समूह से बदली ललिता के परिवार की तस्वीर
पन्ना 31 अगस्त 18/पन्ना जिले के पवई विकासखण्ड के ग्राम खरमोरा निवासी श्रीमती ललिता एक साधारण परिवार से संबंध रखती हैं। पति परसूलाल अपनी जमीन में कृषि कार्य कर एवं खाली समय में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते थे। बूढे सास-ससुर, देवर की पढाई की जिम्मेदारी और ललिता के तीन बच्चों का भरण पोषण ललिता और उसके पति की ही जबावदारी थी। जेसे-तेसे होने वाली लगभग 4 हजार रूपये की मासिक आय से परिवार चलाया जा रहा था। कई बार तो आकस्मिक खर्च के लिए जेवर गिरवी रखने पडते थे। लेकिन ग्रामीण आजीविका मिशन अन्तर्गत समूह से जुडकर ललिता और उसके परिवार की तस्वीर बदल चुकी है। आज उसके पूरे परिवार की मासिक आय लगभग 25 हजार रूपये हो गयी है।
ललिता के परिवार की परेशानी और ललिता के ईमानदार व्यवहार को देखकर गांव की गीता बाई ने उसे समूह से जुडने की सलाह दी। 10 महिलाओं को जोडकर जुलाई 2013 मंे रोशनी समूह का गठन किया गया। समूह का नियमानुसार संचालन होने लगा। ललिता ने प्रथम बार समूह से 1500 रूपये का ऋण लिया और चुकौती कर पुनः 14 हजार रूपये का ऋण लेकर किराना की छोटी सी दुकान डाली। इससे प्रतिदिन 100 से 150 रूपये आय होने लगी। दुकान की आमदनी से धीरे धीरे ऋण चुकता कर बैंक से पुनः 15 हजार का ऋण लेकर व्यवसायिक खेती प्रारंभ की। प्राप्त आय से बैंक का पुराना ऋण चुकौती कर पुनः 15 हजार का ऋण लिया। उसमें से साहूकार के पास गिरवी रखे जेवर उठाए और शेष राशि को दुकान बढाने मंे लगा दिया। फरवरी 2016 से ललिता ने सीएलएफ अन्तर्गत समुदाय समन्वयक के पद पर नौकरी की जिसमें उसे 4200 रूपये प्रति माह मिलने लगे। अब तक ललिता के देवर मोहन की स्नातक की पढाई पूरी हो चुकी थी। रोजगार मेले के माध्यम से शिवशक्ति बायोटेक प्रायवेट लि. सागर में उसकी भर्ती 8 हजार रूपये प्रतिमाह पर हो गयी। खरमोरा में ग्राम संगठन के माध्यम से अप्रैल 2017 में अगरबत्ती निर्माण इकाई की स्थापना की गयी। अब ललिता स्वयं एवं अपनी सास को खाली समय में अगरबत्ती निर्माण के लिए ले जाने लगी। इससे ललिता की सास भी अब 100 रूपये प्रतिदिन का कार्य कर लेती हैं। इस तरह उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य किसी न किसी काम में लग गए हैं और उनके परिवार की मासिक आय लगभग 25 हजार रूपये हो चुकी है। इससे न केवल ललिता के परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है बल्कि अनुसूचित जनजाति का होने के कारण पहले उसे जहां सम्मान नही मिलता था वहीं समाज में आज ललिता और उसके परिवार का विशेष स्थान है और उन्हें पूरा सम्मान मिलता है।
समाचार क्रमांक 435-2686
ललिता के परिवार की परेशानी और ललिता के ईमानदार व्यवहार को देखकर गांव की गीता बाई ने उसे समूह से जुडने की सलाह दी। 10 महिलाओं को जोडकर जुलाई 2013 मंे रोशनी समूह का गठन किया गया। समूह का नियमानुसार संचालन होने लगा। ललिता ने प्रथम बार समूह से 1500 रूपये का ऋण लिया और चुकौती कर पुनः 14 हजार रूपये का ऋण लेकर किराना की छोटी सी दुकान डाली। इससे प्रतिदिन 100 से 150 रूपये आय होने लगी। दुकान की आमदनी से धीरे धीरे ऋण चुकता कर बैंक से पुनः 15 हजार का ऋण लेकर व्यवसायिक खेती प्रारंभ की। प्राप्त आय से बैंक का पुराना ऋण चुकौती कर पुनः 15 हजार का ऋण लिया। उसमें से साहूकार के पास गिरवी रखे जेवर उठाए और शेष राशि को दुकान बढाने मंे लगा दिया। फरवरी 2016 से ललिता ने सीएलएफ अन्तर्गत समुदाय समन्वयक के पद पर नौकरी की जिसमें उसे 4200 रूपये प्रति माह मिलने लगे। अब तक ललिता के देवर मोहन की स्नातक की पढाई पूरी हो चुकी थी। रोजगार मेले के माध्यम से शिवशक्ति बायोटेक प्रायवेट लि. सागर में उसकी भर्ती 8 हजार रूपये प्रतिमाह पर हो गयी। खरमोरा में ग्राम संगठन के माध्यम से अप्रैल 2017 में अगरबत्ती निर्माण इकाई की स्थापना की गयी। अब ललिता स्वयं एवं अपनी सास को खाली समय में अगरबत्ती निर्माण के लिए ले जाने लगी। इससे ललिता की सास भी अब 100 रूपये प्रतिदिन का कार्य कर लेती हैं। इस तरह उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य किसी न किसी काम में लग गए हैं और उनके परिवार की मासिक आय लगभग 25 हजार रूपये हो चुकी है। इससे न केवल ललिता के परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है बल्कि अनुसूचित जनजाति का होने के कारण पहले उसे जहां सम्मान नही मिलता था वहीं समाज में आज ललिता और उसके परिवार का विशेष स्थान है और उन्हें पूरा सम्मान मिलता है।
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