बीज उपचार से मिली चने के उगरा रोग से मुक्ति वैज्ञानिक तरीका अपनाकर खेती में लाभ कमा रहे हैं कृषक बद्री प्रसाद
पन्ना 16 मार्च 18/किसान को उसकी मेहनत का उचित मूल्य मिलने के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि भी जाए तो उसके लिए यही सबसे बडी खुशी है। इन दिनों पन्ना जिले के ग्राम कैंथी निवासी कृषक श्री बद्री प्रसाद तिवारी के परिवार में यही खुशी की लहर देखने को मिल रही है। जिसकी वजह उन्हें 4 क्विंटल प्रति एकड के स्थान पर 11 क्विंटल प्रति एकड चने का उत्पादन प्राप्त होना है।
कृषक बद्री प्रसाद बताते हैं कि वह कुल रकवा 2.56 जमीन पर खेती करते हैं। पिछले कई वर्षो से परम्परागत तरीके से चने की खेती करते आ रहे थे। लेकिन हर साल उनके खेतों में उगरा नाम की बीमारी लग जाती थी। जिसकी वजह से उन्हें अधिकतम 4 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन ही प्राप्त हो पाता था। इतने कम उत्पादन से चने की उत्पादन लागत भी नही निकल पाती थी। धीरे-धीरे मेरी माली हालत कमजोर होती जा रही थी और मैंने खेती को छोडकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना लिया था। तभी एक दिन मेरी मुलाकात कृषक मित्र भाग्यश्री से हुई और मेरा मन बदल गया।
कृषक मित्र भाग्यश्री परमार ने उन्हें आत्मा के बीटीएम पवई से मिलवाया। जिन्होंने कृषक बद्री को उगरा रोग से बचाव के लिए खेत परिवर्तन एवं थायोमैथामजौम नामक दवा से बीज उपचार की सलाह दी। साथ ही चने की उन्नत खेती की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। जिसके बाद मैंने उनके मार्गदर्शन में चने की खेती प्रारंभ कर दी। मैंने अपने चने के बोने वाले खेत को बदला। बीज को थायोमैथामजौम दवा से उपचारित करके 40 किलोग्राम के स्थान पर 30 किलोग्राम बीज ही प्रति एकड की दर से बोया। वैज्ञानिक तरीके से चने की खेती करने पर मुझे लगभग 11 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन प्राप्त हुआ है। उगरा नामक बीमारी भी नही आयी। अब मैं अपने खेतों में हर साल फसल चक्र अपनाकर चने की खेती वैज्ञानिक तरीके से करता हॅू। इससे मुझे कम लागत में भी अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। कृषक बद्री प्रसाद ने सभी किसान भाईयों से अपील की है कि वैज्ञानिक तरीका अवश्य अपनाएं और खेती को लाभ का धन्धा बनाएं।
समाचार क्रमांक 142-728
कृषक बद्री प्रसाद बताते हैं कि वह कुल रकवा 2.56 जमीन पर खेती करते हैं। पिछले कई वर्षो से परम्परागत तरीके से चने की खेती करते आ रहे थे। लेकिन हर साल उनके खेतों में उगरा नाम की बीमारी लग जाती थी। जिसकी वजह से उन्हें अधिकतम 4 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन ही प्राप्त हो पाता था। इतने कम उत्पादन से चने की उत्पादन लागत भी नही निकल पाती थी। धीरे-धीरे मेरी माली हालत कमजोर होती जा रही थी और मैंने खेती को छोडकर अन्य व्यवसाय करने का मन बना लिया था। तभी एक दिन मेरी मुलाकात कृषक मित्र भाग्यश्री से हुई और मेरा मन बदल गया।
कृषक मित्र भाग्यश्री परमार ने उन्हें आत्मा के बीटीएम पवई से मिलवाया। जिन्होंने कृषक बद्री को उगरा रोग से बचाव के लिए खेत परिवर्तन एवं थायोमैथामजौम नामक दवा से बीज उपचार की सलाह दी। साथ ही चने की उन्नत खेती की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। जिसके बाद मैंने उनके मार्गदर्शन में चने की खेती प्रारंभ कर दी। मैंने अपने चने के बोने वाले खेत को बदला। बीज को थायोमैथामजौम दवा से उपचारित करके 40 किलोग्राम के स्थान पर 30 किलोग्राम बीज ही प्रति एकड की दर से बोया। वैज्ञानिक तरीके से चने की खेती करने पर मुझे लगभग 11 क्विंटल प्रति एकड उत्पादन प्राप्त हुआ है। उगरा नामक बीमारी भी नही आयी। अब मैं अपने खेतों में हर साल फसल चक्र अपनाकर चने की खेती वैज्ञानिक तरीके से करता हॅू। इससे मुझे कम लागत में भी अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। कृषक बद्री प्रसाद ने सभी किसान भाईयों से अपील की है कि वैज्ञानिक तरीका अवश्य अपनाएं और खेती को लाभ का धन्धा बनाएं।
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