऐतिहासिक सफलता तब मिली जब बाघिन टी-1 ने वर्ष 2010 को 4 शावकों को जन्म दिया। जिसके बाद बाघिन टी-2 ने भी 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद से यह सिलसिला निरंतर जारी है। बाघिन टी-1, टी-2 एवं कान्हा से लायी गयी अर्द्ध जंगली बाघिनों टी-4, टी-5 एवं इनकी संतानों द्वारा अब तक लगभग 70 शावकों को जन्म दिया जा चुका है। जिनमें से जीवित रहे 49 बाघों में से कुछ ने विचरण करते हुए सतना, बांधवगढ़ तथा पन्ना एवं छतरपुर के जंगलों मंे आशियाना बना लिया है।
बाघों की पुनसर््थापना की इस सफलता की कहानी को सुनने और इससे सीख लेने प्रति वर्ष भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को एक सप्ताह के लिए भेजा जाने लगा है। इतना ही नही कम्बोडिया एवं उत्तर पूर्व के देशों तथा भारत के विभिन्न राज्यों से भी बाघ पुनसर््थापना का अध्ययन करने एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अधिकारी एवं कर्मचारी यहां आ रहे हैं। पिछले वर्षो में पर्यटकों विशेषकर विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में कुल 36730 पर्यटक, वर्ष 2016-17 में कुल 38545 पर्यटक एवं वर्ष 2017-18 में मई 2018 तक की स्थिति में कुल 27234 पर्यटकों की संख्या दर्ज की गयी है। इसके अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की बढती संख्या के लिए रहवास प्रबंधन, मानव एवं वन्य प्राणी द्वंद का समाधान तथा पर्यटन से लगभग 500 स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में 30 ग्रामों में संसाधन विकसित करने हेतु 60 लाख रूपये पार्क प्रबंधन द्वारा प्रदाय किए गए है। साथ ही स्थानीय 68 युवकों को आदर आतिथ्य का प्रशिक्षण खजुराहो में दिलाकर उन्हें 3 सितारा एवं 5 सितारा होटलों में रोजगार दिलाया गया है।
पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलो मीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार ’’मडला’’ महज 25 किलो मीटर दूर है। बाघों से आबाद रहने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न कारणों से फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था। जिसके बाद इन विपरित परिस्थितियों में पार्क प्रबंधन के द्वारा भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से सितंबर 2009 में पन्ना बाघ पुनः स्थापना योजना की व्यापक रूप रेखा तैयार की गयी। योजना के अन्तर्गत 4 बाघिन व 2 वयस्क नर बाघों को बाघ पुनसर््थापना के संस्थापक बाघों की आबादी के रूप में बांधवगढ़, कान्हा एवं पेंच टाईगर रिजर्व से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया ताकि यहां पर बाघों की वंश वृद्धि हो सके।
लेकिन यह इतना आसान भी न था। योजना के मुताबिक पेंच टाईगर रिजर्व से लाया गया नर बाघ टी-3 10 दिन रहने के बाद यहां से दक्षिण दिशा में कही निकल कर नजदीकी जिलों के वन क्षेत्रों में लगभग एक माह तक स्वछंद विचरण करता रहा। पार्क प्रबंधन ने हार नही मानी। पार्क की टीम लगातार बाघ का पीछा करती रही। पार्क के 70 कर्मचारियों की टीम मय 4 हाथियों के द्वारा दिसंबर 2009 को दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल से इस बाघ को फिर से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया। पुनसर््थापित किए गए बाघ में होमिंग (अपने घर लौटने की प्रवृत्ति) कितनी प्रबल होती है इसे पहली बार देखा गया। इस बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य को अपने दृढ़ निश्चय से सफल बनाकर पन्ना पार्क टीम ने अपनी दक्षता साबित की है। बाघ टी-3 की उम्र अब 15 हो गयी है और अब वह अपने ही वयस्क शावकों से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
बाघ टी-3 से पन्ना बाघ पुनसर््थापना की सफलता की श्रृंखला प्रारंभ हो गयी। पार्क की सुरक्षा प्रबंधन एवं सृजन की अभिनव पहल को पहली ऐतिहासिक सफलता तब मिली जब बाघिन टी-1 ने वर्ष 2010 को 4 शावकों को जन्म दिया। जिसके बाद बाघिन टी-2 ने भी 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद से यह सिलसिला निरंतर जारी है। बाघिन टी-1, टी-2 एवं कान्हा से लायी गयी अर्द्ध जंगली बाघिनों टी-4, टी-5 एवं इनकी संतानों द्वारा अब तक लगभग 70 शावकों को जन्म दिया जा चुका है। जिनमें से जीवित रहे 49 बाघों में से कुछ ने विचरण करते हुए सतना, बांधवगढ़ तथा पन्ना एवं छतरपुर के जंगलों मंे आशियाना बना लिया है।
बाघों की पुनसर््थापना की इस सफलता की कहानी को सुनने और इससे सीख लेने प्रति वर्ष भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को एक सप्ताह के लिए भेजा जाने लगा है। इतना ही नही कम्बोडिया एवं उत्तर पूर्व के देशों तथा भारत के विभिन्न राज्यों से भी बाघ पुनसर््थापना का अध्ययन करने एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अधिकारी एवं कर्मचारी यहां आ रहे हैं। पिछले वर्षो में पर्यटकों विशेषकर विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में कुल 36730 पर्यटक, वर्ष 2016-17 में कुल 38545 पर्यटक एवं वर्ष 2017-18 में मई 2018 तक की स्थिति में कुल 27234 पर्यटकों की संख्या दर्ज की गयी है। इसके अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की बढती संख्या के लिए रहवास प्रबंधन, मानव एवं वन्य प्राणी द्वंद का समाधान तथा पर्यटन से लगभग 500 स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में 30 ग्रामों में संसाधन विकसित करने हेतु 60 लाख रूपये पार्क प्रबंधन द्वारा प्रदाय किए गए है। साथ ही स्थानीय 68 युवकों को आदर आतिथ्य का प्रशिक्षण खजुराहो में दिलाकर उन्हें 3 सितारा एवं 5 सितारा होटलों में रोजगार दिलाया गया है।
अब तक कुल 39048 आवेदन निराकृत-शासन द्वारा लोक सेवा केन्द्रों के माध्यम से प्रारंभ की गयी समाधान एक दिवस सुविधा से पन्ना जिले के आम नागरिकों का जीवन आसान हो गया है। अब उन्हें विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ लेने और प्रमाण पत्र बनवाने के लिए दफ्तर-दफ्तर भटकना नही पडता। जिले में कुल 9 समाधान केन्द्रों के माध्यम से समाधान एक दिवस के तहत उसी दिन आवेदनों का निराकरण किया जा रहा है। अब तक कुल 39048 आवेदनों का निराकरण शत प्रतिशत किया जा चुका है। इससे हितग्राहियों का भरोसा शासन प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बढा है। एक दिवस में शासकीय सेवाएं प्राप्त करने वाले हितग्राहियों में खुशी की लहर है और वे दूसरों को भी इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
इन्हीं में से एक आवेदन विनोद कुमार यादव है, जो ग्राम चलनी तहसील रैपुरा के निवासी है। इन्होंने अपना आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लोक सेवा केन्द्र रैपुरा में आवेदन किया था। उन्हें उसी दिन बडी आसानी से आय प्रमाण पत्र प्राप्त होने पर उनकी खुशी का ठिकाना नही रहा। शासन की समाधान एक दिवस व्यवस्था पर हर्ष व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि पहले आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसील कार्यालय के चक्कर लगाने पडते थे और कम से कम 3 दिन का समय लगता था। अब समाधान एक दिवस के अन्तर्गत आवेदन देते हुए ही त्वरित सेवा प्राप्त होने लगी है। इसके लिए उन्होंने शासन तथा जिला प्रशासन को धन्यवाद दिया है।
तहसील गुनौर के आवेदक सुशील कुमार द्विवेदी तथा स्नेहलता चैधरी ने गुनौर लोक सेवा केन्द्र में आय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, जो उन्हें एक दिन में प्राप्त हो गया। इसके लिए उन्होंने इस व्यवस्था की सराहना की जा रही है।
इन्हीं में से एक आवेदन विनोद कुमार यादव है, जो ग्राम चलनी तहसील रैपुरा के निवासी है। इन्होंने अपना आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लोक सेवा केन्द्र रैपुरा में आवेदन किया था। उन्हें उसी दिन बडी आसानी से आय प्रमाण पत्र प्राप्त होने पर उनकी खुशी का ठिकाना नही रहा। शासन की समाधान एक दिवस व्यवस्था पर हर्ष व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि पहले आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसील कार्यालय के चक्कर लगाने पडते थे और कम से कम 3 दिन का समय लगता था। अब समाधान एक दिवस के अन्तर्गत आवेदन देते हुए ही त्वरित सेवा प्राप्त होने लगी है। इसके लिए उन्होंने शासन तथा जिला प्रशासन को धन्यवाद दिया है।
तहसील गुनौर के आवेदक सुशील कुमार द्विवेदी तथा स्नेहलता चैधरी ने गुनौर लोक सेवा केन्द्र में आय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, जो उन्हें एक दिन में प्राप्त हो गया। इसके लिए उन्होंने इस व्यवस्था की सराहना की जा रही है।
गुनौर जनपद पंचायत के ग्राम सेल्हा निवासी श्रीमती सुनीता विश्वकर्मा बडी ही प्रसन्नता के साथ बताती हैं कि अब मैं मजदूरी नही करती। मैंने अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर मैं व्यवसायी बन गयी हॅू। उन्होंने बताया कि स्वयं सिद्धा तेजस्विनी महिला संघ सलेहा से जुडकर समूह के साथ आपस में आंशिक लेनदेन शुरू किया। नियमित होने वाली बैठक में मैं हमेशा उपस्थित होती थी। एक दिन बैठक में मैंने अपनी आर्थिक हल के बारे में बताया तो समूह के सदस्यों ने विचार करते हुए किराना दुकान खोलने के लिए 30 हजार रूपये का ऋण मुझे स्वीकृत किया गया।
मेरे द्वारा 30 हजार रूपये ऋण राशि एवं 30 हजार रूपये स्वयं के बचत के मिलाकर 60 हजार रूपये की सामग्री किराना दुकान के लिए थोक व्यापारी के यहां से क्रय कर ग्राम सेल्हा में किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली। प्रारंभ में 200 से 250 रूपये प्रतिदिन की आय होने लगी। मैंने हार नही मानी धीरे-धीरे दुकान में आवश्यकता के अनुसार सामग्री को बढाया तो मुझे प्रतिदिन 350 रूपये से 400 रूपये की आमदनी होने लगी। इस आमदनी से उनके परिवार का भरण-पोषण अच्छे से होने लगा। बच्चे पढाई करने लगे। श्रीमती सुनीता नियमित रूप से समूह की बैठक में खुद उपस्थित होती है और सदस्यों को उपस्थित कराती है।
श्रीमती सुनीता कहती हैं यह एक बहुत अच्छी योजना है जिससे महिलाओं का कल्याण हो रहा है। इससे मेरी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है अब मैं कही मजदूरी करने नही जाती स्वयं के व्यवसाय से कमा कर परिवार का भरण-पोषण कर रही हॅू और सम्मानपूर्वक जीवन जी रही हॅू। मैं चाहूंगी मेरी तरह ही अन्य महिलाएं भी स्व-सहायता समूह बनाकर आगे बढें और अपने सामाजिक, आर्थिक एवं पारिवारिक स्तर में सुधार लाकर स्बावलम्बी बनें।
मेरे द्वारा 30 हजार रूपये ऋण राशि एवं 30 हजार रूपये स्वयं के बचत के मिलाकर 60 हजार रूपये की सामग्री किराना दुकान के लिए थोक व्यापारी के यहां से क्रय कर ग्राम सेल्हा में किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली। प्रारंभ में 200 से 250 रूपये प्रतिदिन की आय होने लगी। मैंने हार नही मानी धीरे-धीरे दुकान में आवश्यकता के अनुसार सामग्री को बढाया तो मुझे प्रतिदिन 350 रूपये से 400 रूपये की आमदनी होने लगी। इस आमदनी से उनके परिवार का भरण-पोषण अच्छे से होने लगा। बच्चे पढाई करने लगे। श्रीमती सुनीता नियमित रूप से समूह की बैठक में खुद उपस्थित होती है और सदस्यों को उपस्थित कराती है।
श्रीमती सुनीता कहती हैं यह एक बहुत अच्छी योजना है जिससे महिलाओं का कल्याण हो रहा है। इससे मेरी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है अब मैं कही मजदूरी करने नही जाती स्वयं के व्यवसाय से कमा कर परिवार का भरण-पोषण कर रही हॅू और सम्मानपूर्वक जीवन जी रही हॅू। मैं चाहूंगी मेरी तरह ही अन्य महिलाएं भी स्व-सहायता समूह बनाकर आगे बढें और अपने सामाजिक, आर्थिक एवं पारिवारिक स्तर में सुधार लाकर स्बावलम्बी बनें।
अब मजदूरी करने बाहर नही जाना पड़ता -पन्ना जिले के शाहनगर विकासखण्ड के ग्राम हरदुआमैमारी में रहने वाली श्रीमती सोनू गुप्ता एक गरीब परिवार की महिला है। सोनू के पति बाहर जाकर मजदूरी करते और सोनू घर पर रहकर ही ग्राम में मजदूरी करती। ऐसे उनका जीवन-यापन हो रहा था। लेकिन आज श्रीमती सोनू का अपना होटल है जिससे उन्हें प्रतिमाह 12 से 13 हजार रूपये की मासिक आय प्राप्त हो रही है। होटल तक का सफर उन्होंने मजदूरी के बाद खोली चाय की एक छोटी सी दुकान से तय किया है।
वर्ष 2015 में डीपीआईपी परियोजना के द्वितीय चरण में सोनू गुप्ता गीता स्व-सहायता समूह में शामिल हुई। समूह के माध्यम से आजीविका राशि 10 हजार रूपये से उन्होंने शाहनगर में एक छोटी सी चाय की दुकान खोली। जिसके बाद आजीविका मिशन द्वारा बैंक लिंकेज के माध्यम से सोनू को 50 हजार रूपये का लोन स्वीकृत कराकर शाहनगर में एक होटल चलाने के लिए दिया गया। सोनू ने शाहनगर में गुप्ता स्वल्पाहार के नाम से एक होटल शुरू कर दी और समय-समय पर अपनी किश्त भी जमा करने लगी। इससे उनकी आय में लगातार वृद्धि होती गयी। अब सोनू ने होटल के लिए फ्रिज भी खरीद लिया है और वह कोलड्रिंक्स आदि का विक्रय भी करने लगी हैं। जिससे उन्हें प्रतिमाह 12 से 13 हजार रूपये की मासिक आय होने लगी है। अब उसके पति भी होटल व्यवसाय में उसकी मदद करते हैं। सोनू और उसके पति को अपने जीवन-यापन के लिए अब मजदूरी करने बाहर नही जाना पडता। वे आजीविका मिशन की मदद से खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
वर्ष 2015 में डीपीआईपी परियोजना के द्वितीय चरण में सोनू गुप्ता गीता स्व-सहायता समूह में शामिल हुई। समूह के माध्यम से आजीविका राशि 10 हजार रूपये से उन्होंने शाहनगर में एक छोटी सी चाय की दुकान खोली। जिसके बाद आजीविका मिशन द्वारा बैंक लिंकेज के माध्यम से सोनू को 50 हजार रूपये का लोन स्वीकृत कराकर शाहनगर में एक होटल चलाने के लिए दिया गया। सोनू ने शाहनगर में गुप्ता स्वल्पाहार के नाम से एक होटल शुरू कर दी और समय-समय पर अपनी किश्त भी जमा करने लगी। इससे उनकी आय में लगातार वृद्धि होती गयी। अब सोनू ने होटल के लिए फ्रिज भी खरीद लिया है और वह कोलड्रिंक्स आदि का विक्रय भी करने लगी हैं। जिससे उन्हें प्रतिमाह 12 से 13 हजार रूपये की मासिक आय होने लगी है। अब उसके पति भी होटल व्यवसाय में उसकी मदद करते हैं। सोनू और उसके पति को अपने जीवन-यापन के लिए अब मजदूरी करने बाहर नही जाना पडता। वे आजीविका मिशन की मदद से खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
शासन की मदद से 20 लाख का ऋण लेकर खोली फेब्रीकेशन शाॅपमहिलाएं जब अपने पैरों पर खडी होती हैं तो वे अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाने में मदद तो करती ही हैं साथ ही आत्म निर्भरता से उन्हें अपनी स्वयं की पहचान बनाने का अवसर भी मिलता है। पन्ना जिले के ग्राम कुंजवन में रहने वाली सीमा साहू ने भी स्वयं का रोजगार स्थापित कर अपनी अलग पहचान बनाई है। यह पहचान दिलाने में उनकी मदद की है खादी ग्रामोद्योग द्वारा चलाए जा रहे प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम ने।
सीमा साहू बताती है कि मेरे पति श्री विश्वास विमल साहू खेती किसानी करते हैं। मैं भी परिवार की जिम्मेदारियां उठाने में उनका हाथ बंटाना चाहती थी। एक दिन मुझे खादी ग्रामोद्योग द्वारा चलाई जा रही स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसके बाद मैंने अपने पति से चर्चा कर योजना का लाभ लेते हुए स्वयं का रोजगार स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। योजना की पूरी जानकारी लेने के बाद मैंने फेब्रीकेशन शाॅप खोलने के लिए खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से देना बैंक कुंजवन में आवेदन कर दिया। ऋण प्रकरण स्वीकृति के बाद मुझे 20 लाख का लोन मिला। साथ में 7 लाख रूपये की सब्सिडी भी मिली है। प्राप्त ऋण से मैंने विमल स्टील के नाम से हार्डवेयर एवं मेनीफेक्चरिंग की इकाई स्थापित की है। जिसमें 3 लोगों को रोजगार भी दिया गया है। शाॅप के माध्यम से प्रतिमाह 33 हजार रूपये की किश्त जमा करने के बाद भी मुझे लगभग 40 हजार रूपये की शुद्ध मासिक आय प्राप्त हो रही है। मैं बहुत खुश हॅू कि शासन की स्वरोजगार योजना की मदद से जहां मुझे अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाने में पति का सहयोग करने का अवसर मिला, वही दूसरी ओर आत्मनिर्भरता से आत्मसम्मान बढने के साथ-साथ समाज में एक नई पहचान भी मिली है। इसके लिए वह शासन का आभार व्यक्त करती हैं साथ ही अन्य महिलाओं से कहती हैं कि उन्हें भी शासन की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ उठाकर आत्मनिर्भर बनना चाहिए।
सीमा साहू बताती है कि मेरे पति श्री विश्वास विमल साहू खेती किसानी करते हैं। मैं भी परिवार की जिम्मेदारियां उठाने में उनका हाथ बंटाना चाहती थी। एक दिन मुझे खादी ग्रामोद्योग द्वारा चलाई जा रही स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसके बाद मैंने अपने पति से चर्चा कर योजना का लाभ लेते हुए स्वयं का रोजगार स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। योजना की पूरी जानकारी लेने के बाद मैंने फेब्रीकेशन शाॅप खोलने के लिए खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से देना बैंक कुंजवन में आवेदन कर दिया। ऋण प्रकरण स्वीकृति के बाद मुझे 20 लाख का लोन मिला। साथ में 7 लाख रूपये की सब्सिडी भी मिली है। प्राप्त ऋण से मैंने विमल स्टील के नाम से हार्डवेयर एवं मेनीफेक्चरिंग की इकाई स्थापित की है। जिसमें 3 लोगों को रोजगार भी दिया गया है। शाॅप के माध्यम से प्रतिमाह 33 हजार रूपये की किश्त जमा करने के बाद भी मुझे लगभग 40 हजार रूपये की शुद्ध मासिक आय प्राप्त हो रही है। मैं बहुत खुश हॅू कि शासन की स्वरोजगार योजना की मदद से जहां मुझे अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाने में पति का सहयोग करने का अवसर मिला, वही दूसरी ओर आत्मनिर्भरता से आत्मसम्मान बढने के साथ-साथ समाज में एक नई पहचान भी मिली है। इसके लिए वह शासन का आभार व्यक्त करती हैं साथ ही अन्य महिलाओं से कहती हैं कि उन्हें भी शासन की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ उठाकर आत्मनिर्भर बनना चाहिए।
शासन के सहयोग से स्वयं मजदूरी कर बनाया अपना घर- रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की कल्पना इन तीनों मूलभूत आवश्यकताओं के पूरा होने के बाद ही की जा सकती है। इनमें से पहली दो आवश्यकताओं की पूर्ति तो मेहनत, मजदूरी कर जैसे-तैसे रेखा वंशकार और उसका परिवार कर रहा था लेकिन मकान की आवश्यकता की पूर्ति उनके लिए एक सपने की तरह ही थी। उनका पूरा परिवार जनपद पंचायत पन्ना के ग्राम गुखौर के एक कच्चे कमरे वाले छोटे से आवास में निवास कर रहा था। लेकिन अब रेखा और उसका परिवार कच्चे मकान में नही बल्कि पक्के और सुन्दर मकान में रहता है। इसके लिए रेखा और उसका परिवार प्रधानमंत्री आवास योजना लाने के लिए शासन का हृदय से आभार व्यक्त करता है।
भारत सरकार द्वारा प्रत्येक ग्रामीण को आवास उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण स्तर पर प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का संचालन किया जा रहा है। जिसके अन्तर्गत प्रत्येक जरूरतमंद ग्रामीण को वर्ष 2022 तक पक्का आवास निर्माण कर दिए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। योजना के तहत घर एवं शौचालय निर्माण के लिए एक लाख 50 हजार रूपये की राशि विभिन्न चरणों में हितग्राही को प्रदाय की जाती है। इसी क्रम में श्रीमती रेखा वंशकार पति भगवानदास वंशकार को निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप योजना के हितग्राही के रूप में चिन्हित किया गया। योजना के अन्तर्गत रेखा वंशकार द्वारा निर्धारित किश्तों का समुचित उपयोग कर प्रधानमंत्री आवास का निर्माण किया गया है। उन्होंने यह आवास स्वयं एवं अपने पति के साथ मजदूरी के कार्य में बराबरी की भागीदारी करते हुए बनाया है। इससे हुई बचत का उपयोग रेखा ने अपने पक्के आवास को सुसज्जित करने में किया है। शासन की मदद से उनका व्यवस्थित पक्के मकान का सपना साकार हुआ है जिससे रेखा वंशकार का परिवार अत्याधिक खुश है। रेखा कहती हैं शासन द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री आवास योजना हम घर विहीन ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नही है।
भारत सरकार द्वारा प्रत्येक ग्रामीण को आवास उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण स्तर पर प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का संचालन किया जा रहा है। जिसके अन्तर्गत प्रत्येक जरूरतमंद ग्रामीण को वर्ष 2022 तक पक्का आवास निर्माण कर दिए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। योजना के तहत घर एवं शौचालय निर्माण के लिए एक लाख 50 हजार रूपये की राशि विभिन्न चरणों में हितग्राही को प्रदाय की जाती है। इसी क्रम में श्रीमती रेखा वंशकार पति भगवानदास वंशकार को निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप योजना के हितग्राही के रूप में चिन्हित किया गया। योजना के अन्तर्गत रेखा वंशकार द्वारा निर्धारित किश्तों का समुचित उपयोग कर प्रधानमंत्री आवास का निर्माण किया गया है। उन्होंने यह आवास स्वयं एवं अपने पति के साथ मजदूरी के कार्य में बराबरी की भागीदारी करते हुए बनाया है। इससे हुई बचत का उपयोग रेखा ने अपने पक्के आवास को सुसज्जित करने में किया है। शासन की मदद से उनका व्यवस्थित पक्के मकान का सपना साकार हुआ है जिससे रेखा वंशकार का परिवार अत्याधिक खुश है। रेखा कहती हैं शासन द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री आवास योजना हम घर विहीन ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नही है।
फलो उद्यान एवं सब्जी की खेती से पवई विकासखण्ड के ग्राम मोहन्द्रा निवासी बाला प्रसाद कटेहा की किस्मत बदल गयी है। वे 2 हेक्टेयर भूमि पर खेती करने वाले एक साधारण किसान थे। उन्हें उद्यान विभाग से फलो उद्यान स्थापित करने के लिए सहायता मिली। इससे उन्होंने एक हेक्टेयर जमीन पर केला, टिशू कल्चर पौधों का ड्रिप के साथ रोपण किया। इस पर उद्यान विभाग द्वारा 90 हजार रूपये का अनुदान दिया गया। इसी प्रकार अनार, टिशू कल्चर, आम के पौधों का रोपण किया गया। इस पर उद्यान विभाग द्वारा 22500 एवं 18000 रूपये का अनुदान दिया गया। इसके अलावा कृषक द्वारा टमाटर, मिर्च, बैगन, पत्तागोभी, गाजर, पालक, धनिया आदि की खेती करने के साथ-साथ अमरूद, आंवला, नींबू, पपीता, कटहल आदि के पौधे लगाए गए। इसके अलावा कृषक द्वारा उद्यान विभाग से 50 मै. टन भण्डारण क्षमता का प्याज भण्डारण गृह का निर्माण कराया गया। इसके निर्माण से प्याज का भण्डारण किया जा सकेगा।
वर्तमान में उद्यानिकी की खेती से 3 लाख रूपये की आमदनी होने लगी है। किसान द्वारा बताया गया कि पन्ना जिले में भी आसानी से केले की खेती की जा सकती है। उन्होंने जिले के किसानों से अपील करते हुए कहा कि केले की खेती करके अच्छी कमाई की जा सकती है। केला फल एवं सब्जी दोनों के लिए उपयोगी है। कच्चे केले का चूर्ण, चिप्स, पापड, हलवा, जूस आदि तैयार करने की इकाई स्थापित कर लघु उद्योग स्थापित किया जा सकता है। इस उद्योग से भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। उनका कहना है कि केले में कार्बोहाईड्रेड पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जिससे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इसके अलावा केले के पत्ते व फल धार्मिक कार्यो में उपयोग किए जाते हैं। जिससे भी लाभ मिल जाता है।
वर्तमान में उद्यानिकी की खेती से 3 लाख रूपये की आमदनी होने लगी है। किसान द्वारा बताया गया कि पन्ना जिले में भी आसानी से केले की खेती की जा सकती है। उन्होंने जिले के किसानों से अपील करते हुए कहा कि केले की खेती करके अच्छी कमाई की जा सकती है। केला फल एवं सब्जी दोनों के लिए उपयोगी है। कच्चे केले का चूर्ण, चिप्स, पापड, हलवा, जूस आदि तैयार करने की इकाई स्थापित कर लघु उद्योग स्थापित किया जा सकता है। इस उद्योग से भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। उनका कहना है कि केले में कार्बोहाईड्रेड पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जिससे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इसके अलावा केले के पत्ते व फल धार्मिक कार्यो में उपयोग किए जाते हैं। जिससे भी लाभ मिल जाता है।
राजेन्द्र प्रजापति पन्ना जिले के सिमरिया के रहने वाले हैं। जहां वे अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राजेन्द्र 4 हजार रूपये मासिक वेतन पर एक प्रायवेट वाहन चलाने के लिए तैयार हो गए और अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगे। लेकिन इतने कम वेतन से परिवार का खर्च चलाना बहुत कठिन हो रहा था। तभी उन्हें समाचार पत्रों के माध्यम से जिला अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति के अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसने आज उन्हें बेरोजगार से मालिक बना दिया है।
योजना की जानकारी लगते ही राजेन्द्र ने सीधे जिला अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्या. पन्ना के अधिकारियों से सम्पर्क किया। अधिकारियों से विस्तारपूर्वक जानकारी लेने के बाद राजेन्द्र ने मालवाहक (पिकप) लेने के लिए 6 लाख रूपये का ऋण आवेदन भरकर सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ जिला अन्त्यावसायी कार्यालय में जमा कर दिया। कार्यालय द्वारा राजेन्द्र का प्रकरण सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया शाखा सिमरिया को स्वीकृति के लिए प्रेषित किया गया।
राजेन्द्र बताते है कि बैंक द्वारा उनका ऋण योजना अनुसार 6 लाख रूपये स्वीकृत कर दिया गया। इस ऋण के विरूद्ध एक लाख 80 हजार रूपये अनुदान (मार्जिन मनी) की राशि का लाभ भी समिति द्वारा प्राप्त हुआ है। ऋण प्राप्त होने के बाद मैं अपना स्वयं का मालवाहक (पिकप) चलाकर प्रति दिन 400 से 500 रूपये कमा रहा हॅू। प्रतिमाह ऋण की किश्तें जमा कर रहा हॅूं। अब मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गयी है। परिवार के लोग सुखी जीवन-यापन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की मदद से मुझे अपना व्यवसाय प्रारंभ कर समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन-यापन करने का अवसर प्राप्त हुआ है इसके लिए वे शासन-प्रशासन को धन्यवाद देते हैं।
योजना की जानकारी लगते ही राजेन्द्र ने सीधे जिला अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्या. पन्ना के अधिकारियों से सम्पर्क किया। अधिकारियों से विस्तारपूर्वक जानकारी लेने के बाद राजेन्द्र ने मालवाहक (पिकप) लेने के लिए 6 लाख रूपये का ऋण आवेदन भरकर सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ जिला अन्त्यावसायी कार्यालय में जमा कर दिया। कार्यालय द्वारा राजेन्द्र का प्रकरण सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया शाखा सिमरिया को स्वीकृति के लिए प्रेषित किया गया।
राजेन्द्र बताते है कि बैंक द्वारा उनका ऋण योजना अनुसार 6 लाख रूपये स्वीकृत कर दिया गया। इस ऋण के विरूद्ध एक लाख 80 हजार रूपये अनुदान (मार्जिन मनी) की राशि का लाभ भी समिति द्वारा प्राप्त हुआ है। ऋण प्राप्त होने के बाद मैं अपना स्वयं का मालवाहक (पिकप) चलाकर प्रति दिन 400 से 500 रूपये कमा रहा हॅू। प्रतिमाह ऋण की किश्तें जमा कर रहा हॅूं। अब मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गयी है। परिवार के लोग सुखी जीवन-यापन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की मदद से मुझे अपना व्यवसाय प्रारंभ कर समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन-यापन करने का अवसर प्राप्त हुआ है इसके लिए वे शासन-प्रशासन को धन्यवाद देते हैं।
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना से संभव हुआ उपचार-बच्चे के जन्म के बाद से उसके माता-पिता उसके मुख से पहला शब्द सुनने का इंतजार करने लगते हैं और सामान्यतः यह पहला अद्भुत शब्द ’’माॅं’’ होता है। कहते हैं बच्चा भी सबसे पहले अपनी माॅं की आवाज ही पहचानना शुरू करता है। लेकिन महक को उसकी माॅं की आवाज सुनने के लिए 4 साल का लम्बा इंतजार करना पडा। महक की माता भी 4 साल के बाद महक के मुह से पहली बार माॅं शब्द सुन सकी हैं और यह संभव हुआ है मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अन्तर्गत किए गए उपचार से।
पन्ना जिले के देवेन्द्रनगर के ग्राम जमुनहाई के यादव परिवार में महक का जन्म 2014 में हुआ था। महक की माॅं अनुराधा यादव गांव की आशा कार्यकर्ता है और पिता लोकेन्द्र यादव खेती बाडी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। महक की 2 बडी बहनें भी हैं। महक जब ढाई वर्ष की हुई तब अनुराधा को महसूस हुआ कि महक आवाज देने पर कोई प्रतिक्रिया नही करती है। जब परिवार के बाकी सदस्यों को भी यह पता चला की महक सुन नही सकती तो वे सब बहुत चिंतित हो गये। एक तो महक लडकी और उपर से सुनाई न देने की समस्या से परिवार के लोग उसके भविष्य को लेकर परेशान रहने लगे। बाहर जाकर बडे डाॅक्टरों को दिखाया। उन्होंने सलाह दी कि बच्ची को सुनाई न देने की परेशानी जन्मजात है और इसका एक ही ईलाज है आपरेशन। उन्होंने बताया कि आपरेशन का खर्च 6 से 7 लाख के बीच आएगा।
यह सुनकर उनके परिवार के लोग निराश हो गए क्योंकि आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी कि इतना मंहेगा खर्च उठा सके। चूंकि महक की माॅं आशा कार्यकर्ता हैं, जब उन्हें मंहगे उपचार का पता चला तो उन्होंने अपने घर वालों को शासन के राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के बारे में बताया। जब गांव की आंगनवाडी में आरबीएसके टीम का भ्रमण हुआ तो टीम के डाॅक्टर अनूप सोनी से महक का परीक्षण कराया गया। उन्होंने महक को आगे के उपचार के लिए जिला चिकित्सालय पन्ना रेफर करने की सलाह दी। जिसके बाद महक की माॅं जिले में आकर डाॅक्टर सुबोध खम्परिया आरबीएसके समन्वयक से मिली। उन्होंने सभी आवश्यक जांचे कराकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना डाॅ. एल.के. तिवारी के माध्यम से प्रकरण तैयार कर क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं सागर स्वीकृति के लिए भेज दिया।
स्वीकृति मिलने के बाद 18 मार्च 2018 को रासेन्द्र नाहर नर्सिंग होम सतना में महक के कान का आपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। दिनांक 11 जून 2018 को महक फालोअप के लिए जिला चिकित्सालय पन्ना बुलाया गया था। जहां मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, नाक, कान, गला विशेषज्ञ डाॅ. डी.पी. प्रजापति एवं नोडल अधिकारी आरबीएसके डाॅ. प्रदीप गुप्ता द्वारा महक के सुनने की क्षमता में आए परिवर्तन पर संतोष व्यक्त किया गया है। वहीं महक के अभिभावक स्वास्थ्य विभाग की पूरी टीम का धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि आज शासन की योजना एवं डाॅक्टरों के सहयोग से ही मेरी बेटी महक को दूसरा जीवन मिला है। जिसमें वह सामान्य बच्चों की तरह सुनने लगी है। उसे स्पीच थेरेपी के माध्यम से बोलना भी सिखाया जा रहा है, जो 18 माह तक चलेगी।
पन्ना जिले के देवेन्द्रनगर के ग्राम जमुनहाई के यादव परिवार में महक का जन्म 2014 में हुआ था। महक की माॅं अनुराधा यादव गांव की आशा कार्यकर्ता है और पिता लोकेन्द्र यादव खेती बाडी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। महक की 2 बडी बहनें भी हैं। महक जब ढाई वर्ष की हुई तब अनुराधा को महसूस हुआ कि महक आवाज देने पर कोई प्रतिक्रिया नही करती है। जब परिवार के बाकी सदस्यों को भी यह पता चला की महक सुन नही सकती तो वे सब बहुत चिंतित हो गये। एक तो महक लडकी और उपर से सुनाई न देने की समस्या से परिवार के लोग उसके भविष्य को लेकर परेशान रहने लगे। बाहर जाकर बडे डाॅक्टरों को दिखाया। उन्होंने सलाह दी कि बच्ची को सुनाई न देने की परेशानी जन्मजात है और इसका एक ही ईलाज है आपरेशन। उन्होंने बताया कि आपरेशन का खर्च 6 से 7 लाख के बीच आएगा।
यह सुनकर उनके परिवार के लोग निराश हो गए क्योंकि आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी कि इतना मंहेगा खर्च उठा सके। चूंकि महक की माॅं आशा कार्यकर्ता हैं, जब उन्हें मंहगे उपचार का पता चला तो उन्होंने अपने घर वालों को शासन के राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के बारे में बताया। जब गांव की आंगनवाडी में आरबीएसके टीम का भ्रमण हुआ तो टीम के डाॅक्टर अनूप सोनी से महक का परीक्षण कराया गया। उन्होंने महक को आगे के उपचार के लिए जिला चिकित्सालय पन्ना रेफर करने की सलाह दी। जिसके बाद महक की माॅं जिले में आकर डाॅक्टर सुबोध खम्परिया आरबीएसके समन्वयक से मिली। उन्होंने सभी आवश्यक जांचे कराकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना डाॅ. एल.के. तिवारी के माध्यम से प्रकरण तैयार कर क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं सागर स्वीकृति के लिए भेज दिया।
स्वीकृति मिलने के बाद 18 मार्च 2018 को रासेन्द्र नाहर नर्सिंग होम सतना में महक के कान का आपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। दिनांक 11 जून 2018 को महक फालोअप के लिए जिला चिकित्सालय पन्ना बुलाया गया था। जहां मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, नाक, कान, गला विशेषज्ञ डाॅ. डी.पी. प्रजापति एवं नोडल अधिकारी आरबीएसके डाॅ. प्रदीप गुप्ता द्वारा महक के सुनने की क्षमता में आए परिवर्तन पर संतोष व्यक्त किया गया है। वहीं महक के अभिभावक स्वास्थ्य विभाग की पूरी टीम का धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि आज शासन की योजना एवं डाॅक्टरों के सहयोग से ही मेरी बेटी महक को दूसरा जीवन मिला है। जिसमें वह सामान्य बच्चों की तरह सुनने लगी है। उसे स्पीच थेरेपी के माध्यम से बोलना भी सिखाया जा रहा है, जो 18 माह तक चलेगी।
दुग्ध उत्पादन बढने से बढ रही पशुपालकों की आय-पशु विभाग द्वारा संचालित समुन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम (मुर्रा पाड़ा योजना) से पशु नस्लों में सुधार हो रहा है। भैंस नस्ल में सुधार होने से दुग्ध उत्पादन बढ रहा है तथा पशुपालकों की आय में अतिरिक्त वृद्धि हो रही है। पन्ना जिले के अजयगढ़ विकासखण्ड के ग्राम सिमर्दा निवासी श्री राधाचरण पटेल योजना का लाभ लेकर प्रति माह 15 हजार से 20 हजार रूपये की आय प्राप्त कर रहे हैं।
श्री राधाचरण एक लघु किसान हैं जो खेती के साथ-साथ पशुपालन का व्यवसाय करते थे। वे बताते हैं कि उनके पास अवर्णित नस्ल की 4 भैंसे थी जिनसे 10 लीटर प्रति दिन का ही दुग्ध उत्पादन होता था। एक दिन मेरी मुलाकात पशु चिकित्सक डाॅ. नरेन्द्र सिंह बुन्देला से हुई उन्होंने विभाग द्वारा संचालित समुन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम के अन्तर्गत मुर्रा पाडा योजना की जानकारी दी और विभाग द्वारा मिलने वाले अनुदान से भी अवगत कराया। उन्होंने बताया कि आपके क्षेत्र में पर्याप्त अवर्णित नस्ल की भैंसे हैं, मुर्रा नस्ल के पाडा का लाभ लेकर आप अपनी एवं क्षेत्र की भैंसों की नस्ल में सुधार ला सकते हैं। इससे दुग्ध उत्पादन बढेगा एवं आय में वृद्धि होगी।
पशु चिकित्सक की सलाह पर श्री राधाचरण पटेल द्वारा मात्र 6250 रूपये अंशदान एवं 18750 रूपये शासकीय अनुदान में मुर्रा नस्ल का पाडा विभाग के माध्यम से लिया गया। जिसकी इकाई लागत केवल 25 हजार रूपये है। राधाचरण बताते है कि क्षेत्र के लोग उनके घर अपनी भैंसे 300-400 रूपये की एवज में देकर जाते हैं इससे क्षेत्र की भैंसों में नस्ल सुधार के साथ-साथ क्षेत्र का दुग्ध उत्पादन बढा है। यहां के लोगों की प्रति व्यक्ति आय भी बढी है। अब उन्हंे भी मुर्रा पाडा के माध्यम से 1500-2000 रूपये प्रतिमाह की अतिरिक्त आय के साथ दुग्ध उत्पादन में हुई बढोतरी से 15000 से 20000 रूपये की आय प्राप्त हो रही है। पशुपालन विभाग की इस योजना से श्री पटेल अत्यंत खुश हैं साथ ही क्षेत्रीय लोगों में पशुपालन विभाग द्वारा संचालित अनुदान पर मुर्रा पाडा प्रदाय योजना चर्चा का विषय बनी हुई है।
श्री राधाचरण एक लघु किसान हैं जो खेती के साथ-साथ पशुपालन का व्यवसाय करते थे। वे बताते हैं कि उनके पास अवर्णित नस्ल की 4 भैंसे थी जिनसे 10 लीटर प्रति दिन का ही दुग्ध उत्पादन होता था। एक दिन मेरी मुलाकात पशु चिकित्सक डाॅ. नरेन्द्र सिंह बुन्देला से हुई उन्होंने विभाग द्वारा संचालित समुन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम के अन्तर्गत मुर्रा पाडा योजना की जानकारी दी और विभाग द्वारा मिलने वाले अनुदान से भी अवगत कराया। उन्होंने बताया कि आपके क्षेत्र में पर्याप्त अवर्णित नस्ल की भैंसे हैं, मुर्रा नस्ल के पाडा का लाभ लेकर आप अपनी एवं क्षेत्र की भैंसों की नस्ल में सुधार ला सकते हैं। इससे दुग्ध उत्पादन बढेगा एवं आय में वृद्धि होगी।
पशु चिकित्सक की सलाह पर श्री राधाचरण पटेल द्वारा मात्र 6250 रूपये अंशदान एवं 18750 रूपये शासकीय अनुदान में मुर्रा नस्ल का पाडा विभाग के माध्यम से लिया गया। जिसकी इकाई लागत केवल 25 हजार रूपये है। राधाचरण बताते है कि क्षेत्र के लोग उनके घर अपनी भैंसे 300-400 रूपये की एवज में देकर जाते हैं इससे क्षेत्र की भैंसों में नस्ल सुधार के साथ-साथ क्षेत्र का दुग्ध उत्पादन बढा है। यहां के लोगों की प्रति व्यक्ति आय भी बढी है। अब उन्हंे भी मुर्रा पाडा के माध्यम से 1500-2000 रूपये प्रतिमाह की अतिरिक्त आय के साथ दुग्ध उत्पादन में हुई बढोतरी से 15000 से 20000 रूपये की आय प्राप्त हो रही है। पशुपालन विभाग की इस योजना से श्री पटेल अत्यंत खुश हैं साथ ही क्षेत्रीय लोगों में पशुपालन विभाग द्वारा संचालित अनुदान पर मुर्रा पाडा प्रदाय योजना चर्चा का विषय बनी हुई है।
रोशनी का महत्व वही समझ सकता है जो रोज अंधेरों से लडता है। ऐसी ही लड़ाई पिछले 70 वर्षो से काजल और उसका परिवार लडता आ रहा था। लेकिन अब काजल का जीवन रोशनी से भर उठा है। वह अब रात में भी पढ़ाई कर पाती है। अंधेरे को ही अपनी तकदीर मान चुकी काजल और उसका परिवार शासन को धन्यवाद देते हुए नही थक रहा है और इसकी वजह है सौभाग्य योजना से काजल के घर तक बिजली का पहुंचना।
आजादी के 70 वर्ष बाद भी काजल के घर रोशनी नही पहुंची थी। पन्ना जिले की देवेन्द्रनगर तहसील के ग्राम तिदुनहाई में रहने वाला काजल पिता बलीराम का परिवार अंधेरे को ही अपनी तकदीर मान जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन माननीय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्रीजी की महत्वाकांक्षी योजना ’’प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना-सौभाग्य योजना’’ के तहत ग्राम तिदुनहाई के 74 घरों में बिजली पहुंचाने का कार्य पूर्ण हो चुका है। इन्ही में से एक काजल का घर भी है। पहले उसके घर के सभी लोगों को सारे काम दिन की रोशनी में ही करने पडते थे। रात में डिब्बी जलाकर जैसे तैसे समय काटते रहते थे। पढाई तो अंधेरा होने के बाद घर के दूसरे कार्य करना भी बहुत मुश्किल हो जाता था। लेकिन सौभाग्य योजना के तहत काजल के घर में बिजली क्या पहुंची है उसका घर खुशियों से भर उठा है। अब बच्चे रात में भी पढ पाते हैं। घर की महिलाओं को पूरा दिन काम में नही लगना पडता। अपनी सुविधा अनुसार वे दिन और रात में काम का बंटवारा कर आराम से जीवन यापन करने लगे हैं।
आजादी के 70 वर्ष बाद भी काजल के घर रोशनी नही पहुंची थी। पन्ना जिले की देवेन्द्रनगर तहसील के ग्राम तिदुनहाई में रहने वाला काजल पिता बलीराम का परिवार अंधेरे को ही अपनी तकदीर मान जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन माननीय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्रीजी की महत्वाकांक्षी योजना ’’प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना-सौभाग्य योजना’’ के तहत ग्राम तिदुनहाई के 74 घरों में बिजली पहुंचाने का कार्य पूर्ण हो चुका है। इन्ही में से एक काजल का घर भी है। पहले उसके घर के सभी लोगों को सारे काम दिन की रोशनी में ही करने पडते थे। रात में डिब्बी जलाकर जैसे तैसे समय काटते रहते थे। पढाई तो अंधेरा होने के बाद घर के दूसरे कार्य करना भी बहुत मुश्किल हो जाता था। लेकिन सौभाग्य योजना के तहत काजल के घर में बिजली क्या पहुंची है उसका घर खुशियों से भर उठा है। अब बच्चे रात में भी पढ पाते हैं। घर की महिलाओं को पूरा दिन काम में नही लगना पडता। अपनी सुविधा अनुसार वे दिन और रात में काम का बंटवारा कर आराम से जीवन यापन करने लगे हैं।
सब्जी उत्पादन द्वारा अब बेहतर ढंग से चला रही अपनी आजीविका-पन्ना जिले की लोकेशन देवेन्द्रनगर के अन्तर्गत तेजस्विनी संघ का एक कलस्टर है ग्राम भिलसांय। ग्राम भिलसांय में वर्ष 2008 में पूजा तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह का गठन किया गया है। इसी समूह की एक सदस्य श्रीमती आहिल्या कुशवाहा है जो आज समूह से जुडने के बाद सब्जी उत्पादन कर लगभग 9 हजार रूपये की मासिक आमदनी प्राप्त कर रही हैं। इससे अब आहिल्या परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह से करने साथ अपनी आजीविका बेहतर ढंग से चला रही हैं।
इस संबंध में आहिल्या बताती हैं कि पहले वह मजदूरी एवं कृषि का कार्य कर जैसे-तैसे अपनी आजीविका चलाती थी। उन्हें अधिकतम 3 हजार रूपये प्रतिमाह की आमदनी ही हो पाती थी। पूजा तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह से जुडने के बाद मैंने सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया। आजीविका गतिविधि शुरू करने के लिए मैंने समूह की कुल बचत से 5 हजार रूपये का लोन लिया। तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत कुछ छूट के साथ आहिल्या को उद्यानिकी विभाग से मिर्च का बीज, कीटनाशक दवाई एवं खाद दिलवायी गयी। जिसके बाद आहिल्या ने आधा एकड़ जमीन में मिर्च की खेती की। मिर्च की फसल अच्छी हुई। इस तरह समूह द्वारा प्राप्त 5 हजार रूपये का लोन लेकर की गयी खेती से लगभग एक लाख रूपये की आमदनी मिर्च की बिक्री द्वारा प्राप्त हुई। जिसके बाद पूजा तेजस्विनी समूह का खाता बैंक में खुलवाया गया। बाद में बैंक लिंकेज भी हो गया और बैंक से 25 हजार रूपये का ऋण पास हुआ।
बैंक से ऋण पास होने पर अब आहिल्या सब्जी उत्पादन के लिए 10 हजार रूपये समूह से एवं 30 हजार रूपये का ऋण संघमित्रा से लेकर अपनी पूरी 2 एकड़ की जमीन पर सब्जी का उत्पादन कर रही हैं। खेत में उनके द्वारा बोर करवा लिया गया है। सब्जी उत्पादन व विक्रय का कार्य नियमित रूप से होने लगा है। पहले जहां इनके पास समूह की बचत जमा करने के लिए पैसे नही रहते थे वहीं आज स्वयं के 50 हजार रूपये एवं कुछ रूपये समूह से लोन लेकर बडे रूप में सब्जी का उत्पादन कर रही हैं। आज सब्जी उत्पादन से आहिल्या की मासिक आय 9 हजार रूपये हो गयी है। इससे आहिल्या के परिवार की आजीविका बेहतर ढंग से चलने लगी है। इनता ही आहिल्या से प्रोत्साहित होकर आज कई समूह की सदस्य नियमित रूप से सब्जी उत्पादन का कार्य करते हुए अपनी आजीविका चला रही हैं।
इस संबंध में आहिल्या बताती हैं कि पहले वह मजदूरी एवं कृषि का कार्य कर जैसे-तैसे अपनी आजीविका चलाती थी। उन्हें अधिकतम 3 हजार रूपये प्रतिमाह की आमदनी ही हो पाती थी। पूजा तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह से जुडने के बाद मैंने सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया। आजीविका गतिविधि शुरू करने के लिए मैंने समूह की कुल बचत से 5 हजार रूपये का लोन लिया। तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत कुछ छूट के साथ आहिल्या को उद्यानिकी विभाग से मिर्च का बीज, कीटनाशक दवाई एवं खाद दिलवायी गयी। जिसके बाद आहिल्या ने आधा एकड़ जमीन में मिर्च की खेती की। मिर्च की फसल अच्छी हुई। इस तरह समूह द्वारा प्राप्त 5 हजार रूपये का लोन लेकर की गयी खेती से लगभग एक लाख रूपये की आमदनी मिर्च की बिक्री द्वारा प्राप्त हुई। जिसके बाद पूजा तेजस्विनी समूह का खाता बैंक में खुलवाया गया। बाद में बैंक लिंकेज भी हो गया और बैंक से 25 हजार रूपये का ऋण पास हुआ।
बैंक से ऋण पास होने पर अब आहिल्या सब्जी उत्पादन के लिए 10 हजार रूपये समूह से एवं 30 हजार रूपये का ऋण संघमित्रा से लेकर अपनी पूरी 2 एकड़ की जमीन पर सब्जी का उत्पादन कर रही हैं। खेत में उनके द्वारा बोर करवा लिया गया है। सब्जी उत्पादन व विक्रय का कार्य नियमित रूप से होने लगा है। पहले जहां इनके पास समूह की बचत जमा करने के लिए पैसे नही रहते थे वहीं आज स्वयं के 50 हजार रूपये एवं कुछ रूपये समूह से लोन लेकर बडे रूप में सब्जी का उत्पादन कर रही हैं। आज सब्जी उत्पादन से आहिल्या की मासिक आय 9 हजार रूपये हो गयी है। इससे आहिल्या के परिवार की आजीविका बेहतर ढंग से चलने लगी है। इनता ही आहिल्या से प्रोत्साहित होकर आज कई समूह की सदस्य नियमित रूप से सब्जी उत्पादन का कार्य करते हुए अपनी आजीविका चला रही हैं।
आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप अमले ने निभाई सक्रिय भूमिका
-मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर बसर करने वाले श्री मुन्ना चैधरी की तीसरी संतान है रागिनी। पन्ना जिले के अमानगंज में रहने वाले परिवार में रागिनी का जन्म 25 मई 2016 को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अमानगंज में हुआ। रागिनी के जन्म के बाद आंगनवाडी केन्द्र की कार्यकर्ता श्रीमती अंजुला जैन द्वारा रागिनी को पंजीकृत किया गया। श्रीमती अंजुला अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए प्रत्येक माह रागिनी का वजन लेती और उसे वृद्धि चार्ट में अंकित करती जाती। लेकिन जब रागिनी लगभग एक वर्ष 3 माह की थी तब रागिनी के वजन ने आंगनवाडी कार्यकर्ता की चिंता बढा दी। अगस्त 2017 में रागिनी का वजन 7.900 किलो ग्राम एवं एमयूएसी माप 11.4 होने से वृद्धि चार्ट में रागिनी लाल रेखा में आ गयी। यह लाल रेखा स्पष्ट कर रही थी कि रागिनी कुपोषण का शिकार हो चुकी है।
रागिनी को कुपोषण चक्र से बचाने के लिए तत्काल आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप (सुदृढ़ीकरण एवं पोषण उन्नयन कार्यक्रम) के अमले द्वारा रागिनी के माता-पिता से सम्पर्क किया गया। बच्ची के कुपोषित होने की जानकारी से उसके माता-पिता घबरा गए। तब आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप अमले ने रागिनी की माॅ श्रीमती अभिलाषा और पिता मुन्ना चैधरी को समझाईश देते हुए उनकी हिम्मत बांधी और रागिनी को एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) में भर्ती कराने के लिए तैयार कर लिया। जिसके बाद रागिनी को 2 नवंबर 17 को एनआरसी केन्द्र में भर्ती कराया गया। रागिनी यहां 16 नंवबर 2017 तक भर्ती रही। जिसके बाद आगंनवाडी कार्यकर्ता द्वारा 30 नवंबर, 15 एवं 30 दिसंबर 2017 तथा 15 जनवरी 2018 को रागिनी के 4 फलोअप किए गए। इसके अलावा आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप के अमले द्वारा रागिनी के माता-पिता को समय-समय पर घर में साफ-सफाई रखने, भोजन पूर्व हांथ धोने, बच्चे को रोज आंगनवाडी केन्द्र भेजने एवं नियमित वजन कराने की समझाईश भी दी जाती रही।
परिणाम यह हुआ कि अब रागिनी का वजन बढकर 8.800 किलो ग्राम एवं एमयूएसी माप 12.6 हो चुका है। महिला एवं बाल विकास विभाग के अमले के प्रयासों से रागिनी अब कुपोषण के चक्र से बाहर आकर एक स्वस्थ जीवन जी रही है।
रागिनी को कुपोषण चक्र से बचाने के लिए तत्काल आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप (सुदृढ़ीकरण एवं पोषण उन्नयन कार्यक्रम) के अमले द्वारा रागिनी के माता-पिता से सम्पर्क किया गया। बच्ची के कुपोषित होने की जानकारी से उसके माता-पिता घबरा गए। तब आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप अमले ने रागिनी की माॅ श्रीमती अभिलाषा और पिता मुन्ना चैधरी को समझाईश देते हुए उनकी हिम्मत बांधी और रागिनी को एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) में भर्ती कराने के लिए तैयार कर लिया। जिसके बाद रागिनी को 2 नवंबर 17 को एनआरसी केन्द्र में भर्ती कराया गया। रागिनी यहां 16 नंवबर 2017 तक भर्ती रही। जिसके बाद आगंनवाडी कार्यकर्ता द्वारा 30 नवंबर, 15 एवं 30 दिसंबर 2017 तथा 15 जनवरी 2018 को रागिनी के 4 फलोअप किए गए। इसके अलावा आंगनवाडी कार्यकर्ता एवं स्निप के अमले द्वारा रागिनी के माता-पिता को समय-समय पर घर में साफ-सफाई रखने, भोजन पूर्व हांथ धोने, बच्चे को रोज आंगनवाडी केन्द्र भेजने एवं नियमित वजन कराने की समझाईश भी दी जाती रही।
परिणाम यह हुआ कि अब रागिनी का वजन बढकर 8.800 किलो ग्राम एवं एमयूएसी माप 12.6 हो चुका है। महिला एवं बाल विकास विभाग के अमले के प्रयासों से रागिनी अब कुपोषण के चक्र से बाहर आकर एक स्वस्थ जीवन जी रही है।
पन्ना जिले की नगर परिषद देवेन्द्रनगर के वार्ड क्र. 06 के निवासी सम्मेलन सिंह के लिए प्रदूषण मुक्त व्यवसाय आजीविका का सहारा बन गया है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत प्राप्त ई-रिक्शा संचालन से वह प्रतिदिन न्यूनतम 500 रूपये की आय प्राप्त कर रहे हैं।
सम्मेलन सिंह के सर पर अपने वृद्ध माता-पिता के साथ-साथ एक पुत्री एवं 2 पुत्रों की जिम्मेदारी थी। लेकिन आय का कोई निश्चित साधन नहीं होने से सम्मेलन अपने परिवार का पालन पोषण ठीक से नही कर पा रहे थे। एक दिन नगर परिषद देवेन्द्रनगर के प्रचार-प्रसार एवं समाचार पत्रों के माध्यम से सम्मेलन सिंह को स्वर्ण जयंती शहरी स्वरोजगार योजना (मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना) की जानकारी प्राप्त हुई। योजना की जानकारी सम्मेलन के लिए अवसर साबित हुई। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति से परेशान सम्मेलन को जैसे बड़ा सहारा मिल गया। वाहन चालन में कौशल होने के कारण सम्मेलन ने योजना की मदद से नगरीय क्षेत्र एवं आसपास के क्षेत्रों में परिवहन का व्यवसाय करने का निर्णय लिया और नगर परिषद के मागदर्शन में ई-रिक्शा के लिए आवेदन कर दिया।
सम्मेलन बताते हैं कि उन्होंने योजना के तहत ई-रिक्शा के लिए डेढ़ लाख रूपये का ऋण आवेदन वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रस्तुत किया। नगर परिषद देवेन्द्रनगर द्वारा ऋण प्रकरण स्वीकृत कर प्रकरण टीएफसी बैठक में रखा गया। बैठक से स्वीकृति उपरांत प्रकरण वितरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक देवेन्द्रनगर प्रेषित कर दिया गया। जिला शहरी विकास अभिकरण द्वारा 30 हजार रूपये की अनुदान राशि भी बैंक को प्रदान की गयी। जिसके बाद बैंक द्वारा मेरी रूचि के अनुसार ई-रिक्शा क्रय कराया जाकर मुझे प्रदान किया गया है। प्रदूषण मुक्त व्यवसाय की मदद से आज मैं प्रतिदिन न्यूनतम 500 रूपये की आमदनी प्राप्त कर पा रहा हॅू। इसमें डीजल का खर्च भी नहीं उठाना पड़ता। मेरे द्वारा ई-रिक्शा के माध्यम से नियमित परिवहन का कार्य किया जा रहा है। इससे प्राप्त आय से अब मैं अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उचित ढंग से उठा पाने में सक्षम हॅू। परिवार के लोगों का पालन पोषण भलीभांति कर पा रहा हॅू। इससे समाज में भी मेरा सम्मान बढा है। सम्मेलन सिंह इसका श्रेय मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना एवं नगर परिषद देवेन्द्रनगर को देते हैं। साथ ही वह अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना से जुडकर लाभान्वित होने के लिए प्रेरित करने का कार्य कर रहे हैं।
सम्मेलन सिंह के सर पर अपने वृद्ध माता-पिता के साथ-साथ एक पुत्री एवं 2 पुत्रों की जिम्मेदारी थी। लेकिन आय का कोई निश्चित साधन नहीं होने से सम्मेलन अपने परिवार का पालन पोषण ठीक से नही कर पा रहे थे। एक दिन नगर परिषद देवेन्द्रनगर के प्रचार-प्रसार एवं समाचार पत्रों के माध्यम से सम्मेलन सिंह को स्वर्ण जयंती शहरी स्वरोजगार योजना (मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना) की जानकारी प्राप्त हुई। योजना की जानकारी सम्मेलन के लिए अवसर साबित हुई। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति से परेशान सम्मेलन को जैसे बड़ा सहारा मिल गया। वाहन चालन में कौशल होने के कारण सम्मेलन ने योजना की मदद से नगरीय क्षेत्र एवं आसपास के क्षेत्रों में परिवहन का व्यवसाय करने का निर्णय लिया और नगर परिषद के मागदर्शन में ई-रिक्शा के लिए आवेदन कर दिया।
सम्मेलन बताते हैं कि उन्होंने योजना के तहत ई-रिक्शा के लिए डेढ़ लाख रूपये का ऋण आवेदन वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रस्तुत किया। नगर परिषद देवेन्द्रनगर द्वारा ऋण प्रकरण स्वीकृत कर प्रकरण टीएफसी बैठक में रखा गया। बैठक से स्वीकृति उपरांत प्रकरण वितरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक देवेन्द्रनगर प्रेषित कर दिया गया। जिला शहरी विकास अभिकरण द्वारा 30 हजार रूपये की अनुदान राशि भी बैंक को प्रदान की गयी। जिसके बाद बैंक द्वारा मेरी रूचि के अनुसार ई-रिक्शा क्रय कराया जाकर मुझे प्रदान किया गया है। प्रदूषण मुक्त व्यवसाय की मदद से आज मैं प्रतिदिन न्यूनतम 500 रूपये की आमदनी प्राप्त कर पा रहा हॅू। इसमें डीजल का खर्च भी नहीं उठाना पड़ता। मेरे द्वारा ई-रिक्शा के माध्यम से नियमित परिवहन का कार्य किया जा रहा है। इससे प्राप्त आय से अब मैं अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उचित ढंग से उठा पाने में सक्षम हॅू। परिवार के लोगों का पालन पोषण भलीभांति कर पा रहा हॅू। इससे समाज में भी मेरा सम्मान बढा है। सम्मेलन सिंह इसका श्रेय मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना एवं नगर परिषद देवेन्द्रनगर को देते हैं। साथ ही वह अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना से जुडकर लाभान्वित होने के लिए प्रेरित करने का कार्य कर रहे हैं।
पहले खेती छोड़कर अन्य व्यवसाय करने का मन बना रहे थे श्याम-अवैज्ञानिक तरीके से खेती करने से लागत तो बढती जा रही थी लेकिन फसल का उत्पादन उतना नही हो पा रहा था। इससे श्याम का खेती से लगाव कम होता जा रहा था। थक हार कर वह खेती छोड़ कोई अन्य व्यवसाय करने का मन बनाने लगे थे। लेकिन कृषि विभाग के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होकर उनका हृदय परिवर्तित हो गया। आज कृषि ने ही श्याम शुक्ला को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना दिया है। इस वर्ष उन्हें 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के मान से लगभग 35 क्विंटल सरसों का उत्पादन प्राप्त हुआ है।
श्री श्याम शुक्ला पन्ना विकासखण्ड के ग्राम अहिरगुवा के निवासी हैं। श्री श्याम बताते हैं कि लगभग 3 वर्ष पहले कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। साथ ही क्षेत्रीय कृषि अधिकारी से सम्पर्क के बाद मेरे मन में खेती के प्रति फिर से लगाव उत्पन्न होने लगा था। जबकि मैं निराश होकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना रहा था। कृषि अधिकारी द्वारा मुझे खेती के द्वारा अधिक लाभ अर्जित करने एवं फसल के साथ-साथ उससे जुडे हुए अन्य व्यवसाय अपनाने की सलाह दी गयी। शुरूआत में मुझे विश्वास नही हो रहा था कि कृषि भी मुझे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सकती है। इस समय क्षेत्रीय कृषि अधिकारी द्वारा बार-बार मुझे प्रोत्साहित किया गया। जिसके बाद मैंने अपनी कृषि भूमि में वैज्ञानिक ढंग से खेती प्रारंभ कर दी।
श्याम बताते हैं कि पहले लागत तो अधिक थी लेकिन उत्पादन कम होता था। पर अब वैज्ञानिक ढंग से खेती करने से अच्छा उत्पादन प्राप्त होने लगा है। इस वर्ष मैंने पंक्ति में सरसों की बुवाई की थी। इससे फसल की देखरेख एवं अन्य आवश्यक कृषि गतिविधियों में भी आसानी हुई। अब मैं खेती के लिए आवश्यक खाद बगैरह भी स्वयं बनाने लगा हूॅ। इस वर्ष मुझे 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के मान से लगभग 35 क्विंटल सरसों का उत्पादन प्राप्त हुआ है। अच्छी आय प्राप्त होने से मेरी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गयी है। इसके लिए मैं कृषि विभाग के अधिकारियों का आभारी हॅू जिन्होंने सही समय पर मेरा मार्गदर्शन कर मुझे वैज्ञानिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया। कृषक श्याम शुक्ला कहते हैं कि मेरी तरह अन्य किसान भाई भी खेती के वैज्ञानिक तरीके अपना कर खेती को लाभ का व्यवसाय बना सकते हैं।
श्री श्याम शुक्ला पन्ना विकासखण्ड के ग्राम अहिरगुवा के निवासी हैं। श्री श्याम बताते हैं कि लगभग 3 वर्ष पहले कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। साथ ही क्षेत्रीय कृषि अधिकारी से सम्पर्क के बाद मेरे मन में खेती के प्रति फिर से लगाव उत्पन्न होने लगा था। जबकि मैं निराश होकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना रहा था। कृषि अधिकारी द्वारा मुझे खेती के द्वारा अधिक लाभ अर्जित करने एवं फसल के साथ-साथ उससे जुडे हुए अन्य व्यवसाय अपनाने की सलाह दी गयी। शुरूआत में मुझे विश्वास नही हो रहा था कि कृषि भी मुझे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सकती है। इस समय क्षेत्रीय कृषि अधिकारी द्वारा बार-बार मुझे प्रोत्साहित किया गया। जिसके बाद मैंने अपनी कृषि भूमि में वैज्ञानिक ढंग से खेती प्रारंभ कर दी।
श्याम बताते हैं कि पहले लागत तो अधिक थी लेकिन उत्पादन कम होता था। पर अब वैज्ञानिक ढंग से खेती करने से अच्छा उत्पादन प्राप्त होने लगा है। इस वर्ष मैंने पंक्ति में सरसों की बुवाई की थी। इससे फसल की देखरेख एवं अन्य आवश्यक कृषि गतिविधियों में भी आसानी हुई। अब मैं खेती के लिए आवश्यक खाद बगैरह भी स्वयं बनाने लगा हूॅ। इस वर्ष मुझे 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के मान से लगभग 35 क्विंटल सरसों का उत्पादन प्राप्त हुआ है। अच्छी आय प्राप्त होने से मेरी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गयी है। इसके लिए मैं कृषि विभाग के अधिकारियों का आभारी हॅू जिन्होंने सही समय पर मेरा मार्गदर्शन कर मुझे वैज्ञानिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया। कृषक श्याम शुक्ला कहते हैं कि मेरी तरह अन्य किसान भाई भी खेती के वैज्ञानिक तरीके अपना कर खेती को लाभ का व्यवसाय बना सकते हैं।
परिवार का आर्थिक स्तर भी सुधरा और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर भी मिला -परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण किशोरी दूसरों का वाहन तो चलाने लगे। लेकिन इससे प्राप्त वेतन से उनके परिवार का खर्चा उठाना भी कठिन हो रहा था। किषोरी बंषकार अपने माता पिता के साथ पन्ना जिले के ग्राम सिमरिया में रहते हैं। प्रायवेट वाहन का ड्राईवर बनकर उन्हें केवल 3 हजार रूपये का मासिक वेतन प्राप्त हो रहा था। किशोरी अपने परिवार की स्थिति और अपनी इतनी कम आय से दुखी हो गए थे। तभी उन्हें समाचार पत्रों के माध्यम से उन्हें अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति के अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी प्राप्त हुई। इससे उनके मन में खुद का व्यवसाय करने की उम्मीद जागी।
किशोरी बताते हैं कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिलने के बाद बाद मैने जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित पन्ना के कार्यायल पहुंचकर अधिकारियों से सम्पर्क किया। क्योंकि मुझे वाहन चलाना आता था इसलिए मैंने स्वयं का आॅटो लेने का निर्णय लिया। अधिकारियों की मदद से आटो रिक्षा हेतु 200000/- के ऋण का आवेदन भरकर कार्यालय में जमा कर दिया । जिसे भारतीय स्टेट बैंेक शाखा सिमरिया में स्वीकृत हेतु प्रेषित किया गया।
बैंक ने योजनानुसार रूपये 200000/- स्वीकृत कर दिए। इस ऋण के विरूद्ध मुझे 60000/- रूपये अनुदान की राषि का लाभ भी जिला समिति से प्राप्त हुआ। ऋण प्राप्त होने के बाद मैंने अपना स्वयं का आॅटो रिक्शा खरीदा और चलाने लगा। इससे मुझे प्रतिदिन 400-500/- रूपये की आय प्राप्त हो रही है। मैं प्रतिमाह रूपये 5500/- ऋण की किश्त भी नियमित जमा कर रहा हॅू। योजना की मदद से न केवल मेरे परिवार का आर्थिक स्तर सुधरा है बल्कि अपना व्यवसाय प्रारंभ करके समाज में प्रतिष्ठा पूर्वक जीवन यापन करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। अन्य बेरोजगार युवाओं को भी इस योजना का लाभ अवश्य लेना चाहिए।
किशोरी बताते हैं कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिलने के बाद बाद मैने जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित पन्ना के कार्यायल पहुंचकर अधिकारियों से सम्पर्क किया। क्योंकि मुझे वाहन चलाना आता था इसलिए मैंने स्वयं का आॅटो लेने का निर्णय लिया। अधिकारियों की मदद से आटो रिक्षा हेतु 200000/- के ऋण का आवेदन भरकर कार्यालय में जमा कर दिया । जिसे भारतीय स्टेट बैंेक शाखा सिमरिया में स्वीकृत हेतु प्रेषित किया गया।
बैंक ने योजनानुसार रूपये 200000/- स्वीकृत कर दिए। इस ऋण के विरूद्ध मुझे 60000/- रूपये अनुदान की राषि का लाभ भी जिला समिति से प्राप्त हुआ। ऋण प्राप्त होने के बाद मैंने अपना स्वयं का आॅटो रिक्शा खरीदा और चलाने लगा। इससे मुझे प्रतिदिन 400-500/- रूपये की आय प्राप्त हो रही है। मैं प्रतिमाह रूपये 5500/- ऋण की किश्त भी नियमित जमा कर रहा हॅू। योजना की मदद से न केवल मेरे परिवार का आर्थिक स्तर सुधरा है बल्कि अपना व्यवसाय प्रारंभ करके समाज में प्रतिष्ठा पूर्वक जीवन यापन करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। अन्य बेरोजगार युवाओं को भी इस योजना का लाभ अवश्य लेना चाहिए।
चार के बजाय अब 40 लीटर दुग्ध उत्पादन से 15 हजार रूपये की अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हरिशंकर -हरिशंकर और उसका परिवार अब बहुत खुश रहने लगा है। वह अपने एवं आसपास के गांव में पशुपालन विभाग की योजना का गुणगान करते नही थकते हैं। इसकी वजह विभाग की आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजना से उनको मिलने वाली अतिरिक्त आय है। निःसंदेह मंहगाई के इस दौर में आय में वृद्धि होने से खुशियों का रास्ता अपने आप ही प्रशस्त हो जाता है।
श्री हरिशंकर गर्ग पन्ना जिले के ग्राम पटनातमौली के रहने वाले एक छोटे से किसान है। जो खेती के साथ-साथ छोटे स्तर पर पशुपालन का कार्य भी करते थे। उनकी आय का मुख्य साधन केवल कृषि कार्य ही था। उनके परिवार में केवल 2 देशी भैंस एवं 3 देशी गाय थी। इनसे मात्र 4 लीटर दुग्ध उत्पादन होता था, जिसका उपयोग हरिशंकर अपने परिवार के लिए ही कर पाते थे। हरिशंकर बताते हैं कि एक दिन उनकी मुलाकात पशुपालन विभाग के अधिकारी डाॅ. सी.पी. चैरसिया से हुई। जिन्होंने हरिशंकर को विभाग में संचालित आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनान्तर्गत स्थापित डेयरी इकाई के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने ही मुझे कृषि काम के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन कर अपनी आय बढाने की सलाह दी।
जिसके बाद हरिशंकर ने योजना के अन्तर्गत डेयरी इकाई स्थापना के लिए 10 मुर्रा ग्रेडेड भैंस के लिए ऋण आवेदन विभाग के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक शाखा सलेहा में भेज दिया। हरिशंकर बताते हैं कि बैंक से मुझे डेयरी इकाई स्थापना के लिए 8.40 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसमें 1.50 लाख रूपये की शासकीय अनुदान सहायता विभाग द्वारा प्रदाय की गयी। इसके साथ ही प्रतिमाह 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान भी दिया जा रहा है। डेयरी इकाई स्वीकृत होने के बाद मैंने प्रदेश के बाहर इलाहाबाद से प्रथम किश्त के रूप में 5 भैंसे ली हैं। जिनसे प्रतिदिन 40 लीटर दुग्ध का उत्पादन प्राप्त हो रहा है। दुग्ध का विक्रय 42 रूपये प्रति लीटर की दर से सलेहा में किया जा रहा है। इससे मुझे प्रतिदिन समस्त खर्चो एवं 17 हजार रूपये की मासिक किश्त बैंक को देने के बाद भी लगभग 500 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से 15 हजार रूपये की अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है। मैं पशुपालन विभाग की इस योजना के लिए शासन एवं विभागीय अधिकारियों का आभारी हॅू।
श्री हरिशंकर गर्ग पन्ना जिले के ग्राम पटनातमौली के रहने वाले एक छोटे से किसान है। जो खेती के साथ-साथ छोटे स्तर पर पशुपालन का कार्य भी करते थे। उनकी आय का मुख्य साधन केवल कृषि कार्य ही था। उनके परिवार में केवल 2 देशी भैंस एवं 3 देशी गाय थी। इनसे मात्र 4 लीटर दुग्ध उत्पादन होता था, जिसका उपयोग हरिशंकर अपने परिवार के लिए ही कर पाते थे। हरिशंकर बताते हैं कि एक दिन उनकी मुलाकात पशुपालन विभाग के अधिकारी डाॅ. सी.पी. चैरसिया से हुई। जिन्होंने हरिशंकर को विभाग में संचालित आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनान्तर्गत स्थापित डेयरी इकाई के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने ही मुझे कृषि काम के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन कर अपनी आय बढाने की सलाह दी।
जिसके बाद हरिशंकर ने योजना के अन्तर्गत डेयरी इकाई स्थापना के लिए 10 मुर्रा ग्रेडेड भैंस के लिए ऋण आवेदन विभाग के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक शाखा सलेहा में भेज दिया। हरिशंकर बताते हैं कि बैंक से मुझे डेयरी इकाई स्थापना के लिए 8.40 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसमें 1.50 लाख रूपये की शासकीय अनुदान सहायता विभाग द्वारा प्रदाय की गयी। इसके साथ ही प्रतिमाह 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान भी दिया जा रहा है। डेयरी इकाई स्वीकृत होने के बाद मैंने प्रदेश के बाहर इलाहाबाद से प्रथम किश्त के रूप में 5 भैंसे ली हैं। जिनसे प्रतिदिन 40 लीटर दुग्ध का उत्पादन प्राप्त हो रहा है। दुग्ध का विक्रय 42 रूपये प्रति लीटर की दर से सलेहा में किया जा रहा है। इससे मुझे प्रतिदिन समस्त खर्चो एवं 17 हजार रूपये की मासिक किश्त बैंक को देने के बाद भी लगभग 500 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से 15 हजार रूपये की अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है। मैं पशुपालन विभाग की इस योजना के लिए शासन एवं विभागीय अधिकारियों का आभारी हॅू।
दो माह के अन्दर बनाया सुन्दर आवास, दूसरों को दे रहे प्रेरणा -छोटी सी झोपड़ी में रहकर गुजर बसर करना और मजदूरी करके अपने परिवार को पालना, ऐसे ही बैसखुआ का जीवन कट रहा था। अतिगरीब बैसखुआ चैधरी पन्ना जिले की जनपद पंचायत पवई के ग्राम नारायणपुरा में रहते हैं। बैसखुआ ने सपने में भी नही सोचा था कि उसे और उसके परिवार को पक्की छत मिलेगी। उसे लगा था कि ईश्वर ने उसका जीवन छोटी झोपड़ी में ही व्यतीत करना लिखा है। जब उसे ग्राम पंचायत से पता चला कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उसका आवास स्वीकृत हो गया है तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
बैसखुआ बताते हैं कि जैसे ही उन्हें आवास स्वीकृति की जानकारी मिली उन्होंने भवन में लगने वाली सामग्री का इंतजाम करना शुरू कर दिया। केवल 60 दिन के अन्दर सुन्दर पक्के आवास का निर्माण कर वह दूसरों के लिए भी प्रेरणा का केन्द्र बिन्दु बन गया है। घर बनाकर जहां एक ओर उसने अपने सपने को साकार किया है वहीं दूसरी ओर 2 माह के अन्दर भवन निर्माण कर शासन द्वारा प्रदत्त राशि का समय पर सद्प्रयोग भी किया है। उसके सुन्दर आवास को देखने दूसरे गांव के लोग भी आते हैं। बैसखुआ अपने सुन्दर और पक्के आवास के लिए प्रधानमंत्रीजी एवं मुख्यमंत्रीजी के साथ-साथ जिला प्रशासन के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं।
बैसखुआ बताते हैं कि जैसे ही उन्हें आवास स्वीकृति की जानकारी मिली उन्होंने भवन में लगने वाली सामग्री का इंतजाम करना शुरू कर दिया। केवल 60 दिन के अन्दर सुन्दर पक्के आवास का निर्माण कर वह दूसरों के लिए भी प्रेरणा का केन्द्र बिन्दु बन गया है। घर बनाकर जहां एक ओर उसने अपने सपने को साकार किया है वहीं दूसरी ओर 2 माह के अन्दर भवन निर्माण कर शासन द्वारा प्रदत्त राशि का समय पर सद्प्रयोग भी किया है। उसके सुन्दर आवास को देखने दूसरे गांव के लोग भी आते हैं। बैसखुआ अपने सुन्दर और पक्के आवास के लिए प्रधानमंत्रीजी एवं मुख्यमंत्रीजी के साथ-साथ जिला प्रशासन के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं।
सफलता की कहानी-कृषक की जुबानी-पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड के ग्राम ककरहटा निवासी कृषक श्री अरविन्द खरे उद्यान विभाग की फल क्षेत्र विस्तार योजना से अच्छा लाभ कमा रहे हैं। वे बताते हैं कि पूर्व वर्ष में उद्यान विभाग की फल क्षेत्र विस्तार योजनांतर्गत के तहत आम का बगीचा लगाया था, जिसमें लगड़ा, आम्रपाली, दषहरी, संुदरजा, बाम्बेग्रीन किस्म के लगभग 65 पौधे लगाये थे। लगाये गये सभी पौधे जीवित है एवं अच्छे फल दे रहे है, जिसमें 30 से 40 क्विंटल के लगभग फल प्राप्त होते है। इसके अलावा उद्यान विभाग के अधिकारियांे की सलाह से मेरे द्वारा अमरूद के 30-35 पौधे, करौंदे के 125-150 पौधे, आंवला के 50-60 पौधे, कटहल के 03 पौधे एवं बनारसी बेर के 25-30 पौधों का रोपण किया गया था। सभी पौधे फल रहे है, जिसमें मुझे वर्ष भर में कृषि के अतिरिक्त 1.00 लाख की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है। साथ ही मेरे बगीचे में लगभग नीबू के 15-20 पौधे जनकपुर रोपणी से खरीद कर लगाये गये थे, जिसमें मुझे 12 से 15 हजार फल प्रति वर्ष प्राप्त हो रहे है एवं बनारसी बेर के पौधे से भी 10 क्विंटल फल प्रति वर्ष प्राप्त हो रहे है, जो मेरी आमदनी का अच्छा स्त्रोत है।
श्री खरे बताते हैं कि उद्यान विभाग के सहयोग से टेªक्टर विथ रोटावेटर क्रय किया जिससे मैने उद्यानिकी की खेती कर अधिक मुनाफा प्राप्त किया। उद्यानिकी अधिकारियों द्वारा मुझे समय-समय पर पौधों की कटाई-छटाई के साथ साथ रखरखाव की जानकारी भी प्रदाय की जाती है। वर्तमान मैं बगीचे से हो रही आमदनी से पूर्णतः संतुष्ट हूॅ। मैने उद्यान विभाग द्वारा वर्ष 2017-18 में आयोजित मधुमक्खी कार्यक्रम में प्रषिक्षण प्राप्त किया, जिससे मधुमक्खी पालन कर मैं और भी अधिक आमदनी प्राप्त कर सकता हूॅ। उद्यान में पलाष के बहुतायत मात्रा में पौधे लगे है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है, विभिन्न प्रवासों से पक्षी आकर अपने कलरव से क्रीड़ा कर उद्यान की शोभा बढा रहे है, जिससे मुझे आत्मीय आनंद की प्राप्ति होती है। कृषक अरविन्द खरे सभी किसान भाईयो से कहते हैं कि उद्यान विभाग से जुड़कर योजनाआंे का लाभ लें एवं अत्याधिक उद्यानिकी फसलों की खेती कर अपनी आय बढाये।
श्री खरे बताते हैं कि उद्यान विभाग के सहयोग से टेªक्टर विथ रोटावेटर क्रय किया जिससे मैने उद्यानिकी की खेती कर अधिक मुनाफा प्राप्त किया। उद्यानिकी अधिकारियों द्वारा मुझे समय-समय पर पौधों की कटाई-छटाई के साथ साथ रखरखाव की जानकारी भी प्रदाय की जाती है। वर्तमान मैं बगीचे से हो रही आमदनी से पूर्णतः संतुष्ट हूॅ। मैने उद्यान विभाग द्वारा वर्ष 2017-18 में आयोजित मधुमक्खी कार्यक्रम में प्रषिक्षण प्राप्त किया, जिससे मधुमक्खी पालन कर मैं और भी अधिक आमदनी प्राप्त कर सकता हूॅ। उद्यान में पलाष के बहुतायत मात्रा में पौधे लगे है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है, विभिन्न प्रवासों से पक्षी आकर अपने कलरव से क्रीड़ा कर उद्यान की शोभा बढा रहे है, जिससे मुझे आत्मीय आनंद की प्राप्ति होती है। कृषक अरविन्द खरे सभी किसान भाईयो से कहते हैं कि उद्यान विभाग से जुड़कर योजनाआंे का लाभ लें एवं अत्याधिक उद्यानिकी फसलों की खेती कर अपनी आय बढाये।
पति की मृत्यु के बाद घर को अकेले संभाला, आज लखपति क्लब में शामिल हैं-पति की मृत्यु के बाद रामकली यादव जैसे टूट गयी थीं। परिवार पर आर्थिक तंगी का संकट छा गया था। उन्हें खुद से ज्यादा अपने दो बेटों की चिंता थी। बच्चों के खातिर उन्होंने हिम्मत बांधी और नवंबर 2012 में स्व-सहायता समूह से जुडकर अपने परिवार को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का संकल्प लिया। कल्याणी रामकली यादव पन्ना जिले से लगभग 5 किलो मीटर की दूरी पर पन्ना विकासखण्ड के ग्राम मांझा में रहती हैं। इस गांव के लगभग 40 प्रतिशत लोग कृषि कार्य करते हैं। गांव में कुल 5 स्व-सहायता समूह गठित हैं। उनमें से रामकली जय संतोषी माॅं स्व-सहायता समूह की सदस्य हैं। रामकली आज अपने गांव के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गयी हैं और इतना ही नही अपने परिवार को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के साथ-साथ आज वह आजीविका मिशन के लखपति क्लब में शामिल हो गयी हैं।
रामकली बताती हैं कि समूह में शामिल होने से पहले उन्होंने मौसम आधारित कृषि एवं मजदूरी के रूप में पत्थर खदान में काम करके परिवार चलाने का प्रयास किया। लेकिन उन्हें अधिकतम 3 से 4 हजार रूपये की मासिक आय ही प्राप्त हो पाती थी। पत्थर खदान में काम करने के कारण स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था। जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत गठित स्व-सहायता समूह से जुडने का निर्णय लिया। स्व-सहायता समूह से प्रथम बार रामकली ने 50 हजार रूपये का ऋण लिया। स्वयं के मकान की स्थिति जर्जर होने के कारण रामकली ने इस ऋण से मकान की मरम्मत कराई और एक भैंस खरीदी। भैंस क्रय कर वह दुग्ध विक्रय का कार्य करने लगी। इससे हुई आय से उसने समूह से ली गयी राशि भी वापस कर दी।
रामकली का बेटा चतुर सिंह यादव ट्रेक्टर चलाना जानता था अब उसने अपने बेटों को भी परिवार की आय में शामिल करने का निर्णय लिया। रामकली ने दूसरी बार समूह से 30 हजार रूपये का ऋण लिया। जिसकी मदद से किराए पर ट्रेक्टर लेकर भूसा क्रय-विक्रय का कार्य अपने बेटे से कराने लगी। इससे उनकी आय में वृद्धि हुई और ऋण राशि की अदायगी भी की जाने लगी। ट्रेक्टर व्यवसाय से होने वाले लाभ को देखते हुए उन्होंने अपना स्वयं का ट्रेक्टर लेने की योजना बनाई। इस बार उन्होंने ट्रेक्टर खरीदने के लिए समूह से 2 लाख रूपये की मांग की। रामकली के लेनदेन की साख को देखते हुए समूह के द्वारा स्व-सहायता समूह के कोष से 2 लाख रूपये का ऋण प्रदान कर दिया गया। यह राशि मार्जिन मनी के रूप में जमा करते हुए रामकली द्वारा ट्रेक्टर फायनेन्स करा लिया गया। ट्रेक्टर व्यवसाय से आय में वृद्धि होने पर उन्होंने एक और भैंस क्रय की। इससे उनके दुग्ध व्यवसाय में भी वृद्धि हुई। रामकली पन्ना शहर में स्वयं दुग्ध विक्रय का कार्य करती हैं। वर्तमान में 7 से 8 हजार रूपये मासिक किश्त अदा करने के बाद उन्हें 10 से 12 हजार रूपये की आय प्राप्त हो जाती है। जिससे अब वह आजीविका मिशन के लखपति क्लब में सम्मिलित हो गयी हैं और ग्रामवासियों के लिए प्रेरणा देने का कार्य कर रही हैं।
रामकली बताती हैं कि समूह में शामिल होने से पहले उन्होंने मौसम आधारित कृषि एवं मजदूरी के रूप में पत्थर खदान में काम करके परिवार चलाने का प्रयास किया। लेकिन उन्हें अधिकतम 3 से 4 हजार रूपये की मासिक आय ही प्राप्त हो पाती थी। पत्थर खदान में काम करने के कारण स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था। जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत गठित स्व-सहायता समूह से जुडने का निर्णय लिया। स्व-सहायता समूह से प्रथम बार रामकली ने 50 हजार रूपये का ऋण लिया। स्वयं के मकान की स्थिति जर्जर होने के कारण रामकली ने इस ऋण से मकान की मरम्मत कराई और एक भैंस खरीदी। भैंस क्रय कर वह दुग्ध विक्रय का कार्य करने लगी। इससे हुई आय से उसने समूह से ली गयी राशि भी वापस कर दी।
रामकली का बेटा चतुर सिंह यादव ट्रेक्टर चलाना जानता था अब उसने अपने बेटों को भी परिवार की आय में शामिल करने का निर्णय लिया। रामकली ने दूसरी बार समूह से 30 हजार रूपये का ऋण लिया। जिसकी मदद से किराए पर ट्रेक्टर लेकर भूसा क्रय-विक्रय का कार्य अपने बेटे से कराने लगी। इससे उनकी आय में वृद्धि हुई और ऋण राशि की अदायगी भी की जाने लगी। ट्रेक्टर व्यवसाय से होने वाले लाभ को देखते हुए उन्होंने अपना स्वयं का ट्रेक्टर लेने की योजना बनाई। इस बार उन्होंने ट्रेक्टर खरीदने के लिए समूह से 2 लाख रूपये की मांग की। रामकली के लेनदेन की साख को देखते हुए समूह के द्वारा स्व-सहायता समूह के कोष से 2 लाख रूपये का ऋण प्रदान कर दिया गया। यह राशि मार्जिन मनी के रूप में जमा करते हुए रामकली द्वारा ट्रेक्टर फायनेन्स करा लिया गया। ट्रेक्टर व्यवसाय से आय में वृद्धि होने पर उन्होंने एक और भैंस क्रय की। इससे उनके दुग्ध व्यवसाय में भी वृद्धि हुई। रामकली पन्ना शहर में स्वयं दुग्ध विक्रय का कार्य करती हैं। वर्तमान में 7 से 8 हजार रूपये मासिक किश्त अदा करने के बाद उन्हें 10 से 12 हजार रूपये की आय प्राप्त हो जाती है। जिससे अब वह आजीविका मिशन के लखपति क्लब में सम्मिलित हो गयी हैं और ग्रामवासियों के लिए प्रेरणा देने का कार्य कर रही हैं।
इस वर्ष 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने के उत्पादन से परिवार में आयी खुशहाली-श्री अग्निमित्र शुक्ला पन्ना जिले के पन्ना विकासखण्ड के ग्राम अहिरगुवा के निवासी है। कृषक अग्निमित्र के पास तीन हेक्टेयर सिंचित रकवा है। इस वर्ष उन्होंने 2 एकड जमीन में चने का बीज बोया था। जिससे उन्हें लगभग 2 गुना उत्पादन प्राप्त हुआ है। उन्हें पूर्व के वर्षो की तुलना में 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के स्थान पर 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने का उत्पादन प्राप्त हुआ है।
अग्निमित्र बताते हैं कि मैं पिछले 7-8 वर्षो से चने की खेती करता आ रहा हॅू। चने के विभिन्न प्रकार के बीज मेरे द्वारा लगाए जाते रहे हैं। कई बार मैंने स्वयं बीज तैयार कर भी लगाया। कई बार बाजार से विभिन्न कम्पनियों के प्रमाणित बीज का उपयोग भी किया। लेकिन किसी से भी 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक का उत्पादन प्राप्त नही हुआ।
इस वर्ष माह नवंबर 2017 को मैंने पन्ना विकासखण्ड के वरिष्ठ कृषि अधिकारी श्री कमलकिशोर चैबे से भेंट की और उन्हें अपनी समस्या बताई। श्री चैबे ने मुझे कृषि विभाग की चना क्लस्टर प्रदर्शन योजना के अन्तर्गत चने का जे.जी.-63 प्रजाति का 60 किलो बीज प्रदाय किया। मैंने यह बीज 2 एकड में बोया। कृषि अधिकारियों की सलाह पर खेत में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अनुशंसा अनुसार उर्वरक डाला। इससे बीज का अंकुरण भी अच्छा हुआ और पौधों की बढवार भी अच्छी हुई। फलन के समय एक-एक पौधे में 120 से 140 फलियां लगी। इतनी अच्छी फसल देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैंने कृषि विभाग के अधिकारी श्री चैबे को भी फसल का निरीक्षण कराया।
उन्होंने बताया कि फसल कटाई के समय मुझे 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने का उत्पादन प्राप्त हुआ। कृषि अधिकारियों की सलाह पर अच्छे गुणवत्ता के बीज एवं अनुशंसित मात्रा में उर्वरक के प्रयोग से मुझे इस वर्ष 2 गुना उत्पादन प्राप्त हुआ है। जिससे मेरे परिवार में खुशहाली आयी है और परिवार के जीवन स्तर में भी सुधार आया है। अग्निमित्र अन्य कृषकों को भी उन्नत बीज से फसल उत्पादन में कई गुना वृद्धि कर लाभ कमाने की सलाह देते हैं।
अग्निमित्र बताते हैं कि मैं पिछले 7-8 वर्षो से चने की खेती करता आ रहा हॅू। चने के विभिन्न प्रकार के बीज मेरे द्वारा लगाए जाते रहे हैं। कई बार मैंने स्वयं बीज तैयार कर भी लगाया। कई बार बाजार से विभिन्न कम्पनियों के प्रमाणित बीज का उपयोग भी किया। लेकिन किसी से भी 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक का उत्पादन प्राप्त नही हुआ।
इस वर्ष माह नवंबर 2017 को मैंने पन्ना विकासखण्ड के वरिष्ठ कृषि अधिकारी श्री कमलकिशोर चैबे से भेंट की और उन्हें अपनी समस्या बताई। श्री चैबे ने मुझे कृषि विभाग की चना क्लस्टर प्रदर्शन योजना के अन्तर्गत चने का जे.जी.-63 प्रजाति का 60 किलो बीज प्रदाय किया। मैंने यह बीज 2 एकड में बोया। कृषि अधिकारियों की सलाह पर खेत में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अनुशंसा अनुसार उर्वरक डाला। इससे बीज का अंकुरण भी अच्छा हुआ और पौधों की बढवार भी अच्छी हुई। फलन के समय एक-एक पौधे में 120 से 140 फलियां लगी। इतनी अच्छी फसल देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैंने कृषि विभाग के अधिकारी श्री चैबे को भी फसल का निरीक्षण कराया।
उन्होंने बताया कि फसल कटाई के समय मुझे 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने का उत्पादन प्राप्त हुआ। कृषि अधिकारियों की सलाह पर अच्छे गुणवत्ता के बीज एवं अनुशंसित मात्रा में उर्वरक के प्रयोग से मुझे इस वर्ष 2 गुना उत्पादन प्राप्त हुआ है। जिससे मेरे परिवार में खुशहाली आयी है और परिवार के जीवन स्तर में भी सुधार आया है। अग्निमित्र अन्य कृषकों को भी उन्नत बीज से फसल उत्पादन में कई गुना वृद्धि कर लाभ कमाने की सलाह देते हैं।
अगरबत्ती निर्माण इकाई ने खतवार की महिलाओं को किया सुदृढ़-पन्ना जिले के ग्राम खतवार की महिलाएं सामूहिक गतिविधि द्वारा अगरबत्ती निर्माण कर रही हैं। इससे न केवल वे आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुई हैं बल्कि उनके आदिवासी ग्राम का भी विकास हुआ है। पहले जहां अधिकारियों का ही भ्रमण बिरले होता था वहीं आज जिले के जनप्रतिनिधिगण भी आए दिन दौरा करने आते हैं और महिलाओं की सराहना करते हैं। यह सब मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से संभव हुआ है।
जिले के बिरसिंहपुर क्लस्टर के अन्तर्गत आने वाला ग्राम है खतवार। जहां पर ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा अगरबत्ती यूनिट की स्थापना की गयी है। इस ग्राम में 5 महिला समूहों का गठन किया गया है। इन पांचों समूह के सदस्य सामूहिक गतिविधि द्वारा अगरबत्ती का निर्माण कर रहे हैं। इस संबंध में समूह की महिलाएं बताती हैं कि हमारा गांव खतवार आदिवासी ग्राम है जो पहले काफी पिछडा हुआ था। गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। लेकिन जब से ग्राम में अगरबत्ती निर्माण इकाई की स्थापना की गयी है तब से हमारे गांव का काफी विकास हुआ है। हमारी आर्थिक स्थिति भी पहले से सुदृढ़ हो गयी है। महिलाएं बताती है कि दूरस्थ अंचल में स्थित होने के कारण हमारे गांव में अधिकारी, कर्मचारी या जनप्रतिनिधियों का आना बहुत ही कम होता था। लेकिन अब हमारी अगरबत्ती निर्माण की यूनिट देखने अक्सर जनप्रतिनिधिगण एवं अधिकारी आते रहते हैं। उनके द्वारा की गयी प्रशंसा से हमारे उत्साह में और भी वृद्धि हुई है।
महिलाएं बताती है कि पहले हम जंगल से लकड़ी काटकर सिर में रखकर बाजार में बेचने जाते थे। इनती मेहनत करने के बाद भी हमें महीने में अधिकतम 1500 रूपये की आमदनी हो पाती थी। लेकिन अब अगरबत्ती निर्माण इकाई से बिना कठिन श्रम के लगभग 4500 रूपये की मासिक आमदनी आराम से हो जाती है। इससे हमारे पूरे गांव की महिलाओं को रोजगार का साधन मिल गया है। अगरबत्ती ने हमारे जीवन को भी महका दिया है। हम गांव की महिलाएं ग्रामीण आजीविका मिशन से जुडकर बहुत खुश हैं और शासन को धन्यवाद देते हैं कि हमारे गांव के लोगों को इस योजना का लाभ मिल सका।
जिले के बिरसिंहपुर क्लस्टर के अन्तर्गत आने वाला ग्राम है खतवार। जहां पर ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा अगरबत्ती यूनिट की स्थापना की गयी है। इस ग्राम में 5 महिला समूहों का गठन किया गया है। इन पांचों समूह के सदस्य सामूहिक गतिविधि द्वारा अगरबत्ती का निर्माण कर रहे हैं। इस संबंध में समूह की महिलाएं बताती हैं कि हमारा गांव खतवार आदिवासी ग्राम है जो पहले काफी पिछडा हुआ था। गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। लेकिन जब से ग्राम में अगरबत्ती निर्माण इकाई की स्थापना की गयी है तब से हमारे गांव का काफी विकास हुआ है। हमारी आर्थिक स्थिति भी पहले से सुदृढ़ हो गयी है। महिलाएं बताती है कि दूरस्थ अंचल में स्थित होने के कारण हमारे गांव में अधिकारी, कर्मचारी या जनप्रतिनिधियों का आना बहुत ही कम होता था। लेकिन अब हमारी अगरबत्ती निर्माण की यूनिट देखने अक्सर जनप्रतिनिधिगण एवं अधिकारी आते रहते हैं। उनके द्वारा की गयी प्रशंसा से हमारे उत्साह में और भी वृद्धि हुई है।
महिलाएं बताती है कि पहले हम जंगल से लकड़ी काटकर सिर में रखकर बाजार में बेचने जाते थे। इनती मेहनत करने के बाद भी हमें महीने में अधिकतम 1500 रूपये की आमदनी हो पाती थी। लेकिन अब अगरबत्ती निर्माण इकाई से बिना कठिन श्रम के लगभग 4500 रूपये की मासिक आमदनी आराम से हो जाती है। इससे हमारे पूरे गांव की महिलाओं को रोजगार का साधन मिल गया है। अगरबत्ती ने हमारे जीवन को भी महका दिया है। हम गांव की महिलाएं ग्रामीण आजीविका मिशन से जुडकर बहुत खुश हैं और शासन को धन्यवाद देते हैं कि हमारे गांव के लोगों को इस योजना का लाभ मिल सका।
पन्ना जिले की तहसील देवेन्द्रनगर के ग्राम फुलदरी के निवासी हैं हरछटिया चैधरी। जो बहुत ही कम पढा-लिखा होने के कारण दूसरों के यहां मजदूरी करके जैसे-तैसे भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन मन के किसी कोने में उन्होंने यह सपना भी छिपा रखा था कि उनका भी अपना व्यवसाय हो और किसी और के यहां मजदूरी न करनी पडे। किन्तु पंूजी के अभाव में उनका यह सपना साकार नही हो पा रहा था। फिर उन्हें एक दिन अपने परिचितों से जिला अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति पन्ना द्वारा गरीब अनुसूचित वर्ग के लिए चलाई जा रही मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी मिली। जिसने उनके मन में उम्मीद की किरण जगा दी।
इस संबंध में हरछटिया बताते हैं कि योजना की जानकारी मिलने के बाद मैंने सीधे जिला अन्त्यावसायी कार्यालय में सम्पर्क किया तथा कपडा व्यवसाय करने की अपनी योजना के बारे में वहां के अधिकारियों से चर्चा की। कार्यालय से मुझे एक फार्म प्राप्त हुआ जिसे भलीभांति भरकर सभी दस्तावेजों के साथ बैंक में जमा कर दिया। इस कार्य में विभागीय अधिकारियों ने मेरी पूरी सहायता की। बैंक से मुझे कपड़ा व्यवसाय के लिए 50 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसके साथ 15 हजार रूपये का अनुदान भी प्राप्त हुआ। इस राशि से मैंने कपडे का व्यवसाय शुरू कर दिया। अब मेरा कपड़ा व्यवसाय अच्छी तरह से चलने लगा है। ऋण की किश्त चुकाने के बाद मुझे 7 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी हो जाती है। बैंक की किश्तें भी समय पर जमा कर देता हॅू। अब मुझे ओरों के यहां मजदूरी नही करनी पडती। परिवार का भरण-पोषण भी पहले की अपेक्षा ठीक ढंग से हो पा रहा है। उनका खुद का व्यवसाय करने का सपना पूरा करने के लिए हरछटिया शासन की योजना और विभागीय अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं।
इस संबंध में हरछटिया बताते हैं कि योजना की जानकारी मिलने के बाद मैंने सीधे जिला अन्त्यावसायी कार्यालय में सम्पर्क किया तथा कपडा व्यवसाय करने की अपनी योजना के बारे में वहां के अधिकारियों से चर्चा की। कार्यालय से मुझे एक फार्म प्राप्त हुआ जिसे भलीभांति भरकर सभी दस्तावेजों के साथ बैंक में जमा कर दिया। इस कार्य में विभागीय अधिकारियों ने मेरी पूरी सहायता की। बैंक से मुझे कपड़ा व्यवसाय के लिए 50 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसके साथ 15 हजार रूपये का अनुदान भी प्राप्त हुआ। इस राशि से मैंने कपडे का व्यवसाय शुरू कर दिया। अब मेरा कपड़ा व्यवसाय अच्छी तरह से चलने लगा है। ऋण की किश्त चुकाने के बाद मुझे 7 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी हो जाती है। बैंक की किश्तें भी समय पर जमा कर देता हॅू। अब मुझे ओरों के यहां मजदूरी नही करनी पडती। परिवार का भरण-पोषण भी पहले की अपेक्षा ठीक ढंग से हो पा रहा है। उनका खुद का व्यवसाय करने का सपना पूरा करने के लिए हरछटिया शासन की योजना और विभागीय अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं।
घिसट-घिसट कर चलते हुए गांव के लोगों से एक-एक रोटी मांग कर पेट भरना और किसी भी छाया के नीचे रात गुजार लेना ऐसा जीवन जी रहे थे चन्ना लोध। विकलांग होने के साथ-साथ एक दम तन्हा। माता-पिता भी साथ नही। लेकिन अब अपने पक्के मकान में रहते हैं चन्ना। ग्राम पंचायत ने ट्रायसाइकिल भी दिलवा दी है। अब घिसटना नही पडता। जैसे शासन की मदद से उनकी किस्मत ने रूख मोड़ लिया हो।
दिव्यांग चन्ना लोध पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील के ग्राम सानगुरैया के रहने वाले हैं। चन्ना दोनों पैरों से विकलांग हैं। उन्होंने कभी सपने मंे भी नही सोचा था कि उनके बेसहारा और घिसटते जीवन को इतना बड़ा सहारा मिलेगा। ग्राम पंचायत के प्रयास से उन्हें ट्रायसाइकिल मिल गयी थी जिसके बाद चन्ना को बड़ी सहुलियत हुई। वह ट्रायसाइकिल की मदद से घर-घर जाकर रोटी मांग कर पेट भरने लगे। रात में किसी पेड या छज्जे के नीचे रात गुजार लेते थे। फिर उन्हें पता चला की वर्ष 2017-18 में उन्हें भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिलने वाला है। उनकी अपनी भी छत होगी तो वह फूले नही समाएं। लेकिन जैसे ही उन्हें अपनी विकलांगता का अहसास हुआ चन्ना का मन दुखी हो गया। चन्ना को लगा ऐसे हालत में मैं कैसे घर बनवा पाऊंगा। मेरे नसीब में दूसरों की छाया में ही जीवन व्यतीत करना लिखा है।
लेकिन जिला पंचायत पन्ना एवं जनपद पंचायत अजयगढ़ के अधिकारियों ने चन्ना की खुशी को कम नही होने दिया। उन्होंने अपने पूरे सहयोग का आश्वासन एवं समझाईश देकर चन्ना की हिम्मत को बनाए रखा। उनकी मेहनत रंग लायी। चन्ना ने भी हिम्मत दिखाई और प्रधानमंत्री आवास बनाने के लिए तैयार हो गया। उसकी हिम्मत को बनाए रखने में ग्राम पंचायत ने भी पूरा सहयोग दिया। देखते ही देखते चन्ना का घर लगभग पूरा हो गया है। एक बार की पुताई भी हो चुकी है। फाइनल पुताई होना बाकी है। अब चन्ना अपनी ट्रायसाइकिल अपने पक्के घर के बरामदे में रखता है और अपने खुद के आवास में रात बिताता है। चन्ना कहते हैं कि मैं बहुत खुश हॅू। जिसकी सपने में भी कल्पना नही की थी शासन की मदद से वैसा जीवन जी पा रहा हॅू। इसके लिए वह माननीय प्रधानमंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी को कोटिशः धन्यवाद देते हैं। साथ ही जिला प्रशासन को भी धन्यवाद देते हैं कि उनके द्वारा बांधी गयी हिम्मत से ही आज वे अपने पक्के मकान में रह पा रहे हैं।
दिव्यांग चन्ना लोध पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील के ग्राम सानगुरैया के रहने वाले हैं। चन्ना दोनों पैरों से विकलांग हैं। उन्होंने कभी सपने मंे भी नही सोचा था कि उनके बेसहारा और घिसटते जीवन को इतना बड़ा सहारा मिलेगा। ग्राम पंचायत के प्रयास से उन्हें ट्रायसाइकिल मिल गयी थी जिसके बाद चन्ना को बड़ी सहुलियत हुई। वह ट्रायसाइकिल की मदद से घर-घर जाकर रोटी मांग कर पेट भरने लगे। रात में किसी पेड या छज्जे के नीचे रात गुजार लेते थे। फिर उन्हें पता चला की वर्ष 2017-18 में उन्हें भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिलने वाला है। उनकी अपनी भी छत होगी तो वह फूले नही समाएं। लेकिन जैसे ही उन्हें अपनी विकलांगता का अहसास हुआ चन्ना का मन दुखी हो गया। चन्ना को लगा ऐसे हालत में मैं कैसे घर बनवा पाऊंगा। मेरे नसीब में दूसरों की छाया में ही जीवन व्यतीत करना लिखा है।
लेकिन जिला पंचायत पन्ना एवं जनपद पंचायत अजयगढ़ के अधिकारियों ने चन्ना की खुशी को कम नही होने दिया। उन्होंने अपने पूरे सहयोग का आश्वासन एवं समझाईश देकर चन्ना की हिम्मत को बनाए रखा। उनकी मेहनत रंग लायी। चन्ना ने भी हिम्मत दिखाई और प्रधानमंत्री आवास बनाने के लिए तैयार हो गया। उसकी हिम्मत को बनाए रखने में ग्राम पंचायत ने भी पूरा सहयोग दिया। देखते ही देखते चन्ना का घर लगभग पूरा हो गया है। एक बार की पुताई भी हो चुकी है। फाइनल पुताई होना बाकी है। अब चन्ना अपनी ट्रायसाइकिल अपने पक्के घर के बरामदे में रखता है और अपने खुद के आवास में रात बिताता है। चन्ना कहते हैं कि मैं बहुत खुश हॅू। जिसकी सपने में भी कल्पना नही की थी शासन की मदद से वैसा जीवन जी पा रहा हॅू। इसके लिए वह माननीय प्रधानमंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी को कोटिशः धन्यवाद देते हैं। साथ ही जिला प्रशासन को भी धन्यवाद देते हैं कि उनके द्वारा बांधी गयी हिम्मत से ही आज वे अपने पक्के मकान में रह पा रहे हैं।
वर्ष की इस दूसरी नेशनल लोक अदालत का आयोजन जिले के समस्त न्यायालय में किया गया। जिसमें कुल 12 खण्डपीठों द्वारा 2 सैकड़ा से भी अधिक के प्रकरणों का सफलतापूर्वक निराकरण किया गया। जिसमें पुरानी रंजिशें भुलाकर कई बिखरे परिवार एक हुए। आपसी सहमति से हुए राजीनामा के मामलों में पक्षकारों को न्यायालय की ओर से समर्पण के प्रतीक पुष्पों की माला पहनाई जाकर एवं खुशहाली के प्रतीक पौधे वितरण कर लोक अदालत के उद्देश्य को पूर्ण किया गया।
श्रीमती प्राची गुप्ता को वापस मिला उसका ससुराल, ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया- नेशनल लोक अदालत के माध्यम से श्री अमिताभ मिश्रा के न्यायालय मंे श्रीमती प्राची गुप्ता को उसका ससुराल वापस मिला। श्रीमती प्राची का विवाह हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार 2009 में हुआ था। ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। इसी बीच प्राची के पति की अचानक तबियत खराब होने से मृत्यु हो गयी थी। लेकिन उसके ससुराल वाले उसे और उसकी बेटी कुहू को अपनाने तैयार नही थे। प्राची को शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताडित करने के साथ ही सम्पत्ति में हक देने से मना कर दिया था। जिस पर प्राची द्वारा ससुराल वालों के विरूद्ध घरेलु हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट अजयगढ के न्यायालय में आवेदन पेश किया गया। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्राची को साझा गृहस्थी से बेदखल न करने एवं 50 हजार रूपये का प्रतिकर देने का आदेश पारित किया गया था। जिसके विरूद्ध उसके ससुराल वालों द्वारा अपील प्रस्तुत की गयी। प्रस्तुत अपील को राजीनामा के आधार पर निराकृत कर दिया गया है। उसके ससुर को 2 दिन के अन्दर प्राची को 20 हजार रूपये नगद प्रदान करने एवं उसकी पुत्री के नाम 60 हजार रूपये की एफडी करने के आदेश दिए गए हैं। साथ ही श्रीमती प्राची और उसकी पुत्री को उसके स्वर्गीय पति के हक व हिस्से की चल अचल सम्पत्ति में हिस्सा भी दिया जाएगा। बहू ने ससुर के पैर छूकर पुरानी वैमनस्यता का अंत करते हुए आशीर्वाद लिया और हंसी-खुशी अपने घर लौटे। इस दौरान न्यायाधीश श्री अमिताभ मिश्रा द्वारा दोनों पक्षकारों को निःशुल्क पौधे वितरित किए गए।
राजीनामा से खत्म हुआ भूमि विवाद
पीठासीन अधिकारी श्री अनुराग द्विवेदी की अदालत में राजीनामा से भूमि विवाद को समाप्त किया गया। यह प्रकरण रमेश कुमार एवं श्रीमती रत्ती बाई से संबंधित था। जिसमें पीठासीन अधिकारी एवं सुलहकर्ता सदस्यों की समझाईस पर राजीनामा करवाया गया। दोनों पक्षकारों ने आपसी वैमनस्य को भुलाकर सुलह करते हुए लोक अदालत के उद्देश्य को पूर्ण किया।
महिला परामर्श केन्द्र के माध्यम से पति-पत्नी हुए एक
श्रीमती वंदना सिंह के न्यायालय में महिला परामर्श केन्द्र के माध्यम से खण्डपीठ में पति-पत्नी का प्रकरण रखा गया था। जिसमें पत्नी लगभग 8 माह से अपने पति से अलग रह रही थी और पति के द्वारा कई बार बुलाने पर भी नही आयी। प्रकरण में सुलहकर्ता सदस्य एवं पीठासीन अधिकारी द्वारा पक्षकारों को समझाया गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी मर्जी से राजीनामा कर लिया।
आवेदिका मंजू लोधी और अनावेदक कडोली लोधी के बीच भी राजीनामा सफल रहा। इसी तरह न्यायालय में चल रहे परिवाद अशोक पटेल विरूद्ध हिसाबी पटेल में पक्षकारों ने स्वैच्छा से बिना किसी डर दबाव के राजीनामा किया।
नेशनल लोक अदालत के सफलतम मामलों में सभी पक्षकारों द्वारा एक-दूसरे को माला पहनाई गयी। न्यायाधीश एवं सुलहकर्ता सदस्यों द्वारा पक्षकारों को निःशुल्क पौधों का वितरण किया गया।
श्रीमती प्राची गुप्ता को वापस मिला उसका ससुराल, ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया- नेशनल लोक अदालत के माध्यम से श्री अमिताभ मिश्रा के न्यायालय मंे श्रीमती प्राची गुप्ता को उसका ससुराल वापस मिला। श्रीमती प्राची का विवाह हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार 2009 में हुआ था। ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। इसी बीच प्राची के पति की अचानक तबियत खराब होने से मृत्यु हो गयी थी। लेकिन उसके ससुराल वाले उसे और उसकी बेटी कुहू को अपनाने तैयार नही थे। प्राची को शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताडित करने के साथ ही सम्पत्ति में हक देने से मना कर दिया था। जिस पर प्राची द्वारा ससुराल वालों के विरूद्ध घरेलु हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट अजयगढ के न्यायालय में आवेदन पेश किया गया। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्राची को साझा गृहस्थी से बेदखल न करने एवं 50 हजार रूपये का प्रतिकर देने का आदेश पारित किया गया था। जिसके विरूद्ध उसके ससुराल वालों द्वारा अपील प्रस्तुत की गयी। प्रस्तुत अपील को राजीनामा के आधार पर निराकृत कर दिया गया है। उसके ससुर को 2 दिन के अन्दर प्राची को 20 हजार रूपये नगद प्रदान करने एवं उसकी पुत्री के नाम 60 हजार रूपये की एफडी करने के आदेश दिए गए हैं। साथ ही श्रीमती प्राची और उसकी पुत्री को उसके स्वर्गीय पति के हक व हिस्से की चल अचल सम्पत्ति में हिस्सा भी दिया जाएगा। बहू ने ससुर के पैर छूकर पुरानी वैमनस्यता का अंत करते हुए आशीर्वाद लिया और हंसी-खुशी अपने घर लौटे। इस दौरान न्यायाधीश श्री अमिताभ मिश्रा द्वारा दोनों पक्षकारों को निःशुल्क पौधे वितरित किए गए।
राजीनामा से खत्म हुआ भूमि विवाद
पीठासीन अधिकारी श्री अनुराग द्विवेदी की अदालत में राजीनामा से भूमि विवाद को समाप्त किया गया। यह प्रकरण रमेश कुमार एवं श्रीमती रत्ती बाई से संबंधित था। जिसमें पीठासीन अधिकारी एवं सुलहकर्ता सदस्यों की समझाईस पर राजीनामा करवाया गया। दोनों पक्षकारों ने आपसी वैमनस्य को भुलाकर सुलह करते हुए लोक अदालत के उद्देश्य को पूर्ण किया।
महिला परामर्श केन्द्र के माध्यम से पति-पत्नी हुए एक
श्रीमती वंदना सिंह के न्यायालय में महिला परामर्श केन्द्र के माध्यम से खण्डपीठ में पति-पत्नी का प्रकरण रखा गया था। जिसमें पत्नी लगभग 8 माह से अपने पति से अलग रह रही थी और पति के द्वारा कई बार बुलाने पर भी नही आयी। प्रकरण में सुलहकर्ता सदस्य एवं पीठासीन अधिकारी द्वारा पक्षकारों को समझाया गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी मर्जी से राजीनामा कर लिया।
आवेदिका मंजू लोधी और अनावेदक कडोली लोधी के बीच भी राजीनामा सफल रहा। इसी तरह न्यायालय में चल रहे परिवाद अशोक पटेल विरूद्ध हिसाबी पटेल में पक्षकारों ने स्वैच्छा से बिना किसी डर दबाव के राजीनामा किया।
नेशनल लोक अदालत के सफलतम मामलों में सभी पक्षकारों द्वारा एक-दूसरे को माला पहनाई गयी। न्यायाधीश एवं सुलहकर्ता सदस्यों द्वारा पक्षकारों को निःशुल्क पौधों का वितरण किया गया।
पन्ना जिले के शाहनगर विकासखण्ड के ग्राम अरथाई के कृषक हैं रामरतन तिवारी। रामरतन के पास कुल 4 एकड रकवा है। वह पहले सामान्य अनाज दालों की फसल उगाते थे और अपने जीवन-यापन के लिए पूरी तरह इन्ही फसलों पर आश्रित थे। खेती में घाटा लगने से उनका जीवन-यापन मुश्किल होता जा रहा था। उनके मन में खेती के प्रति निराशा के भाव आने लगे थे। तभी उन्हें कृषि विभाग (आत्मा) द्वारा आयोजित संगोष्ठी में भाग लेने का अवसर मिला और उनकी यह निराशा आशा में बदल गयी।
रामरतन बताते हैं कि संगोष्ठी में भाग लेने के बाद उन्होंने आत्मा द्वारा आयोजित और कई प्रदर्शन गतिविधियों में भाग लिया। सब्जियों की वैज्ञानिक तरीके से खेती पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। जिसके बाद मैंने अपनी खेती में भी सब्जी की फसलों का समावेश करना प्रारंभ कर दिया। सब्जी की खेती में मैंने मिर्च, टमाटर एवं लहसुन की फसल ली। इससे मुझे रोज की आमदनी प्राप्त होने लगी। पिछले वर्ष मैंने लहसुन की फसल एक एकड में उगायी थी। जिससे मुझे 22 क्विंटल लहसुन प्राप्त हुआ। जिसकी अच्छी कीमत मुझे प्राप्त हुई और 64 हजार रूपये की शुद्ध आय मुझे मिली। इस वर्ष भी मैंने एक एकड रकवे में लहसुन की खेती की है और इस तरह कुल एक हेक्टेयर क्षेत्र में सब्जियों (मिर्च, टमाटर, प्याज) की फसल उगाई है। अब मैं अनाज एवं दालों का उत्पादन भी वैज्ञानिक तरीके से करने लगा हॅू। इससे फसल का उत्पादन बढा है। साथ ही सब्जियों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त होने से मेरी आर्थिक स्थिति सुधर गयी है। रामरतन कहते हैं कि जिले के अन्य किसान भाईयों को भी अनाज के साथ-साथ सब्जियों का उत्पादन कर कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाना चाहिए।
रामरतन बताते हैं कि संगोष्ठी में भाग लेने के बाद उन्होंने आत्मा द्वारा आयोजित और कई प्रदर्शन गतिविधियों में भाग लिया। सब्जियों की वैज्ञानिक तरीके से खेती पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। जिसके बाद मैंने अपनी खेती में भी सब्जी की फसलों का समावेश करना प्रारंभ कर दिया। सब्जी की खेती में मैंने मिर्च, टमाटर एवं लहसुन की फसल ली। इससे मुझे रोज की आमदनी प्राप्त होने लगी। पिछले वर्ष मैंने लहसुन की फसल एक एकड में उगायी थी। जिससे मुझे 22 क्विंटल लहसुन प्राप्त हुआ। जिसकी अच्छी कीमत मुझे प्राप्त हुई और 64 हजार रूपये की शुद्ध आय मुझे मिली। इस वर्ष भी मैंने एक एकड रकवे में लहसुन की खेती की है और इस तरह कुल एक हेक्टेयर क्षेत्र में सब्जियों (मिर्च, टमाटर, प्याज) की फसल उगाई है। अब मैं अनाज एवं दालों का उत्पादन भी वैज्ञानिक तरीके से करने लगा हॅू। इससे फसल का उत्पादन बढा है। साथ ही सब्जियों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त होने से मेरी आर्थिक स्थिति सुधर गयी है। रामरतन कहते हैं कि जिले के अन्य किसान भाईयों को भी अनाज के साथ-साथ सब्जियों का उत्पादन कर कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाना चाहिए।
बिना आवाज वाला और प्रदूषण मुक्त ई-रिक्शा की सवारी जहां जिले के लोगों को पसंद आ रही है वहीं यह ई-रिक्शा कई लोगों की आजीविका का सहारा बन गया है। इन्हीं में से एक हैं अब्दुल शफीक खान। अब्दुल शफीक पन्ना नगर के कटरा मोहल्ला के रहने वाले हैं। चार सदस्यीय इनके परिवार में इनकी पत्नि के अलावा दो बेटियां हैं। पहले अब्दुल केवल कोरियर सर्विस का काम कर जैसे-तैसे अपना घर चला रहे थे। कोरियर बाटने के लिए आॅटो से जाना बहुत महंगा पड़ रहा था। उन्हें केवल 5 हजार रूपये की आमदनी हो पाती थी। एक दिन कोरियर बाटते हुए अब्दुल नगरपालिका पन्ना पहुंचे। जहां उन्हें नगरपालिका में लगे बोर्ड के माध्यम से डे-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी मिली। अब्दुल की रूचि इसमें जागी और उन्होंने तुरन्त नगरपालिका पन्ना के अधिकारियों से सम्पर्क किया।
अब्दुल बताते हैं कि नगरपालिका पन्ना के अधिकारी द्वारा मुझे आजीविका मिशन के अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। आजीविका मिशन के अधिकारियों की मदद से उन्होंने ई-रिक्शा के लिए अपना ऋण प्रकरण तैयार करवाया। प्रकरण स्वीकृति के बाद अब्दुल को आईडीबीआई बैंक शाखा पन्ना से एक लाख 60 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसमें 20 प्रतिशत अनुदान की राशि भी प्राप्त हुई। ई-रिक्शा से न केवल उनके आॅटो के महंगे खर्च की चिंता दूर हुई है बल्कि उनकी आजीविका को अतिरिक्त सहारा मिल गया है। लगभग 30 रूपये के बिजली खर्च से उनका ई-रिक्शा 70 से 80 किलो मीटर की दूरी तय कर लेता है। सवारी लाने ले जाने के अलावा उनका ई-रिक्शा उनकी पुरानी कोरियर सर्विस में भी मदद कर रहा है। साथ ही यह ई-रिक्शा उनके घर के सदस्यों के व्यक्तिगत उपयोग में भी काम आ रहा है। अब्दुल बताते हैं कि उन्हें 3 हजार रूपये किश्त चुकाने के बाद प्रति माह लगभग 15 हजार रूपये की आमदनी प्राप्त हो जाती है। कोरियर सर्विस से मिलने वाली आय भी बढ़ गयी है क्योंकि ईधन की लागत कम हो गयी है। अब्दुल इसके लिए शहरी आजीविका मिशन और शासन को धन्यवाद देते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना का लाभ लेना चाहिए।
अब्दुल बताते हैं कि नगरपालिका पन्ना के अधिकारी द्वारा मुझे आजीविका मिशन के अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। आजीविका मिशन के अधिकारियों की मदद से उन्होंने ई-रिक्शा के लिए अपना ऋण प्रकरण तैयार करवाया। प्रकरण स्वीकृति के बाद अब्दुल को आईडीबीआई बैंक शाखा पन्ना से एक लाख 60 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिसमें 20 प्रतिशत अनुदान की राशि भी प्राप्त हुई। ई-रिक्शा से न केवल उनके आॅटो के महंगे खर्च की चिंता दूर हुई है बल्कि उनकी आजीविका को अतिरिक्त सहारा मिल गया है। लगभग 30 रूपये के बिजली खर्च से उनका ई-रिक्शा 70 से 80 किलो मीटर की दूरी तय कर लेता है। सवारी लाने ले जाने के अलावा उनका ई-रिक्शा उनकी पुरानी कोरियर सर्विस में भी मदद कर रहा है। साथ ही यह ई-रिक्शा उनके घर के सदस्यों के व्यक्तिगत उपयोग में भी काम आ रहा है। अब्दुल बताते हैं कि उन्हें 3 हजार रूपये किश्त चुकाने के बाद प्रति माह लगभग 15 हजार रूपये की आमदनी प्राप्त हो जाती है। कोरियर सर्विस से मिलने वाली आय भी बढ़ गयी है क्योंकि ईधन की लागत कम हो गयी है। अब्दुल इसके लिए शहरी आजीविका मिशन और शासन को धन्यवाद देते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना का लाभ लेना चाहिए।
पन्ना जिले के ग्राम कोढ़न पुरवा निवासी श्रीमति प्रियंका गर्ग पहले गृहणी थीं और केवल अपने घर का काम ही करती थीं। उनके घर में मात्र 2 देशी गाय हुआ करती थीं । जिनसे प्राप्त दुध का उपयोग स्वयं के परिवार के लिए ही हो पाता था। लेकिन आज श्रीमति प्रियंका की अपनी डेयरी है, जिसमें प्रतिदिन लगभग 100 लीटर दुग्ध के उत्पादन से प्रतिदिन लगभग 2500/- रूपये की आय प्राप्त कर रही हैं। यह सब संभव हुआ है आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजना से।
श्रीमति प्रियंका बताती हैं कि एक दिन उन्हें पशुपालन विभाग के अधिकारी द्वारा विभाग की आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनान्तर्गत स्थापित डेयरी ईकाई के बारे में जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि आपके पास पर्याप्त जमीन है। आप अपने घर के काम के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन का कार्य भी कर सकती हैं। अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी और प्रोत्साहन से प्रियंका ने योजना का लाभ लेकर डेयरी ईकाई स्थापित करने का निर्णय लिया । उन्होंने 10 मुर्रा ग्रेडेड भैंस का ऋण आवेदन पशुपालन विभाग के माध्यम से इलाहाबाद बैंक शाखा पन्ना के लिए भेज दिया। बैंक द्वारा श्रीमति गर्ग को डेयरी ईकाई स्थापना के लिए 8.40 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। जिसमें विभाग द्वारा 1.50 लाख रूपये की राशि शासकीय अनुदान के रूप में प्रदाय की गई। श्रीमति प्रियंका द्वारा स्थापित डेयरी ईकाई से प्रतिदिन लगभग 100 लीटर दुग्ध का उत्पादन किया जाकर 45/-रूपये प्रति लीटर की दर से दुग्ध संघ जबलपुर एवं पन्ना नगर में विक्रय किया जा रहा है। इस कार्य में उनके पति श्री प्रदीप कुमार गर्ग भी पूरा सहयोग करते हैं। श्रीमति गर्ग को डेयरी से प्रतिदिन समस्त खर्च के बाद लगभग 2500/-रूपये की आय प्रतिदिन प्राप्त हो रही है।
श्रीमति प्रियंका बैंक ऋण की मासिक किश्तों की अदायगी करते हुए प्रतिमाह लगभग 65000/- से 70000/- तक शुध्द आय अर्जित कर रही हैं। दुग्ध उत्पादन से हुई अतिरिक्त आय से दो संकर गाय भी क्रय कर ली हैं। श्रीमति प्रियंका गर्ग और उनका पूरा परिवार दुग्ध उत्पादन से होने वाले मुनाफे से बहुत खुश हैं।
श्रीमति प्रियंका बताती हैं कि एक दिन उन्हें पशुपालन विभाग के अधिकारी द्वारा विभाग की आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनान्तर्गत स्थापित डेयरी ईकाई के बारे में जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि आपके पास पर्याप्त जमीन है। आप अपने घर के काम के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन का कार्य भी कर सकती हैं। अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी और प्रोत्साहन से प्रियंका ने योजना का लाभ लेकर डेयरी ईकाई स्थापित करने का निर्णय लिया । उन्होंने 10 मुर्रा ग्रेडेड भैंस का ऋण आवेदन पशुपालन विभाग के माध्यम से इलाहाबाद बैंक शाखा पन्ना के लिए भेज दिया। बैंक द्वारा श्रीमति गर्ग को डेयरी ईकाई स्थापना के लिए 8.40 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। जिसमें विभाग द्वारा 1.50 लाख रूपये की राशि शासकीय अनुदान के रूप में प्रदाय की गई। श्रीमति प्रियंका द्वारा स्थापित डेयरी ईकाई से प्रतिदिन लगभग 100 लीटर दुग्ध का उत्पादन किया जाकर 45/-रूपये प्रति लीटर की दर से दुग्ध संघ जबलपुर एवं पन्ना नगर में विक्रय किया जा रहा है। इस कार्य में उनके पति श्री प्रदीप कुमार गर्ग भी पूरा सहयोग करते हैं। श्रीमति गर्ग को डेयरी से प्रतिदिन समस्त खर्च के बाद लगभग 2500/-रूपये की आय प्रतिदिन प्राप्त हो रही है।
श्रीमति प्रियंका बैंक ऋण की मासिक किश्तों की अदायगी करते हुए प्रतिमाह लगभग 65000/- से 70000/- तक शुध्द आय अर्जित कर रही हैं। दुग्ध उत्पादन से हुई अतिरिक्त आय से दो संकर गाय भी क्रय कर ली हैं। श्रीमति प्रियंका गर्ग और उनका पूरा परिवार दुग्ध उत्पादन से होने वाले मुनाफे से बहुत खुश हैं।
पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड के ग्राम कंचनपुर के कृषक सुरेन्द्र सिंह यादव गोबर गैस संयंत्र से निःशुल्क जैविक खाद प्राप्त कर रहे हैं। इससे न केवल उनके खेत की मृदा स्वास्थ्य में सुधार आया है बल्कि उत्पादन भी बढ़ गया है। उन्हें खाना बनाने का ईधन भी निःशुल्क प्राप्त हो रहा है।
कृषक सुरेन्द्र सिंह बताते हैं कि वह खेती के साथ-साथ पिछले 15 वर्षो से 15 नग मवेशियों का पालन करते आ रहे हैं। उनके पास एक हेक्टेयर सिंचित भूमि है। लेकिन वे मवेशियों से प्राप्त गोबर का सही उपयोग नही कर पा रहे थे। खेतों में रसायनिक खाद के उपयोग से खेतों की मिट्टी में सफेद चकत्ते बन गए थे। इन जगहों पर फसल कम होती थी और खेत की उर्वरा क्षमता दिन प्रति दिन कम होती जा रही थी। इससे उत्पादन में हर वर्ष कमी होने लगी थी।
इस बात से चिंतित सुरेन्द्र अपनी समस्या लेकर कृषि विभाग गुनौर के कर्मचारियों से मिले। वहां पर उन्हें बताया गया कि जब आपके पास 15 नग मवेशी (भैंसे) हैं तो आपको गोबर गैस संयंत्र का निर्माण कर जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने गोबर गैस संयंत्र के अन्य फायदों से भी अवगत कराने हुए कृषि विभाग द्वारा अनुदान की जानकारी दी। कृषि विभाग के कर्मचारी की सलाह पर सुरेन्द्र ने गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करवाया।
सुरेन्द्र बताते हैं कि गोबर गैस संयंत्र लगाने से मुझे खाना बनाने का ईधन तथा अच्छी प्रकार से पची हुई जैविक खाद घर पर ही उपलब्ध हो जाती है। खेतों में जैविक खाद का उपयोग करने से मृदा स्वास्थ्य में सुधार आया है। उत्पादन मंे भी वृद्धि हुई है। अब मैं अपने मवेशियों के गोबर का सही उपयोग कर जैविक खाद का प्रबंधन सफलतापूर्वक कर रहा हॅू। इसके लिए वह शासन की इस योजना एवं कृषि विभाग के कर्मचारियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
कृषक सुरेन्द्र सिंह बताते हैं कि वह खेती के साथ-साथ पिछले 15 वर्षो से 15 नग मवेशियों का पालन करते आ रहे हैं। उनके पास एक हेक्टेयर सिंचित भूमि है। लेकिन वे मवेशियों से प्राप्त गोबर का सही उपयोग नही कर पा रहे थे। खेतों में रसायनिक खाद के उपयोग से खेतों की मिट्टी में सफेद चकत्ते बन गए थे। इन जगहों पर फसल कम होती थी और खेत की उर्वरा क्षमता दिन प्रति दिन कम होती जा रही थी। इससे उत्पादन में हर वर्ष कमी होने लगी थी।
इस बात से चिंतित सुरेन्द्र अपनी समस्या लेकर कृषि विभाग गुनौर के कर्मचारियों से मिले। वहां पर उन्हें बताया गया कि जब आपके पास 15 नग मवेशी (भैंसे) हैं तो आपको गोबर गैस संयंत्र का निर्माण कर जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने गोबर गैस संयंत्र के अन्य फायदों से भी अवगत कराने हुए कृषि विभाग द्वारा अनुदान की जानकारी दी। कृषि विभाग के कर्मचारी की सलाह पर सुरेन्द्र ने गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करवाया।
सुरेन्द्र बताते हैं कि गोबर गैस संयंत्र लगाने से मुझे खाना बनाने का ईधन तथा अच्छी प्रकार से पची हुई जैविक खाद घर पर ही उपलब्ध हो जाती है। खेतों में जैविक खाद का उपयोग करने से मृदा स्वास्थ्य में सुधार आया है। उत्पादन मंे भी वृद्धि हुई है। अब मैं अपने मवेशियों के गोबर का सही उपयोग कर जैविक खाद का प्रबंधन सफलतापूर्वक कर रहा हॅू। इसके लिए वह शासन की इस योजना एवं कृषि विभाग के कर्मचारियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
पन्ना जिले के पवई विकासखण्ड के अन्तर्गत कल्दा का पहाडी इलाका है। इस दुर्गम स्थल तक आवागमन के पर्याप्त साधनों के अभाव के कारण यह विकास की मुख्य धारा से दूर है। यद्यपि जिला प्रशासन द्वारा इसे मुख्य धारा में जोडने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत इसी कल्दा कलस्टर का एक ग्राम सगरा है। जहां के माॅ चण्डी समूह की सदस्य श्रीमती सीमा बाई प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका एक्सप्रेस योजना की मदद से मैजिक वाहन द्वारा अच्छी आय प्राप्त कर रही हैं।
सीमा बाई बताती हैं कि जब से प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका एक्सप्रेस द्वारा मैजिक वाहनों का साधन हुआ है तब से हमारे क्षेत्र कल्दा की तकदीर ही बदल गयी है। पहले हम दूसरों को पैसा देकर उनके वाहन से हाट बाजार करने जाते थे। लेकिन अब हम उसी पैसे का उपयोग अपने वाहन में कर रहे हैं। यह हमारी आवश्यकता होने के साथ-साथ हमारी आय का जरिया भी बन गया है। सीमा बाई बताती है कि पहले हमारी मासिक आय लगभग 5 हजार रूपये थी लेकिन अब आजीविका एक्सप्रेस हमारे जीवन को भी रफ्तार मिली है। आज हमारी आय में 4 गुना वृद्धि हो गयी है और हम 18 हजार से 20 हजार रूपये की मासिक आय प्राप्त कर रहे हैं। इससे गाड़ी की नियमित किश्ते भी आसानी से जमा कर पाते हैं।
सीमा बाई बताती हैं कि जब से प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका एक्सप्रेस द्वारा मैजिक वाहनों का साधन हुआ है तब से हमारे क्षेत्र कल्दा की तकदीर ही बदल गयी है। पहले हम दूसरों को पैसा देकर उनके वाहन से हाट बाजार करने जाते थे। लेकिन अब हम उसी पैसे का उपयोग अपने वाहन में कर रहे हैं। यह हमारी आवश्यकता होने के साथ-साथ हमारी आय का जरिया भी बन गया है। सीमा बाई बताती है कि पहले हमारी मासिक आय लगभग 5 हजार रूपये थी लेकिन अब आजीविका एक्सप्रेस हमारे जीवन को भी रफ्तार मिली है। आज हमारी आय में 4 गुना वृद्धि हो गयी है और हम 18 हजार से 20 हजार रूपये की मासिक आय प्राप्त कर रहे हैं। इससे गाड़ी की नियमित किश्ते भी आसानी से जमा कर पाते हैं।
कृषक श्री घनश्याम लोध पन्ना जिले की अजयगढ़ जनपद की ग्राम पंचायत सिलौना के निवासी हैं। उनके पास अपनी केवल 4 बीघा जमीन है। पानी की व्यवस्था न होने के कारण फसल का उत्पादन भी कम होता था और वह वर्ष में केवल एक ही फसल का उत्पादन कर पाते थे। लेकिन मनरेगा योजना अन्तर्गत कपिलधारा उपयोजना से कूप निर्माण ने उनके जीवन में खुशहाली ला दी है।
श्री घनश्याम बताते हैं कि वर्ष 2015-16 में जनपद पंचायत द्वारा मेरे नाम पर कपिलधारा कूप स्वीकृत किया गया था। जिसकी स्वीकृत राशि 3.50 लाख थी। स्वीकृत राशि के विरूद्ध 3.23 लाख रूपये व्यय कर कूप का कार्य पूर्ण किया गया। मनरेगा कि कपिलधारा उपयोजना से कूप निर्माण हो जाने से उनके पास सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो गयी। कूप निर्माण के पहले जहां वह केवल 3 से 4 क्विंटल फसल का ही उत्पादन कर पाते थे। वहीं कूप निर्माण के बाद वर्ष 2017-18 में 11 क्विंटल गेंहू, 2 क्विंटल सरसों एवं 5 क्विंटल धान का उत्पादन किया है। उत्पादन बढने से अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे तरीके से कर पा रहा हॅू। मुझे अब दूसरों पर आश्रित नही होता पडता। कपिलधारा उपयोजना का लाभ पाकर मैं और मेरा परिवार खुशहाल है।
श्री घनश्याम बताते हैं कि वर्ष 2015-16 में जनपद पंचायत द्वारा मेरे नाम पर कपिलधारा कूप स्वीकृत किया गया था। जिसकी स्वीकृत राशि 3.50 लाख थी। स्वीकृत राशि के विरूद्ध 3.23 लाख रूपये व्यय कर कूप का कार्य पूर्ण किया गया। मनरेगा कि कपिलधारा उपयोजना से कूप निर्माण हो जाने से उनके पास सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो गयी। कूप निर्माण के पहले जहां वह केवल 3 से 4 क्विंटल फसल का ही उत्पादन कर पाते थे। वहीं कूप निर्माण के बाद वर्ष 2017-18 में 11 क्विंटल गेंहू, 2 क्विंटल सरसों एवं 5 क्विंटल धान का उत्पादन किया है। उत्पादन बढने से अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे तरीके से कर पा रहा हॅू। मुझे अब दूसरों पर आश्रित नही होता पडता। कपिलधारा उपयोजना का लाभ पाकर मैं और मेरा परिवार खुशहाल है।
विकास खण्ड पन्ना अंतर्गत ग्राम जनवार में कृषक लक्ष्मणदास सुखरामनी द्वारा अपने फार्म में आधुनिक तरीके से मषरूम की खेती की जा रही है। उन्नतषील कृषक लक्ष्मणदास सुखरामनी द्वारा जे.एन.के.व्ही.व्ही. जबलपुर से आयस्टर मषरूम की खेती किये जाने हेतु आयस्टर मषरूम के स्पाॅन मंगाए गए। इस संबंध में जानकारी देते हुए सहायक संचालक उद्यानिकी श्री एम.एम. भट्ट ने बताया कि कृषक द्वारा मषरूम की खेती करने हेतु सबसे पहले फार्मेलीन एवं बाविस्टीन का घोल तैयार किया गया। उसके बाद गेंहू के भूसे को 14 से 16 घन्टे के लिये तैयार किये गये घोल में डुबो कर रखा गया, ताकि वह अंदर तक पानी सोख लें। कृषक द्वारा इसे ड़लवा फर्ष पर रखा गया, जिससे भूसे का अनावष्यक पानी निकल जाए तथा इसमें 60-70 प्रतिषत नमी रह जाए। कृषक द्वारा स्पाॅन को भूसे में मिलाकर पाॅलीथीन में भरकर रबड़बेण्ड या धागे से बांध दिया गया, इसके बाद पाॅलीथीन को ऐसे कमरे में जहां का तापमान 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड एवं नमी 70 से 80 प्रतिषत हो, वहां टांग दिया गया। साथ ही सूर्य का प्रकाष कमरे में सीधे न पडे़, इसका विषेष ध्यान कृषक द्वारा रखा गया। नमी बनायें रखने के लिये दिन में एक या दो बार स्प्रेयर से पानी का छिड़काव किया गया। इस तरह पहली फसल 20 से 25 दिन में प्राप्त होगी।
कृषक लक्ष्मणदास सुखरामनी ने सभी कृषकों से कहा है कि अधिक से अधिक कृृषक मषरूम की खेती करें, क्योंकि मषरूम एक मात्र ऐसा आहार है, जो प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकता है। यह शरीर की वृद्वि के लिये अति आवष्यक है। साथ ही कुपोषण की समस्या को दूर करता है एवं आमदनी का अच्छा स्त्रोत भी है। इसके साथ ही उन्होंने उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित मधुमक्खी पालन का 7 दिवसीय प्रषिक्षण प्राप्त किया है। जिससे प्रभावित होकर छोटे स्तर पर मधुमक्खी पालन की शुरूआत की है। कृषक लक्ष्मणदास कहते है कि यह मेरी आमदनी का आगामी वर्षो में अच्छा स्त्रोत होगा। मधुमक्खी पालन से एक ओर जहां शहद व मोम प्राप्त होता है, वही दूसरी ओर राॅयल जैली, पराग, पर पाॅलीस एवं माॅनविस का भी उत्पादन किया जा सकता है। राॅयल जैली एक महत्तवपूर्ण उत्पाद है एवं एनर्जी फू्रड के रूप में पराग का उपयोग किया जा सकता हैं। मधुमक्खी पालन कम लागत में आमदनी का अच्छा स्त्रोत है। इसके अलावा कृषक लक्ष्मणदास मिनी शेडनेट हाउस तैयार कर मक्के की हाईड्रोफोनिक (बिना मिट्टी के) खेती भी कर रहे हैं।
कृषक लक्ष्मणदास सुखरामनी ने सभी कृषकों से कहा है कि अधिक से अधिक कृृषक मषरूम की खेती करें, क्योंकि मषरूम एक मात्र ऐसा आहार है, जो प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकता है। यह शरीर की वृद्वि के लिये अति आवष्यक है। साथ ही कुपोषण की समस्या को दूर करता है एवं आमदनी का अच्छा स्त्रोत भी है। इसके साथ ही उन्होंने उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित मधुमक्खी पालन का 7 दिवसीय प्रषिक्षण प्राप्त किया है। जिससे प्रभावित होकर छोटे स्तर पर मधुमक्खी पालन की शुरूआत की है। कृषक लक्ष्मणदास कहते है कि यह मेरी आमदनी का आगामी वर्षो में अच्छा स्त्रोत होगा। मधुमक्खी पालन से एक ओर जहां शहद व मोम प्राप्त होता है, वही दूसरी ओर राॅयल जैली, पराग, पर पाॅलीस एवं माॅनविस का भी उत्पादन किया जा सकता है। राॅयल जैली एक महत्तवपूर्ण उत्पाद है एवं एनर्जी फू्रड के रूप में पराग का उपयोग किया जा सकता हैं। मधुमक्खी पालन कम लागत में आमदनी का अच्छा स्त्रोत है। इसके अलावा कृषक लक्ष्मणदास मिनी शेडनेट हाउस तैयार कर मक्के की हाईड्रोफोनिक (बिना मिट्टी के) खेती भी कर रहे हैं।
पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलो मीटर की दूरी पर अहिरगुवा ग्राम पंचायत के अन्तर्गत ग्राम उड़की है। इस ग्राम में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन संचालन के पूर्व यहां के ग्रामवासियों की आजीविकोपर्जन का मुख्य साधन पारंपारिक कृषि एवं व्यवसाय था। लेकिन अब गांव के लोग वैज्ञानिक तरीके से कृषि करते हुए उन्नत फसल एवं बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन कर रहे हैं। इन समूहों के सदस्यों को उनकी आजीविका वृद्धि के लिए साबुन निर्माण का प्रशिक्षण भी दिलाया गया है। अब समूह के लोगों द्वारा घर से ही साबुन निर्माण के कार्य की शुरूआत कर दी गयी है। इस तरह से एक साधारण ग्राम उड़की समृद्ध ग्राम बन गया है।
इस संबंध में मिशन प्रबंधक से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि ग्रामीण आजीविका मिशन की शुरूआत में इन ग्रामवासियों को सबसे पहले मिशन के प्रमुख उद्देश्यों से अवगत कराया गया। आपस में सहयोग की भावना को विकसित किया गया। ग्रामवासियों को समूह से समृद्धि की ओर प्रेरित करते हुए 4 महिला एवं एक वृद्ध को मिलाकर कुल 5 समूहों का गठन किया गया। इस तरह गांव के कुल निवासरत 52 परिवारों में से 47 परिवारों को समूह में जोड़ लिया गया है।
ग्राम में गठित इन समूहों को अब तक 2 लाख 15 हजार रूपये की ऋण राशि मिशन के माध्यम से एवं 6 लाख रूपये की ऋण राशि बैंक लिंकेज के माध्यम से 4 समूहों को उपलब्ध कराई जा चुकी है। ग्राम उड़की में ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से समूह सदस्यों को पारम्परिक खेती /सब्जी उत्पादन की बजाय वैज्ञानिक तरीके से कृषि करने के लिए कृषि विभाग से समन्वय कर उन्नत कृषि एवं सब्जी उत्पादन के संबंध में प्रशिक्षण दिलाए गए। वर्तमान में भी यह प्रशिक्षण दिलाए जा रहे हैं। जिससे समूह सदस्यों द्वारा व्यापक पैमाने पर सब्जी उत्पादन कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
इतना ही नही ग्राम में निवासरत बेरोजगार युवकों को रोजगार से जोड़ने के लिए मिशन द्वारा समय-समय पर रोजगार मेले, स्वरोजगार प्रशिक्षण आयोजित करने के साथ प्रशिक्षण उपरांत कम्पनियों में रोजगार प्रदाय कराया जा रहा है। जिससे अब ग्राम उड़की के कई युवा अपना एवं अपने परिवार का समुचित तरीके से भरण-पोषण कर पा रहे हैं। इस साधारण गांव को समृद्ध ग्राम बनाने का पूरा श्रेय ग्रामवासी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को देते हैं।
इस संबंध में मिशन प्रबंधक से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि ग्रामीण आजीविका मिशन की शुरूआत में इन ग्रामवासियों को सबसे पहले मिशन के प्रमुख उद्देश्यों से अवगत कराया गया। आपस में सहयोग की भावना को विकसित किया गया। ग्रामवासियों को समूह से समृद्धि की ओर प्रेरित करते हुए 4 महिला एवं एक वृद्ध को मिलाकर कुल 5 समूहों का गठन किया गया। इस तरह गांव के कुल निवासरत 52 परिवारों में से 47 परिवारों को समूह में जोड़ लिया गया है।
ग्राम में गठित इन समूहों को अब तक 2 लाख 15 हजार रूपये की ऋण राशि मिशन के माध्यम से एवं 6 लाख रूपये की ऋण राशि बैंक लिंकेज के माध्यम से 4 समूहों को उपलब्ध कराई जा चुकी है। ग्राम उड़की में ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से समूह सदस्यों को पारम्परिक खेती /सब्जी उत्पादन की बजाय वैज्ञानिक तरीके से कृषि करने के लिए कृषि विभाग से समन्वय कर उन्नत कृषि एवं सब्जी उत्पादन के संबंध में प्रशिक्षण दिलाए गए। वर्तमान में भी यह प्रशिक्षण दिलाए जा रहे हैं। जिससे समूह सदस्यों द्वारा व्यापक पैमाने पर सब्जी उत्पादन कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
इतना ही नही ग्राम में निवासरत बेरोजगार युवकों को रोजगार से जोड़ने के लिए मिशन द्वारा समय-समय पर रोजगार मेले, स्वरोजगार प्रशिक्षण आयोजित करने के साथ प्रशिक्षण उपरांत कम्पनियों में रोजगार प्रदाय कराया जा रहा है। जिससे अब ग्राम उड़की के कई युवा अपना एवं अपने परिवार का समुचित तरीके से भरण-पोषण कर पा रहे हैं। इस साधारण गांव को समृद्ध ग्राम बनाने का पूरा श्रेय ग्रामवासी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को देते हैं।
कृषक कौशलकिशोर दीक्षित पन्ना जिले के ग्राम लुधनी के निवासी हंै। वह पिछले कई वर्षो से अपनी पैतृक भूमि पर खेती करते आ रहे हैं। इनका कुल रकवा 7.15 हेक्टेयर है। कौशल बताते हैं कि वर्ष 2012-13 के पहले उनकी कृषि पूरी तरह वर्षा पर आधारित थी। अपनी जमीन पर देशी धान की किस्म छिटका विधि से बुवाई कर कृषि करते थे। जिसकी पैदावार आज की अपेक्षा बहुत ही कम थी।
फिर एक दिन कृषक कौशलकिशोर अपने क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री पी.एल. उपाध्याय एवं वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी श्री आर.के. मौर्य से मिले। उन्होंने कौशलकिशोर को बलराम तालाब योजना की जानकारी दी। साथ ही खेती के तकनीकी एवं वैज्ञानिक तरीकों से अवगत कराया। जिसके बाद योजना की मदद से कौशलकिशोर ने अपने खेत में 68 मीटर ग् 34 मीटर ग् 3 मीटर आकार के बलराम तालाब का निर्माण कराया। उससे निकली हुई मिट्टी से ख्ेात की मेड तैयार कराई।
कौशल किशोर बताते हैं कि पहले वह कृषि के लिए पूरी तरह वर्षा पर आश्रित थे और कृषि के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी के अभाव में अल्प पैदावार ले पाते थे। लेकिन अब वह छिटका विधि न अपनाकर रोपा विधि से खरीफ फसलों की पैदावार ले रहे हैं। साथ ही बलराम तालाब की मदद से रबी में भी भूमि की सिंचाई कर उन्नत किस्म के गेंहू एवं चने की फसल उगा रहे हैं। तालाब की मिट्टी से तैयार की गयी खेत की मेडों पर भी अरहर की फसल उगाते हैं। जिसमंे उन्हें अच्छी पैदावार प्राप्त हो जाती है। कृषक कौशलकिशोर कहते हैं कि सभी किसान भाई बलराम तालाब योजना का लाभ अवश्य लें और रबी के मौसम में भी फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त करें।
फिर एक दिन कृषक कौशलकिशोर अपने क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री पी.एल. उपाध्याय एवं वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी श्री आर.के. मौर्य से मिले। उन्होंने कौशलकिशोर को बलराम तालाब योजना की जानकारी दी। साथ ही खेती के तकनीकी एवं वैज्ञानिक तरीकों से अवगत कराया। जिसके बाद योजना की मदद से कौशलकिशोर ने अपने खेत में 68 मीटर ग् 34 मीटर ग् 3 मीटर आकार के बलराम तालाब का निर्माण कराया। उससे निकली हुई मिट्टी से ख्ेात की मेड तैयार कराई।
कौशल किशोर बताते हैं कि पहले वह कृषि के लिए पूरी तरह वर्षा पर आश्रित थे और कृषि के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी के अभाव में अल्प पैदावार ले पाते थे। लेकिन अब वह छिटका विधि न अपनाकर रोपा विधि से खरीफ फसलों की पैदावार ले रहे हैं। साथ ही बलराम तालाब की मदद से रबी में भी भूमि की सिंचाई कर उन्नत किस्म के गेंहू एवं चने की फसल उगा रहे हैं। तालाब की मिट्टी से तैयार की गयी खेत की मेडों पर भी अरहर की फसल उगाते हैं। जिसमंे उन्हें अच्छी पैदावार प्राप्त हो जाती है। कृषक कौशलकिशोर कहते हैं कि सभी किसान भाई बलराम तालाब योजना का लाभ अवश्य लें और रबी के मौसम में भी फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त करें।
शहरी वातावरण से दूर विन्ध्य की सुरम्य वादियों में पन्ना जिले की जनपद पंचायत पन्ना के छोटे से ग्राम ’तारा’ में संचालित है एक शासकीय प्राथमिक शाला, जो आज जिले की एक आदर्श पाठशाला के रूप में सुस्थापित है।
कहना न होगा कि पूर्व में यह एक पहचान विहीन, अभिभावक एवं विद्यार्थियों द्वारा उपेक्षित सामान्य सी पाठशाला थी। पर आज यह पन्ना जिले की एक चर्चित शाला है। यदि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि तारा गांव में स्थित होने के बाद भी यह तारा गांव की पाठशाला के रूप में नहीं बल्कि ’तारा’ गंाव इस पाठशाला के कारण पहचाना जाने लगा है। एक सामान्य साधनहीन शाला से जिले की रेखांकित शाला बनने तक की कहानी मूलतः दो शिक्षकों सुश्री वर्षा वर्मा एवं श्री अमित परमार के आसपास घूमती है।
वह जुलाई 2015 का समय था जहां से शाला ने अपने उत्थान की इबारत लिखना शुरू की। हुआ कुछ तरह कि युक्तियुक्तकरण नीति के अन्तर्गत ग्राम झरकुआ के शासकीय हाईस्कूल के अध्यापक श्री परमार एवं अध्यापिका सुश्री वर्मा का स्थानान्तरण ग्राम तारा की शासकीय प्राथमिक शाला में हो गया। पदभार संभालते ही शिक्षकों ने इस वास्तविकता को जाना कि शासकीय अभिलेख में दर्ज इस शाला की पहचान अपने ग्राम तारा तक में नहीं है। इस गांव के जो विद्यार्थी शाला में पढने आ रहे हैं उनके पास गणवेश तो दूर पूरे वस्त्र तक नहीं हंै। वास्तविकता तो यह थी कि आधे-अधूरे, फटे पुराने कपड़ों में शाला आने वाले विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने नहीं बल्कि मध्यान्ह भोजन के लालच में शाला आते थे। शिक्षकों ने यह भी महसूस किया कि जिस तरह शाला संचालित हो रही है, वह नाम मात्र की शाला है और शासन का उद्देश्य नाम मात्र की पाठशाला का संचालन नहीं हैं; अपितु बच्चों को शिक्षित, संस्कारित और आत्मनिर्भर करना है। ताकि सर्वजन हितकारी उपक्रमों में उनकी भी सहभागिता हो।
स्थितियां प्रतिकूल थीं। शिक्षकों के सामने एक कठिन चुनौती थी। उन्होंने महसूस किया कि हम शिक्षक हैं सरकार ने हमारी नियुक्ति स-उद्देश्य की है। विद्यार्थी हमें गुरूजी कहते और मानते हैं। हम स्वयं विद्यार्थियों को चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। अतः हमें भी शाला को शाला बनाने की चुनौती, शाला को शासन के उद्देश्य के अनुरूप चलाने की चुनौती स्वीकार करना होगी। इसी विचार मंथन में शिक्षकों को अपने कर्तव्य कर्म का बोध हुआ और वे अपने दायित्व निर्वहन के लिए अभिपे्ररित हो गए। उन्हांेने शाला के उन्नयन के लिए एक कार्ययोजना बनाई और उस पर क्रियान्वयन करना प्रारंभ कर दिया। कार्ययोजना के केन्द्र में उन्होंने इस बिन्दु को रखा कि शाला आने में बच्चों के मन में उमंग हो, रूचि हो तथा अभिभावक की भी बच्चों को शाला भेजने में सकारात्मक सहभागिता हो।
शिक्षकों ने अपनी कार्ययोजना से अभिभावकों को अवगत कराया। परस्पर सहमति से उन्होंने सबसे पहले बच्चों को शाला आने में रूझान उत्पन्न करने के लिए उपहार योजना शुरू की। सभी विद्यार्थियों को गणवेश दिए, शीतकाल के लिए ऊनी कपड़े दिए। गणवेश और ऊनी वस्त्र पाकर विद्यार्थियों के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए और वह शाला ने में रूचि लेने लगे। शाला आने के बाद विद्यार्थी शाला आने में रूकें, इसके लिए शिक्षकों ने शाला को खेल के मैदान में भी बदला और खेल-खेल में पढ़ाई को अंजाम देने लगे। खेल के मैदान के साथ कक्षाओं में भी बच्चों का मन लगे इसके लिए टाट-पट्टी की व्यवस्था की गयी, पुराने फर्नीचर को नया रूप दिया गया। विद्यार्थियों को पढ़ने और लिखने में सुविधा हो इसके लिए पुराने फर्नीचर से छोटी-छोटी डेस्क बनाई गयी। अध्ययन कक्ष की दीवारों पर गिनती, वर्णमाला और प्रेरक चित्र बनाए गए, नृत्य और गीत को पढाई में शामिल किया गया। विद्यार्थी स्वप्रेरणा से लेखन में रूचि लें, इस उद्देश्य से दीवारों पर छोटे-छोटे ग्रीन बोर्ड बनवाए गए। विद्या की देवी माॅं सरस्वती का मंदिर स्थापित कर प्रतिदिन प्रार्थना से शाला की शुरूआत प्रारंभ की गयी। शिक्षकों और अभिभावकों की संयुक्त पहल रंग लायी। सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। साफ, स्वच्छ शिक्षा कक्ष और शाला प्रांगण, शाला प्रांगण में लहराते फूलों के पौधे, टाट-पट्टी, ग्रीन बोर्ड और प्यार भरा मार्गदर्शन पाकर जहां विद्यार्थी स्व-अनुशासन से पढ़ने में रूचि लेने लगे वहीं दूसरी ओर शाला का वातावरण भी शिक्षामय हो गया।
प्रगतिगामी पग यहीं पर नही रूके, दूसरा सोपान चालू हुआ। विद्यार्थियों का युक्तियुक्त तरीके से सामाजीकरण हो, वह परस्पर सीखें इस उद्देश्य से समूह में पढाई कराना शुरू की। दल बनाकर सामान्य ज्ञान और अंग्रेजी विषय पर प्रश्नोत्तरी करवाना शुरू किया गया। प्रतियोगी एवं स्वस्थ्य वातावरण देने के लिए विभिन्न विषयों पर समूह चर्चा करवाना शुरू किया। विद्यार्थी कल्पनाशील और विचारवान बने इसके लिए ग्रीन बोर्ड के साथ विभिन्न चित्र अंकित कर विद्यार्थी को उन चित्रों को आधार बनाकर कविता और कहानी लिखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। विद्यार्थीगण आत्म विश्वासी हो, वह अपने विचार सबके सामने रख सकें, दूसरे के विचारों को धैर्यपूर्वक सुन सकें, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाल सभा का गठन किया गया। शाला में एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और उसके माध्यम से प्रेरक साहित्य उपलब्ध कराया गया। बाल सभा के माध्यम से राष्ट्रीय पर्व और अन्य प्रसंगों पर सभा आयोजित करना प्रारंभ की गयी। बाल सभा का संचालन भी बच्चों से कराना शुरू किया। परिणाम हुआ कि हीरो की नगरी पन्ना में ग्राम तारा की शाला भी हीरो के समान चमकने लगी।
शाला की प्रगति की दस्तां से रूबरू होने के लिए एक नजर पूर्व पर डालना भी उचित है। शैक्षणिक सत्र 2015-16 में छात्र संख्या केवल 19 थी एवं 5 छात्र नवप्रवेशी मिले। इस तरह कुल छात्र संख्या 24 हो गयी जिनमें से 9 अनुसूचित जाति एवं 4 अनुसूचित जनजाति के छात्र थे। उसके बाद 3 छात्रों के उत्तीर्ण होकर विद्यालय छोडने के बाद वर्ष 2016-17 में 21 छात्र संख्या बची। इसी वर्ष 18 नये छात्रों ने प्रवेश लिया जिनमें से 9 छात्र निजी विद्यालयों से आए थे। अब छात्रों की संख्या 39 हो गयी थी। इनमें से 20 अनुसूचित जाति एवं 4 अनुसूचित जनजाति के छात्र थे। शैक्षणिक सत्र 2017-18 में 12 छात्र उत्तीर्ण होकर बाहर होने के बाद छात्र संख्या 27 हो गयी थी। इस वर्ष 19 नवप्रवेशी बच्चों ने प्रवेश लिया। जिनमें से 4 छात्र निजी विद्यालयों से आए। इस तरह वर्तमान में कुल छात्र संख्या 46 है। जिनमें से 15 अनुसूचित जाति के छात्र है।
उपरोक्त आंकडे स्वयं इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि कर्तव्य निष्ठा से इस शाला में बचपन संवर रहा है। निःसंदेह यह अनूठा स्कूल है। इसकी किसी स्कूल से कोई तुलना नहीं है। यह दो शिक्षकों के सद्प्रयास की सफलता की कहानी है, जिससे पाठशाला की छवि इतनी निखर गयी कि सम्पन्न घरों के बच्चे भी प्रायवेट स्कूल छोड़ कर इस शाला में प्रवेश ले रहे हैं। सच भी यही है कि निरंतर और सतत प्रयास ही सफलता के मूल आधार है।
कहना न होगा कि पूर्व में यह एक पहचान विहीन, अभिभावक एवं विद्यार्थियों द्वारा उपेक्षित सामान्य सी पाठशाला थी। पर आज यह पन्ना जिले की एक चर्चित शाला है। यदि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि तारा गांव में स्थित होने के बाद भी यह तारा गांव की पाठशाला के रूप में नहीं बल्कि ’तारा’ गंाव इस पाठशाला के कारण पहचाना जाने लगा है। एक सामान्य साधनहीन शाला से जिले की रेखांकित शाला बनने तक की कहानी मूलतः दो शिक्षकों सुश्री वर्षा वर्मा एवं श्री अमित परमार के आसपास घूमती है।
वह जुलाई 2015 का समय था जहां से शाला ने अपने उत्थान की इबारत लिखना शुरू की। हुआ कुछ तरह कि युक्तियुक्तकरण नीति के अन्तर्गत ग्राम झरकुआ के शासकीय हाईस्कूल के अध्यापक श्री परमार एवं अध्यापिका सुश्री वर्मा का स्थानान्तरण ग्राम तारा की शासकीय प्राथमिक शाला में हो गया। पदभार संभालते ही शिक्षकों ने इस वास्तविकता को जाना कि शासकीय अभिलेख में दर्ज इस शाला की पहचान अपने ग्राम तारा तक में नहीं है। इस गांव के जो विद्यार्थी शाला में पढने आ रहे हैं उनके पास गणवेश तो दूर पूरे वस्त्र तक नहीं हंै। वास्तविकता तो यह थी कि आधे-अधूरे, फटे पुराने कपड़ों में शाला आने वाले विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने नहीं बल्कि मध्यान्ह भोजन के लालच में शाला आते थे। शिक्षकों ने यह भी महसूस किया कि जिस तरह शाला संचालित हो रही है, वह नाम मात्र की शाला है और शासन का उद्देश्य नाम मात्र की पाठशाला का संचालन नहीं हैं; अपितु बच्चों को शिक्षित, संस्कारित और आत्मनिर्भर करना है। ताकि सर्वजन हितकारी उपक्रमों में उनकी भी सहभागिता हो।
स्थितियां प्रतिकूल थीं। शिक्षकों के सामने एक कठिन चुनौती थी। उन्होंने महसूस किया कि हम शिक्षक हैं सरकार ने हमारी नियुक्ति स-उद्देश्य की है। विद्यार्थी हमें गुरूजी कहते और मानते हैं। हम स्वयं विद्यार्थियों को चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। अतः हमें भी शाला को शाला बनाने की चुनौती, शाला को शासन के उद्देश्य के अनुरूप चलाने की चुनौती स्वीकार करना होगी। इसी विचार मंथन में शिक्षकों को अपने कर्तव्य कर्म का बोध हुआ और वे अपने दायित्व निर्वहन के लिए अभिपे्ररित हो गए। उन्हांेने शाला के उन्नयन के लिए एक कार्ययोजना बनाई और उस पर क्रियान्वयन करना प्रारंभ कर दिया। कार्ययोजना के केन्द्र में उन्होंने इस बिन्दु को रखा कि शाला आने में बच्चों के मन में उमंग हो, रूचि हो तथा अभिभावक की भी बच्चों को शाला भेजने में सकारात्मक सहभागिता हो।
शिक्षकों ने अपनी कार्ययोजना से अभिभावकों को अवगत कराया। परस्पर सहमति से उन्होंने सबसे पहले बच्चों को शाला आने में रूझान उत्पन्न करने के लिए उपहार योजना शुरू की। सभी विद्यार्थियों को गणवेश दिए, शीतकाल के लिए ऊनी कपड़े दिए। गणवेश और ऊनी वस्त्र पाकर विद्यार्थियों के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए और वह शाला ने में रूचि लेने लगे। शाला आने के बाद विद्यार्थी शाला आने में रूकें, इसके लिए शिक्षकों ने शाला को खेल के मैदान में भी बदला और खेल-खेल में पढ़ाई को अंजाम देने लगे। खेल के मैदान के साथ कक्षाओं में भी बच्चों का मन लगे इसके लिए टाट-पट्टी की व्यवस्था की गयी, पुराने फर्नीचर को नया रूप दिया गया। विद्यार्थियों को पढ़ने और लिखने में सुविधा हो इसके लिए पुराने फर्नीचर से छोटी-छोटी डेस्क बनाई गयी। अध्ययन कक्ष की दीवारों पर गिनती, वर्णमाला और प्रेरक चित्र बनाए गए, नृत्य और गीत को पढाई में शामिल किया गया। विद्यार्थी स्वप्रेरणा से लेखन में रूचि लें, इस उद्देश्य से दीवारों पर छोटे-छोटे ग्रीन बोर्ड बनवाए गए। विद्या की देवी माॅं सरस्वती का मंदिर स्थापित कर प्रतिदिन प्रार्थना से शाला की शुरूआत प्रारंभ की गयी। शिक्षकों और अभिभावकों की संयुक्त पहल रंग लायी। सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। साफ, स्वच्छ शिक्षा कक्ष और शाला प्रांगण, शाला प्रांगण में लहराते फूलों के पौधे, टाट-पट्टी, ग्रीन बोर्ड और प्यार भरा मार्गदर्शन पाकर जहां विद्यार्थी स्व-अनुशासन से पढ़ने में रूचि लेने लगे वहीं दूसरी ओर शाला का वातावरण भी शिक्षामय हो गया।
प्रगतिगामी पग यहीं पर नही रूके, दूसरा सोपान चालू हुआ। विद्यार्थियों का युक्तियुक्त तरीके से सामाजीकरण हो, वह परस्पर सीखें इस उद्देश्य से समूह में पढाई कराना शुरू की। दल बनाकर सामान्य ज्ञान और अंग्रेजी विषय पर प्रश्नोत्तरी करवाना शुरू किया गया। प्रतियोगी एवं स्वस्थ्य वातावरण देने के लिए विभिन्न विषयों पर समूह चर्चा करवाना शुरू किया। विद्यार्थी कल्पनाशील और विचारवान बने इसके लिए ग्रीन बोर्ड के साथ विभिन्न चित्र अंकित कर विद्यार्थी को उन चित्रों को आधार बनाकर कविता और कहानी लिखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। विद्यार्थीगण आत्म विश्वासी हो, वह अपने विचार सबके सामने रख सकें, दूसरे के विचारों को धैर्यपूर्वक सुन सकें, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाल सभा का गठन किया गया। शाला में एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और उसके माध्यम से प्रेरक साहित्य उपलब्ध कराया गया। बाल सभा के माध्यम से राष्ट्रीय पर्व और अन्य प्रसंगों पर सभा आयोजित करना प्रारंभ की गयी। बाल सभा का संचालन भी बच्चों से कराना शुरू किया। परिणाम हुआ कि हीरो की नगरी पन्ना में ग्राम तारा की शाला भी हीरो के समान चमकने लगी।
शाला की प्रगति की दस्तां से रूबरू होने के लिए एक नजर पूर्व पर डालना भी उचित है। शैक्षणिक सत्र 2015-16 में छात्र संख्या केवल 19 थी एवं 5 छात्र नवप्रवेशी मिले। इस तरह कुल छात्र संख्या 24 हो गयी जिनमें से 9 अनुसूचित जाति एवं 4 अनुसूचित जनजाति के छात्र थे। उसके बाद 3 छात्रों के उत्तीर्ण होकर विद्यालय छोडने के बाद वर्ष 2016-17 में 21 छात्र संख्या बची। इसी वर्ष 18 नये छात्रों ने प्रवेश लिया जिनमें से 9 छात्र निजी विद्यालयों से आए थे। अब छात्रों की संख्या 39 हो गयी थी। इनमें से 20 अनुसूचित जाति एवं 4 अनुसूचित जनजाति के छात्र थे। शैक्षणिक सत्र 2017-18 में 12 छात्र उत्तीर्ण होकर बाहर होने के बाद छात्र संख्या 27 हो गयी थी। इस वर्ष 19 नवप्रवेशी बच्चों ने प्रवेश लिया। जिनमें से 4 छात्र निजी विद्यालयों से आए। इस तरह वर्तमान में कुल छात्र संख्या 46 है। जिनमें से 15 अनुसूचित जाति के छात्र है।
उपरोक्त आंकडे स्वयं इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि कर्तव्य निष्ठा से इस शाला में बचपन संवर रहा है। निःसंदेह यह अनूठा स्कूल है। इसकी किसी स्कूल से कोई तुलना नहीं है। यह दो शिक्षकों के सद्प्रयास की सफलता की कहानी है, जिससे पाठशाला की छवि इतनी निखर गयी कि सम्पन्न घरों के बच्चे भी प्रायवेट स्कूल छोड़ कर इस शाला में प्रवेश ले रहे हैं। सच भी यही है कि निरंतर और सतत प्रयास ही सफलता के मूल आधार है।
स्वयं के साथ दूसरों को भी रोजगार दे रहे है धर्मेन्द्र
-प्रदेश की वर्तमान सरकार ने विभिन्न तरह की जनकल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रखी हैं। इन योजनाओं ने नजाने कितने लोगों की तकदीर और तस्वीर बदल दी है। गरीबी का जीवन यापन करने वालों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना वरदान साबित हो रही है। इन्ही गरीबों में शामिल जनकपुर ग्राम पंचायत के नारंगीबाग निवासी धर्मेन्द्र प्रजापति है। इन्हें मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ मिला है। जिससे इनकी तकदीर और तस्वीर बदल गयी है। अब यह खुद के साथ दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।
धर्मेन्द्र प्रजापति समाज से वास्ता रखते हैं। परिवार गरीबी में जीवन यापन करते हुए अपना पैतृक व्यवसाय करते थे उनके साथ धर्मेन्द्र भी पैतृक व्यवसाय में लग गए। इससे उनके परिवार का भरण पोषण ठीक से नही चल पा रहा था। धर्मेन्द्र चाहता था कि कही से पूंजी मिल जाए तो इस व्यवसाय को बढाकर परिवार की आय बढाई जाए। एक दिन उन्हें स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने जिला अन्त्यावसायी सहकारी समिति कार्यालय में सम्पर्क स्थापित किया। कार्यालय द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की पूरी जानकारी दी गयी। फिर उन्होंने योजना के तहत ईंट निर्माण कार्य के लिए 10 लाख रूपये ऋण के लिए आवेदन कर दिया।
अन्त्यावसायी सहकारी समिति के अधिकारियों द्वारा धर्मेन्द्र की परिवारिक पृष्ठभूमि एवं परम्पारिक व्यवसाय की दक्षता और अनुभव से संतुष्ट होकर उसका चयन हितग्राही के रूप में कर लिया। धर्मेन्द्र ऋण आवेदन को बैंक आॅफ महाराष्ट्र शाखा पन्ना को अनुशंसा सहित भेजा गया। बैंक में हितग्राही से संतुष्ट होते हुए 5 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर लिया। इस ऋण राशि में शासन की योजना अनुसार धर्मेन्द्र को एक लाख 50 हजार रूपये का अनुदान प्राप्त हुआ।
ऋण राशि प्राप्त होने के बाद धर्मेन्द्र ने अपने पैतृक व्यवसाय में ऋण राशि लगाकर बढाया। व्यवसाय को बढाने पर उन्हें कारीगरों एवं अन्य श्रमिकों की जरूरत महसूस होने पर उन्होंने अन्य लोगांे को भी कार्य में लगा लिया। इस प्रकार उनका यह व्यवसाय तेजी से चल पडा। अब उनको प्रति माह इतनी आय हो जाती है जिससे वह आसानी से बैंक की किश्त चुकाने के बाद 15 हजार रूपये बचा लेते हैं। इस राशि से उनके परिवार का भरण पोषण अच्छे होने के उपरांत थोडी बहुत बचत भविष्य के लिए हो जाती है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से धर्मेन्द्र का आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर सुधर गया है।
धर्मेन्द्र प्रजापति समाज से वास्ता रखते हैं। परिवार गरीबी में जीवन यापन करते हुए अपना पैतृक व्यवसाय करते थे उनके साथ धर्मेन्द्र भी पैतृक व्यवसाय में लग गए। इससे उनके परिवार का भरण पोषण ठीक से नही चल पा रहा था। धर्मेन्द्र चाहता था कि कही से पूंजी मिल जाए तो इस व्यवसाय को बढाकर परिवार की आय बढाई जाए। एक दिन उन्हें स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने जिला अन्त्यावसायी सहकारी समिति कार्यालय में सम्पर्क स्थापित किया। कार्यालय द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की पूरी जानकारी दी गयी। फिर उन्होंने योजना के तहत ईंट निर्माण कार्य के लिए 10 लाख रूपये ऋण के लिए आवेदन कर दिया।
अन्त्यावसायी सहकारी समिति के अधिकारियों द्वारा धर्मेन्द्र की परिवारिक पृष्ठभूमि एवं परम्पारिक व्यवसाय की दक्षता और अनुभव से संतुष्ट होकर उसका चयन हितग्राही के रूप में कर लिया। धर्मेन्द्र ऋण आवेदन को बैंक आॅफ महाराष्ट्र शाखा पन्ना को अनुशंसा सहित भेजा गया। बैंक में हितग्राही से संतुष्ट होते हुए 5 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर लिया। इस ऋण राशि में शासन की योजना अनुसार धर्मेन्द्र को एक लाख 50 हजार रूपये का अनुदान प्राप्त हुआ।
ऋण राशि प्राप्त होने के बाद धर्मेन्द्र ने अपने पैतृक व्यवसाय में ऋण राशि लगाकर बढाया। व्यवसाय को बढाने पर उन्हें कारीगरों एवं अन्य श्रमिकों की जरूरत महसूस होने पर उन्होंने अन्य लोगांे को भी कार्य में लगा लिया। इस प्रकार उनका यह व्यवसाय तेजी से चल पडा। अब उनको प्रति माह इतनी आय हो जाती है जिससे वह आसानी से बैंक की किश्त चुकाने के बाद 15 हजार रूपये बचा लेते हैं। इस राशि से उनके परिवार का भरण पोषण अच्छे होने के उपरांत थोडी बहुत बचत भविष्य के लिए हो जाती है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से धर्मेन्द्र का आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर सुधर गया है।
सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय कर महिलाओं तथा किशोरियों को स्वच्छता के लिए भी कर रही जागरूक
मध्यप्रदेश डे. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन गरीब एवं अति गरीब परिवारों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराकर उनकी सामाजिक, आर्थिक दशा सुधारने के लिए कृत संकल्पित है। इसी कडी में पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड ग्राम पंचायत सलेहा में 12 सदस्यीय महिलाओं का स्व-सहायता समूह गठित किया गया है। महिला सदस्यों द्वारा समूह के माध्यम से उपलब्ध आजीविका निवेश की 50 हजार रूपये की राशि से सेनेटरी नैपकिन पैकिंग यूनिट की स्थापना की गयी है। यह महिलाएं हेण्ड ग्लब्स, माउथ मास्क तथा निर्धारित ड्रेस पहनकर स्ट्रेरेलायीजेशन के माध्यम से सुरक्षित एवं अल्ट्रा वायलेट प्रकाश के माध्यम से पूरी तरह जीवाणु रोधी कर सेनेटरी नैपकिन की पैकिंग का कार्य कर रही हैं।
इसके लिए इन महिलाओं को विकासखण्ड मिशन प्रबंधक श्री अनिल कुमार मिश्रा एवं ग्राम प्रभारी नरेश प्रजापति द्वारा वर्तमान समय में सेनेटरी नैपकिन की उपयोगिता एवं स्वच्छता विषय पर प्रशिक्षित किया गया। शैक्षणिक भ्रमण के माध्यम से सेनेटरी नैपकिन पैकिंग का कार्य सिखाया गया। समूह द्वारा संचालित इस यूनिट के लिए कच्चे माल की प्राप्ति विशाली हाईजीन जबलपुर से सुनिश्चित कराई गयी है। समूह की महिलाएं सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय के साथ-साथ अन्य महिलाओें एवं किशोरियों को स्वच्छता के लिए भी जागरूक करती हैं। सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय से प्रतिदिन प्रत्येक सदस्य को 200 रूपये की आय स्थानीय स्तर पर हो जाती है। महिलाआंे की आजीविकास सुदृढ़ होने से पलायन रोकने में भी मदद मिली है। समूह की महिलाओं द्वारा जागरूक करने पर क्षेत्र की महिलाएं एवं किशोरियां अब जेण्डर के मुद्दों पर भी खुलकर बात करती हैं।
इसके लिए इन महिलाओं को विकासखण्ड मिशन प्रबंधक श्री अनिल कुमार मिश्रा एवं ग्राम प्रभारी नरेश प्रजापति द्वारा वर्तमान समय में सेनेटरी नैपकिन की उपयोगिता एवं स्वच्छता विषय पर प्रशिक्षित किया गया। शैक्षणिक भ्रमण के माध्यम से सेनेटरी नैपकिन पैकिंग का कार्य सिखाया गया। समूह द्वारा संचालित इस यूनिट के लिए कच्चे माल की प्राप्ति विशाली हाईजीन जबलपुर से सुनिश्चित कराई गयी है। समूह की महिलाएं सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय के साथ-साथ अन्य महिलाओें एवं किशोरियों को स्वच्छता के लिए भी जागरूक करती हैं। सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय से प्रतिदिन प्रत्येक सदस्य को 200 रूपये की आय स्थानीय स्तर पर हो जाती है। महिलाआंे की आजीविकास सुदृढ़ होने से पलायन रोकने में भी मदद मिली है। समूह की महिलाओं द्वारा जागरूक करने पर क्षेत्र की महिलाएं एवं किशोरियां अब जेण्डर के मुद्दों पर भी खुलकर बात करती हैं।
कृषि को लाभ का धन्धा बनाने के लिए शासन द्वारा विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनमें से एक उद्यानिकी विभाग अन्तर्गत संचालित ड्रिप सिंचाई योजना है। ड्रिप (टपक) सिंचाई पद्धति द्वारा खेती करने पर कम पानी में भी फसल की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। खेती के लिए जल बहुत ही महत्वपूर्ण है। खेतों एवं बाग बगीचों में सीधे पानी लगाने याने सतही सिंचाई विधि से बहुमूल्य पानी का 60 प्रतिशत भाग किसी न किसी कारण से बरबाद हो जाता है। वही टपक सिंचाई को अपनाने से उत्पादन में डेढ गुना वृद्धि होने के साथ-साथ 70 प्रतिशत पानी की बचत भी होती है। इस पद्धति से सिंचाई करने से पानी केवल पौधों की जड़ों में ही पहुंचता है। मेड नालियां बनाने की आवश्यकता नही होती। पानी की बचत के साथ-साथ श्रम एवं पैसों की बचत भी होती है। खतपरवार की समस्या भी नही होती। उबड-खबड भूमि में भी पौधों की सिंचाई आसानी से की जा सकती है। जिले के अनेक किसान भाई इस पद्धति को अपनाकर पहले से अधिक आय प्राप्त कर रहे हैं।
ऐसे ही कृषक श्री अजेन्द्र सिंह निवासी ग्राम मुराछ विकासखण्ड पन्ना बताते हैं कि उन्होंने अपनी जमीन के 2 हेक्टेयर में वर्ष 2014-15 में उद्यान विभाग की फल क्षेत्र विस्तार योजना के तहत आम का बगीचा लगवाया था। जिसमें उन्होंने आम की विभिन्न किस्मों जैसे दशहरी, सुंदरजा, आम्रपाली एवं लंगड़ा आमों के पेड़ लगाए थे। लगाए गए सभी पेड जीवित हैं। अब पेड़ काफी बडे हो गए हैं और अच्छे फलन की ओर हैं। इसके अलावा कृषक अजेन्द्र ने 0.50 हेक्टेयर में केला टिशू कल्चर एवं 0.30 हेक्टेयर में पपीते की अन्तवर्तीय खेती की हैै। इन्होंने वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पर ड्राॅप, मोर क्राॅप) अन्तर्गत उद्यानिकी विभाग से ड्रिप लगवाकर अपने आम के बगीचों और केले एवं पपीते के पौधों की सिंचाई कर रहे हैं। कम पानी में भी पौधों का अच्छा विकास हुआ है। इससे उन्हें आम के साथ-साथ पपीते और केले के अच्छे उत्पादन की उम्मीद है। कृषक श्री अजेन्द्र ने जिले के अन्य कृषक भाईयों से कहा है कि शासन द्वारा चलाई जा रही ड्रिप सिंचाई पद्धति का लाभ लेकर फसल उत्पादन बढाने के साथ-साथ अपनी आय भी बढाएं।
ऐसे ही कृषक श्री अजेन्द्र सिंह निवासी ग्राम मुराछ विकासखण्ड पन्ना बताते हैं कि उन्होंने अपनी जमीन के 2 हेक्टेयर में वर्ष 2014-15 में उद्यान विभाग की फल क्षेत्र विस्तार योजना के तहत आम का बगीचा लगवाया था। जिसमें उन्होंने आम की विभिन्न किस्मों जैसे दशहरी, सुंदरजा, आम्रपाली एवं लंगड़ा आमों के पेड़ लगाए थे। लगाए गए सभी पेड जीवित हैं। अब पेड़ काफी बडे हो गए हैं और अच्छे फलन की ओर हैं। इसके अलावा कृषक अजेन्द्र ने 0.50 हेक्टेयर में केला टिशू कल्चर एवं 0.30 हेक्टेयर में पपीते की अन्तवर्तीय खेती की हैै। इन्होंने वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पर ड्राॅप, मोर क्राॅप) अन्तर्गत उद्यानिकी विभाग से ड्रिप लगवाकर अपने आम के बगीचों और केले एवं पपीते के पौधों की सिंचाई कर रहे हैं। कम पानी में भी पौधों का अच्छा विकास हुआ है। इससे उन्हें आम के साथ-साथ पपीते और केले के अच्छे उत्पादन की उम्मीद है। कृषक श्री अजेन्द्र ने जिले के अन्य कृषक भाईयों से कहा है कि शासन द्वारा चलाई जा रही ड्रिप सिंचाई पद्धति का लाभ लेकर फसल उत्पादन बढाने के साथ-साथ अपनी आय भी बढाएं।
प्याज का बढ़ा हुआ आकार मिलने से पूरन सिंह ने इस वर्ष भी की है खेती
-पन्ना जिले के ग्राम विरासन के निवासी कृषक पूरन सिंह ठाकुर पहले गेंहू एवं सोयाबीन की परम्पारिक खेती करते थे। पिछले 3 वर्षो से इसमें नुकसान उठा रहे थे। जिसके बाद इन्होंने प्याज की खेती करने का निश्चय किया। लेकिन बिना तकनीक के सीधे बीज छिडकाव द्वारा खेती करने से इसमें भी बहुत कम उत्पादन लगभग 30 क्विंटल प्रति एकड प्राप्त हुआ। फसल बदलने के बाद भी पूरन सिंह को निराशा ही हांथ लगी। फिर एक दिन इन्होंने आत्मा योजना के अन्तर्गत आयोजित कृषक संगोष्ठी में भाग लिया और इनके निराशा आशा में बदल गयी।
पूरन सिंह बताते हैं कि संगोष्ठी के माध्यम से उन्हें कृषि विशेषज्ञ एवं बीटीएम द्वारा प्याज की उन्नत कृषि कार्यमाला के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद उन्होंने बीटीएम पवई के निर्देशन में जैविक खाद एवं वैज्ञानिक पद्धति से प्याज की उन्नत खेती प्रारंभ कर दी। पूर्व में जहां खेती में उत्पादन लागत अधिक व प्याज का उत्पादन कम प्राप्त होता था वही तकनीकी प्याज की खेती से मेरा उत्पादन लगभग 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ। प्याज का आकार भी अधिकतम 125 ग्राम तक प्राप्त किया। समय पर दवा व संतुलित खादों के उपयोग से उत्पादन में आने वाली अन्य कठिनाईयों का सामना भी नही करना पडा। पूरन सिंह ने इस वर्ष भी उन्नत तरीके से प्याज की खेती की है और उन्हें अपेक्षाकृत और बेहतर उत्पादन की उम्मीद है। पूरन सिंह कहते हैं कि सभी किसान भाईयों को खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहिए।
पूरन सिंह बताते हैं कि संगोष्ठी के माध्यम से उन्हें कृषि विशेषज्ञ एवं बीटीएम द्वारा प्याज की उन्नत कृषि कार्यमाला के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद उन्होंने बीटीएम पवई के निर्देशन में जैविक खाद एवं वैज्ञानिक पद्धति से प्याज की उन्नत खेती प्रारंभ कर दी। पूर्व में जहां खेती में उत्पादन लागत अधिक व प्याज का उत्पादन कम प्राप्त होता था वही तकनीकी प्याज की खेती से मेरा उत्पादन लगभग 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ। प्याज का आकार भी अधिकतम 125 ग्राम तक प्राप्त किया। समय पर दवा व संतुलित खादों के उपयोग से उत्पादन में आने वाली अन्य कठिनाईयों का सामना भी नही करना पडा। पूरन सिंह ने इस वर्ष भी उन्नत तरीके से प्याज की खेती की है और उन्हें अपेक्षाकृत और बेहतर उत्पादन की उम्मीद है। पूरन सिंह कहते हैं कि सभी किसान भाईयों को खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहिए।
खोरा केन्द्र से 300 लीटर एवं निजामपुर से 150 लीटर तक दूध की खरीदी कर दे रही सांची को
-पन्ना जिले में तेजस्वनी कार्यक्रम के अन्तर्गत महिलाओं के संस्थागत विकास की प्रक्रिया निरंतर जारी है। इसके तहत महिलाओं के समूह का गठन, आपसी लेनदेन की देखरेख, बैंक लिंकेज, क्षमता संवर्धन एवं व्यक्तिगत समृद्धि के लिए आजीविका प्रदाय करना आदि अनेक गतिविधियां शामिल हैं। इसी क्रम में जिले के अजयगढ़ क्षेत्र में गठित बुन्देलखण्ड अजेय तेजस्वनी महिला महासंघ ने देशी नस्ल की भैंसों से डेयरी संचालन की पहल की है। आजीविका गतिविधि से जुडकर भैंस पालन के साथ-साथ डेयरी व्यवसाय मंे मिल रहे लाभ से समूह के सदस्य काफी खुश हैं।
इस संबंध में चर्चा करने पर जिला कार्यक्रम प्रबंधक तेजस्वनी परियोजना श्री संजीव सिंह ने बताया कि बुन्देलखण्ड अजेय तेजस्वनी महासंघ अजयगढ के माध्यम से क्षेत्र के अन्य क्लस्टरों में गठित समूह सदस्यों को आजीविका गतिविधि से जोडने के लिए क्षेत्र का सर्वे कराया गया। सर्वे से ज्ञात हुआ कि यहां आजीविका का प्रमुख साधन कृषि एवं भैंस पालन है। देशी नस्ल की भैंस 2 से 3 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। इन भैंसों के लिए अनुकूलित वातावरण आवश्यक होता है। समूह सदस्यों के पास दूध विक्रय का साधन न होने के कारण 25 से 30 रूपये लीटर की दर से दूध बेच दिया करती थी। तब बुन्देलखण्ड अजेय तेजस्वनी महिला महासंघ द्वारा अन्य क्लस्टर के समूहों को आजीविका गतिविधि से जोडते हुए डेयरी संचालन का निर्णय लिया गया। इसकी शुरूआत समूह ने खोरा एवं निजामपुर क्लस्टर से की।
तेजस्वनी कार्यक्रम के सहयोग से 25 अप्रैल 2017 को खोरा एवं निजामपुर में दुग्ध संकलन केन्द्र की स्थापना की गयी। खोरा दुग्ध संकलन केन्द्र में 451 सदस्य एवं निजामपुर दुग्ध संकलन केन्द्र में 220 सदस्यों को लाभान्वित किया गया है। समूह की महिलाएं भैंस पालन के साथ-साथ अब गाय का पालन भी करने लगी हैं। पशुओं के आहार से लेकर उनके अन्य प्रति उत्पादों की व्यवस्था का कार्य समूह की महिलाएं स्वयं करती हैं। वर्तमान में खोरा दुग्ध संकलन केन्द्र द्वारा प्रतिदिन 250 से 300 लीटर एवं निजामपुर में 100 से 150 लीटर दूध की खरीद की जा रही है। क्रय किए गए दूध को सांची दूध डेयरी अजयगढ को विक्रय किया जाता है। पहले जहां महिलाएं 25 से 30 रूपये प्रति लीटर की दर से दूध का विक्रय कर दिया करती थी। आज वे डेढ़ से दो गुना लाभ कमा रही हैं। इससे दुग्ध संकलन केन्द्र खोरा एवं निजामपुर को प्रतिमाह 10 से 15 हजार रूपये का शुद्ध लाभ भी प्राप्त हो जाता है। समूह के 184 सदस्यों को शासकीय पशु चिकित्सक द्वारा आजीविका गतिविधि क्षमता संवर्धन प्रशिक्षण दिलाया गया है। आजीविका गतिविधि से जुडने के बाद समूह के सदस्यों में काफी उत्साह है और वे इस व्यवसाय का आनन्द उठा रहे हैं। अगले क्रम में अन्य क्लस्टरों के समूहों को भी जोडने की योजना है।
इस संबंध में चर्चा करने पर जिला कार्यक्रम प्रबंधक तेजस्वनी परियोजना श्री संजीव सिंह ने बताया कि बुन्देलखण्ड अजेय तेजस्वनी महासंघ अजयगढ के माध्यम से क्षेत्र के अन्य क्लस्टरों में गठित समूह सदस्यों को आजीविका गतिविधि से जोडने के लिए क्षेत्र का सर्वे कराया गया। सर्वे से ज्ञात हुआ कि यहां आजीविका का प्रमुख साधन कृषि एवं भैंस पालन है। देशी नस्ल की भैंस 2 से 3 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। इन भैंसों के लिए अनुकूलित वातावरण आवश्यक होता है। समूह सदस्यों के पास दूध विक्रय का साधन न होने के कारण 25 से 30 रूपये लीटर की दर से दूध बेच दिया करती थी। तब बुन्देलखण्ड अजेय तेजस्वनी महिला महासंघ द्वारा अन्य क्लस्टर के समूहों को आजीविका गतिविधि से जोडते हुए डेयरी संचालन का निर्णय लिया गया। इसकी शुरूआत समूह ने खोरा एवं निजामपुर क्लस्टर से की।
तेजस्वनी कार्यक्रम के सहयोग से 25 अप्रैल 2017 को खोरा एवं निजामपुर में दुग्ध संकलन केन्द्र की स्थापना की गयी। खोरा दुग्ध संकलन केन्द्र में 451 सदस्य एवं निजामपुर दुग्ध संकलन केन्द्र में 220 सदस्यों को लाभान्वित किया गया है। समूह की महिलाएं भैंस पालन के साथ-साथ अब गाय का पालन भी करने लगी हैं। पशुओं के आहार से लेकर उनके अन्य प्रति उत्पादों की व्यवस्था का कार्य समूह की महिलाएं स्वयं करती हैं। वर्तमान में खोरा दुग्ध संकलन केन्द्र द्वारा प्रतिदिन 250 से 300 लीटर एवं निजामपुर में 100 से 150 लीटर दूध की खरीद की जा रही है। क्रय किए गए दूध को सांची दूध डेयरी अजयगढ को विक्रय किया जाता है। पहले जहां महिलाएं 25 से 30 रूपये प्रति लीटर की दर से दूध का विक्रय कर दिया करती थी। आज वे डेढ़ से दो गुना लाभ कमा रही हैं। इससे दुग्ध संकलन केन्द्र खोरा एवं निजामपुर को प्रतिमाह 10 से 15 हजार रूपये का शुद्ध लाभ भी प्राप्त हो जाता है। समूह के 184 सदस्यों को शासकीय पशु चिकित्सक द्वारा आजीविका गतिविधि क्षमता संवर्धन प्रशिक्षण दिलाया गया है। आजीविका गतिविधि से जुडने के बाद समूह के सदस्यों में काफी उत्साह है और वे इस व्यवसाय का आनन्द उठा रहे हैं। अगले क्रम में अन्य क्लस्टरों के समूहों को भी जोडने की योजना है।
पन्ना शहर के कटरा बाजार में रहने वाली श्रीमती सीमा बानो पोशाक तैयार कर अपनी आर्थिक स्थिति संवार रही हैं। शासन द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से यह संभव हो पाया है। बच्चों की शिक्षा एवं पालन-पोषण के साथ-साथ इनका घर भी अब ठीक से चलने लगा है।
सीमा बानो से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि पहले इनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। इनके पति सब्जी बिक्री का काम करते थे। जिससे मात्र 3 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी हो पाती थी। इनती कम आमदनी में बच्चों का पालन पोषण करना कठिन होता जा रहा था। सीमा अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ भी नही कर पा रही थी। ऐसे में उनका सम्बल टूटता जा रहा था। तभी उन्हें खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसके बाद इन्होंने पोशाक व्यवसाय प्रारंभ करने का निर्णय लेते हुए खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक शाखा बेनीसागर पन्ना में अपना आवेदन जमा कर दिया। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बैंक से इन्हें 5 लाख रूपये की ऋण राशि प्राप्त हुई। जिससे इन्होंने तुरन्त अपना व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। इनकी दुकान कटरा बाजार पन्ना में संचालित है। आज सीमा बानो को लगभग 12 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी होने लगी है। उनके पति का सहारा बनने के साथ-साथ सीमा बानो आत्मनिर्भर बन गयी है। उनका घर का संचालन और बच्चों का पालन पोषण अब अच्छी तरह से कर पा रही हैं। इसके लिए सीमा बानो शासन द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का धन्यबाद ज्ञापित करती हैं। साथ ही जिले की सभी जरूरतमंद महिलाओं से अपील करते हुए कहती हंै कि वह भी इस योजना का लाभ लेकर परिवार की आर्थिक सुदृढ़ता में सहभागी बनें और इस गर्व और खुशी को महसूस करें।
सीमा बानो से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि पहले इनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। इनके पति सब्जी बिक्री का काम करते थे। जिससे मात्र 3 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी हो पाती थी। इनती कम आमदनी में बच्चों का पालन पोषण करना कठिन होता जा रहा था। सीमा अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ भी नही कर पा रही थी। ऐसे में उनका सम्बल टूटता जा रहा था। तभी उन्हें खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसके बाद इन्होंने पोशाक व्यवसाय प्रारंभ करने का निर्णय लेते हुए खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक शाखा बेनीसागर पन्ना में अपना आवेदन जमा कर दिया। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बैंक से इन्हें 5 लाख रूपये की ऋण राशि प्राप्त हुई। जिससे इन्होंने तुरन्त अपना व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। इनकी दुकान कटरा बाजार पन्ना में संचालित है। आज सीमा बानो को लगभग 12 हजार रूपये प्रति माह की आमदनी होने लगी है। उनके पति का सहारा बनने के साथ-साथ सीमा बानो आत्मनिर्भर बन गयी है। उनका घर का संचालन और बच्चों का पालन पोषण अब अच्छी तरह से कर पा रही हैं। इसके लिए सीमा बानो शासन द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का धन्यबाद ज्ञापित करती हैं। साथ ही जिले की सभी जरूरतमंद महिलाओं से अपील करते हुए कहती हंै कि वह भी इस योजना का लाभ लेकर परिवार की आर्थिक सुदृढ़ता में सहभागी बनें और इस गर्व और खुशी को महसूस करें।
बीकानेर स्वीट्स ने जीवन में घोली मिठास
-विनीता और उसके परिवार की गाड़ी बडी मशक्कतों से जैसे-तैसे चल रही थी। पति की प्रदेश के बाहर नौकरी से केवल 10 हजार रूपये की आमदनी हो पाती थी। जिसमें तीन बच्चों के साथ पति-पत्नी अपना पालन-पोषण कर रहे थे। तभी विनीता को अपने एक मित्र के माध्यम से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। योजना का लाभ लेने के लिए पूरी प्रक्रिया समझने के लिए विनीता ने खादी ग्रामोद्योग बोर्ड पन्ना एवं भारतीय स्टेट बैंक शाखा बेनीसागर पन्ना से सम्पर्क किया। पहले विनीता और उनके पति पंजाब में बीकानेर स्वीट्स के होटल में काम करते थे। इसीलिए विनीता को होटल व्यवसाय के संबंध में जानकारी के साथ-साथ रूचि भी थी। अब विनीता ने होटल व्यवसाय के लिए भारतीय स्टेट बैंक शाखा बेनीसागर पन्ना में आवेदन कर दिया।
बैंक से प्रकरण स्वीकृति के बाद विनीता को 5 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिससे इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। अपने होटल व्यवसाय के लिए सामग्री कटनी, सतना, जबलपुर से प्राप्त करती हैं। अपने होटल का नाम इन्होंने बीकानेर स्वीट्स रखा है। स्वीट्स की मिठास अब इनके जीवन में भी घुल गयी है। विनीता को 20 से 25 हजार रूपये की आमदनी हर माह प्राप्त हो जाती है। बच्चों का पालन-पोषण एवं शिक्षा भी अच्छी तरह से हो रही है। प्रति माह किश्त भी समय पर चुका पाती हैं। विनीता कहती हैं कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की मदद से उनकी गाड़ी अब बेहतर ढंग से चलने लगी है। बहुत अच्छा आर्थिक लाभ मिल पा रहा है। सभी को इस योजना लाभ जरूर लेना चाहिए।
बैंक से प्रकरण स्वीकृति के बाद विनीता को 5 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिससे इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। अपने होटल व्यवसाय के लिए सामग्री कटनी, सतना, जबलपुर से प्राप्त करती हैं। अपने होटल का नाम इन्होंने बीकानेर स्वीट्स रखा है। स्वीट्स की मिठास अब इनके जीवन में भी घुल गयी है। विनीता को 20 से 25 हजार रूपये की आमदनी हर माह प्राप्त हो जाती है। बच्चों का पालन-पोषण एवं शिक्षा भी अच्छी तरह से हो रही है। प्रति माह किश्त भी समय पर चुका पाती हैं। विनीता कहती हैं कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की मदद से उनकी गाड़ी अब बेहतर ढंग से चलने लगी है। बहुत अच्छा आर्थिक लाभ मिल पा रहा है। सभी को इस योजना लाभ जरूर लेना चाहिए।
पन्ना शहर के आगरा मोहल्ला निवासी पार्वती रैकवार इन दिनों बहुत खुश हैं। एक संतोष का भाव उनके चेहरे पर साफ देखा जा सकता है। और इसकी वजह है विधवा पेंशन का आवेदन करते ही तुरन्त लाभ मिलना। यह शासन द्वारा प्रारंभ की गयी समाधान एक दिवस योजना से संभव हो सका है।
पार्वती रैकवार बताती हैं कि अब से पहले पेंशन के लिए उन्हें कार्यालयों के चक्कर लगाने पडते थे। पेंशन लाभ दिलाने की समय सीमा ज्यादा होने के कारण सेवा मिलने में बिलम्व होता था। लेकिन समाधान एक दिवस के अन्तर्गत आवेदन देते ही उसी दिन सेवा प्राप्त होने से मैं बहुत खुश हॅू। प्रशासन एवं लोक सेवा केन्द्रों के प्रति अब मेरा भरोसा बढ गया है। सभी नागरिकों को तहसील मुख्यालय के लोक सेवा केन्द्रों के माध्यम से अपने आवेदन प्रस्तुत कर उसी दिन चाही गयी सेवा का लाभ उठाने की खुशी जरूर महसूस करनी चाहिए।
पार्वती रैकवार बताती हैं कि अब से पहले पेंशन के लिए उन्हें कार्यालयों के चक्कर लगाने पडते थे। पेंशन लाभ दिलाने की समय सीमा ज्यादा होने के कारण सेवा मिलने में बिलम्व होता था। लेकिन समाधान एक दिवस के अन्तर्गत आवेदन देते ही उसी दिन सेवा प्राप्त होने से मैं बहुत खुश हॅू। प्रशासन एवं लोक सेवा केन्द्रों के प्रति अब मेरा भरोसा बढ गया है। सभी नागरिकों को तहसील मुख्यालय के लोक सेवा केन्द्रों के माध्यम से अपने आवेदन प्रस्तुत कर उसी दिन चाही गयी सेवा का लाभ उठाने की खुशी जरूर महसूस करनी चाहिए।
बीज उपचार से मिली चने के उगरा रोग से मुक्ति
-किसान को उसकी मेहनत का उचित मूल्य मिलने के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि भी जाए तो उसके लिए यही सबसे बडी खुशी है। इन दिनों पन्ना जिले के ग्राम कैंथी निवासी कृषक श्री बद्री प्रसाद तिवारी के परिवार में यही खुशी की लहर देखने को मिल रही है। जिसकी वजह उन्हें 4 क्विंटल प्रति एकड के स्थान पर 11 क्विंटल प्रति एकड चने का उत्पादन प्राप्त होना है।
कृषक बद्री प्रसाद बताते हैं कि वह कुल रकवा 2.56 जमीन पर खेती करते हैं। पिछले कई वर्षो से परम्परागत तरीके से चने की खेती करते आ रहे थे। लेकिन हर साल उनके खेतों में उगरा नाम की बीमारी लग जाती थी। जिसकी वजह से उन्हें अधिकतम 4 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन ही प्राप्त हो पाता था। इतने कम उत्पादन से चने की उत्पादन लागत भी नही निकल पाती थी। धीरे-धीरे मेरी माली हालत कमजोर होती जा रही थी और मैंने खेती को छोडकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना लिया था। तभी एक दिन मेरी मुलाकात कृषक मित्र भाग्यश्री से हुई और मेरा मन बदल गया।
कृषक मित्र भाग्यश्री परमार ने उन्हें आत्मा के बीटीएम पवई से मिलवाया। जिन्होंने कृषक बद्री को उगरा रोग से बचाव के लिए खेत परिवर्तन एवं थायोमैथामजौम नामक दवा से बीज उपचार की सलाह दी। साथ ही चने की उन्नत खेती की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। जिसके बाद मैंने उनके मार्गदर्शन में चने की खेती प्रारंभ कर दी। मैंने अपने चने के बोने वाले खेत को बदला। बीज को थायोमैथामजौम दवा से उपचारित करके 40 किलोग्राम के स्थान पर 30 किलोग्राम बीज ही प्रति एकड की दर से बोया। वैज्ञानिक तरीके से चने की खेती करने पर मुझे लगभग 11 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन प्राप्त हुआ है। उगरा नामक बीमारी भी नही आयी। अब मैं अपने खेतों में हर साल फसल चक्र अपनाकर चने की खेती वैज्ञानिक तरीके से करता हॅू। इससे मुझे कम लागत में भी अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। कृषक बद्री प्रसाद ने सभी किसान भाईयों से अपील की है कि वैज्ञानिक तरीका अवश्य अपनाएं और खेती को लाभ का धन्धा बनाएं।
कृषक बद्री प्रसाद बताते हैं कि वह कुल रकवा 2.56 जमीन पर खेती करते हैं। पिछले कई वर्षो से परम्परागत तरीके से चने की खेती करते आ रहे थे। लेकिन हर साल उनके खेतों में उगरा नाम की बीमारी लग जाती थी। जिसकी वजह से उन्हें अधिकतम 4 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन ही प्राप्त हो पाता था। इतने कम उत्पादन से चने की उत्पादन लागत भी नही निकल पाती थी। धीरे-धीरे मेरी माली हालत कमजोर होती जा रही थी और मैंने खेती को छोडकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना लिया था। तभी एक दिन मेरी मुलाकात कृषक मित्र भाग्यश्री से हुई और मेरा मन बदल गया।
कृषक मित्र भाग्यश्री परमार ने उन्हें आत्मा के बीटीएम पवई से मिलवाया। जिन्होंने कृषक बद्री को उगरा रोग से बचाव के लिए खेत परिवर्तन एवं थायोमैथामजौम नामक दवा से बीज उपचार की सलाह दी। साथ ही चने की उन्नत खेती की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। जिसके बाद मैंने उनके मार्गदर्शन में चने की खेती प्रारंभ कर दी। मैंने अपने चने के बोने वाले खेत को बदला। बीज को थायोमैथामजौम दवा से उपचारित करके 40 किलोग्राम के स्थान पर 30 किलोग्राम बीज ही प्रति एकड की दर से बोया। वैज्ञानिक तरीके से चने की खेती करने पर मुझे लगभग 11 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन प्राप्त हुआ है। उगरा नामक बीमारी भी नही आयी। अब मैं अपने खेतों में हर साल फसल चक्र अपनाकर चने की खेती वैज्ञानिक तरीके से करता हॅू। इससे मुझे कम लागत में भी अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। कृषक बद्री प्रसाद ने सभी किसान भाईयों से अपील की है कि वैज्ञानिक तरीका अवश्य अपनाएं और खेती को लाभ का धन्धा बनाएं।
देवेन्द्रनगर जलाशय में इस वर्ष 4 करोड़ से भी ज्यादा मत्स्य बीजों का हुआ उत्पादन
-पन्ना जिले को मत्स्य बीज उत्पादन में इस वर्ष विशेष उपलब्धि हासिल हुई है। जिला पूरे सागर संभाग में अग्रणी रहा है। जिले के मत्स्य बीज उत्पादन प्रक्षेत्र देवेन्द्रनगर के जलाशय में इस वर्ष मत्स्य बीज उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि हुई है। चालू वर्ष 2017-18 में 2 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। जिसके विरूध्द इस वर्ष जिले में 4.20 करोड़ मत्स्य बीजों का उत्पादन हुआ है।
इस संबंध में मछली पालन विभाग के प्रभारी सहायक संचालक श्री व्ही. के. सक्सेना ने बताया कि गीलाबांध मत्स्य प्रजनन केन्द्र देवेन्द्रनगर जलाशय के 143.015 हेक्टेयर में मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया। इस वर्ष मत्स्य प्रजनन 5 जुलाई से प्रारंभ होकर 7 जुलाई को हैचिंग के बाद मत्स्य बीजों की पैकिंग 08 जुलाई एवं 09 जुलाई 2017 को की गई।
शासकीय मत्स्य बीज उत्पादन प्रक्षेत्र देवेन्द्रनगर में उत्पादित मत्स्य बीज से संभाग के अन्य जिलों में भी आपूर्ति की गई है। जिसके अंतर्गत छतरपुर को 1.30 करोड़, टीकमगढ़ को 0.65 करोड़, दमोह को 0.50 करोड़ एवं सागर को 0.20 करोड़ स्पाॅन संचयन के लिए प्रदाय किए गए हैं। शेष बीजों में से 0.85 करोड़ स्पाॅन का संचयन मत्स्य बीज प्रक्षेत्र देवेन्द्रनगर के लिए तथा 0.50 करोड़ बेनीसागर प्रक्षेत्र के लिए किया गया है। जबकि 0.20 करोड़ बीज स्थानीय समीतियों को प्रदाय किए गए हैं।
शासकीय मत्स्य बीज उत्पादन प्रक्षेत्र देवेन्द्रनगर में उत्पादित मत्स्य बीज से संभाग के अन्य जिलों में भी आपूर्ति की गई है। जिसके अंतर्गत छतरपुर को 1.30 करोड़, टीकमगढ़ को 0.65 करोड़, दमोह को 0.50 करोड़ एवं सागर को 0.20 करोड़ स्पाॅन संचयन के लिए प्रदाय किए गए हैं। शेष बीजों में से 0.85 करोड़ स्पाॅन का संचयन मत्स्य बीज प्रक्षेत्र देवेन्द्रनगर के लिए तथा 0.50 करोड़ बेनीसागर प्रक्षेत्र के लिए किया गया है। जबकि 0.20 करोड़ बीज स्थानीय समीतियों को प्रदाय किए गए हैं।
पन्ना जिले के ग्राम मड़ला निवासी श्री गोवर्धन खंगार बेरोजगार घूम रहे थे। फिर उन्हें एक दिन अनुसूचित जाति वर्ग के लिए चलाई जा रही स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली। जिसके बाद उन्होंने जिला अन्त्यावसायी सहकारी समिति मर्यादित पन्ना के कार्यपालन अधिकारी से सम्पर्क कर ढ़ाबा खोलने में अपनी अभिरूचि बताई। अधिकारी के मार्गदर्शन में गोवर्धन की अभिरूचि अनुसार ढ़ाबा व्यवसाय के लिए ऋण हेतु आवेदन कर दिया गया। समिति द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना अन्तर्गत ऋण आवेदन पत्र तैयार कर सिंडीकेट बैंक पन्ना को अनुशंसा सहित स्वीकृति के लिए भेजा गया।
गोवर्धन बताते है कि बैंक द्वारा उन्हें 2 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर वितरित किया गया। स्वीकृत ऋण के विरूद्ध उन्हें 60 हजार रूपये की अनुदान राशि से लाभान्वित किया गया। अब मेरा ढ़ाबा व्यवसाय सुचारू रूप से संचालित हो रहा है। जिससे मैं प्रतिदिन 400 से 500 रूपये की आमदनी प्राप्त कर लेता हॅू। बैंक की निर्धारित किश्तें समय पर जमा करने के साथ ही परिवार का भरण-पोषण भी आराम से हो जाता है। गोवर्धन कहते हैं कि शासन द्वारा संचालित योजना ने उन्हें बेरोजगार से स्वरोजगार दिलाकर जीवन को एक नई दिशा दी है।
गोवर्धन बताते है कि बैंक द्वारा उन्हें 2 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर वितरित किया गया। स्वीकृत ऋण के विरूद्ध उन्हें 60 हजार रूपये की अनुदान राशि से लाभान्वित किया गया। अब मेरा ढ़ाबा व्यवसाय सुचारू रूप से संचालित हो रहा है। जिससे मैं प्रतिदिन 400 से 500 रूपये की आमदनी प्राप्त कर लेता हॅू। बैंक की निर्धारित किश्तें समय पर जमा करने के साथ ही परिवार का भरण-पोषण भी आराम से हो जाता है। गोवर्धन कहते हैं कि शासन द्वारा संचालित योजना ने उन्हें बेरोजगार से स्वरोजगार दिलाकर जीवन को एक नई दिशा दी है।
वैज्ञानिक तरीके अपनाकर कृषक गोविंद को मिली रोग एवं कीट प्रकोप से मुक्ति- पन्ना जिले के ग्राम नारायणपुरा निवासी कृषक गोविंद पाठक की जीविका का मुख्य आधार खेती है। गोविंद पिछले कई वर्षो से अपनी पैतृक जमीन पर परम्परागत तरीके अपनाते हुए गेंहू की खेती करते आ रहे थे। जिससे इन्हें अधिकतम 10 से 12 क्विंटल/एकड़ उत्पादन प्राप्त हो जाता था। लेकिन मौसम परिवर्तन एवं नये-नये रोग व कीट आने से इन्हें खेती में वर्ष दर वर्ष नुकसान हो रहा था। फिर एक दिन कृषक गोविन्द आत्मा योजना के अन्तर्गत पन्ना में आयोजित किसान मेले में सम्मिलित हुए। जिसके बाद जिसके बाद से खेती इनके लिए लाभ का धन्धा बन गयी है।
श्री गोविन्द बताते है कि किसान मेले में उन्हें वैज्ञानिक श्री राजीव सिंह द्वारा रबी फसलों की उन्नत कृषि कार्यमाला की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। वहां से लौटकर मैंने विकासखण्ड कृषि विभाग कार्यालय से आत्मा योजना के अन्तर्गत गेंहू का प्रदर्शन निःशुल्क प्राप्त किया और विभाग द्वारा बताए गए तरीकों से खेती प्रारंभ कर दी। खेती में कतार बोनी जैसी विधियों एवं उन्नत तरीकों को अपनाने से अब मुझे 18 से 20 क्विंटल पर एकड़ गेंहू का उत्पादन प्राप्त होने लगा है। वैज्ञानिक तरीके से खेती के कारण रोग एवं कीट का प्रकोप भी कम हो गया है। मेरी जमीन की उर्वरा शक्ति में सुधार आया है। गोविन्द कहते हैं कि सभी किसान भाई खेती के उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके अपनाकर उत्पादन में वृद्धि कर खेती को लाभ का धन्धा बना सकते हैं।
श्री गोविन्द बताते है कि किसान मेले में उन्हें वैज्ञानिक श्री राजीव सिंह द्वारा रबी फसलों की उन्नत कृषि कार्यमाला की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। वहां से लौटकर मैंने विकासखण्ड कृषि विभाग कार्यालय से आत्मा योजना के अन्तर्गत गेंहू का प्रदर्शन निःशुल्क प्राप्त किया और विभाग द्वारा बताए गए तरीकों से खेती प्रारंभ कर दी। खेती में कतार बोनी जैसी विधियों एवं उन्नत तरीकों को अपनाने से अब मुझे 18 से 20 क्विंटल पर एकड़ गेंहू का उत्पादन प्राप्त होने लगा है। वैज्ञानिक तरीके से खेती के कारण रोग एवं कीट का प्रकोप भी कम हो गया है। मेरी जमीन की उर्वरा शक्ति में सुधार आया है। गोविन्द कहते हैं कि सभी किसान भाई खेती के उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके अपनाकर उत्पादन में वृद्धि कर खेती को लाभ का धन्धा बना सकते हैं।
शासन द्वारा चलाई गयी योजना ग्राम उदय से भारत उदय अभियान की झलक अनायास ही अजयगढ विकासखण्ड के ग्राम प्रतापपुर में दिखाई देती है। यह सब कुछ कर दिखाया है ग्राम संगठन की अध्यक्ष श्रीमती अलमीना की पहल ने। अलमीना बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं। उन्होंने शासन के ग्राम उदय से भारत उदय अभियान को समझा और घर-घर जाकर लोगों में जागरूकता पैदा की। जिससे एक दिन ऐसा आया कि गांव की सभी महिलाएं एकत्र होकर ग्राम संसद के दौरान ग्राम सभा जा पहुंची। वहां उन्होंने अपने गांव के विकास के लिए प्रस्ताव पारित करवाए।
फिर क्या था महिलाओं ने ग्राम के विकास के लिए पक्की सडक, हर घर में शौचालय का निर्माण, घर के बाहर साफ-सफाई, आंगनवाडी में बच्चों को दर्ज कराना, पेंशन धारियों को समय पर पेंशन दिलाना, पात्र हितग्राहियों के बीपीएल कार्ड बनाने का अभियान शुरू कर दिया। आज इस ग्राम में पक्की सडक बन गयी है। घरों में शौचालय का निर्माण एवं उपयोग प्रारंभ हो गया है। अब गांव के लोगों को अपने गांव की महिलाओं पर गर्व महसूस होने लगा है। इन महिलाओं ने 4 वर्ष पहले जो आवाज बुलन्द की थी वह अब धरातल पर दिखाई देने लगा है। यह गांव अब ग्राम उदय से भारत उदय अभियान का उदाहरण बन गया है। यहां की महिलाएं पूरी जागरूकता के साथ ग्राम के विकास एवं ग्रामीणों के हित के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। संगठन की अध्यक्ष श्रीमती अलमीना कहती हैं कि संगठन की शक्ति से हर काम संभव है। वह कहती है कि अब महिलाओं का काम चूल्हे-चोके तक सीमित नही है। उन्हेें घर से बाहर निकलकर गांव, समाज के हित में संगठित प्रयास करने चाहिए। तभी ग्राम उदय से भारत उदय अभियान का सापना साकार हो सकेगा।
फिर क्या था महिलाओं ने ग्राम के विकास के लिए पक्की सडक, हर घर में शौचालय का निर्माण, घर के बाहर साफ-सफाई, आंगनवाडी में बच्चों को दर्ज कराना, पेंशन धारियों को समय पर पेंशन दिलाना, पात्र हितग्राहियों के बीपीएल कार्ड बनाने का अभियान शुरू कर दिया। आज इस ग्राम में पक्की सडक बन गयी है। घरों में शौचालय का निर्माण एवं उपयोग प्रारंभ हो गया है। अब गांव के लोगों को अपने गांव की महिलाओं पर गर्व महसूस होने लगा है। इन महिलाओं ने 4 वर्ष पहले जो आवाज बुलन्द की थी वह अब धरातल पर दिखाई देने लगा है। यह गांव अब ग्राम उदय से भारत उदय अभियान का उदाहरण बन गया है। यहां की महिलाएं पूरी जागरूकता के साथ ग्राम के विकास एवं ग्रामीणों के हित के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। संगठन की अध्यक्ष श्रीमती अलमीना कहती हैं कि संगठन की शक्ति से हर काम संभव है। वह कहती है कि अब महिलाओं का काम चूल्हे-चोके तक सीमित नही है। उन्हेें घर से बाहर निकलकर गांव, समाज के हित में संगठित प्रयास करने चाहिए। तभी ग्राम उदय से भारत उदय अभियान का सापना साकार हो सकेगा।
मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से मिला 20 लाख का ऋण-पन्ना जिले के अमानगंज क्षेत्र के निवासी सतीश कुमार लहगेरे (कोरी) बिल्डिंग मटेरियल सामग्री की दुकान चलाकर छोटा सा व्यवसाय कर रहे थे। कम आमदनी होने के कारण आर्थिक परेशानियां उठानी पड रही थी। फिर इन्हें मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना की जानकारी मिली। योजना के सभी पहलुओं को समझने के लिए उन्होंने जिला अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति पन्ना में सम्पर्क किया। जहां अधिकारी द्वारा इन्हें विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी। जिसके बाद सतीश ने मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के अन्तर्गत 20 लाख रूपये का ऋण प्राप्त करने के लिए समस्त आवश्यक दस्तावेजों के साथ अपना आवेदन कार्यालय में जमा कर दिया।
सतीश ने बताया कि इनका 20 लाख रूपये का ऋण प्रकरण सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया की अमानगंज शाखा से स्वीकृत किया गया। जिसमें इन्हें बैंक ऋण स्वीकृति के विरूद्ध 3 लाख रूपये की अनुदान राशि का लाभ मिला। ऋण राशि से मैंने अपने व्यवसाय को बढाना प्रारंभ कर दिया और स्टील फेब्रीकेशन की इकाई स्थापित कर ली। इससे मेरे व्यवसाय में बहुत ज्यादा तरक्की हुई है। वर्कशाॅप भी ठीक से चलने लगा है। इतना ही नही व्यवसाय चलाने के लिए मैंने 3-4 मजदूरों की भी नियमित व्यवस्था कर ली है। मजदूरी का भुगतान एवं ऋण की किश्त अदा करने के बाद प्रतिमाह लगभग 20 से 25 हजार रूपये का शुद्ध लाभ होने लगा है। अब मैं और मेरा परिवार खुशहाली से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अब हमारी मेहनत का पूरा लाभ मिलने लगा है। सतीश कहते है कि यह योजना अनुसूचित जाति वर्ग के हर जागरूक शिक्षित बेरोजगार के लिए बरदान है। इसका लाभ अवश्य लें।
सतीश ने बताया कि इनका 20 लाख रूपये का ऋण प्रकरण सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया की अमानगंज शाखा से स्वीकृत किया गया। जिसमें इन्हें बैंक ऋण स्वीकृति के विरूद्ध 3 लाख रूपये की अनुदान राशि का लाभ मिला। ऋण राशि से मैंने अपने व्यवसाय को बढाना प्रारंभ कर दिया और स्टील फेब्रीकेशन की इकाई स्थापित कर ली। इससे मेरे व्यवसाय में बहुत ज्यादा तरक्की हुई है। वर्कशाॅप भी ठीक से चलने लगा है। इतना ही नही व्यवसाय चलाने के लिए मैंने 3-4 मजदूरों की भी नियमित व्यवस्था कर ली है। मजदूरी का भुगतान एवं ऋण की किश्त अदा करने के बाद प्रतिमाह लगभग 20 से 25 हजार रूपये का शुद्ध लाभ होने लगा है। अब मैं और मेरा परिवार खुशहाली से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अब हमारी मेहनत का पूरा लाभ मिलने लगा है। सतीश कहते है कि यह योजना अनुसूचित जाति वर्ग के हर जागरूक शिक्षित बेरोजगार के लिए बरदान है। इसका लाभ अवश्य लें।
ग्राम लक्ष्मीपुर की आदिवासी बस्ती के नाम से मषहूर नई बस्ती में रहने वाली श्रीमती फूलमती गौंड मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रही थी। छोटे से टपरियानुमा झोपडी में रहकर गुजर बसर चल रहा था। पक्के मकान में रहना उसके लिए एक सपने की तरह था। एक दिन ग्राम पंचायत लक्ष्मीपुर के सरपंच/सचिव एवं ग्राम रोजगार सहायक जब उसके घर गये तब पहले तो वह डर गयी कि पता नहीं कौन सी बला आ गयी है। लेकिन जब सरपंच ने बताया कि तुम्हारा चयन प्रधानमंत्री आवास के लिए किया गया है। अब तुम्हे पक्का मकान मिल सकेगा। यह सुनकर वह खुषी से झूम उठी तथा इस खुषखबरी को अपने पडोस के सभी लोगों को बताया। तत्काल आवास हेतु ले-आउट दिया गया और 23 नवम्बर 2017 से उसके आवास का कार्य प्रारम्भ हो गया। फूलमती ने शासन की मदद के साथ साथ स्वयं भी प्रयास करके दो कमरे का अच्छा पक्का मकान बनाया है। जिसमें रसोईघर का प्लेटफार्म भी है। हितग्राही ने आवास के साथ शौचालय का निर्माण भी किया है। हितग्राही को उज्जवला योजना के अन्तर्गत गैस कनेक्षन भी उपलब्ध कराया गया है। इस तरह फूलमती को आधुनिक सुख सुविधाओं सहित पक्का आवास मिल गया है जो उसके लिए किसी बडे सपने के सच होने की तरह है। शासन की मदद से उसका यह सपना साकार हो सका है। इससे फूलमती की सामाजिक प्रतिष्ठा में भी वृद्धि हुयी है। इन सबके लिए वह भारत के मान. प्रधानमंत्री, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सहित जिला प्रषासन का अभार व्यक्त करती हैं।
आज की महिलाओं ने साबित कर दिया है कि अगर सामूहिक प्रयास किये जाये कुछ भी हो सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पन्ना जिले के विकासखण्ड अजयगढ के ग्राम मझगाय की स्व-सहायता समूह एवं ग्राम संगठनों की महिलाओं ने। इन महिलाओं के कठिन प्रयासांे से ग्राम में एक हैण्डपम्प लगाया गया है। जिससे ग्राम के निवासियांे को पानी मिलने के साथ-साथ खुशी का माहौल भी मिल गया है।
ग्राम में पानी की बड़ी समस्या थी। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत ग्राम मझगाय के 28 स्व-सहायता समूहों के माध्यम से 280 परिवारों को जोड़ा गया है। गठित समूहो ने एक दिन बैठक में निर्णय लिया कि ग्राम में पानी की समस्या होने से ग्रामवासियों को पीने का पानी दूसरे गांव से लेकर आना पड़ता है। इसके लिये हम सबको मिलकर ही प्रयास करने होंगे। तब समूह सदस्यों द्वारा पेयजल समस्या के संबंध में एक प्रस्ताव ग्राम संगठन में डलवाया गया। ग्राम मे होने वाली ग्राम सभा में भी इसकी माॅग की गई। सभी समूह सदस्यो ने मिलकर पीएचई विभाग अजयगढ़ से इस संबंध में चर्चा की । सतत प्रयासों के बाद उन्हें सफलता मिली और पीएचई एंव पंचायत के समन्वय से इस क्षेत्र में हेण्डपंप लगाया गया। पानी की समस्या दूर हो जाने से ग्राम में खुषियो की लहर दौड़ गई। महिला ग्राम संगठन अध्यक्ष श्रीमती चंदारानी का कहना है कि दीदीयों के कठिन प्रयासो के बाद टोला वासियो को पानी की बहुत अच्छी सुविधा हो गई है। अब पानी के लिये लोग इधर-उधर नही भटकते। पशुआंे के लिए भी पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है। मिशन के माध्यम से जुड़कर पेयजल समस्या से निजात मिलने से क्षेत्र की महिलाओं में खासा उत्साह है। वे कहती हैं कि हर हाथ शक्ति है, हर हाथ तरक्की है आवश्कता इस शक्ति के केवल संगठित होने की है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए वे शासन को कोटि-कोटि आभार व्यक्त करते नहीं थक रहीं हैं।
ग्राम में पानी की बड़ी समस्या थी। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत ग्राम मझगाय के 28 स्व-सहायता समूहों के माध्यम से 280 परिवारों को जोड़ा गया है। गठित समूहो ने एक दिन बैठक में निर्णय लिया कि ग्राम में पानी की समस्या होने से ग्रामवासियों को पीने का पानी दूसरे गांव से लेकर आना पड़ता है। इसके लिये हम सबको मिलकर ही प्रयास करने होंगे। तब समूह सदस्यों द्वारा पेयजल समस्या के संबंध में एक प्रस्ताव ग्राम संगठन में डलवाया गया। ग्राम मे होने वाली ग्राम सभा में भी इसकी माॅग की गई। सभी समूह सदस्यो ने मिलकर पीएचई विभाग अजयगढ़ से इस संबंध में चर्चा की । सतत प्रयासों के बाद उन्हें सफलता मिली और पीएचई एंव पंचायत के समन्वय से इस क्षेत्र में हेण्डपंप लगाया गया। पानी की समस्या दूर हो जाने से ग्राम में खुषियो की लहर दौड़ गई। महिला ग्राम संगठन अध्यक्ष श्रीमती चंदारानी का कहना है कि दीदीयों के कठिन प्रयासो के बाद टोला वासियो को पानी की बहुत अच्छी सुविधा हो गई है। अब पानी के लिये लोग इधर-उधर नही भटकते। पशुआंे के लिए भी पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है। मिशन के माध्यम से जुड़कर पेयजल समस्या से निजात मिलने से क्षेत्र की महिलाओं में खासा उत्साह है। वे कहती हैं कि हर हाथ शक्ति है, हर हाथ तरक्की है आवश्कता इस शक्ति के केवल संगठित होने की है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए वे शासन को कोटि-कोटि आभार व्यक्त करते नहीं थक रहीं हैं।
उत्पादन में वृद्धि, मृदा स्वास्थ्य में सुधार के साथ ईधन भी मिला-कृषक रामकिशोर नगायच पन्ना जिले के ग्राम पवई के निवासी है। इन्होंने कृषि विभाग की मदद से गोबर गैस संयंत्र स्थापित किया है। जिससे इन्हें कई फायदे मिल रहे हैं।
रामकिशोर बताते हैं कि पहले वह अपने खेतों में लगातार रासायनिक खाद का उपयोग करते थे। जिससे धीरे-धीरे उनकी जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही थी। जानकारों से मुझे रासायनिक खाद के स्थान पर गोबर की खाद का उपयोग करने की सलाह दी। मेरे पास खुद के 6 नग मवेशी थे लेकिन इसके बावजूद मैं गोबर की खाद नही बना पा रहा था। इससे मेरी जमीन की उत्पादन क्षमता दिन व दिन कम होती जा रही थी। फिर एक दिन मैंने कृषि विभाग कार्यालय पवई के अधिकारी से सम्पर्क कर अपनी सारी समस्या कह सुनाई तो अधिकारी द्वारा मुझे बताया गया कि अपने 6 नग मवेशी के साथ आप अपने घर पर ही गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करा सकते हैं। इसके लिए विभाग द्वारा अनुदान दिया जाता है। गोबर गैस संयंत्र के माध्यम से आपको न केवल उच्च कोटि की जैविक खाद मिलेगी बल्कि ईधन के रूप मंे गैस भी प्राप्त होगी।
कृषि विभाग की सलाह से पे्ररित होकर मैंने गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करवाया। संयंत्र के निर्माण से मुझे उच्च कोटि की गोबर की खाद अपने घर पर ही उपलब्ध हो जाती है। जिसका उपयोग मैं अपने खेतों में जैविक खाद के रूप में करता हॅू। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार आया है। गैस के रूप में ईधन भी प्राप्त हो जाता है। रामकिशोर ईधन के लिए बाजार पर आश्रित नही हैं। इनकी मवेशियों के गोबर का प्रबंधन भी गोबर गैस संयंत्र के कारण सफलतापूर्वक हो रहा है।
रामकिशोर बताते हैं कि पहले वह अपने खेतों में लगातार रासायनिक खाद का उपयोग करते थे। जिससे धीरे-धीरे उनकी जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही थी। जानकारों से मुझे रासायनिक खाद के स्थान पर गोबर की खाद का उपयोग करने की सलाह दी। मेरे पास खुद के 6 नग मवेशी थे लेकिन इसके बावजूद मैं गोबर की खाद नही बना पा रहा था। इससे मेरी जमीन की उत्पादन क्षमता दिन व दिन कम होती जा रही थी। फिर एक दिन मैंने कृषि विभाग कार्यालय पवई के अधिकारी से सम्पर्क कर अपनी सारी समस्या कह सुनाई तो अधिकारी द्वारा मुझे बताया गया कि अपने 6 नग मवेशी के साथ आप अपने घर पर ही गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करा सकते हैं। इसके लिए विभाग द्वारा अनुदान दिया जाता है। गोबर गैस संयंत्र के माध्यम से आपको न केवल उच्च कोटि की जैविक खाद मिलेगी बल्कि ईधन के रूप मंे गैस भी प्राप्त होगी।
कृषि विभाग की सलाह से पे्ररित होकर मैंने गोबर गैस संयंत्र का निर्माण करवाया। संयंत्र के निर्माण से मुझे उच्च कोटि की गोबर की खाद अपने घर पर ही उपलब्ध हो जाती है। जिसका उपयोग मैं अपने खेतों में जैविक खाद के रूप में करता हॅू। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार आया है। गैस के रूप में ईधन भी प्राप्त हो जाता है। रामकिशोर ईधन के लिए बाजार पर आश्रित नही हैं। इनकी मवेशियों के गोबर का प्रबंधन भी गोबर गैस संयंत्र के कारण सफलतापूर्वक हो रहा है।
पन्ना जिले के विकासखण्ड अजयगढ़ में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत ग्राम प्रतापपुुर में बडे पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है। इस व्यवसाय में ग्राम में गठित स्व-सहायता समूह के सदस्य भी जुडे हुये हैं। इन्ही में से एक समूह है गुलाब। इस समूह की अध्यक्ष अलमीना है। गुलाब समूह के सदस्यों द्वारा गन्ने से गुड बनाने का कार्य किया जा रहा है। जिसकी अच्छी कीमत उन्हें प्राप्त होने लगी है।
समूह की अध्यक्ष अलमीना बताती हैं कि पहले समूह के सदस्यो ने मिलकर छोटे स्तर पर इस काम को शुरू किया था। जिससे उसकी पापुरलरटी कम थी। जिससे ग्राम स्तर पर 01 किलो गुड 20 से 25 रू. तक में बेचा जाता था। इससे समूह सदस्यों को अपेक्षाकृत कम आमदानी होती थी। फिर धीरे-धीरे समूह ने गुड बनाने की मात्रा बढाई। समूह ने इसके लिए प्रयास किये। अब समूह द्वारा बनाए जाने वाले गुड़ की मात्रा क्विंटल में है। साथ ही गुड की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई है। साधारण गुड के साथ-साथ विशेष गुणवत्ता गुड़ जैसे काजू गुड़, सोढ़ गुड़ आदि किष्मे भी तैयार की जाने लगी है। गुड़ की मिठास ग्राम से होकर अब बाजार तक पहुच गई है। अब समूह को गुड की अच्छी कीमत 40 रू. प्रति किलो तथा क्विटल में 4000 रू. तक मिलने लगी है।
गुलाब समूह की महिलायें द्वारा तैयार गुड़ कस्बा बाजार से लेकर जिला बाजार तक पहुंच चुका है। आज समूह की सभी सदस्य गुड़ की मिठास से अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है और अपना जीवन खुशहाली से जी रही हैं। गुड ने ओरों के साथ साथ उनके जीवन में भी मिठास भर दी है।
समूह की अध्यक्ष अलमीना बताती हैं कि पहले समूह के सदस्यो ने मिलकर छोटे स्तर पर इस काम को शुरू किया था। जिससे उसकी पापुरलरटी कम थी। जिससे ग्राम स्तर पर 01 किलो गुड 20 से 25 रू. तक में बेचा जाता था। इससे समूह सदस्यों को अपेक्षाकृत कम आमदानी होती थी। फिर धीरे-धीरे समूह ने गुड बनाने की मात्रा बढाई। समूह ने इसके लिए प्रयास किये। अब समूह द्वारा बनाए जाने वाले गुड़ की मात्रा क्विंटल में है। साथ ही गुड की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई है। साधारण गुड के साथ-साथ विशेष गुणवत्ता गुड़ जैसे काजू गुड़, सोढ़ गुड़ आदि किष्मे भी तैयार की जाने लगी है। गुड़ की मिठास ग्राम से होकर अब बाजार तक पहुच गई है। अब समूह को गुड की अच्छी कीमत 40 रू. प्रति किलो तथा क्विटल में 4000 रू. तक मिलने लगी है।
गुलाब समूह की महिलायें द्वारा तैयार गुड़ कस्बा बाजार से लेकर जिला बाजार तक पहुंच चुका है। आज समूह की सभी सदस्य गुड़ की मिठास से अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है और अपना जीवन खुशहाली से जी रही हैं। गुड ने ओरों के साथ साथ उनके जीवन में भी मिठास भर दी है।
पन्ना जिले के सिमरिया अन्तर्गत निवारी क्लस्टर के ग्राम कुलुवा में सरस्वती तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह गठित है। समूह का गठन अप्रैल 2009 में किया गया था। जिसमें कुल 14 सदस्य सम्मिलित हुए और उन्होंने अपनी मासिक बचत जमा करना प्रारंभ कर दिया। इसी समूह की एक सदस्य शिवकुमारी पटेल हैं। जो समूह की मदद र्से इंट बनाने का काम प्रारंभ कर मुनाफा कमा रही हैं।
शिवकुमारी बताती हैं कि समूह की बचत से जब कुल 9 हजार रूपये की राशि जमा हुई। इसी दौरान फेडरेशन द्वारा समूह की गे्रडिंग कराई गयी। जिससे 60 हजार रूपये रिवाॅल्विंग फंड के रूप में प्राप्त हो गए। शिवकुमार्री इंट भट्टा का काम करना चाहती थी। रिवाॅल्विंग फंड मिलने के बाद समूह की एक मीटिंग के दौरान मैंने समूह के सामने अपनी बात रखी। और शिवकुमारी र्को इंट बनाने के लिए समूह से 20 हजार रूपये उधार मिल गए। फिर क्या था शिवकुमारी ने अपने पति के साथ मिलकर्र इंट भत्ता का कार्य प्रारंभ कर दिया। उन्होंने समूह से प्राप्त राशि का उपयोग कच्चा माल खरीदने के लिए किया। जिसके बाद शिवकुमारी और उसके पति पूरी लगन से ईंट बनाने में जुट गए। पिछले वर्ष उन्होंने 50 हजार ईंट का निर्माण कर प्रति माह लगभग 7 हजार रूपये की आमदनी प्राप्त की थी। इस वर्ष अब तक उन्होंने लगभग एक लाख ईंट का निर्माण कर ईंटों का विक्रय प्रारंभ कर दिया गया है। जिससे उन्हें लगभग एक लाख 50 हजार रूपये का मुनाफा होगा। ईंट विक्रय से इन्हें इतनी आय हो जाती है जिससे उनके परिवार का भरण पोषण आराम से हो जाता है। होने वाली आय से वे प्राप्त ऋण राशि किश्तें भी समय पर चुका देती हैं।
शिवकुमारी बताती हैं कि समूह की बचत से जब कुल 9 हजार रूपये की राशि जमा हुई। इसी दौरान फेडरेशन द्वारा समूह की गे्रडिंग कराई गयी। जिससे 60 हजार रूपये रिवाॅल्विंग फंड के रूप में प्राप्त हो गए। शिवकुमार्री इंट भट्टा का काम करना चाहती थी। रिवाॅल्विंग फंड मिलने के बाद समूह की एक मीटिंग के दौरान मैंने समूह के सामने अपनी बात रखी। और शिवकुमारी र्को इंट बनाने के लिए समूह से 20 हजार रूपये उधार मिल गए। फिर क्या था शिवकुमारी ने अपने पति के साथ मिलकर्र इंट भत्ता का कार्य प्रारंभ कर दिया। उन्होंने समूह से प्राप्त राशि का उपयोग कच्चा माल खरीदने के लिए किया। जिसके बाद शिवकुमारी और उसके पति पूरी लगन से ईंट बनाने में जुट गए। पिछले वर्ष उन्होंने 50 हजार ईंट का निर्माण कर प्रति माह लगभग 7 हजार रूपये की आमदनी प्राप्त की थी। इस वर्ष अब तक उन्होंने लगभग एक लाख ईंट का निर्माण कर ईंटों का विक्रय प्रारंभ कर दिया गया है। जिससे उन्हें लगभग एक लाख 50 हजार रूपये का मुनाफा होगा। ईंट विक्रय से इन्हें इतनी आय हो जाती है जिससे उनके परिवार का भरण पोषण आराम से हो जाता है। होने वाली आय से वे प्राप्त ऋण राशि किश्तें भी समय पर चुका देती हैं।
पन्ना जिला मुख्यालय से लगी ग्राम पंचायत खजरी कुडार निवासी श्रीमती रेखा सेन के अब भाग्य खुल गए हैं। शासन की उज्जवला योजना ने उनके भविष्य उज्जवल बना दिया है। अब से पहले वे जंगल लकड़िया इकट्ठी करने जाती थी। व मुश्किल लकड़िया मिलती थी। फिर लकड़ियों को घर लाकर खाना पकाती थी। खाना बनाने में धुंआ एवं धूल के कारण उनके शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पडता था। कई बार उन्हें आंखों की तकलीफ भी हुई।
इसी दौरान ग्राम की शासकीय उचित मूल्य दुकान से उन्हें उज्जवला योजना का आवेदन फार्म मिला। आवेदन भरकर उन्होंने अपने क्षेत्र की गैस एजेन्सी बल्दाऊ इंडेन गैस में जमा करा दिया। जमा कराने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें घरेलु गैस कनेक्शन निःशुल्क प्राप्त हो गया। अब श्रीमती रेखा एलपीजी गैस चूल्हे पर खाना पकाती है। जिसमें न तो धुंआ और न धूल कुछ नही होता। जिससे वह स्वस्थ हैं।
स्वस्थ रहने के साथ उनका बहुत सारा समय बच जाता है। जिससे वे घर के अन्य काम आसानी से कर लेती हैं। न तो उन्हें अब घरेलु काम के लिए रात देर तक जगना पडता है और न ही उन्हें सुबह अंधेरे में उठकर काम करना पडता है। वे कहती हैं कि उज्जवला योजना हमारे लिए बरदान की तरह है जिससे मैं स्वस्थ और प्रसन्न हॅू। इस योजना से मेरा भविष्य उज्जवल हो गया है। मेरी ही तरह अन्य परिवारों की महिलाएं भी इस योजना का लाभ पाकर खुश होंगी।
इसी दौरान ग्राम की शासकीय उचित मूल्य दुकान से उन्हें उज्जवला योजना का आवेदन फार्म मिला। आवेदन भरकर उन्होंने अपने क्षेत्र की गैस एजेन्सी बल्दाऊ इंडेन गैस में जमा करा दिया। जमा कराने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें घरेलु गैस कनेक्शन निःशुल्क प्राप्त हो गया। अब श्रीमती रेखा एलपीजी गैस चूल्हे पर खाना पकाती है। जिसमें न तो धुंआ और न धूल कुछ नही होता। जिससे वह स्वस्थ हैं।
स्वस्थ रहने के साथ उनका बहुत सारा समय बच जाता है। जिससे वे घर के अन्य काम आसानी से कर लेती हैं। न तो उन्हें अब घरेलु काम के लिए रात देर तक जगना पडता है और न ही उन्हें सुबह अंधेरे में उठकर काम करना पडता है। वे कहती हैं कि उज्जवला योजना हमारे लिए बरदान की तरह है जिससे मैं स्वस्थ और प्रसन्न हॅू। इस योजना से मेरा भविष्य उज्जवल हो गया है। मेरी ही तरह अन्य परिवारों की महिलाएं भी इस योजना का लाभ पाकर खुश होंगी।
पूर्वी को मिला माॅ बोलने का सुख-कोई भी वैवाहिक जीवन तभी पूरा होता है जब उसमें संतान का सुख निहित हो। वैवाहिक जीवन की शुरूआत के साथ ही घर में नन्हें-मुन्ने मेहमान के स्वागत का बेसब्री से इंतजार शुरू हो जाता है। ऐसे लम्बे इंतजार के बाद पन्ना जिले की अमानगंज नगर पंचायत निवासी प्रहलाद सोनी को संतान सुख प्राप्त हो सका। पुत्री रत्न की प्राप्ति से इनके पूरे परिवार में हर्ष उल्लास छाया हुआ था। लेकिन जब कुछ समय बाद पता चला कि उनकी बेटी सामान्य बच्चों की तरह नही है तो उनका उल्लास दुख में बदल गया। इस दुख से उबरने में प्रहलाद सोनी के परिवार के लिए मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना वरदान साबित हुई। अब उनकी बेटी पूर्वी सुनने के साथ-साथ बोलने भी लगी है। लगभग ढाई वर्ष के बाद पूर्वी की माॅं ज्योति सोनी को माॅं सुनने का सुख मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना की मदद से संभव हो सका है।
श्री प्रहलाद सोनी बताते है कि उनका विवाह वर्ष 2011 में हुआ था। विवाह के उपरांत लम्बे इंतजार के बाद ईश्वर ने उन्हें वर्ष 2014 में परी जैसी बेटी दी। जिसका नाम पूर्वी रखा। पूर्वी घर में सबकी लाडली थी। बाद में उन्हें एक बेटा भी हुआ जिसका नाम आर्यन है। पूर्वी के माता-पिता ने गौर किया कि आर्यन एक वर्ष का है और पुकारने या किसी भी आवाज पर प्रतिक्रिया करता है। लेकिन पूर्वी ढाई वर्ष की होने के बाद भी जोर-जोर से पुकारने पर भी कोई प्रतिक्रिया नही देती। तब से पूर्वी के माता-पिता चिंतित रहने लगे। उन्होंने पूर्वी को शीघ्र डाॅक्टर्स को दिखाया। डाॅक्टरों ने काॅक्लियर इम्प्लान्ट की सलाह दी और बताया कि इसका खर्च 6 से 7 लाख रूपये आएगा। इसके बाद से पूर्वी के माता-पिता की चिंताएं और भी बढ गयी। क्योंकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नही थी कि वह आपरेशन का इतना मंहगा खर्च उठा सकें। लेकिन दूसरी तरफ बेटी के भविष्य की चिंताएं सताने लगी। इसी बीच श्री प्रहलाद को अपने परिवार के किसी सदस्य से आरबीएसके योजना के बारे में जानकारी मिली। जब उन्हें पता चला कि इस योजना की मदद से उनकी बेटी का निःशुल्क उपचार हो सकता है तो प्रहलाद और ज्योति के चेहरे खुशी से खिल उठे।
पूर्वी के माता-पिता ने तुरन्त ही अमानगंज आरबीएसके टीम के डाॅक्टर विकेश पाठक एवं डाॅ. नीलम शर्मा से सम्पर्क किया। पूर्वी की जांच कर डाॅक्टरों ने उसे जिला चिकित्सालय पन्ना रेफर कर दिया गया। उनकी सलाह पर पूर्वी को जिले के आरबीएसके समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया से मिलवाया गया। डाॅ. खम्परिया की मदद से जिले के ईएनटी विशेषज्ञ डाॅ. डी.पी. प्रजापति से पूर्वी की प्राथमिक जांच कराई गयी। जिसके बाद वैरा टेस्ट के लिए सलाह दी गयी। सभी आवश्यक जांच होने के बाद मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अन्तर्गत प्रकरण तैयार कर संयुक्त संचालक कार्यालय सागर स्वीकृति के लिए भेजा गया। स्वीकृति मिलने के बाद पूर्वी का सफल आपरेशन नाहर नर्सिंग होम सतना में किया गया। अब पूर्वी सुनने के साथ-साथ बोलने भी लगी है। जब वह परिवार के सदस्यों की बात ध्यान से सुनती है और सबको आवाज देकर पुकारती है तो माॅ-बाप की आंखे खुशी से भर आती हैं। अब पूर्वी सामान्य बच्चों की तरह पढ-लिख सकेगी। उसकी शादी में भी कोई परेशानी नही आएगी। पूर्वी के माता-पिता कहते हैं कि मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना उनके लिए बरदान साबित हुई है। वे शासन के साथ-साथ आरबीएसके टीम, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. एल.के. तिवारी, आरबीएसके नोडल डाॅ. प्रदीप गुप्ता, आरबीएसके समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया सभी को धन्यवाद देते नही थक रहे हैं। वे शासन से अपील करते हैं कि प्रदेश में ऐसी कल्याणकारी योजनाएं चलती रहें जिससे उनके जैसे गरीबों का कल्याण हो सके ।
श्री प्रहलाद सोनी बताते है कि उनका विवाह वर्ष 2011 में हुआ था। विवाह के उपरांत लम्बे इंतजार के बाद ईश्वर ने उन्हें वर्ष 2014 में परी जैसी बेटी दी। जिसका नाम पूर्वी रखा। पूर्वी घर में सबकी लाडली थी। बाद में उन्हें एक बेटा भी हुआ जिसका नाम आर्यन है। पूर्वी के माता-पिता ने गौर किया कि आर्यन एक वर्ष का है और पुकारने या किसी भी आवाज पर प्रतिक्रिया करता है। लेकिन पूर्वी ढाई वर्ष की होने के बाद भी जोर-जोर से पुकारने पर भी कोई प्रतिक्रिया नही देती। तब से पूर्वी के माता-पिता चिंतित रहने लगे। उन्होंने पूर्वी को शीघ्र डाॅक्टर्स को दिखाया। डाॅक्टरों ने काॅक्लियर इम्प्लान्ट की सलाह दी और बताया कि इसका खर्च 6 से 7 लाख रूपये आएगा। इसके बाद से पूर्वी के माता-पिता की चिंताएं और भी बढ गयी। क्योंकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नही थी कि वह आपरेशन का इतना मंहगा खर्च उठा सकें। लेकिन दूसरी तरफ बेटी के भविष्य की चिंताएं सताने लगी। इसी बीच श्री प्रहलाद को अपने परिवार के किसी सदस्य से आरबीएसके योजना के बारे में जानकारी मिली। जब उन्हें पता चला कि इस योजना की मदद से उनकी बेटी का निःशुल्क उपचार हो सकता है तो प्रहलाद और ज्योति के चेहरे खुशी से खिल उठे।
पूर्वी के माता-पिता ने तुरन्त ही अमानगंज आरबीएसके टीम के डाॅक्टर विकेश पाठक एवं डाॅ. नीलम शर्मा से सम्पर्क किया। पूर्वी की जांच कर डाॅक्टरों ने उसे जिला चिकित्सालय पन्ना रेफर कर दिया गया। उनकी सलाह पर पूर्वी को जिले के आरबीएसके समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया से मिलवाया गया। डाॅ. खम्परिया की मदद से जिले के ईएनटी विशेषज्ञ डाॅ. डी.पी. प्रजापति से पूर्वी की प्राथमिक जांच कराई गयी। जिसके बाद वैरा टेस्ट के लिए सलाह दी गयी। सभी आवश्यक जांच होने के बाद मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अन्तर्गत प्रकरण तैयार कर संयुक्त संचालक कार्यालय सागर स्वीकृति के लिए भेजा गया। स्वीकृति मिलने के बाद पूर्वी का सफल आपरेशन नाहर नर्सिंग होम सतना में किया गया। अब पूर्वी सुनने के साथ-साथ बोलने भी लगी है। जब वह परिवार के सदस्यों की बात ध्यान से सुनती है और सबको आवाज देकर पुकारती है तो माॅ-बाप की आंखे खुशी से भर आती हैं। अब पूर्वी सामान्य बच्चों की तरह पढ-लिख सकेगी। उसकी शादी में भी कोई परेशानी नही आएगी। पूर्वी के माता-पिता कहते हैं कि मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना उनके लिए बरदान साबित हुई है। वे शासन के साथ-साथ आरबीएसके टीम, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. एल.के. तिवारी, आरबीएसके नोडल डाॅ. प्रदीप गुप्ता, आरबीएसके समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया सभी को धन्यवाद देते नही थक रहे हैं। वे शासन से अपील करते हैं कि प्रदेश में ऐसी कल्याणकारी योजनाएं चलती रहें जिससे उनके जैसे गरीबों का कल्याण हो सके ।
आॅटो चलाने के साथ कर रहे सब्जी का व्यवसाय-यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसका परिवार फटेहाली और तंगी का जीवन बिता रहा था। परिवार के पास न तो आय के कोई साधन थे और न ही कृषि कार्य के लिए खुद की कोई भूमि थी। ऐसे में दूसरों के यहां कृषि कार्य कर एवं अन्य प्रकार की मजदूरी करके जैसे-तैसे घर के सदस्यों का पालन-पोषण संभव हो पा रहा था। पालन-पोषण करने वाले श्री देवीदीन खटीक रानीगंज वार्ड नम्बर 18 पन्ना के निवासी हैं। इनका 8 सदस्यीय परिवार है जिसमें 4 महिलाएं एवं 4 पुरूष हैं। ऐसे में सिर्फ मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण एवं शिक्षा की व्यवस्था करना बहुत ही मुश्किल से हो पा रहा था। फिर एक दिन देवीदीन को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के माध्यम से मिशन द्वारा संचालित योजना की जानकारी मिली। इसने देवीदीन के टूटते मन को बडा सहारा मिला। आज देवीदीन आॅटो चलाने के साथ सब्जी व्यवसाय से आय प्राप्त कर रहे हैं। परिवार के भरण-पोषण के साथ अपने छोटे भाई-बहनों को स्कूल में पढा लिखा भी रहे हैं।
देवीदीन बताते हैं कि राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के बारे में जानकारी मिलते ही उन्होंने विस्तृत जानकारी के लिए नगरपालिका परिषद पन्ना से सम्पर्क किया। मिशन कर्मियों ने उनके टूटते मन को व्यवसाय हेतु प्रोत्साहित किया। जिससे आत्म विश्वास जुटाते हुए उन्होंने आॅटो व्यवसाय के लिए ऋण लेने की सहमति जताई। इस योजना के अन्तर्गत देवीदीन को सामान्य उद्यमिता विकास के तहत 6 दिन का निःशुल्क प्रशिक्षण ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान पन्ना के माध्यम से दिलाया गया। जिसके बाद इन्हें मिशन अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ दिलाते हुए वर्ष 2016-17 में 2 लाख रूपये का बैंक ऋण बैंक आॅफ इण्डिया मुख्य शाखा पन्ना से वितरित करवाया गया। जिसमें इन्हें 40 हजार रूपये अनुदान राशि प्रदान की गयी।
देवीदीन बताते हैं कि राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन पन्ना के प्रयासों से मैंने आॅटो व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। जो आज मेरे लिए एक अच्छी आय का साधन बन गया है। मैं लगभग 5 से 6 हजार रूपये प्रति माह कमा लेता हॅू। इससे एक ओर जहां मेरे परिवार की तंगी हालत देखकर टूट रहे मेरे मन को सहारा मिला वही अब मुझमें परिवार की अन्य जिम्मेदारियां उठाने का भरोसा भी उत्पन्न हो गया है। अब मैं हाट बाजारों में सब्जी का व्यवसाय भी आसानी से कर लेता हॅू। जिससे अतिरिक्त आय होने लगी है। देवीदीन कहते हैं कि मैं उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त नही कर सका। लेकिन अब मैं अपने भाई और बहनों को स्कूल में पढा लिखा पा रहा हॅू। जिसका पूरा खर्चा मैं स्वयं वहन कर रहा हॅू। इस सम्मानपूर्वक जीवन यापन का पूरा श्रेय देवीदीन राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन नगरपालिका पन्ना को देते हैं और शासन को इन योजनाओं के संचालन के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
देवीदीन बताते हैं कि राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के बारे में जानकारी मिलते ही उन्होंने विस्तृत जानकारी के लिए नगरपालिका परिषद पन्ना से सम्पर्क किया। मिशन कर्मियों ने उनके टूटते मन को व्यवसाय हेतु प्रोत्साहित किया। जिससे आत्म विश्वास जुटाते हुए उन्होंने आॅटो व्यवसाय के लिए ऋण लेने की सहमति जताई। इस योजना के अन्तर्गत देवीदीन को सामान्य उद्यमिता विकास के तहत 6 दिन का निःशुल्क प्रशिक्षण ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान पन्ना के माध्यम से दिलाया गया। जिसके बाद इन्हें मिशन अन्तर्गत संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ दिलाते हुए वर्ष 2016-17 में 2 लाख रूपये का बैंक ऋण बैंक आॅफ इण्डिया मुख्य शाखा पन्ना से वितरित करवाया गया। जिसमें इन्हें 40 हजार रूपये अनुदान राशि प्रदान की गयी।
देवीदीन बताते हैं कि राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन पन्ना के प्रयासों से मैंने आॅटो व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। जो आज मेरे लिए एक अच्छी आय का साधन बन गया है। मैं लगभग 5 से 6 हजार रूपये प्रति माह कमा लेता हॅू। इससे एक ओर जहां मेरे परिवार की तंगी हालत देखकर टूट रहे मेरे मन को सहारा मिला वही अब मुझमें परिवार की अन्य जिम्मेदारियां उठाने का भरोसा भी उत्पन्न हो गया है। अब मैं हाट बाजारों में सब्जी का व्यवसाय भी आसानी से कर लेता हॅू। जिससे अतिरिक्त आय होने लगी है। देवीदीन कहते हैं कि मैं उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त नही कर सका। लेकिन अब मैं अपने भाई और बहनों को स्कूल में पढा लिखा पा रहा हॅू। जिसका पूरा खर्चा मैं स्वयं वहन कर रहा हॅू। इस सम्मानपूर्वक जीवन यापन का पूरा श्रेय देवीदीन राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन नगरपालिका पन्ना को देते हैं और शासन को इन योजनाओं के संचालन के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
मध्यप्रदेश शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना ने न जाने कितनों का जीवन बदल दिया है। पढे-लिखे थे मगर ढंग की नौकरी नही मिल रही थी। जहां भी नौकरी की उतनी मजदूरी नही मिली जिससे परिवार चल सके। सतेन्द्र सेन भी विभिन्न दुकानदारों के यहां काम कर चुके हैं। लेकिन बहुत कम मजदूरी मिलने के कारण परिवार का भरण-पोषण नही हो रहा था। उन्होंने यहां-वहां लोगों से ढंग का रोजगार बताने की बात कही तो उन्हें लोगों ने शासन की स्वरोजगार योजनाओं के बारे में बताया। फिर क्या था उन्होंने विभिन्न विभागों के अधिकारियों से मुलाकात की तो उन्हें पता चला कि उद्योग विभाग में संचालित मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से वे अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
सतेन्द्र ने स्थानीय उद्योग कार्यालय में सम्पर्क स्थापित किया तो उन्हें बताया गया कि आपको मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत एक लाख रूपये का ऋण मिलेगा। इस ऋण में आपको 30 हजार रूपये की अनुदान राशि दी जाएगी। ऋण भी छोटी-छोटी किश्तों में चुकाना पडेगा। फिर क्या था उन्होंने आवेदन लेकर आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन कार्यालय में जमा करा दिया। विभाग की समिति द्वारा आवेदन एवं हितग्राही की समीक्षा करने पर उन्हें योजना के तहत पात्र पाते हुए उनके आवेदन को अनुशंसा सहित इलाहाबाद बैंक प्रेषित कर दिया। बैंक द्वारा स्थल निरीक्षण एवं हितग्राही से संतुष्ट होते हुए एक लाख रूपये का ऋण किराना दुकान खोलने के लिए दिया गया।
सतेन्द्र ने इन्द्रपुरी कालोनी स्थित अपने आवास पर किराना की दुकान खोल ली। धीरे-धीरे उनकी दुकान चलने लगी। अब उन्हें दुकान खोले एक वर्ष से अधिक हो गया है। कालोनी में सभी को उनकी दुकान की जानकारी हो चुकी है जिससे उनकी दुकान ठीक से चलने लगी है। अब वे दुकान से अपने परिवार का आसानी से भरण-पोषण कर रहे हैं। इसके अलावा प्रत्येक माह समय पर 2 हजार रूपये की मासिक किश्त बैंक में जमा कर ऋण चुका रहे हैं। उनका कहना है कि इस योजना से मेरा जीवन धन्य हो गया। अब में किसी के यहां मजदूरी करने नही जाता। अपनी स्वयं की दुकान पर काम करता हॅू और आत्म सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा हॅू।
सतेन्द्र ने स्थानीय उद्योग कार्यालय में सम्पर्क स्थापित किया तो उन्हें बताया गया कि आपको मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत एक लाख रूपये का ऋण मिलेगा। इस ऋण में आपको 30 हजार रूपये की अनुदान राशि दी जाएगी। ऋण भी छोटी-छोटी किश्तों में चुकाना पडेगा। फिर क्या था उन्होंने आवेदन लेकर आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन कार्यालय में जमा करा दिया। विभाग की समिति द्वारा आवेदन एवं हितग्राही की समीक्षा करने पर उन्हें योजना के तहत पात्र पाते हुए उनके आवेदन को अनुशंसा सहित इलाहाबाद बैंक प्रेषित कर दिया। बैंक द्वारा स्थल निरीक्षण एवं हितग्राही से संतुष्ट होते हुए एक लाख रूपये का ऋण किराना दुकान खोलने के लिए दिया गया।
सतेन्द्र ने इन्द्रपुरी कालोनी स्थित अपने आवास पर किराना की दुकान खोल ली। धीरे-धीरे उनकी दुकान चलने लगी। अब उन्हें दुकान खोले एक वर्ष से अधिक हो गया है। कालोनी में सभी को उनकी दुकान की जानकारी हो चुकी है जिससे उनकी दुकान ठीक से चलने लगी है। अब वे दुकान से अपने परिवार का आसानी से भरण-पोषण कर रहे हैं। इसके अलावा प्रत्येक माह समय पर 2 हजार रूपये की मासिक किश्त बैंक में जमा कर ऋण चुका रहे हैं। उनका कहना है कि इस योजना से मेरा जीवन धन्य हो गया। अब में किसी के यहां मजदूरी करने नही जाता। अपनी स्वयं की दुकान पर काम करता हॅू और आत्म सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा हॅू।
शासन हर वर्ग के बेरोजगारों को स्वरोजगार देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से अनेकों परिवार के बेरोजगारों कोे स्वरोजगार स्थापित करने का अवसर मिला है। उन्ही बेरोजगारों में आरती भी शामिल है। आरती पन्ना नगर के टिकुरिया मोहल्ला में अपने माता-पिता के साथ रहती है। इनके पिता राजेन्द्र मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते थे। कक्षा 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आरती ने सोचा की मैं क्यों न अपने परिवार की कुछ सहायता करूं। जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरे और छोटे भाई-बहन पढ लिख सकें। बस इसी सोच के चलते उसने जिला अन्त्यावसायी सहकारी समिति में सम्पर्क स्थापित कर मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण प्राप्त कर किराने की दुकान खोलने की ठानी।
आरती द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना अन्तर्गत जमा कराए गए आवेदन की अन्य आवेदनों के साथ जिला स्तरीय समिति द्वारा परीक्षण के उपरांत पंजाब बैंक पन्ना को भेज दिया गया। बैंक अधिकारियों द्वारा स्थल परीक्षण एवं हितग्राही से संतुष्ट होते हुए एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण राशि से आरती द्वारा घर पर ही किराने की दुकान खोल ली गयी। आरती की दुकान रोड के किनारे होने के कारण अच्छी चल रही है। आरती बताती है कि इस दुकान से प्रतिदिन 700 से 800 रूपये प्रतिदिन कमा लेती हैं। इससे आरती के परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इनके छोटे भाई-बहन पढाई कर रहे हैं।
आरती बताती हैं मैं अपना स्वरोजगार स्थापित कर बहुत खुश हॅू। घर-परिवार के खर्च में सहयोग करने के साथ-साथ 1500 रूपये महीने की मासिक किश्त आसानी से चुका लेती हॅू। शासन द्वारा योजना के तहत 30 हजार रूपये की अनुदान राशि प्राप्त हुई है। जो मेरी ऋण राशि से घटा दी गयी है। अब मुझे ऋण के 70 हजार रूपये की राशि चुकानी है जो धीरे-धीरे किश्तों में चुकती जा रही है। वह कहती है कि प्रदेश सरकार द्वारा स्वरोजगार वाली योजनाएं चलाकर हम जैसे गरीबों को सहारा दिया है। प्रदेश में न जाने कितने मेरे जैसे बेरोजगार युवक-युवतियों में इस योजना का लाभ उठाकर अपना स्वरोजगार स्थापित कर परिवार का भरण-पोषण करने का कार्य कर रहे हैं।
शासन की इस तरह की कल्याणकारी योजनाओं से गरीब परिवार ही नही अन्य शिक्षित बेरोजगारों का भला हो रहा है जिससे वे स्वाभिमान के साथ समाज में जी रहे हैं। जो कल तक निकम्मे कहलाते थे आज वे कमाउ पुत्र-पुत्रियां बन गयी है। जिससे उनके स्वयं तथा परिवार की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। जीवन स्तर में सुधार आने से परिवार के बच्चे पढ लिख रहे हैं और अच्छी नौकरी या स्वरोजगार स्थापित करने के सपने सजो रहे हैं।
आरती द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना अन्तर्गत जमा कराए गए आवेदन की अन्य आवेदनों के साथ जिला स्तरीय समिति द्वारा परीक्षण के उपरांत पंजाब बैंक पन्ना को भेज दिया गया। बैंक अधिकारियों द्वारा स्थल परीक्षण एवं हितग्राही से संतुष्ट होते हुए एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण राशि से आरती द्वारा घर पर ही किराने की दुकान खोल ली गयी। आरती की दुकान रोड के किनारे होने के कारण अच्छी चल रही है। आरती बताती है कि इस दुकान से प्रतिदिन 700 से 800 रूपये प्रतिदिन कमा लेती हैं। इससे आरती के परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इनके छोटे भाई-बहन पढाई कर रहे हैं।
आरती बताती हैं मैं अपना स्वरोजगार स्थापित कर बहुत खुश हॅू। घर-परिवार के खर्च में सहयोग करने के साथ-साथ 1500 रूपये महीने की मासिक किश्त आसानी से चुका लेती हॅू। शासन द्वारा योजना के तहत 30 हजार रूपये की अनुदान राशि प्राप्त हुई है। जो मेरी ऋण राशि से घटा दी गयी है। अब मुझे ऋण के 70 हजार रूपये की राशि चुकानी है जो धीरे-धीरे किश्तों में चुकती जा रही है। वह कहती है कि प्रदेश सरकार द्वारा स्वरोजगार वाली योजनाएं चलाकर हम जैसे गरीबों को सहारा दिया है। प्रदेश में न जाने कितने मेरे जैसे बेरोजगार युवक-युवतियों में इस योजना का लाभ उठाकर अपना स्वरोजगार स्थापित कर परिवार का भरण-पोषण करने का कार्य कर रहे हैं।
शासन की इस तरह की कल्याणकारी योजनाओं से गरीब परिवार ही नही अन्य शिक्षित बेरोजगारों का भला हो रहा है जिससे वे स्वाभिमान के साथ समाज में जी रहे हैं। जो कल तक निकम्मे कहलाते थे आज वे कमाउ पुत्र-पुत्रियां बन गयी है। जिससे उनके स्वयं तथा परिवार की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। जीवन स्तर में सुधार आने से परिवार के बच्चे पढ लिख रहे हैं और अच्छी नौकरी या स्वरोजगार स्थापित करने के सपने सजो रहे हैं।
’काश मैं भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पाती’ यह सपना हर माॅं का होता है। ऐसा ही सपना पन्ना जिले के बडागांव की अनीसा बानो ने भी देखा था। लेकिन आर्थिक तंगी से जूझ रहा उनका परिवार अपना और अपने बच्चों का पेट भरने तक ही सीमित था। एक दिन अनीसा को सीता तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह की जानकारी मिली। पन्ना जिले की लोकेशन देवेन्द्रनगर के अन्तर्गत कलस्टर एवं ग्राम बडागांव में सीता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह का गठन नवंबर 2012 में किया गया था। अपने परिवार को आर्थिक स्थिति सुधारने और अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढाने का सपना लिए हुए अनीसा इस समूह की सदस्य बन गयी।
समूह से जुडने के बाद अनीसा ने आजीविका गतिविधि शुरू करने के लिए समूह से आपसी लेनदेन कर 5 हजार रूपये जुटाए। इस राशि में उन्होंने अपने 7 हजार रूपये मिलाकर मनिहारी का काम शुरू किया। उन्होंने 5 हजार रूपये का मनिहारी का सामान और 7 हजार रूपये में सिलाई का सामान खरीदा। जिससे अनीसा ने मनिहारी और सिलाई का व्यवसाय शुरू कर दिया। समूह से जुडने से पहले अनीसा केवल घरेलु कार्य करती थी और इनकी खुद की कोई आय नही थी। वही आज अनीसा 3 हजार रूपये प्रति माह कमा रही हैं। पहले इनका घर खर्च चलना भी मुश्किल था। आज सिलाई और मनिहारी के धंधे से आत्मनिर्भर बन अनीसा अपने पूरे परिवार का अच्छे से भरण-पोषण कर रही हैं। इस आय से अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढाने का सपना भी साकार हो गया है। उनके बच्चे प्रायवेट स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
समूह से जुडने के बाद अनीसा ने आजीविका गतिविधि शुरू करने के लिए समूह से आपसी लेनदेन कर 5 हजार रूपये जुटाए। इस राशि में उन्होंने अपने 7 हजार रूपये मिलाकर मनिहारी का काम शुरू किया। उन्होंने 5 हजार रूपये का मनिहारी का सामान और 7 हजार रूपये में सिलाई का सामान खरीदा। जिससे अनीसा ने मनिहारी और सिलाई का व्यवसाय शुरू कर दिया। समूह से जुडने से पहले अनीसा केवल घरेलु कार्य करती थी और इनकी खुद की कोई आय नही थी। वही आज अनीसा 3 हजार रूपये प्रति माह कमा रही हैं। पहले इनका घर खर्च चलना भी मुश्किल था। आज सिलाई और मनिहारी के धंधे से आत्मनिर्भर बन अनीसा अपने पूरे परिवार का अच्छे से भरण-पोषण कर रही हैं। इस आय से अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढाने का सपना भी साकार हो गया है। उनके बच्चे प्रायवेट स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
प्रत्येक जरूरतमंद को खुद का घर उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रारंभ की गई प्रधानमंत्री आवास योजना से अब तक पन्ना जिले के 13256 ग्रामीणों को पक्की छत मिल चुकी है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण ने स्वीकृत 14436 आवासों में से इन ग्रामवासियों का खुद का घर होने का सपना पूरा कर दिया हैै। शेष जरूरत मंदों का भी यह सपना शीघ्र पूरा करने प्रशासकीय अमला निरंतर प्रयासरत है।
पन्ना जिले में पांच जनपद पंचायतें हैं, जिन्होंने 31 अक्टूबर 2017 तक शासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य 40 प्रतिशत आवास पूर्ण कर एक-एक लाख रूपये की राशि पुरूस्कार स्वरूप प्राप्त कर चुकी हैं। इसी तरह जिला पंचायत पन्ना ने भी इस तिथि तक 42 प्रतिशत आवास पूर्ण कर दो लाख रूपये का पुरूस्कार शासन से प्राप्त किया है। पुरूस्कार योजना के कारण प्रतिस्पर्धा से जहां कम समय में गति के साथ आवास पूर्ण हुए वहीं आवासों की गुणवत्ता भी अच्छी पाई गई। इस संबंध में जिला पंचायत से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 दिसम्बर 2017 तक पन्ना जिले की जनपद पंचायत पन्ना द्वारा 80 प्रतिशत आवास पूर्ण कर शासन द्वारा एक लाख रूप्ये का पुरूस्कार प्राप्त हुआ है। इसी तरह जिला पंचायत द्वारा 69.60 प्रतिशत आवास पूर्ण करने पर दो लाख 50 हजार रूप्ये का पुरूस्कार प्राप्त हुआ है। गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में आवास योजना में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारी, कर्मचारियों को पुरूस्कार राशि एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। आगामी जिला स्तरीय समारोहों में भी उत्कृष्ट कार्य करने वाले कर्मचारियों को सम्मानित किया जाएगा। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डाॅ. गिरीश कुमार मिश्रा के निर्देशन में शेष आवासों का निर्माण भी गति के साथ पूर्ण कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पन्ना जिले में पांच जनपद पंचायतें हैं, जिन्होंने 31 अक्टूबर 2017 तक शासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य 40 प्रतिशत आवास पूर्ण कर एक-एक लाख रूपये की राशि पुरूस्कार स्वरूप प्राप्त कर चुकी हैं। इसी तरह जिला पंचायत पन्ना ने भी इस तिथि तक 42 प्रतिशत आवास पूर्ण कर दो लाख रूपये का पुरूस्कार शासन से प्राप्त किया है। पुरूस्कार योजना के कारण प्रतिस्पर्धा से जहां कम समय में गति के साथ आवास पूर्ण हुए वहीं आवासों की गुणवत्ता भी अच्छी पाई गई। इस संबंध में जिला पंचायत से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 दिसम्बर 2017 तक पन्ना जिले की जनपद पंचायत पन्ना द्वारा 80 प्रतिशत आवास पूर्ण कर शासन द्वारा एक लाख रूप्ये का पुरूस्कार प्राप्त हुआ है। इसी तरह जिला पंचायत द्वारा 69.60 प्रतिशत आवास पूर्ण करने पर दो लाख 50 हजार रूप्ये का पुरूस्कार प्राप्त हुआ है। गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में आवास योजना में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारी, कर्मचारियों को पुरूस्कार राशि एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। आगामी जिला स्तरीय समारोहों में भी उत्कृष्ट कार्य करने वाले कर्मचारियों को सम्मानित किया जाएगा। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डाॅ. गिरीश कुमार मिश्रा के निर्देशन में शेष आवासों का निर्माण भी गति के साथ पूर्ण कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पन्ना जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर एक ग्राम दमचुआ है। ग्राम में कुल 05 स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया है। भारत माता स्व-सहायता समूह की एक सदस्य हैं श्रीमती तुलसी विष्वास। तुलसी 2014 से समूह से जुड़ी हुई है। तुलसी इस विष्वास के साथ समूह से जुड़ी थी कि वह समूह के माध्यम से अपनी आजीविका का साधन जुटा लेंगी ।
तुलसी ने अपने दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर समूह से ऋण लेकर न केवल परिवार के लिए आजीविका सुनिष्चित की बल्कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को आगे बढ़ाने में बडी भूमिका निभायी। उन्होंने अपनी पढ़ाई को भी आगे बढ़ाते हुए स्नातक की परीक्षा पास कर ली है।
तुलसी विष्वास ने आजीविका मिषन के माध्यम से जबलपुर में कृषि सखी का 07 दिवसीय आधारभूत प्रषिक्षण प्राप्त किया। प्रषिक्षण उपरान्त उनके द्वारा अपने ग्राम दमचुआ एवं हाटूपुर के 50 महिला किसानों का चयन कर उनका आधारभूत सर्वे किया गया। जिसके बाद चयनित महिला किसानों के यहाॅ मिट्टी परीक्षण, गहरी जुताई, बीज उपचार, श्रीविधि से धान की खेती, भू-नाडेप, आजीविका पोषण वाटिका, मटका खाद आदि से सम्बन्धित प्रषिक्षण देकर सम्बन्धित किसानों के यहाॅ कार्य कराया गया।
इसी दौरान म.प्र. राज्य ग्रामीण आजीविका मिषन जिला पन्ना के सहयोग से तुलसी ने उत्तर प्रदेष राज्य ग्रामीण आजीविका मिषन की महिला कृषकों को जैविक खेती पर प्रशिक्षण दिलाया। जिसके अन्तर्गत बाॅदा जिले में महिला सषक्तिकरण परियोजना में शामिल महिला कृषकों को बिना किसी लागत के नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्निास्त्र तथा कीटनाषक, दवाओं को बनाने से सम्बन्धित प्रषिक्षण दिया गया। परिवार के लिए हर मौसम में ताजी एवं हरी सब्जी हेतु घरेलु निस्तारी पानी का उपयोग करते हुए आजीविका पोषण वाटिका का निर्माण कराया गया। तुलसी विष्वास ने जब से कृषि सखी का कार्य किया है तभी से उसकी आस-पास के ग्रामों में लोग जैविक कृषि से सम्बन्धित सलाह लेने उनके पास आने लगे हैं। आज तुलसी विष्वास लखपति क्लब में शामिल हो चुकी हैं तथा इस क्लब में शामिल होने हेतु अन्य सदस्यों के लिए प्रेरणा स्त्रोत का कार्य कर रही हैं।
तुलसी ने अपने दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर समूह से ऋण लेकर न केवल परिवार के लिए आजीविका सुनिष्चित की बल्कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को आगे बढ़ाने में बडी भूमिका निभायी। उन्होंने अपनी पढ़ाई को भी आगे बढ़ाते हुए स्नातक की परीक्षा पास कर ली है।
तुलसी विष्वास ने आजीविका मिषन के माध्यम से जबलपुर में कृषि सखी का 07 दिवसीय आधारभूत प्रषिक्षण प्राप्त किया। प्रषिक्षण उपरान्त उनके द्वारा अपने ग्राम दमचुआ एवं हाटूपुर के 50 महिला किसानों का चयन कर उनका आधारभूत सर्वे किया गया। जिसके बाद चयनित महिला किसानों के यहाॅ मिट्टी परीक्षण, गहरी जुताई, बीज उपचार, श्रीविधि से धान की खेती, भू-नाडेप, आजीविका पोषण वाटिका, मटका खाद आदि से सम्बन्धित प्रषिक्षण देकर सम्बन्धित किसानों के यहाॅ कार्य कराया गया।
इसी दौरान म.प्र. राज्य ग्रामीण आजीविका मिषन जिला पन्ना के सहयोग से तुलसी ने उत्तर प्रदेष राज्य ग्रामीण आजीविका मिषन की महिला कृषकों को जैविक खेती पर प्रशिक्षण दिलाया। जिसके अन्तर्गत बाॅदा जिले में महिला सषक्तिकरण परियोजना में शामिल महिला कृषकों को बिना किसी लागत के नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्निास्त्र तथा कीटनाषक, दवाओं को बनाने से सम्बन्धित प्रषिक्षण दिया गया। परिवार के लिए हर मौसम में ताजी एवं हरी सब्जी हेतु घरेलु निस्तारी पानी का उपयोग करते हुए आजीविका पोषण वाटिका का निर्माण कराया गया। तुलसी विष्वास ने जब से कृषि सखी का कार्य किया है तभी से उसकी आस-पास के ग्रामों में लोग जैविक कृषि से सम्बन्धित सलाह लेने उनके पास आने लगे हैं। आज तुलसी विष्वास लखपति क्लब में शामिल हो चुकी हैं तथा इस क्लब में शामिल होने हेतु अन्य सदस्यों के लिए प्रेरणा स्त्रोत का कार्य कर रही हैं।
मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना -घर मे जब तक बच्चों की किलकारी न गूॅजे, उनका नटखट और हंसता हुआ बचपन देखने न मिले तब तक घर एवं जीवन दोनो ही अधूरे लगते है। और यदि यही बचपन किसी ऐसी बीमारी से ग्रसित हो जिसका परिवार के सदस्यो को ही पता न चले तो यह और भी खतरनाक होता है। इसी तरह की कहानी जिले के बाबूपुर गाॅव मे रहने वाले बंगाली समाज के माखन सरकार की है। जिनके जीवन मे भगवान ने जल्द ही दुखो का पहाड़ तोड़ दिया। माखन के घर मे तीन लड़के थे। अभय सरकार बड़े पुत्र का नाम है एवं उससे छोटे दो भाई उदय एवं अनय थे। लेकिन आज से 04 वर्ष पूर्व सबसे छोटे बेटे अभय को असमय किसी बीमारी ने घेर लिया। यहाॅ से भोपाल/नागपुर तक ईलाज करवाया अंत मे पुत्र को बचा नही सके। डाॅक्टरो ने ब्रेन टियूमर बीमारी बताई। ईलाज मे भी पैसा बहुत खर्च हो गया था। अभी तक दुख से उबर ही नही पाए थे कि माखन सरकार का बड़ा पुत्र जो कि कक्षा 5वीं मे शासकीय माध्यमिक शाला बाबूपुर मे पड़ता है को कई दिनो से थोड़े से चलने मे थकान हो रही थी। सांस फूलने लगती एवं कभी-कभी शरीर भी नीला पड़ जाता था। एक बेटे के ईलाज मे पहले ही बहुत खर्च हो जाने से अभय के ईलाज की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे।
मगर किसी ने सच ही कहा है कि जिसका कोई नही उसका भगवान होता है। तभी जिले मे संचालित राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शासकीय माध्यमिक शाला बाबूपुर मे स्वास्थ्य परीक्षण करने पहुॅची। परीक्षण के दौरान टीम की महिला चिकित्सक डाॅ.योगिता खरे ने जब आला अभय के सीने पर रख कर घड़कने सुनी तो वो सामान्य नही थी। तब आर.बी.एस.के. महिला चिकित्सक द्वारा अभय को जन्मजात गंभीर हृदय रोग से चिन्हित कर जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। जहां आर.बी.एस.के. जिला समन्वयक डाॅ.सुबोध खम्परिया से संपर्क करने को कहा गया। जिला अस्पताल मे डाॅ.खम्परिया द्वारा आर.बी.एस.के. नोडल अधिकारी डाॅ.प्रदीप गुप्ता से चेेकअप कराने पर पता चला की बच्चा जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है। जब ये बात पिता माखन सरकार को बतायी गयी तो उनकी आॅखो के सामने अंधेरा छा गया। लेकिन डाॅ.खम्परिया द्वारा मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना की पूर्ण जानकारी देकर बताया गया कि आप धैर्य रखे सरकार पूरा ईलाज निःशुल्क करायगी। माखन को म.प्र.सरकार द्वारा चिन्हित निजी चिकित्सालयो की सूची बताई गयी और कहा गया कि आप उपचार जिस चिकित्सालय मे कराना चाहते हो उसका स्टीमेट ले आओ। तब माखन ने अपनी मर्जी से बंसल हास्पिटल भोपाल से बच्चे की जाॅच कराकर आवेदन सहित जाॅच रिर्पोट एवं प्राक्कलन कार्यालय मे जमा किया। जिसे समय पर गठित समिति द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने के बाद उपचार हेतु स्वीकृति प्रदाय की गयी। 05 जनवरी 2018 को बंसल हाॅस्पिटल भोपाल मे अभय के हृदय का सफल आपरेशन किया गया। आज दिनांक को अभय को पन्ना जिला चिकित्सालय फालोअप के लिये बुलाया गया जहाॅ डाॅ.प्रदीप गुप्ता जिला नोडल अधिकारी आर.बी.एस.के. द्वारा अभय की जाॅच की गयी। अभय के पिता माखन ने बताया की आपरेशन के बाद अभय अब स्वस्थ्य है। पहले की तरह अब न तो उसका शरीर नीला पड़ता है और न ही दौड़ने मे थकता है। अभय की माॅ ममता सरकार अपने बच्चे को स्वस्थ्य देख कर मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के लिए प्रदेश सरकार का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रही हैं। साथ ही मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ.एल.के.तिवारी , डाॅ.प्रदीप गुप्ता , डाॅ.सुबोध खम्परिया एवं आर.बी.एस.के.टीम को धन्यवाद देती हैं, जिनके सही मार्गदर्शन एवं प्रयासांे से आज उनका बच्चा पूर्णतः स्वस्थ्य है।
मगर किसी ने सच ही कहा है कि जिसका कोई नही उसका भगवान होता है। तभी जिले मे संचालित राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शासकीय माध्यमिक शाला बाबूपुर मे स्वास्थ्य परीक्षण करने पहुॅची। परीक्षण के दौरान टीम की महिला चिकित्सक डाॅ.योगिता खरे ने जब आला अभय के सीने पर रख कर घड़कने सुनी तो वो सामान्य नही थी। तब आर.बी.एस.के. महिला चिकित्सक द्वारा अभय को जन्मजात गंभीर हृदय रोग से चिन्हित कर जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। जहां आर.बी.एस.के. जिला समन्वयक डाॅ.सुबोध खम्परिया से संपर्क करने को कहा गया। जिला अस्पताल मे डाॅ.खम्परिया द्वारा आर.बी.एस.के. नोडल अधिकारी डाॅ.प्रदीप गुप्ता से चेेकअप कराने पर पता चला की बच्चा जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है। जब ये बात पिता माखन सरकार को बतायी गयी तो उनकी आॅखो के सामने अंधेरा छा गया। लेकिन डाॅ.खम्परिया द्वारा मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना की पूर्ण जानकारी देकर बताया गया कि आप धैर्य रखे सरकार पूरा ईलाज निःशुल्क करायगी। माखन को म.प्र.सरकार द्वारा चिन्हित निजी चिकित्सालयो की सूची बताई गयी और कहा गया कि आप उपचार जिस चिकित्सालय मे कराना चाहते हो उसका स्टीमेट ले आओ। तब माखन ने अपनी मर्जी से बंसल हास्पिटल भोपाल से बच्चे की जाॅच कराकर आवेदन सहित जाॅच रिर्पोट एवं प्राक्कलन कार्यालय मे जमा किया। जिसे समय पर गठित समिति द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने के बाद उपचार हेतु स्वीकृति प्रदाय की गयी। 05 जनवरी 2018 को बंसल हाॅस्पिटल भोपाल मे अभय के हृदय का सफल आपरेशन किया गया। आज दिनांक को अभय को पन्ना जिला चिकित्सालय फालोअप के लिये बुलाया गया जहाॅ डाॅ.प्रदीप गुप्ता जिला नोडल अधिकारी आर.बी.एस.के. द्वारा अभय की जाॅच की गयी। अभय के पिता माखन ने बताया की आपरेशन के बाद अभय अब स्वस्थ्य है। पहले की तरह अब न तो उसका शरीर नीला पड़ता है और न ही दौड़ने मे थकता है। अभय की माॅ ममता सरकार अपने बच्चे को स्वस्थ्य देख कर मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के लिए प्रदेश सरकार का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रही हैं। साथ ही मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ.एल.के.तिवारी , डाॅ.प्रदीप गुप्ता , डाॅ.सुबोध खम्परिया एवं आर.बी.एस.के.टीम को धन्यवाद देती हैं, जिनके सही मार्गदर्शन एवं प्रयासांे से आज उनका बच्चा पूर्णतः स्वस्थ्य है।
किसान लक्ष्मण दास को बेस्ट आॅर्गेनिक फार्मर श्रेणी में देश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ-इन्टरनेशनल काॅम्पीटेन्स सेन्टर आॅफ आॅर्गेनिक एग्रीकल्चर (आईसीसीओए) बैंगलोर द्वारा दिनांक 20 जनवरी को वर्ष 2016-17 में जैविक खेेती के लिए जैविक इण्डिया अवार्ड दिये गये। इस समारोह में पन्ना जिले के ग्राम जनवार के कृषक श्री लक्ष्मण दास सुखरमानी को वेस्ट आॅर्गेनिक फार्मर श्रेणी में देश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। जैविक खेती जगत में श्री सुखरमानी के योगदान के लिए उन्हें 50 हजार का चेक, शील्ड एवं प्रशस्ती पत्र प्रदान किया गया है। इसी समारोह में आॅर्गेनिक स्टेट श्रेणी में मध्यप्रदेश को तृतीय पुरूस्कार प्राप्त हुआ है।
इन्टरनेशनल काॅम्पीटेन्स सेन्टर आॅफ आॅर्गेनिक एग्रीकल्चर (आईसीसीओए) संस्था जैविक खेती एवं जैव विविधता के साथ समन्वय पध्दति से खेती करने वाले कृषकों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती के क्षेत्र में करती है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्यप्रदेश द्वारा कृषक श्रेणी में श्री सुखरमानी का नाॅमिनेशन किया गया था। जिसके बाद आईसीसीओए संस्था द्वारा कृषक सुखरमानी को बैंगलोर तक जाने एवं वापस आने का हवाई जहाज का टिकिट एवं फाइव स्टार होटल में ठहरने का इन्तजाम किया गया।
श्री लक्ष्मण दास मूलतः इलेक्ट्राॅनिक्स के बिजनेसमेन हैं। इनका व्यवसाय सतना, रीवा, सीधी तथा छतरपुर में फैला हुआ था। लेकिन 2014 में कृषि विभाग के संपर्क में आए। जिसके बाद इन्हें लगा कि स्थाई लाभ प्राप्त करने के लिए अपने ज्ञान और ऊर्जा को खेती में लगाना चाहिये। इस निश्चय के बाद लक्ष्मण दास ने अपने खेत को मध्यप्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्थान में रजिस्टर कराया एवं जैविक खेती आरंभ की। उन्होंने अपनी जमीन को भी दुकान की तरह चलाने का अभिनव प्रयोग किया। अपने खेत से हरदिन उन्होंने आमदनी के नए-नए तरीके पैदा किये और आज वे अपने खेत से प्रतिदिन 10 से 15 हजार रूपये मुनाफा कमा रहे हैं। अब उन्होेंने अपने बिजनेस को सीमित कर जैविक खेती का मार्ग अपना लिया है।
. लक्ष्मण दास सुखरमानी ने अपने 2.25 एकड़ जमीन में जैविक खेती के माध्यम से एक छोटा बगीचा तैयार किया। जिसमें उन्होंने आम, नींबू, अमरूद, मौसंबी, करौंदा के साथ विभिन्न सब्जियां लगाई हैं। मूंग, मटर एवं गेहूं की खेती की है। इसके लिए वे अपने खेत पर ही वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वांस, बायोगैस सिलरी तैयार करते हैें। कीट पतंगों की रोकथाम के लिए लाईट ट्रैप का उपयोग करते हैं। इसके साथ ही दुग्ध उत्पादन, कड़कनाथ मुर्गी पालन, अजोला उत्पादन, हाइड्रोपोनिक्स खेती मछली पालन तथा कुत्ता पालन का कार्य भी करते हैं। श्री सुखरमानी का फार्म एग्रोटूरिज्म एवं प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में विकसित हो चुका है। जहां दूर-दूर से लोग भ्रमण करने आते हैं। कृषक एवं छात्र प्रशिक्षण लेने आते हैं। श्री सुखरमानी की लगन और मेहनत ने यह सिध्द कर दिया है कि यदि किसान में सच्ची लगन एवं कठोर परिश्रम करने की जिद है तो वह खेती के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहलुओं को समझ कर शासन की मदद से कृषि को लाभ का धन्घा बना सकता है। वरना वह अपना इलेक्ट्राॅनिक्स का व्यवसाय समेट कर खेती की ओर नहीं आते।
इनका कहना क्या कहना है- मुझे रात्रि 11.35 बजे उपसंचालक कृषि ने जिले के कृषक श्री लक्ष्मण दास सुखरमानी के जैविक कृषि क्षेत्र में देश में प्रथम स्थान प्राप्त करने की सूचना दूरभाष पर दी। वास्तव में जिले के लिए यह गौरव का क्षण हैं। मैं कृषक एवं कृषि विभाग को बधाई देता हूं। -श्री मनोज खत्री, कलेक्टर पन्ना
मुझे गत दिवस 20 जनवरी को रात्रि 9.30 बजे पता चला कि स्टेट श्रेणी में मध्यप्रदेश को तृतीय स्थान मिला है। सुनकर प्रसन्नता हुई पर इन्तजार कृषक श्रेणी के परिणाम का था। रात्रि 11.30 बजे कृषक सुखरमानी ने प्रथम पुरूस्कार की सूचना दी तो उस खुशी का वर्णन शब्दों में नहीं दिया जा सकता है। -रविन्द्र मोदी, उपसंचालक कृषि, पन्ना
इन्टरनेशनल काॅम्पीटेन्स सेन्टर आॅफ आॅर्गेनिक एग्रीकल्चर (आईसीसीओए) संस्था जैविक खेती एवं जैव विविधता के साथ समन्वय पध्दति से खेती करने वाले कृषकों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती के क्षेत्र में करती है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्यप्रदेश द्वारा कृषक श्रेणी में श्री सुखरमानी का नाॅमिनेशन किया गया था। जिसके बाद आईसीसीओए संस्था द्वारा कृषक सुखरमानी को बैंगलोर तक जाने एवं वापस आने का हवाई जहाज का टिकिट एवं फाइव स्टार होटल में ठहरने का इन्तजाम किया गया।
श्री लक्ष्मण दास मूलतः इलेक्ट्राॅनिक्स के बिजनेसमेन हैं। इनका व्यवसाय सतना, रीवा, सीधी तथा छतरपुर में फैला हुआ था। लेकिन 2014 में कृषि विभाग के संपर्क में आए। जिसके बाद इन्हें लगा कि स्थाई लाभ प्राप्त करने के लिए अपने ज्ञान और ऊर्जा को खेती में लगाना चाहिये। इस निश्चय के बाद लक्ष्मण दास ने अपने खेत को मध्यप्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्थान में रजिस्टर कराया एवं जैविक खेती आरंभ की। उन्होंने अपनी जमीन को भी दुकान की तरह चलाने का अभिनव प्रयोग किया। अपने खेत से हरदिन उन्होंने आमदनी के नए-नए तरीके पैदा किये और आज वे अपने खेत से प्रतिदिन 10 से 15 हजार रूपये मुनाफा कमा रहे हैं। अब उन्होेंने अपने बिजनेस को सीमित कर जैविक खेती का मार्ग अपना लिया है।
. लक्ष्मण दास सुखरमानी ने अपने 2.25 एकड़ जमीन में जैविक खेती के माध्यम से एक छोटा बगीचा तैयार किया। जिसमें उन्होंने आम, नींबू, अमरूद, मौसंबी, करौंदा के साथ विभिन्न सब्जियां लगाई हैं। मूंग, मटर एवं गेहूं की खेती की है। इसके लिए वे अपने खेत पर ही वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वांस, बायोगैस सिलरी तैयार करते हैें। कीट पतंगों की रोकथाम के लिए लाईट ट्रैप का उपयोग करते हैं। इसके साथ ही दुग्ध उत्पादन, कड़कनाथ मुर्गी पालन, अजोला उत्पादन, हाइड्रोपोनिक्स खेती मछली पालन तथा कुत्ता पालन का कार्य भी करते हैं। श्री सुखरमानी का फार्म एग्रोटूरिज्म एवं प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में विकसित हो चुका है। जहां दूर-दूर से लोग भ्रमण करने आते हैं। कृषक एवं छात्र प्रशिक्षण लेने आते हैं। श्री सुखरमानी की लगन और मेहनत ने यह सिध्द कर दिया है कि यदि किसान में सच्ची लगन एवं कठोर परिश्रम करने की जिद है तो वह खेती के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहलुओं को समझ कर शासन की मदद से कृषि को लाभ का धन्घा बना सकता है। वरना वह अपना इलेक्ट्राॅनिक्स का व्यवसाय समेट कर खेती की ओर नहीं आते।
इनका कहना क्या कहना है- मुझे रात्रि 11.35 बजे उपसंचालक कृषि ने जिले के कृषक श्री लक्ष्मण दास सुखरमानी के जैविक कृषि क्षेत्र में देश में प्रथम स्थान प्राप्त करने की सूचना दूरभाष पर दी। वास्तव में जिले के लिए यह गौरव का क्षण हैं। मैं कृषक एवं कृषि विभाग को बधाई देता हूं। -श्री मनोज खत्री, कलेक्टर पन्ना
मुझे गत दिवस 20 जनवरी को रात्रि 9.30 बजे पता चला कि स्टेट श्रेणी में मध्यप्रदेश को तृतीय स्थान मिला है। सुनकर प्रसन्नता हुई पर इन्तजार कृषक श्रेणी के परिणाम का था। रात्रि 11.30 बजे कृषक सुखरमानी ने प्रथम पुरूस्कार की सूचना दी तो उस खुशी का वर्णन शब्दों में नहीं दिया जा सकता है। -रविन्द्र मोदी, उपसंचालक कृषि, पन्ना
अब वे खुद के साथ दूसरांे को दे रहे रोजगार -मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना बेरोजगार युवाओं के लिए बरदान साबित हुयी है। इस योजना से अनेकों बेरोजगारों के परिवार आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बन गये है। परिवार के एक सदस्य का स्वरोजगार स्थापित हो जाने से पूरे परिवार के जीवन स्तर में सुधार आया है। उन्ही बेरोजगारों में पन्ना नगर के प्रवीण सिंह भी है। जो एक शिक्षित बेरोजगार निराशा का जीवन जी रहे थे। उन्हें शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी मिली तो उद्योग विभाग में जाकर सम्पर्क स्थापित किया। वहां उन्हंे मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना आवेदन प्रपत्र उपलब्ध कराये गये। प्रवीण ने आवेदन भरा और आवश्यक दस्तावेजों के साथ उद्योग कार्यालय में जमा कराया ।
जिला स्तरीय समिति की बैठक में प्रवीण सिंह के आवेदन की समीक्षा की गयी। समीक्षा के उपरान्त आवेदन को अनुशंसा सहिता इलाहाबाद बैंक को प्रेषित किया गया। बैंक द्वारा स्थल निरीक्षण करने के उपरांत हितग्राही एवं उनके व्यवसाय चयन से संतुष्ट होते हुये 3 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण राशी से प्रवीण सिंह द्वारा स्थानीय बाजार शिवा नन्द कुटी के पास मोबाईल एवं मोबाईल ऐसेरीज थोक एवं फुटकर विक्रेता के रूप में सिद्धेश्वर मोबाईल नाम से दुकान खोल कर व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। अब इनकी दुकान धीरे-धीरे चल पडी है। जिससे वे अब आराम से 15 से 20 हजार रूपये तक कमा लेते हैं।
उन्होंने सहयोग के लिए एक व्यक्ति को अपने यहां सहयोगी के रूप में काम पर रखा है। इस प्रकार मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से दो बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल गया। योजना के तहत 3 लाख रूपये की ऋण पर 45 हजार रूपये का अनुदान भी मिला। अनुदान मिलने से प्रवीण को अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से संचालित करने में सहयोग प्राप्त हो रहा है। अब वे बैंक की मासिक किस्त भी आसानी से चुकाने के साथ अपने परिवार का खर्च आसानी से चला रहे। प्रवीण सिंह का कहना है कि मुख्यंमत्री स्वरोजगार योजना हमारे जैसे बेरोजगारांे के लिए बरदान है। इस योजना से बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार स्थापित करने का अवसर मिला है। जिससे हमारे जैसे युवा स्वाभिमान की साथ जीवन बिताने लगे है। इससे हमारे जीवन स्तर में सुधार आने के साथ-साथ सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढी है। योजना की जानकारी आम लोगों तक पहुंचने से लोग योजना का लाभ उठा रहे है।
जिला स्तरीय समिति की बैठक में प्रवीण सिंह के आवेदन की समीक्षा की गयी। समीक्षा के उपरान्त आवेदन को अनुशंसा सहिता इलाहाबाद बैंक को प्रेषित किया गया। बैंक द्वारा स्थल निरीक्षण करने के उपरांत हितग्राही एवं उनके व्यवसाय चयन से संतुष्ट होते हुये 3 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण राशी से प्रवीण सिंह द्वारा स्थानीय बाजार शिवा नन्द कुटी के पास मोबाईल एवं मोबाईल ऐसेरीज थोक एवं फुटकर विक्रेता के रूप में सिद्धेश्वर मोबाईल नाम से दुकान खोल कर व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। अब इनकी दुकान धीरे-धीरे चल पडी है। जिससे वे अब आराम से 15 से 20 हजार रूपये तक कमा लेते हैं।
उन्होंने सहयोग के लिए एक व्यक्ति को अपने यहां सहयोगी के रूप में काम पर रखा है। इस प्रकार मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से दो बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल गया। योजना के तहत 3 लाख रूपये की ऋण पर 45 हजार रूपये का अनुदान भी मिला। अनुदान मिलने से प्रवीण को अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से संचालित करने में सहयोग प्राप्त हो रहा है। अब वे बैंक की मासिक किस्त भी आसानी से चुकाने के साथ अपने परिवार का खर्च आसानी से चला रहे। प्रवीण सिंह का कहना है कि मुख्यंमत्री स्वरोजगार योजना हमारे जैसे बेरोजगारांे के लिए बरदान है। इस योजना से बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार स्थापित करने का अवसर मिला है। जिससे हमारे जैसे युवा स्वाभिमान की साथ जीवन बिताने लगे है। इससे हमारे जीवन स्तर में सुधार आने के साथ-साथ सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढी है। योजना की जानकारी आम लोगों तक पहुंचने से लोग योजना का लाभ उठा रहे है।
स्वर्ण जयंती शहरी स्वरोजगार योजना से स्थापित की कम्प्यूटर, मोबाइल रिपेयरिंग शाॅप-पन्ना जिले की नगर परिषद देवेन्द्रनगर की निवासी रियाज अहमद सिद्दीकी केवल 23 वर्ष के हैं। पिता की मृत्यु के बाद इनके परिवार की माली हालत ठीक नही थी। बहन की शादी की जिम्मेदारी सर पर थी। इनके बडे भाई जेसे-तेसे घर चला रहे थे। उस समय रियाज अपने स्नातक के अंतिम वर्ष में अध्ययनरत थे। वह अपने परिवार और अपनी बेवा माॅ को आर्थिक सहारा देना चाहते थे। तभी उन्हें नगर परिषद देवेन्द्रनगर के माध्यम से स्वर्ण जयंती शहरी योजना (मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना) की जानकारी प्राप्त हुई। उन्होंने योजना की पूरी जानकारी ली। और इस योजना ने उन्हें अपने परिवार का सहारा बनने का अवसर दे दिया।
रियाज बताते हैं योजना की जानकारी मिलते ही उन्हें परिवार की आर्थिक स्थिति उपर उठाने की दिशा में सहारा मिला। स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उन्होंने व्यवसाय करने का निश्चय किया। मोबाइल रिपेयरिंग एवं एसेसरीज की दुकान उन्हें अपने लिए उपयुक्त लगी। उन्होंने नगर परिषद देवेन्द्रनगर से सम्पर्क कर स्वर्ण जयंती शहरी स्वरोजगार योजना के तहत 50 हजार रूपये का ऋण लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर दिया। नगर परिषद द्वारा प्रकरण स्वीकृत कर टीएफसी बैठक में रखा गया। जिसे बैठक से स्वीकृति के बाद वितरण के लिए इलाहाबाद बैंक देवेन्द्रनगर प्रेषित कर दिया गया। जिला शहरी विकास अभिकरण द्वारा 12 हजार 500 रूपये की अनुदान राशि बैंक को प्रदान की गयी। और बैंक ने रियाज को आवश्यकतानुसार 50 हजार रूपये की राशि सामग्री खरीदने के लिए प्रदान कर दी। इस राशि से रियाज ने कम्प्यूटर एवं मोबाइल एसेसरीज खरीद कर बस स्टैण्ड देवेन्द्रनगर में दुकान स्थापित की है। दुकान के संचालन से उन्हें प्रतिमाह 5 से 6 हजार रूपये आय होने लगी है। उन्होंने दुकान स्थापित कर परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उठाते हुए अपनी बहन की शादी भी करा दी है। बेवा माॅ का सहारा बनने के साथ ही रियाज दुकान से होने वाली आय से अपनी आगे की पढाई कर रहे हैं। रियाज अहमद इसका श्रेय मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना एवं नगर परिषद देवेन्द्रनगर को देते हैं। वह कहते हैं कि अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना से जुडकर लाभान्वित होना चाहिए।
रियाज बताते हैं योजना की जानकारी मिलते ही उन्हें परिवार की आर्थिक स्थिति उपर उठाने की दिशा में सहारा मिला। स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उन्होंने व्यवसाय करने का निश्चय किया। मोबाइल रिपेयरिंग एवं एसेसरीज की दुकान उन्हें अपने लिए उपयुक्त लगी। उन्होंने नगर परिषद देवेन्द्रनगर से सम्पर्क कर स्वर्ण जयंती शहरी स्वरोजगार योजना के तहत 50 हजार रूपये का ऋण लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर दिया। नगर परिषद द्वारा प्रकरण स्वीकृत कर टीएफसी बैठक में रखा गया। जिसे बैठक से स्वीकृति के बाद वितरण के लिए इलाहाबाद बैंक देवेन्द्रनगर प्रेषित कर दिया गया। जिला शहरी विकास अभिकरण द्वारा 12 हजार 500 रूपये की अनुदान राशि बैंक को प्रदान की गयी। और बैंक ने रियाज को आवश्यकतानुसार 50 हजार रूपये की राशि सामग्री खरीदने के लिए प्रदान कर दी। इस राशि से रियाज ने कम्प्यूटर एवं मोबाइल एसेसरीज खरीद कर बस स्टैण्ड देवेन्द्रनगर में दुकान स्थापित की है। दुकान के संचालन से उन्हें प्रतिमाह 5 से 6 हजार रूपये आय होने लगी है। उन्होंने दुकान स्थापित कर परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उठाते हुए अपनी बहन की शादी भी करा दी है। बेवा माॅ का सहारा बनने के साथ ही रियाज दुकान से होने वाली आय से अपनी आगे की पढाई कर रहे हैं। रियाज अहमद इसका श्रेय मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना एवं नगर परिषद देवेन्द्रनगर को देते हैं। वह कहते हैं कि अन्य बेरोजगारों को भी इस योजना से जुडकर लाभान्वित होना चाहिए।
यह कहानी एक ऐसे क्षेत्र की महिला की जहां औरतों को कम ही अधिकार दिये जाते हैं। पन्ना जिले की पवई जनपद से 8 किमी दूरी पर मोहन्द्रा मार्ग में बसा हुआ एक ग्राम है खम्हरिया। ग्राम में आगमन के साधन कम होने से रोजगार के अवसर कम ही हैं। यहां के अधिकांश ग्रामवासी कृषि एवं मजदूरी पर आश्रित हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र होने के कारण यहां सामन्तशाही का प्रभाव दिखता है। यहां ही महिलाओं को सीमित अधिकार दिये जाते हैं। उनकी पूरी जिन्दगी घर की चार दीवारी के भीतर गुजर जाती है। यहां लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता है या अधिकतर 8वीं तक पढ़ाकर घर-गृहस्थी के काम में झोंक दिया जाता है। महिलाओं का समाज में भी हस्तक्षेप कम रहता है और वे आर्थिक रूप से कमजोर रहती हैं।
ऐसे क्षेत्र में इन सब चुनौतियों का सामना करते हुए तेजस्वनी योजना ने ग्राम का एक समूह लगभग 9 माह पूर्व गठित किया था। यहां की महिलाओं ने कभी नहीं सोचा था कि समूह का गठन कर तेजस्वनी से जुड़ना उनके जीवन में इतना बदलाव ले आएगा। ये महिलाएं हर माह समूह के रूप में बैठके लेने लगीं, समारोहों में एक साथ मिलने लगीं। बैठकों में बचत, उधार, सामाजिक कार्याें जैसे लड़कियों की अनिवार्य शिक्षा आदि विषयों पर चर्चा करनें लगीं। इसी समूह की एक सदस्य हैं रूकमनबाई। ऐसे ही एक दिन समूह की बैठक में चर्चा के उपरान्त यह निश्कर्ष निकला कि समूह को किसी फाइनेन्शियल एजेन्सी से लोन लेकर उसका सही इस्तेमाल करना चाहिये। समूह का कोई भी जरूरतमंद सदस्य इस पैसे का उपयोग रोजगार शुरू करने में कर सकता है। समूह ने यह पाया कि सदस्य रूकमनबाई बहिन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं और वह रोजगार करने की इच्छुक है। उसे बकरीपालन का अनुभव भी है। इस तरह समूह के सभी सदस्यों ने मिलकर तेजस्वनी की मदद से एक माइक्रोफिनेन्स एजेन्सी को 80 हजार रूपये के लोन के लिए आवेदन किया, जिसमें से 20 हजार रूपये रूकमनबाई के शामिल थे। एजेन्सी ने शीघ्र ही कार्यवाही कर के समूह को फायनेन्स कर दिया। जिससे रूकमन बाई को 20 हजार रूपये आसानी से प्राप्त हो गए। रूकमनी बाई ने कहीं से अतिरिक्त 20 हजार रूपये की व्यवस्था करके कुल 40 हजार रूपये में 10 नग बकरी खरीदी जिनके बच्चे भी साथ थे।
रूकमनी बाई ने इनका भरण-पोषण प्रारंभ किया। इन सब कामों में उनके पति ने भी पूरा सहयोग दिया। बकरियों का दूध बेचकर हुई आय से रूकमनी बाई सही समय पर फाइनेन्स कम्पनी की किश्त जमा करती रहीं । अब लगभग 8 महीने हो चुके हैं। बकरियों के बच्चे बड़ें हो गये हैं और उनकी वर्तमान कीमत लगभग 40 हजार है। बकरियां भी सभी सुरक्षित हैं। एजेन्सी की किश्त भी पूरी जमा होने वाली है। इस तरह उनकी आय 1 वर्ष के पूर्व दोगुनी हो गई है और वह अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रही हैं।
ऐसे क्षेत्र में इन सब चुनौतियों का सामना करते हुए तेजस्वनी योजना ने ग्राम का एक समूह लगभग 9 माह पूर्व गठित किया था। यहां की महिलाओं ने कभी नहीं सोचा था कि समूह का गठन कर तेजस्वनी से जुड़ना उनके जीवन में इतना बदलाव ले आएगा। ये महिलाएं हर माह समूह के रूप में बैठके लेने लगीं, समारोहों में एक साथ मिलने लगीं। बैठकों में बचत, उधार, सामाजिक कार्याें जैसे लड़कियों की अनिवार्य शिक्षा आदि विषयों पर चर्चा करनें लगीं। इसी समूह की एक सदस्य हैं रूकमनबाई। ऐसे ही एक दिन समूह की बैठक में चर्चा के उपरान्त यह निश्कर्ष निकला कि समूह को किसी फाइनेन्शियल एजेन्सी से लोन लेकर उसका सही इस्तेमाल करना चाहिये। समूह का कोई भी जरूरतमंद सदस्य इस पैसे का उपयोग रोजगार शुरू करने में कर सकता है। समूह ने यह पाया कि सदस्य रूकमनबाई बहिन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं और वह रोजगार करने की इच्छुक है। उसे बकरीपालन का अनुभव भी है। इस तरह समूह के सभी सदस्यों ने मिलकर तेजस्वनी की मदद से एक माइक्रोफिनेन्स एजेन्सी को 80 हजार रूपये के लोन के लिए आवेदन किया, जिसमें से 20 हजार रूपये रूकमनबाई के शामिल थे। एजेन्सी ने शीघ्र ही कार्यवाही कर के समूह को फायनेन्स कर दिया। जिससे रूकमन बाई को 20 हजार रूपये आसानी से प्राप्त हो गए। रूकमनी बाई ने कहीं से अतिरिक्त 20 हजार रूपये की व्यवस्था करके कुल 40 हजार रूपये में 10 नग बकरी खरीदी जिनके बच्चे भी साथ थे।
रूकमनी बाई ने इनका भरण-पोषण प्रारंभ किया। इन सब कामों में उनके पति ने भी पूरा सहयोग दिया। बकरियों का दूध बेचकर हुई आय से रूकमनी बाई सही समय पर फाइनेन्स कम्पनी की किश्त जमा करती रहीं । अब लगभग 8 महीने हो चुके हैं। बकरियों के बच्चे बड़ें हो गये हैं और उनकी वर्तमान कीमत लगभग 40 हजार है। बकरियां भी सभी सुरक्षित हैं। एजेन्सी की किश्त भी पूरी जमा होने वाली है। इस तरह उनकी आय 1 वर्ष के पूर्व दोगुनी हो गई है और वह अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रही हैं।
यह कहानी है बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शहर पन्ना के धाम मोहल्ला में रहने वाली एक महिला की, जिसके पति ने विवाह के महज 3 साल बाद ही अपने से अलग कर दिया था। इनका नाम है धनवंतरी शर्मा। धनवंतरी के परिवार में माता-पिता, तीन भाई और दो बहने थी। उनका परिवार आर्थिक तंगी के बीच जैसे-तैसे अपना गुजारा करता था। बडे भाई और बहन की शादी के बाद धनवंतरी शादी उत्तर प्रदेश में हुई। शादी के कुछ सालों बाद ही इस गरीब को उसके पति ने बेसहारा छोड दिया। वह आकर मायके में रहने लगी। उसका एक छोटा बेटा भी था। कुछ ही समय पर उसके पिता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद जेसे किस्मत उससे रूठ ही गयी। एक साल के अन्दर माॅं और तीनों भाईयों का भी देहांत हो गया। अब धनवंतरी और उसके बच्चे का कोई सहारा न रहा। उसने अपने गुजर-बसर के लिए सिलाई-बुनाई करना, स्वेटर बुनना जैसे छोटे-मोटे काम शुरू किए। फिर एक दिन धनवंतरी की मुलाकात शहरी विकास अभिकरण पन्ना के सहायक परियोजना अधिकारी से हुई। उन्होंने धनवंतरी को स्व-सहायता समूह बनाने की सलाह दी। धनवंतरी के प्रयासों से 20 महिलाओं ने एकत्र होकर समूह बनाया। प्रारंभ में इन्होंने 50-50 रूपये एकत्र किए। इसके बाद शहरी विकास अभिकरण द्वारा शहरी स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत 20 हजार रूपये रिवाॅल्विंग फंड की राशि इस स्व-सहायता समूह को प्रदान की गयी। समूह की महिलाएं अब आपस में लेनदेन कर एक-दूसरे की जरूरत पडने पर मदद करने लगीं। बैंक में खाता भी खोल लिया गया।
जब धनवंतरी द्वारा बनाया गया यह समूह ठीक ढंग से स्थापित हो गया तब शहरी विकास अभिकरण द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण इन महिलाओं को दिया गया। यह धनवंतरी ने भी लिया। प्रशिक्षण लेने के बाद धनवंतरी को बैंक से 50 हजार रूपये का ऋण दिलाया गया। प्रारंभ में धनवंतरी ऋण लेने का जौखिम उठाने से डर रही थी। शहरी विकास अभिकरण द्वारा दिलाए गए भरोसे पर उसका संबल बंधा। अब वह अगरबत्ती बनाकर बेंचने लगी। इससे हुई आय से उसने 2 साल के अन्दर ही पूरा लोन चुका दिया। अब उसने 50 अन्य महिलाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया और उन्हें भी स्वरोजगार दिलाया। इसी दौरान शहरी विकास अभिकरण पन्ना द्वारा सुनिश्चित बाजार की व्यवस्था कर दी गयी। सागर के व्यापारी द्वारा धनवंतरी तथा उसके समूह को कच्चा माल दिया जाने लगा और तैयार माल वापस व्यापारी को दिया जाने लगा। धनवंतरी की मासिक आमदनी सब खर्चे निकालने के बाद लगभग 10,000 रूपये हो गयी है। समूह की अन्य महिलाएं भी घर के कामों के अलावा अगरबत्ती का व्यापार कर आत्मनिर्भर हो रही हैं। अगरबत्ती के व्यापार में जैसे बेसहारा धनवंतरी की तकदीर ही बदल दी। उनका खपरैल कच्चा मकान अब पक्का हो गया है। अब लोग उनसे उधार लेकर जाते हैं। ससुराल के लोगों का भी आना जाना शुरू हो गया है। धनवंतरी अब बेसहारा महिलाओं को सहारा देती हैं।
जब धनवंतरी द्वारा बनाया गया यह समूह ठीक ढंग से स्थापित हो गया तब शहरी विकास अभिकरण द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण इन महिलाओं को दिया गया। यह धनवंतरी ने भी लिया। प्रशिक्षण लेने के बाद धनवंतरी को बैंक से 50 हजार रूपये का ऋण दिलाया गया। प्रारंभ में धनवंतरी ऋण लेने का जौखिम उठाने से डर रही थी। शहरी विकास अभिकरण द्वारा दिलाए गए भरोसे पर उसका संबल बंधा। अब वह अगरबत्ती बनाकर बेंचने लगी। इससे हुई आय से उसने 2 साल के अन्दर ही पूरा लोन चुका दिया। अब उसने 50 अन्य महिलाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया और उन्हें भी स्वरोजगार दिलाया। इसी दौरान शहरी विकास अभिकरण पन्ना द्वारा सुनिश्चित बाजार की व्यवस्था कर दी गयी। सागर के व्यापारी द्वारा धनवंतरी तथा उसके समूह को कच्चा माल दिया जाने लगा और तैयार माल वापस व्यापारी को दिया जाने लगा। धनवंतरी की मासिक आमदनी सब खर्चे निकालने के बाद लगभग 10,000 रूपये हो गयी है। समूह की अन्य महिलाएं भी घर के कामों के अलावा अगरबत्ती का व्यापार कर आत्मनिर्भर हो रही हैं। अगरबत्ती के व्यापार में जैसे बेसहारा धनवंतरी की तकदीर ही बदल दी। उनका खपरैल कच्चा मकान अब पक्का हो गया है। अब लोग उनसे उधार लेकर जाते हैं। ससुराल के लोगों का भी आना जाना शुरू हो गया है। धनवंतरी अब बेसहारा महिलाओं को सहारा देती हैं।
पन्ना जिले के सलेहा कलस्टर के ग्राम पल्हरी में श्रीमती कुसुम बाई कुशवाहा का गरीब परिवार जीवन यापन कर रहा था। इनकी आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी। गरीब होने के कारण इन्हें कोई ऋण नही देता था। स्वयं सिद्धा तेजस्विनी महिला संघ सलेहा द्वारा ग्राम पल्हरी में आराधना तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह बनाया गया। जिसमें श्रीमती कुसुम बाई को अध्यक्ष बनाया गया। कुसुम बाई समूह की बैठकों एवं फैडरेशन बैठकों में नियमित उपस्थित रही। तेजस्विनी समूह द्वारा कुसुम बाई को उद्यानिकी विभाग की जानकारी दी गयी और उद्यानिकी विभाग में उनका रजिस्ट्रेशन करवाया गया। अब कुसुम बाई ने समूह की बैठक में अपनी समस्या रखी। उसकी आर्थिक समस्या को सुनकर समूह ने माइक्रो फाइनेन्स एजेन्सी से 60,000 रूपये का लोन लिया। जिसमें से 10,000 रूपये का ऋण कुसुम बाई को मिला। उसने 10,000 रूपये घर से मिलाये और उद्यानिकी विभाग से कम रेट में अच्छी पैदावार वाला सब्जी का बीज खरीदा। अब वह सब्जी का धन्धा करने लगी। सब्जी की पैदावार को वह खुद अपने घर में बेंचती और उनके पति गांव-गांव जाकर विक्रय करते हैं। प्रतिदिन 150-200 रूपये की आमदनी हो जाती है। वर्षभर में प्याज से लगभग 50,000 रूपये की आमदनी दैनिक आमदनी के अतिरिक्त होती है। जिससे आज कुसुम दीदी और उनका परिवार खुशहाली से जीवन व्यतीत करने लगा है। कुसुम दीदी ने अपने समूह के साथ-साथ एक नये समूह का गठन किया है। जिसकी वे नियमित बैठकें करती हैं। आज कुसुम दीदी और उनका परिवार खुश है।
कल तक मैं एक शिक्षित बेरोजगार युवक था जहां-तहां काम की तलाश में भटक रहा था। एक दिन अचानक मेरे मित्र ने शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के संबंध में बताया। जानकारी पाकर मैं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम के कार्यालय पहुंचा। कार्यालय में मुझे योजना के संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी देकर मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का आवेदन भरवाया गया। मैं बी-फार्मा का डिप्लोमा किए हुए था इसलिए मुझे मेडिकल स्टोर खोलने की सलाह दी गयी। मैंने सहर्ष सलाह स्वीकार कर मेडिकल स्टोर खोलने के लिए कर्ज लेने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी। धीरज कुमार पिता धरमदास खंगार निवासी रानीगंज पन्ना के नाम से आवेदन कर दिया। आज मेरा कुमकुम टाकीज के पास हर्षिता मेडिकल स्टोर के नाम से दुकान स्थापित है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम द्वारा मुझे मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजनान्तर्गत भारतीय स्टेट बैंक से 2 लाख रूपये का ऋण दिलाया गया। इस ऋण से मैंने मेडिकल स्टोर स्थापित किया। कुछ ही दिनों बाद अन्त्यावसायी समिति द्वारा ऋण पर 60 हजार रूपये का अनुदान दिया गया। अनुदान मिल जाने से मेरे कर्ज का बोझ कम हो गया। जिससे मैं आसानी से कर्ज की किश्तें अदा करने लगा। अब मेरा मेडिकल स्टोर अच्छे से चलने लगा है। मैंने ऋण राशि किश्तों के रूप में पूरी जमा करा दी है। मैंने अपने सहयोग के लिए एक कर्मचारी रख लिया है। जिससे मुझे अपने व्यवसाय को बढाने का अवसर मिल रहा है। अब मुझे मेडिकल स्टोर संचालन में होने वाले व्यय की राशि निकालने के बाद माह में 15 से 20 हजार रूपये की कमाई हो जाती है। जिससे मेरे परिवार का भरण पोषण अच्छे से हो रहा है। उसमें थोडी बहुत बचत भी कर लेता हॅू जो भविष्य में काम आएगी। इस प्रकार मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से मैं दुकान का मालिक बन गया हॅू। न तो अब मेरे ऊपर कोई कर्ज है और न ही बेरोजगारी का दंश झेलना पडता है। मैं खुद मालिक बनकर दूसरे को रोजगार उपलब्ध करा रहा हॅू।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम द्वारा मुझे मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजनान्तर्गत भारतीय स्टेट बैंक से 2 लाख रूपये का ऋण दिलाया गया। इस ऋण से मैंने मेडिकल स्टोर स्थापित किया। कुछ ही दिनों बाद अन्त्यावसायी समिति द्वारा ऋण पर 60 हजार रूपये का अनुदान दिया गया। अनुदान मिल जाने से मेरे कर्ज का बोझ कम हो गया। जिससे मैं आसानी से कर्ज की किश्तें अदा करने लगा। अब मेरा मेडिकल स्टोर अच्छे से चलने लगा है। मैंने ऋण राशि किश्तों के रूप में पूरी जमा करा दी है। मैंने अपने सहयोग के लिए एक कर्मचारी रख लिया है। जिससे मुझे अपने व्यवसाय को बढाने का अवसर मिल रहा है। अब मुझे मेडिकल स्टोर संचालन में होने वाले व्यय की राशि निकालने के बाद माह में 15 से 20 हजार रूपये की कमाई हो जाती है। जिससे मेरे परिवार का भरण पोषण अच्छे से हो रहा है। उसमें थोडी बहुत बचत भी कर लेता हॅू जो भविष्य में काम आएगी। इस प्रकार मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से मैं दुकान का मालिक बन गया हॅू। न तो अब मेरे ऊपर कोई कर्ज है और न ही बेरोजगारी का दंश झेलना पडता है। मैं खुद मालिक बनकर दूसरे को रोजगार उपलब्ध करा रहा हॅू।
कहते हैं ईश्वर यदि किसी से कोई चीज छीनता है तो उसके बदले कोई विशेष चीज अवश्य देता है। दिव्यांगजनों के परिपेक्ष्य में यह तथ्य सर्वव्यापी है। जीवन की परेशानियों तथा उतार चढावों में जहां अच्छे अच्छों के हौंसले पस्त हो जाते हैं वही जन्म से ही 70 प्रतिशत अस्थिबाधित दिव्यांग श्री मुकेश कुमार वर्मा ने मिसाल कायम की है। श्री वर्मा पन्ना जिले की गुनौर जनपद के अन्तर्गत ग्राम सहिलवार के निवासी है। वह दिव्यांगतावश अन्य लोगों की भांति व्यवसाय करने में सक्षम न होने से पूर्णता बेरोजगार थे। अपनी छोटी-बडी सभी जरूरतों के लिए परिवार पर ही निर्भर थे। फिर एक दिन उन्हें मध्यप्रदेश शासन सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण द्वारा निःशक्तजनों के कल्याण के लिए संचालित योजनाओं की जानकारी मिली। जिनसे प्रेरित होकर श्री मुकेश ने दिव्यांग साथी श्रीमती सोनिया वर्मा से मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के अन्तर्गत आयोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन में विवाह किया।
जहां एक ओर इन योजनाओं की जानकारी से जीवन जीने का उनका हौंसला बढा, वही दूसरी ओर शासन की योजनाओं के माध्यम से उन्हें अपना जीवन साथी मिला। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अन्तर्गत इस दिव्यांग दम्पत्ति को 25 हजार रूपये एवं निःशक्तजन विवाह प्रोत्साहन योजना अन्तर्गत एक लाख रूपये की राशि से लाभान्वित किया गया। जीवन जीने के हौंसले, जीवन साथी का सहयोग और शासन द्वारा उपलब्ध कराई गयी सहायता राशि ने मुकेश के जीवन को आत्मनिर्भर बनाने की की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया। इन दोनों योजनाओं से मिली सहायता राशि से मुकेश ने खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग से वित्तीय सहायता प्राप्त कर अपने लिए एक आॅटो रिक्शा फायनेंस कराया। आज दिव्यांग मुकेश स्वयं का आॅटो चलाकर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इतना ही नही बचत की राशि से अपनी दिव्यांग पत्नि को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए मनिहारी की दुकान का व्यवसाय कराने की योजना बना रहे हैं।
श्री मुकेश कहते हैं दिव्यांगजनों के लिए शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं ने उनके जीवन को खुशियों से भर दिया है। दिव्यांग होने के बावजूद दूसरों पर आश्रित होने के वजाए दूसरों को आश्रय देने का अनुभव अपने आप में अद्वितीय है। अपनी इस फसलता के लिए शासन की ओर आभार प्रकट करते हुए उन्होंने अन्य दिव्यांगजनों को भी इन योजनाओं से लाभान्वित कराने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया है।
जहां एक ओर इन योजनाओं की जानकारी से जीवन जीने का उनका हौंसला बढा, वही दूसरी ओर शासन की योजनाओं के माध्यम से उन्हें अपना जीवन साथी मिला। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अन्तर्गत इस दिव्यांग दम्पत्ति को 25 हजार रूपये एवं निःशक्तजन विवाह प्रोत्साहन योजना अन्तर्गत एक लाख रूपये की राशि से लाभान्वित किया गया। जीवन जीने के हौंसले, जीवन साथी का सहयोग और शासन द्वारा उपलब्ध कराई गयी सहायता राशि ने मुकेश के जीवन को आत्मनिर्भर बनाने की की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया। इन दोनों योजनाओं से मिली सहायता राशि से मुकेश ने खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग से वित्तीय सहायता प्राप्त कर अपने लिए एक आॅटो रिक्शा फायनेंस कराया। आज दिव्यांग मुकेश स्वयं का आॅटो चलाकर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इतना ही नही बचत की राशि से अपनी दिव्यांग पत्नि को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए मनिहारी की दुकान का व्यवसाय कराने की योजना बना रहे हैं।
श्री मुकेश कहते हैं दिव्यांगजनों के लिए शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं ने उनके जीवन को खुशियों से भर दिया है। दिव्यांग होने के बावजूद दूसरों पर आश्रित होने के वजाए दूसरों को आश्रय देने का अनुभव अपने आप में अद्वितीय है। अपनी इस फसलता के लिए शासन की ओर आभार प्रकट करते हुए उन्होंने अन्य दिव्यांगजनों को भी इन योजनाओं से लाभान्वित कराने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया है।
पन्ना नगर मुख्यालय के आगरा मोहल्ला में मोहम्मद शाबिर राईन कबाड खरीदने एवं बेंचने का काम करते थे। इससे इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहने के कारण उन्होंने अन्य व्यवसाय स्थापित करने की मन में ठानी। उन्होंने सरकारी विभागों में सम्पर्क स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। एक दिन उनकी मुलाकात महाप्रबंधक उद्योग से हुई। चर्चा करने पर महाप्रबंधक द्वारा मोहम्मद शाबिर को सलाह दी गयी कि मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के तहत कबाड से संबंधित उद्योग स्थापित करें। इस उद्योग को स्थापित करने एवं उत्पादित माल के बाजार की पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद मोहम्मद शाबिर ने मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के अन्तर्गत अपना आवेदन जिला उद्योग केन्द्र में प्रस्तुत किया।
उद्योग कार्यालय में मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के 10 से अधिक आवेदन आने पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण में आवेदकों को संबंधित व्यवसाय/उद्योग के संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी। प्रशिक्षण में व्यवसाय/उद्योग की लागत, अनुदान, उत्पादित माल के बाजार की जानकारी विस्तारपूर्वक दी गयी। इसके उपरांत हितग्राहियों के प्रकरण वित्तीय सहायता के लिए बैंकों को प्रेषित किए गए। मोहम्मद शाबिर का प्रकरण केनरा बैंक को भेजा गया। केनरा बैंक द्वारा मोहम्मद शाबिर को 10 लाख रूपये का ऋण उपलब्ध कराया गया। इस ऋण से मोहम्मद शाबिर द्वारा पुराना पन्ना ग्राम पंचायत के ग्राम टपरियन में ओल्ड स्क्रिप मटेरियल उद्योग की स्थापना की गयी। उद्योग चालू हो जाने के उपरांत योजनान्तर्गत 1.57 लाख रूपये का अनुदान शासन द्वारा दिया गया है।
अपनी औद्योगिक इकाई के संबंध में जानकारी देते हुए मोहम्मद शाबिर ने बताया कि हम कबाड में प्राप्त होने वाले प्लास्टिक के इस मशीन के माध्यम से छोटे-छोटे टुकडे तैयार करते हैं। यह टुकडे प्लास्टिक उद्योग से संबंधित व्यापारी हम से खरीद ले जाते हैं। इस इकाई में 15 लोगों को नौकरी पर लगा रखा है। मजदूरी का भुगतान, बिजली, एवं अन्य खर्च काटकर मुझे 20 से 25 हजार रूपये माह की आमदनी हो जाती है। अनुदान की राशि मिलने से बैंक से प्राप्त वित्तीय सहायता न के बराबर ब्याज पर किश्तों पर अदा कर रहा हॅू। उनका कहना यह भी है कि हम अपने इस उद्योग की सफलता को देखते हुए इसी से जुडे अन्य उद्योग की इकाई स्थापित करना चाहते हैं। जिससे हम अपनी आय के साथ-साथ और लोगांे को भी रोजगार का अवसर उपलब्ध करा सकें।
उद्योग कार्यालय में मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के 10 से अधिक आवेदन आने पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण में आवेदकों को संबंधित व्यवसाय/उद्योग के संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी। प्रशिक्षण में व्यवसाय/उद्योग की लागत, अनुदान, उत्पादित माल के बाजार की जानकारी विस्तारपूर्वक दी गयी। इसके उपरांत हितग्राहियों के प्रकरण वित्तीय सहायता के लिए बैंकों को प्रेषित किए गए। मोहम्मद शाबिर का प्रकरण केनरा बैंक को भेजा गया। केनरा बैंक द्वारा मोहम्मद शाबिर को 10 लाख रूपये का ऋण उपलब्ध कराया गया। इस ऋण से मोहम्मद शाबिर द्वारा पुराना पन्ना ग्राम पंचायत के ग्राम टपरियन में ओल्ड स्क्रिप मटेरियल उद्योग की स्थापना की गयी। उद्योग चालू हो जाने के उपरांत योजनान्तर्गत 1.57 लाख रूपये का अनुदान शासन द्वारा दिया गया है।
अपनी औद्योगिक इकाई के संबंध में जानकारी देते हुए मोहम्मद शाबिर ने बताया कि हम कबाड में प्राप्त होने वाले प्लास्टिक के इस मशीन के माध्यम से छोटे-छोटे टुकडे तैयार करते हैं। यह टुकडे प्लास्टिक उद्योग से संबंधित व्यापारी हम से खरीद ले जाते हैं। इस इकाई में 15 लोगों को नौकरी पर लगा रखा है। मजदूरी का भुगतान, बिजली, एवं अन्य खर्च काटकर मुझे 20 से 25 हजार रूपये माह की आमदनी हो जाती है। अनुदान की राशि मिलने से बैंक से प्राप्त वित्तीय सहायता न के बराबर ब्याज पर किश्तों पर अदा कर रहा हॅू। उनका कहना यह भी है कि हम अपने इस उद्योग की सफलता को देखते हुए इसी से जुडे अन्य उद्योग की इकाई स्थापित करना चाहते हैं। जिससे हम अपनी आय के साथ-साथ और लोगांे को भी रोजगार का अवसर उपलब्ध करा सकें।
पन्ना बेनीसागर मोहल्ला के निवासी श्री देवेन्द्र प्रजापति के माता-पिता अपना परम्परागत कार्य करते थे। जिससे परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था। देवेन्द्र ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने एवं स्वयं का सम्मानजनक व्यवसाय प्रारंभ करने की ठानी। देवेन्द्र ने यहां-वहां काम की तलाश शुरू की मगर उन्हें मनचाही सफलता नहीं मिली। काम की तलाश के दौरान उन्हें मुख्यमंत्री आर्थिक विकास योजना के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई। फिर क्या था उन्होंने अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति के अधिकारियों से सम्पर्क किया। सम्पर्क करने पर उन्हें योजना के बारे में जानकारी विस्तारपूर्वक समझायी गयी। इसके बाद उन्होंने अधिकारियों की सलाह अनुसार शासन की कल्याणकारी योजना मुख्यमंत्री आर्थिक विकास के अन्तर्गत ऋण प्राप्त कर रोजगार स्थापित करने के लिए आवेदन कर दिया।
अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति ने देवेन्द्र प्रजापति को योजनान्तर्गत पात्र हितग्राही होने के फलस्वरूप चयन कर ऋण अनुशंसा के साथ केनरा बैंक को आवेदन प्रेषित किया। योजना के अनुसार देवेन्द्र को एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण पर 30 प्रतिशत का अनुदान प्राप्त हुआ। ऋण मिलने के उपरांत देवेन्द्र ने अपना रेडीमेड वस्त्र तैयार करने की इकाई स्थापित कर ली। उनकी यह इकाई सफलतापूर्वक संचालित हो रही है। इनके द्वारा तैयार किए गए वस्त्र रेडीमेड दुकानदारों के यहां प्रदाय किए जाते हैं। इस व्यवसाय से देवेन्द्र प्रजापति के परिवार की आर्थिक हालत में सुधार हो गया है। योजना के कारण अब देवेन्द्र अपने हुनर से सफल व्यवसायी बन गए हैं। इनके इस व्यवसाय से जहां एक ओर आर्थिक स्थिति सुधरी है वही समाज में उनकी प्रतिष्ठा बन गयी है। देवेन्द्र का परिवार कहता है कि शासन की इस योजना ने हमारा जीवन ही बदल दिया है।
अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति ने देवेन्द्र प्रजापति को योजनान्तर्गत पात्र हितग्राही होने के फलस्वरूप चयन कर ऋण अनुशंसा के साथ केनरा बैंक को आवेदन प्रेषित किया। योजना के अनुसार देवेन्द्र को एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण पर 30 प्रतिशत का अनुदान प्राप्त हुआ। ऋण मिलने के उपरांत देवेन्द्र ने अपना रेडीमेड वस्त्र तैयार करने की इकाई स्थापित कर ली। उनकी यह इकाई सफलतापूर्वक संचालित हो रही है। इनके द्वारा तैयार किए गए वस्त्र रेडीमेड दुकानदारों के यहां प्रदाय किए जाते हैं। इस व्यवसाय से देवेन्द्र प्रजापति के परिवार की आर्थिक हालत में सुधार हो गया है। योजना के कारण अब देवेन्द्र अपने हुनर से सफल व्यवसायी बन गए हैं। इनके इस व्यवसाय से जहां एक ओर आर्थिक स्थिति सुधरी है वही समाज में उनकी प्रतिष्ठा बन गयी है। देवेन्द्र का परिवार कहता है कि शासन की इस योजना ने हमारा जीवन ही बदल दिया है।
रोजगार की तलाश में यहां वहां भटकने वाले शिक्षित बेरोजगार कुलदीप बागरी को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना रोजगार के लिए वरदान साबित हुई है। उन्होंने बताया कि कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद मैं नौकरी की तलाश में भटक रहा था। परिवार की माली हालत ठीक न होने के कारण मैं दूसरों के प्रतिष्ठानों में मजदूरी करता था। जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी इतनी आमदनी नही होती थी, जिससे परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो सके। इसी कठिनाई के दौर में मुझे शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की जानकारी प्राप्त हुई। मुझे पता चला की कक्षा 5वीं पास व्यक्ति को 50 हजार से 10 लाख रूपये तक का ऋण दिया जाता है। इस ऋण राशि में शासन द्वारा अनुदान की 30 प्रतिशत अधिकतम 2 लाख रूपये तक अनुदान देने का प्रावधान है।
कुलदीप को योजना की जानकारी होते ही उसने अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति में सम्पर्क किया। वहां के अधिकारी द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का आवेदन कराया गया। आवेदन की समीक्षा करने के उपरांत भारतीय स्टेट बैंक शाखा पवई को भेजा गया। बैंक द्वारा आवश्यक जांच के बाद योजना के अनुसार अनुदान राशि सहित 7 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। कुलदीप द्वारा प्राप्त ऋण राशि से बेल्डिंग वर्कशाॅप की स्थापना की गयी। उसने अपने इस प्रतिष्ठान में अन्य लोगों को मजदूरी पर लगाकर काम प्रारंभ किया। वर्तमान में उसका बेल्डिंग वर्कशाॅप सफलतापूर्वक चल रहा है। इस वर्कशाॅप में सभी तरह के भुगतान एवं ऋण की किश्त जमा करने के उपरांत 15 से 18 हजार रूपये तक की मासिक बचत हो रही है। जिससे उसके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है। कुलदीप का कहना है कि यह योजना अनुसूचित जाति वर्ग के बेरोजगारों के लिए वरदान है।
कुलदीप को योजना की जानकारी होते ही उसने अन्त्यावसायी सहकारी विकास समिति में सम्पर्क किया। वहां के अधिकारी द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का आवेदन कराया गया। आवेदन की समीक्षा करने के उपरांत भारतीय स्टेट बैंक शाखा पवई को भेजा गया। बैंक द्वारा आवश्यक जांच के बाद योजना के अनुसार अनुदान राशि सहित 7 लाख रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। कुलदीप द्वारा प्राप्त ऋण राशि से बेल्डिंग वर्कशाॅप की स्थापना की गयी। उसने अपने इस प्रतिष्ठान में अन्य लोगों को मजदूरी पर लगाकर काम प्रारंभ किया। वर्तमान में उसका बेल्डिंग वर्कशाॅप सफलतापूर्वक चल रहा है। इस वर्कशाॅप में सभी तरह के भुगतान एवं ऋण की किश्त जमा करने के उपरांत 15 से 18 हजार रूपये तक की मासिक बचत हो रही है। जिससे उसके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है। कुलदीप का कहना है कि यह योजना अनुसूचित जाति वर्ग के बेरोजगारों के लिए वरदान है।
सफलता की कहानी कृषक की जुबानी-
किसान अपनी पूरी लगन और मेहनत से फसल उगाता है। वह न केवल अपना और अपने परिवार का बल्कि दूसरों के लिए भी इसी समर्पित भाव से अन्न उत्पादित करता है। इसलिए किसान भाईयों को अन्नदाता कहा जाता है। मौसमी उतार चढाव के बीच वह ईश्वर से केवल अपनी फसल सुरक्षित और अच्छी रखने की प्रार्थना करता है। क्योंकि इसी से उसका और उसके परिवार का जीवन यापन तथा उनके सपने जुडे होते हैं। किसानों को बीज, खाद, पानी, कीटनाशक आदि समय पर मिल जाते हैं तो उनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती है। और ऐसे में जब उनकी फसल का उचित दाम और बाजार भाव के उतार चढाव से सुरक्षा मिल जाए तो किसानों को संबल मिलता है। यही लहर भावांतर की राशि मिलने के बाद किसानों के चेहरों में देखने को मिल रही है। बुन्देलखण्ड के पिछडे जिले पन्ना में सूखा प्रभावित होने के कारण यहां एक ओर किसानों की फसल खराब होने से उत्पादन कम हो गया वही दूसरी ओर बाजार तथा मंडियों में भाव गिर जाने के कारण किसानों पर दोहरी मार पड रही है। ऐसे में भावांतर भुगतान योजना इन कृषकों के लिए वरदान साबित हुई है। इस योजना से किसानों को आर्थिक संबल मिला है।
राज्य सरकार खेती को लाभ का धन्धा बनाने के लिए निरंतर काम कर रही है। इसी कडी में फसलों के बाजार भाव के उतार चढाव से सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री जी द्वारा नई पहल करते हुए मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना लागू की गयी है। इस संबंध में उप संचालक कृषि रविन्द्र मोदी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि प्राथमिक साख सहकारी समितियों में 11 सितंबर 2017 से 15 अक्टूबर 2017 तक जिले से 13998 कृषकों ने इस योजना के अन्तर्गत पंजीयन कराया। बाद में पंजीयन अवधि बढने पर 15 नवंबर से 25 नवंबर तक और किसान भाईयों द्वारा पंजीयन कराया गया। उन्होंने बताया कि 16 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2017 तक फसल विक्रय किए जाने पर राज्य शासन द्वारा विहित प्रक्रिया अपनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा घोषित मंडियों की माॅडल विक्रय दर के अन्तर की राशि का भुगतान जिले के 494 किसान भाईयों को कर दिया गया है। इन किसान भाईयों को भावांतर की राशि एक करोड 7 लाख 91 हजार 590 रूपये का भुगतान उनके खाते में किया गया है। जिले में औसतन प्रति कृषक 21845 रूपये की भावांतर राशि का लाभ प्राप्त हुआ है।
इनका कहना है:- पन्ना जिले के पवई विकासखण्ड के कृषक श्री गोरेलाल पटेल ने बताया कि उन्होंने भावांतर योजना अन्तर्गत 25.59 क्विंटल उडद पवई मंडी में बेंची थी। जिसका भाव 2550 रूपये प्रति क्विंटल मिला था। व्यापारी से केवल 72905 रूपये मिले थे। जिसके बाद मैं और परिवार निराश हो गया था। फिर एक दिन उप संचालक कृषि कार्यालय से मेरे मोबाईल नम्बर पर सूचना दी गयी की मेरे बैंक खाते में भावांतर की राशि 68616 रूपये खाते में होल्ड लगा होने के कारण जमा नही हो पा रहे हैं। अतः मुझे बैंक जाकर खाता चालू कराना होगा। यह सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। मैंने कभी नही सोचा था कि सरकार भावांतर भुगतान में सहायता के रूप में 68 हजार रूपये देगी। पहले सूखा राहत में 5 से 10 हजार रूपये मिलते थे जो पर्याप्त नही थे। श्री गोरेलाल पटेल बताते हैं कि 68 हजार रूपये मिलने से अब वे रबी की फसल के लिए उर्वरक एवं पौध संरक्षण दवा की व्यवस्था कर पाएंगे और उन्हें फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा। उन्होंने बताया कि यह राशि प्राप्त होने से उनके पूरे परिवार में खुशी का माहौल है और वे सरकार को धन्यबाद ज्ञापित करते हैं।
इसी प्रकार जिले के पन्ना विकासखण्ड के ग्राम मुराछ के किसान श्री सूरज सिंह 80640 रूपये तथा गुनौर विकासखण्ड के ग्राम हिनौतीभेड के कृषक श्री रामशिरोमणि पटेल 60096 रूपये की भावांतर की राशि खाते में जमा होने से अत्यंत खुश हैं। श्री रामशिरोमणि पटेल ने बताया कि इस योजना के अन्तर्गत पंजीयन कराने के बाद मैं बहुत चिंतित था। कुछ लोग इस योजना के संबंध में गलत जानकारी दे रहे थे कि सरकार व्यापारियों को लाभ दे रही है किसानों को कोई राशि नही मिलेगी। आज जब राशि मेरे खाते में पहुंच गयी है तब मुझे यकीन हो गया है कि शासन द्वारा चलाई जा रही भावांतर योजना किसानों के हित में है। उन्होंने प्रसन्न होकर शासन तथा मुख्यमंत्री जी को आभार व्यक्त किया है।
राज्य सरकार खेती को लाभ का धन्धा बनाने के लिए निरंतर काम कर रही है। इसी कडी में फसलों के बाजार भाव के उतार चढाव से सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री जी द्वारा नई पहल करते हुए मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना लागू की गयी है। इस संबंध में उप संचालक कृषि रविन्द्र मोदी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि प्राथमिक साख सहकारी समितियों में 11 सितंबर 2017 से 15 अक्टूबर 2017 तक जिले से 13998 कृषकों ने इस योजना के अन्तर्गत पंजीयन कराया। बाद में पंजीयन अवधि बढने पर 15 नवंबर से 25 नवंबर तक और किसान भाईयों द्वारा पंजीयन कराया गया। उन्होंने बताया कि 16 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2017 तक फसल विक्रय किए जाने पर राज्य शासन द्वारा विहित प्रक्रिया अपनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा घोषित मंडियों की माॅडल विक्रय दर के अन्तर की राशि का भुगतान जिले के 494 किसान भाईयों को कर दिया गया है। इन किसान भाईयों को भावांतर की राशि एक करोड 7 लाख 91 हजार 590 रूपये का भुगतान उनके खाते में किया गया है। जिले में औसतन प्रति कृषक 21845 रूपये की भावांतर राशि का लाभ प्राप्त हुआ है।
इनका कहना है:- पन्ना जिले के पवई विकासखण्ड के कृषक श्री गोरेलाल पटेल ने बताया कि उन्होंने भावांतर योजना अन्तर्गत 25.59 क्विंटल उडद पवई मंडी में बेंची थी। जिसका भाव 2550 रूपये प्रति क्विंटल मिला था। व्यापारी से केवल 72905 रूपये मिले थे। जिसके बाद मैं और परिवार निराश हो गया था। फिर एक दिन उप संचालक कृषि कार्यालय से मेरे मोबाईल नम्बर पर सूचना दी गयी की मेरे बैंक खाते में भावांतर की राशि 68616 रूपये खाते में होल्ड लगा होने के कारण जमा नही हो पा रहे हैं। अतः मुझे बैंक जाकर खाता चालू कराना होगा। यह सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। मैंने कभी नही सोचा था कि सरकार भावांतर भुगतान में सहायता के रूप में 68 हजार रूपये देगी। पहले सूखा राहत में 5 से 10 हजार रूपये मिलते थे जो पर्याप्त नही थे। श्री गोरेलाल पटेल बताते हैं कि 68 हजार रूपये मिलने से अब वे रबी की फसल के लिए उर्वरक एवं पौध संरक्षण दवा की व्यवस्था कर पाएंगे और उन्हें फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा। उन्होंने बताया कि यह राशि प्राप्त होने से उनके पूरे परिवार में खुशी का माहौल है और वे सरकार को धन्यबाद ज्ञापित करते हैं।
इसी प्रकार जिले के पन्ना विकासखण्ड के ग्राम मुराछ के किसान श्री सूरज सिंह 80640 रूपये तथा गुनौर विकासखण्ड के ग्राम हिनौतीभेड के कृषक श्री रामशिरोमणि पटेल 60096 रूपये की भावांतर की राशि खाते में जमा होने से अत्यंत खुश हैं। श्री रामशिरोमणि पटेल ने बताया कि इस योजना के अन्तर्गत पंजीयन कराने के बाद मैं बहुत चिंतित था। कुछ लोग इस योजना के संबंध में गलत जानकारी दे रहे थे कि सरकार व्यापारियों को लाभ दे रही है किसानों को कोई राशि नही मिलेगी। आज जब राशि मेरे खाते में पहुंच गयी है तब मुझे यकीन हो गया है कि शासन द्वारा चलाई जा रही भावांतर योजना किसानों के हित में है। उन्होंने प्रसन्न होकर शासन तथा मुख्यमंत्री जी को आभार व्यक्त किया है।
सौरभ नामदेव बने पूरी तरह आत्मनिर्भर
स्थानीय धाम मोहल्ले में निवासी करने वाले सौरभ नामदेव शिक्षित बेरोजगार थे। परिवार और मित्रों से सहयोग प्राप्त कर छोटी सी रेडीमेट कपडों की छोटी सी दुकान प्रारंभ की थी। दुकान पंचम सिंह चैराहे पर होने के कारण चल रही थी। मगर पूंजी न होने के कारण अपनी दुकान को बढा नही पा रहे थे। उनको लोगों द्वारा बताया गया कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण लेकर इस दुकान को बडे रूप में स्थापित किया जा सकता है।
यह बात जानकर सौरभ ने नगरपालिका परिषद पन्ना में सम्पर्क स्थापित किया। वहां से उन्हें योजना की सम्पूर्ण जानकारी एवं आवेदन फार्म उपलब्ध कराया गया। सौरभ द्वारा हंसीखुशी आवेदन की प्रक्रिया पूरी कर नगरपालिका में अपना आवेदन प्रस्तुत किया। नगरपालिका की समिति द्वारा आवेदन का परीक्षण कर आवेदन को अनुशंसा के साथ स्टेट बैंक पन्ना ऋण देने के लिए भेज दिया। बैंक द्वारा आवेदन में दी गयी जानकारी का सत्यापन कराने के उपरांत सौरभ को एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर दिया। यह ऋण सौरभ को 2 किश्तों में दिया गया। सौरभ ने ऋण प्राप्त होने पर दुकान की साजसज्जा करने के साथ साथ दुकान बडे रूप मंे संचालित कर दी। जिससे दुकान की बिक्री तेजी से चल पडी। सौरभ ने बताया कि शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में मुझे एक लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ है। इस ऋण राशि मंे 30 प्रतिशत का अनुदान शासन द्वारा दिया जा रहा है।
दुकान के संबंध में सौरभ ने बताया कि पहले मेरी दुकान बहुत छोटी थी जिसके कारण मुझे प्रतिदिन थोक व्यापारियों के यहां से माल लाकर बेंचना पडता था। उस समय मेरी दुकान में कम प्रकार के ही कपडे उपलब्ध होते थे जिससे कई बार खरीददार मंदपसंद कपडे न मिलने के कारण फिर आने की बात कहकर चला जाता था। जब से मुझे शासन द्वारा ऋण उपलब्ध कराया गया है तब से ग्राहक वापस नही जाते। अब मेरी दुकान में सभी तरह के वस्त्र उपलब्ध हैं। जिससे मैं ग्राहक को अनेक तरह का माल दिखाकर खुश कर लेता हूॅ। आने वाला हर ग्राहक दुकान से कुछ न कुछ लेकर जाता है। अब में इस दुकान से लगभग 18 से 22 हजार रूपये तक कमा लेता हॅू। इससे मैं 4 हजार रूपये दुकान का किराया और 2200 रूपये बैंक ऋण की किश्त अदा करता हॅू। इसके बाद बचने वाले 10 से 12 हजार रूपये की राशि से मेरे परिवार का भरण पोषण आराम से हो जाता है। इसमें भी भविष्य के लिए थोडा बहुत पैसा बचा लेता हूॅं। सौरभ का कहना है कि बेरोजगारों को रोजगार के लिए यहां वहां भटकने की जरूरत नही है। नौकरी न मिलने पर शासन की विभिन्न स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेना चाहिए। उनका तो कहना है कि सभी को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ लेना चाहिए। इस योेजना में व्यवसाय का प्रशिक्षण एवं ऋण के साथ अनुदान मिलता है जिससे ऋण पटाने में कठिनाई नही होती।
स्थानीय धाम मोहल्ले में निवासी करने वाले सौरभ नामदेव शिक्षित बेरोजगार थे। परिवार और मित्रों से सहयोग प्राप्त कर छोटी सी रेडीमेट कपडों की छोटी सी दुकान प्रारंभ की थी। दुकान पंचम सिंह चैराहे पर होने के कारण चल रही थी। मगर पूंजी न होने के कारण अपनी दुकान को बढा नही पा रहे थे। उनको लोगों द्वारा बताया गया कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण लेकर इस दुकान को बडे रूप में स्थापित किया जा सकता है।
यह बात जानकर सौरभ ने नगरपालिका परिषद पन्ना में सम्पर्क स्थापित किया। वहां से उन्हें योजना की सम्पूर्ण जानकारी एवं आवेदन फार्म उपलब्ध कराया गया। सौरभ द्वारा हंसीखुशी आवेदन की प्रक्रिया पूरी कर नगरपालिका में अपना आवेदन प्रस्तुत किया। नगरपालिका की समिति द्वारा आवेदन का परीक्षण कर आवेदन को अनुशंसा के साथ स्टेट बैंक पन्ना ऋण देने के लिए भेज दिया। बैंक द्वारा आवेदन में दी गयी जानकारी का सत्यापन कराने के उपरांत सौरभ को एक लाख रूपये का ऋण स्वीकृत कर दिया। यह ऋण सौरभ को 2 किश्तों में दिया गया। सौरभ ने ऋण प्राप्त होने पर दुकान की साजसज्जा करने के साथ साथ दुकान बडे रूप मंे संचालित कर दी। जिससे दुकान की बिक्री तेजी से चल पडी। सौरभ ने बताया कि शासन की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में मुझे एक लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ है। इस ऋण राशि मंे 30 प्रतिशत का अनुदान शासन द्वारा दिया जा रहा है।
दुकान के संबंध में सौरभ ने बताया कि पहले मेरी दुकान बहुत छोटी थी जिसके कारण मुझे प्रतिदिन थोक व्यापारियों के यहां से माल लाकर बेंचना पडता था। उस समय मेरी दुकान में कम प्रकार के ही कपडे उपलब्ध होते थे जिससे कई बार खरीददार मंदपसंद कपडे न मिलने के कारण फिर आने की बात कहकर चला जाता था। जब से मुझे शासन द्वारा ऋण उपलब्ध कराया गया है तब से ग्राहक वापस नही जाते। अब मेरी दुकान में सभी तरह के वस्त्र उपलब्ध हैं। जिससे मैं ग्राहक को अनेक तरह का माल दिखाकर खुश कर लेता हूॅ। आने वाला हर ग्राहक दुकान से कुछ न कुछ लेकर जाता है। अब में इस दुकान से लगभग 18 से 22 हजार रूपये तक कमा लेता हॅू। इससे मैं 4 हजार रूपये दुकान का किराया और 2200 रूपये बैंक ऋण की किश्त अदा करता हॅू। इसके बाद बचने वाले 10 से 12 हजार रूपये की राशि से मेरे परिवार का भरण पोषण आराम से हो जाता है। इसमें भी भविष्य के लिए थोडा बहुत पैसा बचा लेता हूॅं। सौरभ का कहना है कि बेरोजगारों को रोजगार के लिए यहां वहां भटकने की जरूरत नही है। नौकरी न मिलने पर शासन की विभिन्न स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेना चाहिए। उनका तो कहना है कि सभी को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ लेना चाहिए। इस योेजना में व्यवसाय का प्रशिक्षण एवं ऋण के साथ अनुदान मिलता है जिससे ऋण पटाने में कठिनाई नही होती।
कृषक सूरज सिंह को मिली 80 हजार रूपये की भावांतर राशि-
कृषक सूरज सिंह ग्राम मुराछ जिला पन्ना के निवासी हैं। इन दिनों इनके परिवार में खुशी का माहौल है और शासन पर इनका भरोसा बढ गया है। इसकी वजह है भावांतर योजना के अन्तर्गत प्राप्त हुई 80 हजार रूपये की भावांतर की राशि। सूरज सिंह बताते हैं कि इनके पास कुल 9 हेक्टेयर सिंचित रकवा है। जिसमें यह खरीफ में मूंग एवं उडद की खेती करते थे। फसलों में पीला रोग एवं विभिन्न तरह के कीट व्याधि के कारण उत्पादन कम होता था। वैज्ञानिक तरीका मालूम नही होने से खेती में घाटा लगता था जिससे खेती में मेरी रूचि कम हो रही थी। फिर इन्होंने कृषि विभाग द्वारा कृषकों के लिए आयोजित संगोष्ठियों एवं भ्रमण कार्यक्रमों में खेती के वैज्ञानिक तरीकों के संबंध में प्रशिक्षण प्राप्त किया। विभाग द्वारा अन्य प्रगतिशील किसानों के खेती के वैज्ञानिक तरीकों से भ्रमण कार्यक्रम द्वारा अवगत कराया गया। वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हुए इस वर्ष खरीफ 2017 में उडद की फसल बोई थी जिसमें करीब 36 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हुआ।
कृषक सूरज सिंह ने शासन की भावांतर योजना के अन्तर्गत अपना पंजीयन कराया और निकटतम कृषि उपज मंडी नागौद जिला सतना में 33.60 क्विंटल उडद फसल 2335 रूपये की दर से विक्रय की। जिससे कुल 78456 रूपये की राशि प्राप्त हुई। इस राशि से फसल की लागत तो निकल आयी लेकिन घर खर्च के लिए राशि नही बचने से मैं बहुत चिंतित था। तभी मेरे मोबाइल नम्बर पर कृषि विभाग एवं मण्डी सचिव पन्ना ने सूचना दी कि मेरे बैंक खाते में भावांतर भुगतान योजना के 80640 रूपये जमा हो गए हैं। तो यह सुनकर मेरे आश्चर्य एवं खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने कभी नही सोचा था कि सरकार भावांतर भुगतान में सहायता के रूप में 80 हजार रूपये देगी। पहले खेती में घाटे से मेरी रूचि कम हो रही थी लेकिन फसल का उचित दाम मिलने एवं भावांतर की राशि प्राप्त होने से यह भाव अब बदल गया है। जिससे खेती मेरे लिए घाटे का व्यवसाय न होकर अब लाभ का व्यवसाय हो गया है। जिससे मैं और भी उत्साह और भरोसे के साथ खेती कर सकूंगा। श्री सूरज सिंह ने बताया कि 80 हजार रूपये मिलने से अब वह रबी फसल के लिए बीज, उरर्वक एवं पौध संरक्षण दवा की व्यवस्था कर पाएंगे। जिससे रबी की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा।
कृषक सूरज सिंह ग्राम मुराछ जिला पन्ना के निवासी हैं। इन दिनों इनके परिवार में खुशी का माहौल है और शासन पर इनका भरोसा बढ गया है। इसकी वजह है भावांतर योजना के अन्तर्गत प्राप्त हुई 80 हजार रूपये की भावांतर की राशि। सूरज सिंह बताते हैं कि इनके पास कुल 9 हेक्टेयर सिंचित रकवा है। जिसमें यह खरीफ में मूंग एवं उडद की खेती करते थे। फसलों में पीला रोग एवं विभिन्न तरह के कीट व्याधि के कारण उत्पादन कम होता था। वैज्ञानिक तरीका मालूम नही होने से खेती में घाटा लगता था जिससे खेती में मेरी रूचि कम हो रही थी। फिर इन्होंने कृषि विभाग द्वारा कृषकों के लिए आयोजित संगोष्ठियों एवं भ्रमण कार्यक्रमों में खेती के वैज्ञानिक तरीकों के संबंध में प्रशिक्षण प्राप्त किया। विभाग द्वारा अन्य प्रगतिशील किसानों के खेती के वैज्ञानिक तरीकों से भ्रमण कार्यक्रम द्वारा अवगत कराया गया। वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हुए इस वर्ष खरीफ 2017 में उडद की फसल बोई थी जिसमें करीब 36 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हुआ।
कृषक सूरज सिंह ने शासन की भावांतर योजना के अन्तर्गत अपना पंजीयन कराया और निकटतम कृषि उपज मंडी नागौद जिला सतना में 33.60 क्विंटल उडद फसल 2335 रूपये की दर से विक्रय की। जिससे कुल 78456 रूपये की राशि प्राप्त हुई। इस राशि से फसल की लागत तो निकल आयी लेकिन घर खर्च के लिए राशि नही बचने से मैं बहुत चिंतित था। तभी मेरे मोबाइल नम्बर पर कृषि विभाग एवं मण्डी सचिव पन्ना ने सूचना दी कि मेरे बैंक खाते में भावांतर भुगतान योजना के 80640 रूपये जमा हो गए हैं। तो यह सुनकर मेरे आश्चर्य एवं खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने कभी नही सोचा था कि सरकार भावांतर भुगतान में सहायता के रूप में 80 हजार रूपये देगी। पहले खेती में घाटे से मेरी रूचि कम हो रही थी लेकिन फसल का उचित दाम मिलने एवं भावांतर की राशि प्राप्त होने से यह भाव अब बदल गया है। जिससे खेती मेरे लिए घाटे का व्यवसाय न होकर अब लाभ का व्यवसाय हो गया है। जिससे मैं और भी उत्साह और भरोसे के साथ खेती कर सकूंगा। श्री सूरज सिंह ने बताया कि 80 हजार रूपये मिलने से अब वह रबी फसल के लिए बीज, उरर्वक एवं पौध संरक्षण दवा की व्यवस्था कर पाएंगे। जिससे रबी की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा।
हम सभी लोग कहते है कि बेटी पढी हो तो तीन परिवारों को शिक्षित बना देती है। इस बात को चरित्रार्थ किया है पन्ना नगर की श्रीमती नूतन मिश्रा ने। वे हुनरमंद थी, उन्होंने अपना हुनर अपने मायके से ससुराल वालों तक और अपने बच्चों को भी सिखा दिया है। इनके हुनर को आगे बढाने और उद्योगपति बनाने में शासन के प्रधानमंत्री रोजगारसृजन कार्यक्रम ने सहयोग दिया। आज वे उद्योगपति बन गयी है। उन्होंने अपने इस उद्योग में 5 अन्य लोगों को रोजगार दे रखा है। इनके उद्योग के उत्पाद लोगों की रसोई घर तक पहुंचकर भोजन का जायका बढा रहे हैं।
यह एक महिला स्वाबलम्बन की कहानी है। श्रीमती नूतन मिश्रा बनारस के देवलिया उत्तर प्रदेश की निवासी है। इन्होंने संस्कृत भाषा से आचार्य (एम.ए.) तक की पढाई की। इनके माता-पिता के परिवार में पापड बनाने का काम होता था। नूतन भी परिवार के साथ पापड बनाने का काम सीख गयी। उनका विवाह पन्ना के श्री विनय मिश्रा के साथ हुआ। विनय भी पढे-लिखे व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी पत्नी के हुनर को जीवन यापन का साधन बनाने की मन में ठानी। उन्होंने शासन के विभिन्न विभागों एवं बैंकों से सम्पर्क स्थापित किया। उन्हें उद्योग एवं व्यापार केन्द्र पन्ना से जानकारी प्राप्त हुई कि प्रधानमंत्री स्वरोजगार सृजन कार्यक्रम के अन्तर्गत पापड निर्माण की इकाई स्थापित करने के लिए ऋण एवं अनुदान प्राप्त हो सकता है। श्री मिश्रा ने कार्यालय से आवेदन फार्म प्राप्त कर आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन कर दिया। इनके आवेदन की समीक्षा जिला स्तरीय समिति द्वारा की गयी। समिति ने आवेदन को बैंक भेज दिया। बैंक से इन्हें पापड निर्माण इकाई स्थापित करने के लिए 15 लाख रूपये का ऋण दिया गया। वही शासन की ओर से 2 लाख 75 हजार रूपये का अनुदान प्राप्त हुआ।
इस राशि से उन्होंने नूतन गृह उद्योग स्थापित कर पापड का उत्पादन प्रारंभ कर दिया। इनके द्वारा उत्पादित नूतन पापड जिले के ग्रामीण अंचलों में विक्रय किए जाते हैं। इनके द्वारा चना, उडद, मूंग एवं चावल के पापड बनाए जा रहे हैं। पापड विक्रय से इन्हें अभी प्रति माह 35 से 40 हजार रूपये प्राप्त होते हैं। इस राशि से 15 हजार रूपये प्रति माह बैंक ऋण की किश्त चुकाने के बाद अभी मुनाफे रूप में 10 हजार रूपये बच पाते हैं। उन्होंने बताया कि अभी हम पर्याप्त उत्पाद नही कर पा रहे हैं। आगामी आने वाले समय में हमारा उत्पादन बढ जाएगा। जिससे हम 20 से 25 हजार रूपये तक प्रति माह मुनाफा कमा सकेंगे। इस राशि से हमारे परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण होने के उपरांत 10 से 15 हजार रूपये आराम से बचत कर लेंगे।
यह एक महिला स्वाबलम्बन की कहानी है। श्रीमती नूतन मिश्रा बनारस के देवलिया उत्तर प्रदेश की निवासी है। इन्होंने संस्कृत भाषा से आचार्य (एम.ए.) तक की पढाई की। इनके माता-पिता के परिवार में पापड बनाने का काम होता था। नूतन भी परिवार के साथ पापड बनाने का काम सीख गयी। उनका विवाह पन्ना के श्री विनय मिश्रा के साथ हुआ। विनय भी पढे-लिखे व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी पत्नी के हुनर को जीवन यापन का साधन बनाने की मन में ठानी। उन्होंने शासन के विभिन्न विभागों एवं बैंकों से सम्पर्क स्थापित किया। उन्हें उद्योग एवं व्यापार केन्द्र पन्ना से जानकारी प्राप्त हुई कि प्रधानमंत्री स्वरोजगार सृजन कार्यक्रम के अन्तर्गत पापड निर्माण की इकाई स्थापित करने के लिए ऋण एवं अनुदान प्राप्त हो सकता है। श्री मिश्रा ने कार्यालय से आवेदन फार्म प्राप्त कर आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन कर दिया। इनके आवेदन की समीक्षा जिला स्तरीय समिति द्वारा की गयी। समिति ने आवेदन को बैंक भेज दिया। बैंक से इन्हें पापड निर्माण इकाई स्थापित करने के लिए 15 लाख रूपये का ऋण दिया गया। वही शासन की ओर से 2 लाख 75 हजार रूपये का अनुदान प्राप्त हुआ।
इस राशि से उन्होंने नूतन गृह उद्योग स्थापित कर पापड का उत्पादन प्रारंभ कर दिया। इनके द्वारा उत्पादित नूतन पापड जिले के ग्रामीण अंचलों में विक्रय किए जाते हैं। इनके द्वारा चना, उडद, मूंग एवं चावल के पापड बनाए जा रहे हैं। पापड विक्रय से इन्हें अभी प्रति माह 35 से 40 हजार रूपये प्राप्त होते हैं। इस राशि से 15 हजार रूपये प्रति माह बैंक ऋण की किश्त चुकाने के बाद अभी मुनाफे रूप में 10 हजार रूपये बच पाते हैं। उन्होंने बताया कि अभी हम पर्याप्त उत्पाद नही कर पा रहे हैं। आगामी आने वाले समय में हमारा उत्पादन बढ जाएगा। जिससे हम 20 से 25 हजार रूपये तक प्रति माह मुनाफा कमा सकेंगे। इस राशि से हमारे परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण होने के उपरांत 10 से 15 हजार रूपये आराम से बचत कर लेंगे।
पन्ना नगर मुख्यालय से लगे ग्राम जनकपुर निवासी श्री अंशुल श्रीवास्तव ने अपनी शिक्षा दीक्षा पूरी कर काम की तलाश शुरू की। उन्हें स्थानीय मेडिकल व्यवसायी द्वारा एमआर का काम दिलाया गया। इस नौकरी की आय से उनके परिवार का गुजारा ठीक से नही हो पाता था। तब उन्होंने अपने स्वयं का रोजगार स्थापित करने की ठानी। उन्होंने स्थानीय उद्योग कार्यालय में सम्पर्क कर प्रधानमंत्री रोजगारसृजन कार्यक्रम के अन्तर्गत आवेदन दिया। उनका आवेदन जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा के साथ बैंक भेजा गया। इसके बाद उन्हें बैंक से डिटरजेंट इकाई स्थापित करने के लिए 10 लाख रूपये का ऋण दिया गया। इससे उन्होंने ग्राम जनकपुर में डिटरजेंट इकाई स्थापित कर उत्पादन प्रारंभ कर दिया। इस इकाई से उत्पादित माल को बेंचकर वे महीने में 20 से 30 हजार रूपये की बचत कर रहे हैं।
इस इकाई के मालिक श्री अंशुल ने बताया कि अभी हमने नई-नई इकाई स्थापित कर उत्पादन शुरू किया है, 40 से 45 क्विंटल का उत्पादन कर लेते हैं। हमें कच्चे माल के बाजार की सही जानकारी न होने के कारण कच्चा माल थोडा महंगा मिला था। अब हमें इस व्यवसाय के संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त हो गयी है। अब हम इसी से जुडे हुए अन्य उत्पाद जैसे हार्पिक, फिनाइल, कोलीन आदि का उत्पादन भी शुरू कर रहे हैं। हमारे द्वारा उत्पादित माल स्थानीय बाजार में आसानी से बिक जाता है। अब हम अपने माल को पडोसी जिलों में विक्रय के लिए पहुंचा रहे हैं। जिससे हमारी आय दुगनी हो जाएगी। हमने अपने व्यवसाय को ठीक से चलाने और बाजार में पकड बनाने के लिए 10 कर्मचारी लगा रखे हैं। हमें शासन द्वारा 10 लाख रूपये का ऋण एवं 3 लाख रूपये का अनुदान दिया गया था। हम डिटरजेंट के विक्रय से ही 12 हजार रूपये बैंक की किश्त एवं मजदूरी का भुगतान करते हैं। आगामी आने वाले समय में अपने उत्पादन को बढाकर पडोसी जिलांे तक व्यापार को फैला देंगे। जिससे हमें महीने के 50 हजार रूपये तक की बचत हो सकती है। उनका कहना है कि शिक्षित बेरोजगारों को इसी तरह शासन की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेकर स्वयं को आर्थिक रूप से स्वाबलम्बी बनाना चाहिए। रोजगार की तलाश में यहां-वहां भटककर समय बर्वाद करने से कोई लाभ नही है।
इस इकाई के मालिक श्री अंशुल ने बताया कि अभी हमने नई-नई इकाई स्थापित कर उत्पादन शुरू किया है, 40 से 45 क्विंटल का उत्पादन कर लेते हैं। हमें कच्चे माल के बाजार की सही जानकारी न होने के कारण कच्चा माल थोडा महंगा मिला था। अब हमें इस व्यवसाय के संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त हो गयी है। अब हम इसी से जुडे हुए अन्य उत्पाद जैसे हार्पिक, फिनाइल, कोलीन आदि का उत्पादन भी शुरू कर रहे हैं। हमारे द्वारा उत्पादित माल स्थानीय बाजार में आसानी से बिक जाता है। अब हम अपने माल को पडोसी जिलों में विक्रय के लिए पहुंचा रहे हैं। जिससे हमारी आय दुगनी हो जाएगी। हमने अपने व्यवसाय को ठीक से चलाने और बाजार में पकड बनाने के लिए 10 कर्मचारी लगा रखे हैं। हमें शासन द्वारा 10 लाख रूपये का ऋण एवं 3 लाख रूपये का अनुदान दिया गया था। हम डिटरजेंट के विक्रय से ही 12 हजार रूपये बैंक की किश्त एवं मजदूरी का भुगतान करते हैं। आगामी आने वाले समय में अपने उत्पादन को बढाकर पडोसी जिलांे तक व्यापार को फैला देंगे। जिससे हमें महीने के 50 हजार रूपये तक की बचत हो सकती है। उनका कहना है कि शिक्षित बेरोजगारों को इसी तरह शासन की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेकर स्वयं को आर्थिक रूप से स्वाबलम्बी बनाना चाहिए। रोजगार की तलाश में यहां-वहां भटककर समय बर्वाद करने से कोई लाभ नही है।
पन्ना जिले की महिलाओं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने में तेजस्विनी कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत् स्वयंसिद्धा तेजस्विनी महिला संघ सलेहा द्वारा क्लस्टर पटना तमोली के ग्राम नयागांव में बने शिवांगी तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह की सदस्य हैं रानू चैरसिया। समूह के सदस्य शुरुआत में बचत बैठकें आयोजित कर आंतरिक लेनदेन पर चर्चा की करते हैं । ऐसी ही चर्चा के दौरान एक दिन समूह की बैठक में इन्ही सदस्यों में से श्रीमती रानू चैरसिया ने अपने परिवार की गरीबी की स्थिति सभी सदस्यों के सामने व्यक्त की और बताया कि मैं अपने परिवार को इस स्थिति से मुक्त करना चाहती हंूॅं। अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देना चाहती हूॅं। इसके बाद इन्होंने ब्यूटी पार्लर के काम को प्रारंभ करने के लिये संघमित्रा के सहयोग से समूह से 10 हजार रूपये की मांग की, जिसकी सहमति सभी सदस्यों ने दी और दस हजार का लोन मंजूर हो गया। इसके बाद रानू चैरसिया ने ग्राम सलेहा में अपना ब्यूटी पार्लर का काम छोटे रुप में प्रारंभ किया । शुरूआती दौर में कम से कम दिन में 100/रु से लेकर 200/रु. तक कमा लेती थी। अब इनका यह काम अच्छी प्रगति पर है, जिससे इन्हें लगभग 300 से 500 रूपये की आमदनी प्रतिदिन होती है। यह काम आज इनके परिवार की आय का प्रमुख साधन बन गया है। रानू चैरसिया अब भी अपने समूह की बचत मीटिंग में नियमित उपस्थित रहती हैं। अपने सभी समूह सदस्यों को समय पर मीटिंग के लिये हमेशा एकत्र कर के रखती हैं। खुशी से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं । अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करने के साथ अपने पति को भी ग्राम सलेहा में अपनी रोजाना आमदनी की बदौलत चाय-पान की दुकान खुलवा दी है । जिससे इनके परिवार की दैनिक आय में वृद्धि हुई है। आय बढने से इनके बच्चे आसानी से पढाई कर स्वयं का एवं परिवार के जीवन स्तर को सुधारने के लिए प्रयासरत हंै।
आर.बी.एस.के. योजना से खिल उठे बच्चों के चेहरे- जिले के गुनौर ब्लाक ग्राम जमरी के निवासी अनिल विश्वकर्मा के घर मे जब उनके पुत्र का जन्म हुआ तो घर मे खुशी की लहर थी। पर बच्चे का होठ जन्म से ही कटा हुआ था, जिसको लेकर पूरा परिवार हमेशा चिंतित रहता था। इनका परिवार इतना सम्पन्न नही था कि बच्चे का ईलाज स्वयं के खर्च पर करा सके। लेकिन आर.बी.एस.के. टीम के भ्रमण के दौरान इस बच्चे का परीक्षण किया गया तो जन्मजात बच्चे विकृति से चिन्हित कर जिला चिकित्सालय रैफर किया गया। जहाॅ बच्चे का आर.बी.एस.के. योजना के अंतर्गत पूर्णतः निःशुल्क आपरेशन भोपाल के बड़े अस्पताल मे कराया गया। बच्चे के परिजन को आने-जाने एवं ठहरने का खर्च भी सरकार ने ही उठाया। इस तरह बच्चे का सफल आपरेशन हुआ। आज बच्चा सभी सामान्य बच्चो जैसा दिखता है। यह सब देख कर परिवार के सभी लोग शासन की योजना, आर.बी.एस.के.टीम मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ.एल.के.तिवारी, डाॅ.प्रदीप गुप्ता एवं आर.बी.एस.के. समन्वयक डाॅ.सुबोघ खम्परिया को आत्मीय धन्यवाद दे रहे है। इस तरह की कहानी एक नही बहुत सी है। जिसमे आर.बी.एस.के. योजना के अंतर्गत अब तक लगभग 40 से 50 आपरेशन पूर्णतः निःशुल्क कराये जा चुके है। आर.बी.एस.के. योजना के कारण ही पन्ना जिले को वर्ष 2016-17 मे कटे-फटे होठ एवं तालू मुक्त घोषित किया जा चुका है।
खुद के साथ औरांे की भी तकदीर बदल दी- खुद के लिए तो दुनिया में सभी लोग काम करते है। मगर कुछ ऐसे भी लोग होते है जो अपने साथ दूसरों का भला करने के लिए भी काम करते है। ऐसे ही एक नौजवान है सूर्यभान पटेल जिन्होंने खुद के साथ दूसरों की तकदीर बदल दी।
पन्ना जिले की गुनौर जनपद पंचायत के ग्राम रिछौडा निवासी सूर्यभान पटेल ने पुणे के सिंबायोसिस काॅलेज से बी.काम करने के उपरांत मुम्बई के एस.पी.जी.ई.एन.काॅलेज से एम.बी.ए. मार्केटिंग एवं रिटेल की पढाई पूरी की। पढ़ाई पूरी कर वह गांव लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके स्कूल सहपाठी शिक्षित बेरोजगार हैं। अपने सहपाठियों को बेरोजगार देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने उद्योग स्थापित कर खुद को आर्थिक रूप से स्वालम्बी बनाने और मित्रों को रोजगार देने की ठानी। जिसके बाद उन्होेने विभिन्न विभागों से सम्पर्क स्थापित कर जानकारी हासिल करना प्रारंभ कर दिया। इस दौरान उनकी मुलाकात प्रबंधक खादी तथा ग्रामोद्योग विभाग से हुयी। उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगारसृजन कार्यक्रम की जानकारी दी। फिर क्या था सूर्यभान पटेल ने योजना से संबंधित आवेदन पत्र प्राप्त कर आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन कार्यालय में जमा कर दिया। विभागीय समिति द्वारा समीक्षा करने के उपरांत प्रकरण को भारतीय स्टेट बैंक शाखा गुनौर भेज दिया गया। सूर्यभान ने बैंक से सम्पर्क स्थापित कर बैंक को आवश्यक जानकारी उपलब्ध करायी । बैंक ने संतुष्ट होते हुये सूर्य भान पटेल को शासन की योजना अनुसार 25 लाख रूपये का ऋण फैक्ट्री स्थापित करने के लिए दिया । इस ऋण राशि पर शासन द्वारा 8 लाख 75 हजार रूपये का अनुदान दिया गया है।
सूर्यभान पटेल ने प्राप्त ऋण राशि से फैक्ट्री स्थापित कर ब्रेड, पाव, टोस्ट, क्रीम रोल, कुकीज आदि का उत्पादन प्रारंभ कर दिया। इस काम में उन्होंने 25 व्यक्तियों को अपने यहा काम पर रख कर रोजगार दिया। इनके द्वारा उत्पादित माल के सप्लाई आर्डर पन्ना जिले के अलावा पडोसी जिले छतरपुर, दमोह, कटनी, सागर आदि से भी प्राप्त होने लगे हैं। सूर्यभान स्वयं एम.बी.ए. थे। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव की मदद से क्वालिटी प्रोड्क्ट के सेम्पल और मार्केटिंग से बाजार में अपना सिक्का जमा लिया। वे अपने यहा काम करने वाले लोगों को अच्छा वेतन देते है और स्वयं भी अच्छा लाभ कमा रहे है। अब वे सफलता पूर्वक अपने उद्योग व्यवसाय चलाने के साथ बैंक ऋण की किश्त चुकाने के साथ लाभ अर्जित कर रहे है। इस प्रकार छोटे से ग्राम में उद्योग लगा कर सूर्यभान ने खुद के साथ दूसरे लोगों की तकदीर बदल दी।
पन्ना जिले की गुनौर जनपद पंचायत के ग्राम रिछौडा निवासी सूर्यभान पटेल ने पुणे के सिंबायोसिस काॅलेज से बी.काम करने के उपरांत मुम्बई के एस.पी.जी.ई.एन.काॅलेज से एम.बी.ए. मार्केटिंग एवं रिटेल की पढाई पूरी की। पढ़ाई पूरी कर वह गांव लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके स्कूल सहपाठी शिक्षित बेरोजगार हैं। अपने सहपाठियों को बेरोजगार देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने उद्योग स्थापित कर खुद को आर्थिक रूप से स्वालम्बी बनाने और मित्रों को रोजगार देने की ठानी। जिसके बाद उन्होेने विभिन्न विभागों से सम्पर्क स्थापित कर जानकारी हासिल करना प्रारंभ कर दिया। इस दौरान उनकी मुलाकात प्रबंधक खादी तथा ग्रामोद्योग विभाग से हुयी। उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगारसृजन कार्यक्रम की जानकारी दी। फिर क्या था सूर्यभान पटेल ने योजना से संबंधित आवेदन पत्र प्राप्त कर आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन कार्यालय में जमा कर दिया। विभागीय समिति द्वारा समीक्षा करने के उपरांत प्रकरण को भारतीय स्टेट बैंक शाखा गुनौर भेज दिया गया। सूर्यभान ने बैंक से सम्पर्क स्थापित कर बैंक को आवश्यक जानकारी उपलब्ध करायी । बैंक ने संतुष्ट होते हुये सूर्य भान पटेल को शासन की योजना अनुसार 25 लाख रूपये का ऋण फैक्ट्री स्थापित करने के लिए दिया । इस ऋण राशि पर शासन द्वारा 8 लाख 75 हजार रूपये का अनुदान दिया गया है।
सूर्यभान पटेल ने प्राप्त ऋण राशि से फैक्ट्री स्थापित कर ब्रेड, पाव, टोस्ट, क्रीम रोल, कुकीज आदि का उत्पादन प्रारंभ कर दिया। इस काम में उन्होंने 25 व्यक्तियों को अपने यहा काम पर रख कर रोजगार दिया। इनके द्वारा उत्पादित माल के सप्लाई आर्डर पन्ना जिले के अलावा पडोसी जिले छतरपुर, दमोह, कटनी, सागर आदि से भी प्राप्त होने लगे हैं। सूर्यभान स्वयं एम.बी.ए. थे। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव की मदद से क्वालिटी प्रोड्क्ट के सेम्पल और मार्केटिंग से बाजार में अपना सिक्का जमा लिया। वे अपने यहा काम करने वाले लोगों को अच्छा वेतन देते है और स्वयं भी अच्छा लाभ कमा रहे है। अब वे सफलता पूर्वक अपने उद्योग व्यवसाय चलाने के साथ बैंक ऋण की किश्त चुकाने के साथ लाभ अर्जित कर रहे है। इस प्रकार छोटे से ग्राम में उद्योग लगा कर सूर्यभान ने खुद के साथ दूसरे लोगों की तकदीर बदल दी।
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना से संभव हुआ उपचार-
ग्राम कमताना तह.अमानगंज जिला पन्ना के निवासी श्री ज्ञानेन्द्र प्रजापति जिनका पुत्र हर्ष प्रजापति वर्तमान मे उम्र 4 वर्ष जन्म से ही श्रवण बाधित था। जब बच्चा एक से दो वर्ष का था तब माता-पिता को एहसास हुआ की बच्चे की सुनने की क्षमता जन्म से ही नहीं है। बहुत जगह झाड़-फूॅक कराने के बाद जब कई डाॅक्टरो के चक्कर लगाये तो डाॅक्टरो द्वारा बताया गया कि बच्चे का आॅपरेशन से उपचार हो सकता है। जिसका खर्च 6 से 7 लाख आएगा। उपचार का इतना ज्यादा खर्च सुनकर परिवार ने उपचार की सभी उम्मीदे छोड़ दी थी। लेकिन आर.बी.एस.के. (राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम) टीम के भ्रमण के समय जब बच्चे का परीक्षण किया गया तो बच्चा श्रवण बाधित जन्मजात विकृति से चिन्हित किया गया। जिसके बाद हर्ष को जिला चिकित्सालय रैफर किया गया। जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण कर बच्चे को मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अंतर्गत चिन्हित कर प्रकरण क्षेत्रीय संचालक कार्यालय सागर भेजा गया। सागर से स्वीकृति मिलने पर शासन द्वारा चिन्हित दिव्य एडवांश क्लीनिक भोपाल मे बच्चे का आॅपरेशन अप्रैल 2017 मे कराया गया।
आज बच्चे की रेगुलर स्पीच थेरेपी चल रही है और आज की स्थिति मे बच्चा पूर्णतः सामान्य बच्चो की तरह सुन रहा है। स्पीच थेरपी के माध्यम से हर्ष अब बोलना भी सीख रहा है। आज जब हर्ष अपने घर मे माॅ को माॅ एवं पिता को पापा कह कर पुकारता है तो माता-पिता की आॅखो मे खुशी के आॅसू आ जाते है और बार-बार आर.बी.एस.के.टीम मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ.एल.के.तिवारी, डाॅ.प्रदीप गुप्ता आर.बी.एस.के. समन्वयक डाॅ.सुबोघ खम्परिया एवं मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना को धन्यवाद देते है। साथ ही अपील भी करते है कि सरकार ऐसी कल्याणकारी योजना चलाती रहे जिससे की हम जैसे गरीब परिवार के लोग जो आॅपरेशन का खर्च नही उठा सकते है वो शासन के सहयोग से आॅपरेशन कराकर बच्चे को नवीन जीवन प्रदाय करंे। पन्ना जिले मे इस तरह के 6 बच्चांे का आॅपरेशन मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अंतर्गत कराया जा चुका है और यह बच्चे धीरे-धीरे बोलना ओर सुनना सीख रहे हंै।
ग्राम कमताना तह.अमानगंज जिला पन्ना के निवासी श्री ज्ञानेन्द्र प्रजापति जिनका पुत्र हर्ष प्रजापति वर्तमान मे उम्र 4 वर्ष जन्म से ही श्रवण बाधित था। जब बच्चा एक से दो वर्ष का था तब माता-पिता को एहसास हुआ की बच्चे की सुनने की क्षमता जन्म से ही नहीं है। बहुत जगह झाड़-फूॅक कराने के बाद जब कई डाॅक्टरो के चक्कर लगाये तो डाॅक्टरो द्वारा बताया गया कि बच्चे का आॅपरेशन से उपचार हो सकता है। जिसका खर्च 6 से 7 लाख आएगा। उपचार का इतना ज्यादा खर्च सुनकर परिवार ने उपचार की सभी उम्मीदे छोड़ दी थी। लेकिन आर.बी.एस.के. (राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम) टीम के भ्रमण के समय जब बच्चे का परीक्षण किया गया तो बच्चा श्रवण बाधित जन्मजात विकृति से चिन्हित किया गया। जिसके बाद हर्ष को जिला चिकित्सालय रैफर किया गया। जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण कर बच्चे को मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अंतर्गत चिन्हित कर प्रकरण क्षेत्रीय संचालक कार्यालय सागर भेजा गया। सागर से स्वीकृति मिलने पर शासन द्वारा चिन्हित दिव्य एडवांश क्लीनिक भोपाल मे बच्चे का आॅपरेशन अप्रैल 2017 मे कराया गया।
आज बच्चे की रेगुलर स्पीच थेरेपी चल रही है और आज की स्थिति मे बच्चा पूर्णतः सामान्य बच्चो की तरह सुन रहा है। स्पीच थेरपी के माध्यम से हर्ष अब बोलना भी सीख रहा है। आज जब हर्ष अपने घर मे माॅ को माॅ एवं पिता को पापा कह कर पुकारता है तो माता-पिता की आॅखो मे खुशी के आॅसू आ जाते है और बार-बार आर.बी.एस.के.टीम मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ.एल.के.तिवारी, डाॅ.प्रदीप गुप्ता आर.बी.एस.के. समन्वयक डाॅ.सुबोघ खम्परिया एवं मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना को धन्यवाद देते है। साथ ही अपील भी करते है कि सरकार ऐसी कल्याणकारी योजना चलाती रहे जिससे की हम जैसे गरीब परिवार के लोग जो आॅपरेशन का खर्च नही उठा सकते है वो शासन के सहयोग से आॅपरेशन कराकर बच्चे को नवीन जीवन प्रदाय करंे। पन्ना जिले मे इस तरह के 6 बच्चांे का आॅपरेशन मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के अंतर्गत कराया जा चुका है और यह बच्चे धीरे-धीरे बोलना ओर सुनना सीख रहे हंै।
प्रतिमाह अच्छी आय के अलावा गोपाल पुरूस्कार मिला- पन्ना नगर के टिकुरिया मोहल्ला निवासी विवेक खरे पिता श्री जनार्दन खरे जिनके पास मात्र 02 देषी गाय थी। इन गायों का दुग्ध स्वयं के परिवार में उपयोग करते थे। उनकी गायों से बहुत कम दूध होता था। जिसके चलते वे उन्नत नश्ल की गाय पालनाा चाहते थे। उन्होने इसके लिए पशुपालन विभाग के अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित किया । उनको विभाग के अधिकारियों द्वारा आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनातर्गत स्थापित डेयरी इकाई के बारे में जानकारी दी गई। विवके खरे द्वारा योजनांतर्गत डेरी इकाई स्थापना हेतु 05 देषी गाय (गिर/साहीवाल) का ऋण आवेदन विभाग के माध्यम किया गया । विभाग द्वारा परीक्षण उपरांत आवेदन इलाहाबाद बैंक शाखा पन्ना भेजा गया। बेैंक द्वारा श्री खरे को डेयरी इकाई स्थापना के लिये 243750/रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। ऋण राशी पर 60950/रूपये शासकीय अनुदान दिया गया।
श्री खरे द्वारा देषी गिर नस्ल की 05 गायें राजस्थान से खरीदी गई। उनके द्वारा गायों से प्रतिदिन लगभग 50 लीटर दुग्ध का उत्पादन किया जाकर रू0 50/- प्रति लीटर की दर से पन्ना नगर में विक्रय किया जा रहा है। जिससे श्री खरे को प्रतिदिन समस्त खर्च उपरांत लगभग रू0 1500/- प्रतिदिन की आय प्राप्त हो रही है। श्री खरे द्वारा अजोला घास उत्पादन किया जा रहा है। इससे पशुओं को पर्याप्त मात्रा में संतुलित पशुआहार एवं प्रोटीन मिलता है साथ ही गायों के गोवर से गोवर गैस प्लांट भी लगाया गया है। जिसकी गैस का उपयोग कार्य करने वाले श्रमिकों द्वारा किया जा रहा है।
इसी वित्तीय वर्ष में गोपाल पुरस्कार योजनांतर्गत विकासखण्ड एवं जिला स्तर पर श्री खरे की गाय ने दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके फलस्वरूप श्री खरे रू0 60000/- का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। श्री खरे स्थापित डेयरी इकाई से प्रतिमाह लगभग 45000 से 50000/- तक का लाभ प्राप्त कर रहे है। इनके द्वारा अपनी डेयरी में दो अन्य लोगों रोजगार भी उपलब्ध करा रहे है। श्री खरे पशुपालन विभाग के आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनातर्गत डेयरी इकाई से खुष होकर दूसरों से उसका गुणगान कर रहे है।
श्री खरे द्वारा देषी गिर नस्ल की 05 गायें राजस्थान से खरीदी गई। उनके द्वारा गायों से प्रतिदिन लगभग 50 लीटर दुग्ध का उत्पादन किया जाकर रू0 50/- प्रति लीटर की दर से पन्ना नगर में विक्रय किया जा रहा है। जिससे श्री खरे को प्रतिदिन समस्त खर्च उपरांत लगभग रू0 1500/- प्रतिदिन की आय प्राप्त हो रही है। श्री खरे द्वारा अजोला घास उत्पादन किया जा रहा है। इससे पशुओं को पर्याप्त मात्रा में संतुलित पशुआहार एवं प्रोटीन मिलता है साथ ही गायों के गोवर से गोवर गैस प्लांट भी लगाया गया है। जिसकी गैस का उपयोग कार्य करने वाले श्रमिकों द्वारा किया जा रहा है।
इसी वित्तीय वर्ष में गोपाल पुरस्कार योजनांतर्गत विकासखण्ड एवं जिला स्तर पर श्री खरे की गाय ने दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके फलस्वरूप श्री खरे रू0 60000/- का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। श्री खरे स्थापित डेयरी इकाई से प्रतिमाह लगभग 45000 से 50000/- तक का लाभ प्राप्त कर रहे है। इनके द्वारा अपनी डेयरी में दो अन्य लोगों रोजगार भी उपलब्ध करा रहे है। श्री खरे पशुपालन विभाग के आचार्य विद्यासागर गौसंवर्धन योजनातर्गत डेयरी इकाई से खुष होकर दूसरों से उसका गुणगान कर रहे है।
खुद ज्यादा पढ नही पाए पर बच्चों को दिलाएंगे उच्च शिक्षा-
नगर के बेनीसागर मोहल्ला में निवास करने वाले श्यामलाल प्रजापति अपने परम्परागत व्यवसाय से परिवार का भरण पोषण करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बच्चों को उच्च शिक्षा दिला नही सके। उनका बडा बेटा संजय परिवार के आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नगर की इलेक्ट्रानिक दुकान पर काम करने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने इलेक्ट्रानिक काम सीख लिया। उनके पास इतना पैसा नही था कि वे स्वयं की दुकान खोल सकें और न ही वो अधिक पढे लिखे थे। मजदूरी कर घर परिवार का मजबूरी के साथ भरण पोषण हो पा रहा था। इसी दौरान उन्हें मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी मिली। फिर क्या था उन्होंने योजना का लाभ लेने के लिए जिला अन्त्यावसायी सहकारी कार्यालय में सम्पर्क स्थापित कर स्वरोजगार स्थापित करने के लिए आवेदन कर दिया।
जिला अन्त्यावसायी सहकारी कार्यालय में गठित समिति द्वारा संजय के आवेदन का परीक्षण करने के उपरांत इनका आवेदन केनरा बैंक को ऋण देने के लिए प्रेषित किया। केनरा बैंक द्वारा मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना के अन्तर्गत इलेक्ट्रानिक की दुकान खोलने के लिए संजय को ऋण प्रदान कर दिया। इस ऋण में शासन के नियमानुसार 30 हजार रूपये की अनुदान राशि भी संजय को दी गयी। इस राशि से संजय ने बल्देव मंदिर के पास नगरपालिका परिषद द्वारा निर्मित दुकान किराए से लेकर इलेक्ट्रानिक दुकान खोल ली। अब वे इलेक्ट्रानिक उपकरणों की मरम्मत करने के साथ छोटे इलेक्ट्रानिक समान बेचते हैं। उनकी दुकान अब अच्छी तरह चलने लगी है और उन्हें पर्याप्त काम मिल जाता है। सामान्य समय में भी वे प्रतिमाह 10 से 12 हजार रूपये प्रति माह कमा लेते हैं। जिससे उनका परिवार अच्छे से चलने लगा है। उनके परिवार की माली हालत भी अब सुधरने लगी है। उनका कहना है कि आगामी आने वाले समय में इस दुकान से 15 से 20 हजार रूपये तक कमा लूंगा। सहयोग के लिए एक आदमी भी दुकान में रख लेंगे। संजय बताते हैं कि मैं शासन की इस योजना से खुश हूॅं। गरीबी के कारण मैं खुद तो उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर सका मगर मैं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाऊंगा। जिससे वे अच्छी नौकरी या और अच्छा व्यवसाय कर सकें।
नगर के बेनीसागर मोहल्ला में निवास करने वाले श्यामलाल प्रजापति अपने परम्परागत व्यवसाय से परिवार का भरण पोषण करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बच्चों को उच्च शिक्षा दिला नही सके। उनका बडा बेटा संजय परिवार के आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नगर की इलेक्ट्रानिक दुकान पर काम करने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने इलेक्ट्रानिक काम सीख लिया। उनके पास इतना पैसा नही था कि वे स्वयं की दुकान खोल सकें और न ही वो अधिक पढे लिखे थे। मजदूरी कर घर परिवार का मजबूरी के साथ भरण पोषण हो पा रहा था। इसी दौरान उन्हें मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी मिली। फिर क्या था उन्होंने योजना का लाभ लेने के लिए जिला अन्त्यावसायी सहकारी कार्यालय में सम्पर्क स्थापित कर स्वरोजगार स्थापित करने के लिए आवेदन कर दिया।
जिला अन्त्यावसायी सहकारी कार्यालय में गठित समिति द्वारा संजय के आवेदन का परीक्षण करने के उपरांत इनका आवेदन केनरा बैंक को ऋण देने के लिए प्रेषित किया। केनरा बैंक द्वारा मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना के अन्तर्गत इलेक्ट्रानिक की दुकान खोलने के लिए संजय को ऋण प्रदान कर दिया। इस ऋण में शासन के नियमानुसार 30 हजार रूपये की अनुदान राशि भी संजय को दी गयी। इस राशि से संजय ने बल्देव मंदिर के पास नगरपालिका परिषद द्वारा निर्मित दुकान किराए से लेकर इलेक्ट्रानिक दुकान खोल ली। अब वे इलेक्ट्रानिक उपकरणों की मरम्मत करने के साथ छोटे इलेक्ट्रानिक समान बेचते हैं। उनकी दुकान अब अच्छी तरह चलने लगी है और उन्हें पर्याप्त काम मिल जाता है। सामान्य समय में भी वे प्रतिमाह 10 से 12 हजार रूपये प्रति माह कमा लेते हैं। जिससे उनका परिवार अच्छे से चलने लगा है। उनके परिवार की माली हालत भी अब सुधरने लगी है। उनका कहना है कि आगामी आने वाले समय में इस दुकान से 15 से 20 हजार रूपये तक कमा लूंगा। सहयोग के लिए एक आदमी भी दुकान में रख लेंगे। संजय बताते हैं कि मैं शासन की इस योजना से खुश हूॅं। गरीबी के कारण मैं खुद तो उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर सका मगर मैं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाऊंगा। जिससे वे अच्छी नौकरी या और अच्छा व्यवसाय कर सकें।
वर्तमान समय में महिलाएं भी पढ-लिखकर अपने पैरों पर खडा हो परिवार के भरण-पोषण में पूरा सहयोग दे रही हैं। लेकिन बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पिछडे जिले पन्ना की महिलाओं के मन में यह एक स्वप्न की तरह ही रहा है। कुछ समय पहले तक पुरूषवादी मानसिकता एवं कम पढा लिखा होने के कारण वह चाहकर भी परिवार की आर्थिक मदद नहीं कर पा रही थी। पर अब इन महिलाओं को मध्यप्रदेश शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का सहारा मिलने से उनके जीवन में बडा बदलाव आने लगा है। इन्ही रोजगारमूलक योजनाओं में से एक मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना ने अनेक लोगों का जीवन बदल दिया है। पुराना पन्ना निवासी श्रीमती चमेली बाई आदिवासी इनमें से ही एक हैं। शासन की थोडी सी मदद मिलने से उनका जीवन स्तर सुधर गया है। थोडी सी सहायता से वे कई कदम आगे बढ गयी हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना से 50 हजार रूपये का ऋण प्राप्त कर घर पर ही किराने की दुकान खोल ली है।
श्रीमती चमेली बाई पहले दिहाडी मजदूरी करती थी। जिसमें उन्हें कभी मजदूरी मिलती तो कभी कई-कई दिनों तक काम नही मिलता था। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उन्हें मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी होने पर उनके द्वारा आवेदन किया गया। उनके आवेदन को आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा समीक्षा के उपरांत मध्य भारत ग्रामीण बैंक भेजा गया। यहां से उन्हें किराना की दुकान खोलने के लिए 50 हजार रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण से उन्होंने अपने घर पर ही छोटी सी किराने की दुकान खोल ली। अब इनकी दुकान ठीक तरह से चल रही है। जिससे वह 6 से 7 हजार रूपये माह कमा लेती हैं। इस योजना अन्तर्गत उन्हें 15 हजार रूपये की अनुदान राशि दी गयी है। इन्हें केवल 35 हजार रूपये का ऋण बैंक को चुकाना है। दुकान से होने वाली आय से वे प्रत्येक माह 1500 रूपये की बैंक किश्त आसानी से चुकाने के साथ परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। इनके 2 बच्चे हैं जिन्हें वे पढा रही हैं। उनका कहना है कि बच्चों को पढा लिखाकर एक अच्छा इन्सान बनाएंगी।
श्रीमती चमेली बाई पहले दिहाडी मजदूरी करती थी। जिसमें उन्हें कभी मजदूरी मिलती तो कभी कई-कई दिनों तक काम नही मिलता था। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उन्हें मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी होने पर उनके द्वारा आवेदन किया गया। उनके आवेदन को आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा समीक्षा के उपरांत मध्य भारत ग्रामीण बैंक भेजा गया। यहां से उन्हें किराना की दुकान खोलने के लिए 50 हजार रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया। इस ऋण से उन्होंने अपने घर पर ही छोटी सी किराने की दुकान खोल ली। अब इनकी दुकान ठीक तरह से चल रही है। जिससे वह 6 से 7 हजार रूपये माह कमा लेती हैं। इस योजना अन्तर्गत उन्हें 15 हजार रूपये की अनुदान राशि दी गयी है। इन्हें केवल 35 हजार रूपये का ऋण बैंक को चुकाना है। दुकान से होने वाली आय से वे प्रत्येक माह 1500 रूपये की बैंक किश्त आसानी से चुकाने के साथ परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। इनके 2 बच्चे हैं जिन्हें वे पढा रही हैं। उनका कहना है कि बच्चों को पढा लिखाकर एक अच्छा इन्सान बनाएंगी।
पन्ना जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत पुराना पन्ना के श्री बसंतलाल कोंदर मजदूरी से बढ़ई गिरी का काम करते थे। उन्हें अब शासन की मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना के तहत सहायता मिल गयी है। जिससे वह अब निश्चित होकर जीवन-यापन कर रहे हैं। बसंतलाल ने बताया कि मैं पहले स्थानीय फर्नीचर की दुकानों में काम करने जाया करता था। कई बार काम न मिलने पर घर पर बैठा रहता था। जिसके कारण मैं और मेरा परिवार आर्थिक रूप से परेशान रहते थे। इन्हीं परेशानी के दिनों में मुझे मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की जानकारी मिली। मैंने आदिम जाति कल्याण विभाग से आवेदन फार्म प्राप्त कर चाही गयी जानकारी भरकर जमा कराया। आवेदन के परीक्षण के उपरांत आवेदन को ऋण के लिए मध्यान्चल ग्रामीण बैंक भेजा गया। बैंक द्वारा मुझे 50 हजार रूपये का ऋण उपलब्ध कराया गया।
प्राप्त ऋण राशि से मैंने अपने घर पर ही मनिहारी की दुकान खोल ली। घर पर दुकान ठीक से न चलने के कारण मैंने जिले में लगने वाले हाट बाजारों में दुकान लगाना प्रारंभ कर दिया। अब मेरी दुकान अच्छे से चलने लगी है। इस चलती फिरती दुकान से मैं महीने में 6 से 7 हजार रूपये कमा लेता हॅू। इसके अलावा समय मिलने पर मजदूरी करने भी जाता हॅू। इस प्रकार मेरे परिवार की आय 10 से 12 हजार रूपये हो गयी है। इस राशि से जहां मैं अपने परिवार का अच्छे से भरण-पोषण कर रहा हॅू वही बैंक की एक हजार रूपये मासिक किश्त चुकाने के बाद थोडा बहुत पैसा भविष्य के लिए बचा लेता हॅू। मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना से मेरे साथ-साथ अन्य लोगों को भी लाभ मिला है। वह भी अब निश्चिंत होकर जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस ऋण राशि पर मुझे 15 हजार रूपये का अनुदान भी मिलने वाला है। जिससे मुझे मात्र 35 हजार रूपये ही चुकाने पडेंगे। यह योजना मेरे जैसे गरीब लोगों के लिए बरदान साबित हो रही है।
प्राप्त ऋण राशि से मैंने अपने घर पर ही मनिहारी की दुकान खोल ली। घर पर दुकान ठीक से न चलने के कारण मैंने जिले में लगने वाले हाट बाजारों में दुकान लगाना प्रारंभ कर दिया। अब मेरी दुकान अच्छे से चलने लगी है। इस चलती फिरती दुकान से मैं महीने में 6 से 7 हजार रूपये कमा लेता हॅू। इसके अलावा समय मिलने पर मजदूरी करने भी जाता हॅू। इस प्रकार मेरे परिवार की आय 10 से 12 हजार रूपये हो गयी है। इस राशि से जहां मैं अपने परिवार का अच्छे से भरण-पोषण कर रहा हॅू वही बैंक की एक हजार रूपये मासिक किश्त चुकाने के बाद थोडा बहुत पैसा भविष्य के लिए बचा लेता हॅू। मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना से मेरे साथ-साथ अन्य लोगों को भी लाभ मिला है। वह भी अब निश्चिंत होकर जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस ऋण राशि पर मुझे 15 हजार रूपये का अनुदान भी मिलने वाला है। जिससे मुझे मात्र 35 हजार रूपये ही चुकाने पडेंगे। यह योजना मेरे जैसे गरीब लोगों के लिए बरदान साबित हो रही है।
मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना से संभव हुआ उपचार-
जीवन में आने वाली परेशानियों से सभी अंजान रहते हैं। गंभीर बीमारियांे का पता चलना और उनके ईलाज का मंहगा खर्च इनमें से वर्तमान समय की सबसे बडी परेशानी है। एक दिन जब रंजना के माता पिता को पता चला कि उनकी 14 साल की बच्ची हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से पीडित है, तो उसके माता-पिता को गहरा धक्का लगा। उनके 2 पुत्र और 2 पुत्री थी। जिनमें से अपनी एक बच्ची वह पहले ही खो चुके थे। दूसरी बच्ची को हृदय संबंधी बीमारी का पता चलना और उसके ईलाज का मंहगा खर्च न उठा पाने के दुख ने उनके परिवार को और दुखी कर दिया था। तभी उन्हें मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना की जानकारी मिली। जो उन्हें इस दुख से उबारने में बरदान साबित हुई है। योजना की मद से रंजना का हृदय आपरेशन सफल रहा। अब उसका दिल भी ओरों की तरह सामान्य धडकने लगा है।
रंजना के पिता श्री संतोष सिंह ग्राम मझगांव तहसील अजयगढ के निवासी है। उनका परिवार रंजना की इस बीमारी से अंजान था। रंजना के 2 भाई एवं 1 बहन थी। बहन का निधन कुछ वर्ष पहले अंजान कारणों से हो गया था। उसकी मौत के बाद रंजना इकलौती पुत्री तथा सबकी चहेती है। एक दिन राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम स्वास्थ्य परीक्षण केन्द्र के लिए शासकीय माध्यमिक शाला मझगांव पहुंची। उस समय रंजना कक्षा 8वीं में पढती थी। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम के परीक्षण करने पर रंजना की हृदय गति असामान्य पायी गयी। चिकित्सक द्वारा उसे जन्म से ही हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से चिन्हित किया गया। उसके परिवार के सदस्यों को बुलाकर रंजना की इस बीमारी की गंभीरता के बारे में बताया गया। जिसे सुनकर उसका परिवार स्तब्ध रह गया। उसका परिवार अपनी दूसरी बेटी नही खोना चाहता था। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी कि वह मंहगा ईलाज करा सकें। तब स्वास्थ्य टीम द्वारा मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना द्वारा रंजना का ईलाज शासन के खर्चे से कराए जाने की बात बताई गयी। योजना की जानकारी से रंजना के परिवार को उम्मीद की किरण मिली।
आरबीएस टीम की डाॅ. उमा गुप्ता द्वारा रंजना को जिला चिकित्सालय पन्ना रिफर किया गया। जिला चिकित्सालय पन्ना में रंजना के माता-पिता उसे लेकर आरबीएस के समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया के पास पहुंचे। तब जिला टीकाकरण अधिकारी डाॅ. प्रदीप गुप्ता द्वारा रंजना का परीक्षण किया गया। परीक्षण के बाद डाॅ. गुप्ता ने रंजना को ईको जांच के लिए रिफर किया। लेकिन परिवार के सदस्य उसे जांच के लिए बाहर ले जाने में भी समर्थ नही थे। तब जिला चिकित्सा टीम के सहयोग से जिला स्तरीय मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सेवा शिविर में रंजना की ईको जांच कराई गयी। शिविर में रंजना की जांच सिद्धांता रेडक्रास होस्पिटल के चिकित्सकों द्वारा की गयी और उसे हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से चिन्हित किया गया। चिकित्सकों ने आपरेशन में लगने वाली व्यय राशि एक लाख 75 हजार रूपये का स्टीमेट दिया। जिला स्वास्थ्य समिति पन्ना द्वारा प्रकरण स्वीकृत कर उपचार के लिए भोपाल भेज दिया गया। अगस्त 17 को भोपाल मंे रंजना का सफल आपरेशन हुआ। उसे भोपाल जाने के लिए शासन से 2 हजार रूपये की अतिरिक्त राशि भी दी गयी। गत दिवस 17 जनवरी 2018 को रंजना को फलोअप के लिए जिला चिकित्सालय बुलाया गया था। फलोअप जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. एल.के. तिवारी द्वारा की गयी और उसमें रंजना अब पूर्णताः स्वस्थ पायी गयी हैं। उसका दिल भी सामान्य बच्चों जेसा धडकता है। आज रंजना और उसका परिवार शासन की मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना और जिला चिकित्सकों की टीम को धन्यबाद देते नही थक रहे हैं। उसके पिता बताते है कि हम अपनी बच्ची की बीमारी से अंजान थे। लेकिन समय पर बीमारी की जानकारी लगने के साथ ही उसका उपचार भी हो गया है। इस पूरे उपचार में हमारा एक रूपये भी खर्च नही हुआ। हम अपनी एक बच्ची तो खो चुके थे लेकिन दूसरी बच्ची को शासन की योजना ने बचा लिया है। यदि समय पर पहली बच्ची की बीमारी का पता चल जाता तो वह भी हमारे बीच होती।
जीवन में आने वाली परेशानियों से सभी अंजान रहते हैं। गंभीर बीमारियांे का पता चलना और उनके ईलाज का मंहगा खर्च इनमें से वर्तमान समय की सबसे बडी परेशानी है। एक दिन जब रंजना के माता पिता को पता चला कि उनकी 14 साल की बच्ची हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से पीडित है, तो उसके माता-पिता को गहरा धक्का लगा। उनके 2 पुत्र और 2 पुत्री थी। जिनमें से अपनी एक बच्ची वह पहले ही खो चुके थे। दूसरी बच्ची को हृदय संबंधी बीमारी का पता चलना और उसके ईलाज का मंहगा खर्च न उठा पाने के दुख ने उनके परिवार को और दुखी कर दिया था। तभी उन्हें मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना की जानकारी मिली। जो उन्हें इस दुख से उबारने में बरदान साबित हुई है। योजना की मद से रंजना का हृदय आपरेशन सफल रहा। अब उसका दिल भी ओरों की तरह सामान्य धडकने लगा है।
रंजना के पिता श्री संतोष सिंह ग्राम मझगांव तहसील अजयगढ के निवासी है। उनका परिवार रंजना की इस बीमारी से अंजान था। रंजना के 2 भाई एवं 1 बहन थी। बहन का निधन कुछ वर्ष पहले अंजान कारणों से हो गया था। उसकी मौत के बाद रंजना इकलौती पुत्री तथा सबकी चहेती है। एक दिन राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम स्वास्थ्य परीक्षण केन्द्र के लिए शासकीय माध्यमिक शाला मझगांव पहुंची। उस समय रंजना कक्षा 8वीं में पढती थी। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम के परीक्षण करने पर रंजना की हृदय गति असामान्य पायी गयी। चिकित्सक द्वारा उसे जन्म से ही हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से चिन्हित किया गया। उसके परिवार के सदस्यों को बुलाकर रंजना की इस बीमारी की गंभीरता के बारे में बताया गया। जिसे सुनकर उसका परिवार स्तब्ध रह गया। उसका परिवार अपनी दूसरी बेटी नही खोना चाहता था। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी कि वह मंहगा ईलाज करा सकें। तब स्वास्थ्य टीम द्वारा मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना द्वारा रंजना का ईलाज शासन के खर्चे से कराए जाने की बात बताई गयी। योजना की जानकारी से रंजना के परिवार को उम्मीद की किरण मिली।
आरबीएस टीम की डाॅ. उमा गुप्ता द्वारा रंजना को जिला चिकित्सालय पन्ना रिफर किया गया। जिला चिकित्सालय पन्ना में रंजना के माता-पिता उसे लेकर आरबीएस के समन्वयक डाॅ. सुबोध खम्परिया के पास पहुंचे। तब जिला टीकाकरण अधिकारी डाॅ. प्रदीप गुप्ता द्वारा रंजना का परीक्षण किया गया। परीक्षण के बाद डाॅ. गुप्ता ने रंजना को ईको जांच के लिए रिफर किया। लेकिन परिवार के सदस्य उसे जांच के लिए बाहर ले जाने में भी समर्थ नही थे। तब जिला चिकित्सा टीम के सहयोग से जिला स्तरीय मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सेवा शिविर में रंजना की ईको जांच कराई गयी। शिविर में रंजना की जांच सिद्धांता रेडक्रास होस्पिटल के चिकित्सकों द्वारा की गयी और उसे हृदय संबंधी गंभीर बीमारी से चिन्हित किया गया। चिकित्सकों ने आपरेशन में लगने वाली व्यय राशि एक लाख 75 हजार रूपये का स्टीमेट दिया। जिला स्वास्थ्य समिति पन्ना द्वारा प्रकरण स्वीकृत कर उपचार के लिए भोपाल भेज दिया गया। अगस्त 17 को भोपाल मंे रंजना का सफल आपरेशन हुआ। उसे भोपाल जाने के लिए शासन से 2 हजार रूपये की अतिरिक्त राशि भी दी गयी। गत दिवस 17 जनवरी 2018 को रंजना को फलोअप के लिए जिला चिकित्सालय बुलाया गया था। फलोअप जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. एल.के. तिवारी द्वारा की गयी और उसमें रंजना अब पूर्णताः स्वस्थ पायी गयी हैं। उसका दिल भी सामान्य बच्चों जेसा धडकता है। आज रंजना और उसका परिवार शासन की मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना और जिला चिकित्सकों की टीम को धन्यबाद देते नही थक रहे हैं। उसके पिता बताते है कि हम अपनी बच्ची की बीमारी से अंजान थे। लेकिन समय पर बीमारी की जानकारी लगने के साथ ही उसका उपचार भी हो गया है। इस पूरे उपचार में हमारा एक रूपये भी खर्च नही हुआ। हम अपनी एक बच्ची तो खो चुके थे लेकिन दूसरी बच्ची को शासन की योजना ने बचा लिया है। यदि समय पर पहली बच्ची की बीमारी का पता चल जाता तो वह भी हमारे बीच होती।