कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही है समसामयिकी सलाह
पन्ना 05 मार्च 18/कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के वरिष्ठ वैैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. बी. एस. किरार, डाॅ. आर. के.जायसवाल वैज्ञानिक एवं श्री रविन्द्र कुमार मोदी उपसंचालक कृषि द्वारा कृषकों को वर्तमान फसलों एवं मौसमानुसार कृषि की समसामयिकी सलाह दी जा रही है। गेंहू की पिछेती किस्में जो दुग्धावस्था में है उनमें मौसम को ध्यान में रखते हुये हल्की सिंचाई अवष्य करें। देर से बोई गई चने की फसल में इल्ली का प्रकोप होने पर इमामेक्टिन बेंजोएट 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। मसूर, चना एवं सरसों फसलों को अधिक परिपक्व होने से पहले कटाई करें और खलिहान में फैलाकर ठीक से सुखाकर शीघ्र गहानी करें।
उन्होंने सलाह दी है कि कृषक बन्धु खलिहान में कटाई उपरान्त रखे गए फसलो को असामयिक वर्षा एवं ओला वृष्टि से बचाव हेतु प्लास्टिक के तिरपाल की व्यवस्था करें। खलिहान के पास आग एवं अन्य अप्रिय घटना को रोकने के लिए ड्रम या गड्ढे में पानी भरकर अवष्य रखे। कृषक खलिहान हमेषा खेत में ऊॅचे भाग में बनाये ताकि अचानक बारिष होने पर खलिहान में पानी न भरें। फसल की गहानी के बाद अनाज को अच्छी प्रकार से धूप में सुखाये। अनाज को दाॅत से दबाने पर कट की आवाज आने तक सुखाये उसके बाद ठण्डा होने पर उचित प्रकार से भण्डारण करें अन्यथा अनाज या दाल में नमी रहने पर भण्डारण में शीघ्र कीड़ा लगता है। बीजों को बोरों में भण्डारण करने से पूर्व मैलाथियान दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से उपचारित करना चाहिए। प्याज फसल की दो बार निंदाई-गुडाई करें, पहली बार रोपाई के 30-35 दिन बाद और दूसरी 45-50 दिन बाद गुड़ाई करने से नींदा भी नियंत्रण होगा साथ कन्द भी अच्छा फैलेगा। प्रत्येक गुड़ाई करने के बाद सिंचाई उपरान्त 20-30 कि.ग्रा. यूरियां प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करंे।
उन्होंने बताया है कि कद्दूवग्रीय सब्जियों (लौकी, कुम्हडा, ककडी, खीरा) में लाल कीड़ा के नियंत्रण हेतु डायक्लोरोवास 1 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें। सब्जियों की चूसक कीट माहू, थ्रिप्स एवं जैसिड कीटो से बचाव के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड़ (17.8 प्रतिषत एस.एल.) दवा 80-100 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। सिंचाई सुविधा होने पर सरसो, मसूर एवं चना फसल के खेतो की जुताई कर गर्मी की मूॅग-उड़द की मार्च माह में बुवाई सम्पन्न करें। गर्मी में मूॅग एवं उडद की खेती हेतु पीला रोग प्रतिरोधक किस्मो का चयन करना चाहिए उदाहरणतया मूॅग हेतु पी. डी. एम.-139, आई. पी. एम. 02-03 एवं उड़द हेतु आई. पी. यू. 94-1, शेखर 2, शेखर 3 तथा थायोमेथाक्जाम (25 डब्लू. पी.) दवा से 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करने के उपरान्त 8 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ की दर से बुआई करें। गर्मी में मूॅग-उड़द की खेती से कृषक को तीसरी फसल के रूप में अतिरिक्त लाभ होगा साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति में बढोत्तरी भी होगी। रबी फसल की कटाई के बाद फसलो के अवषेषो को न जलाऐ क्योकि इससे वातावरण प्रदूषित होता है साथ ही साथ मित्र कीट एवं जीव नष्ट हो जाते है इसके अतिरिक्त किसानो को तीन साल में एक बार गर्मी में गहरी जुताई अवष्य करनी चाहिए।
समाचार क्रमांक 25-612
उन्होंने सलाह दी है कि कृषक बन्धु खलिहान में कटाई उपरान्त रखे गए फसलो को असामयिक वर्षा एवं ओला वृष्टि से बचाव हेतु प्लास्टिक के तिरपाल की व्यवस्था करें। खलिहान के पास आग एवं अन्य अप्रिय घटना को रोकने के लिए ड्रम या गड्ढे में पानी भरकर अवष्य रखे। कृषक खलिहान हमेषा खेत में ऊॅचे भाग में बनाये ताकि अचानक बारिष होने पर खलिहान में पानी न भरें। फसल की गहानी के बाद अनाज को अच्छी प्रकार से धूप में सुखाये। अनाज को दाॅत से दबाने पर कट की आवाज आने तक सुखाये उसके बाद ठण्डा होने पर उचित प्रकार से भण्डारण करें अन्यथा अनाज या दाल में नमी रहने पर भण्डारण में शीघ्र कीड़ा लगता है। बीजों को बोरों में भण्डारण करने से पूर्व मैलाथियान दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से उपचारित करना चाहिए। प्याज फसल की दो बार निंदाई-गुडाई करें, पहली बार रोपाई के 30-35 दिन बाद और दूसरी 45-50 दिन बाद गुड़ाई करने से नींदा भी नियंत्रण होगा साथ कन्द भी अच्छा फैलेगा। प्रत्येक गुड़ाई करने के बाद सिंचाई उपरान्त 20-30 कि.ग्रा. यूरियां प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करंे।
उन्होंने बताया है कि कद्दूवग्रीय सब्जियों (लौकी, कुम्हडा, ककडी, खीरा) में लाल कीड़ा के नियंत्रण हेतु डायक्लोरोवास 1 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें। सब्जियों की चूसक कीट माहू, थ्रिप्स एवं जैसिड कीटो से बचाव के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड़ (17.8 प्रतिषत एस.एल.) दवा 80-100 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। सिंचाई सुविधा होने पर सरसो, मसूर एवं चना फसल के खेतो की जुताई कर गर्मी की मूॅग-उड़द की मार्च माह में बुवाई सम्पन्न करें। गर्मी में मूॅग एवं उडद की खेती हेतु पीला रोग प्रतिरोधक किस्मो का चयन करना चाहिए उदाहरणतया मूॅग हेतु पी. डी. एम.-139, आई. पी. एम. 02-03 एवं उड़द हेतु आई. पी. यू. 94-1, शेखर 2, शेखर 3 तथा थायोमेथाक्जाम (25 डब्लू. पी.) दवा से 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करने के उपरान्त 8 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ की दर से बुआई करें। गर्मी में मूॅग-उड़द की खेती से कृषक को तीसरी फसल के रूप में अतिरिक्त लाभ होगा साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति में बढोत्तरी भी होगी। रबी फसल की कटाई के बाद फसलो के अवषेषो को न जलाऐ क्योकि इससे वातावरण प्रदूषित होता है साथ ही साथ मित्र कीट एवं जीव नष्ट हो जाते है इसके अतिरिक्त किसानो को तीन साल में एक बार गर्मी में गहरी जुताई अवष्य करनी चाहिए।
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