केला फसल का वैज्ञानिकों द्वारा अवलोकन एवं प्रबंधन सलाह

पन्ना 12 जनवरी 18/कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के डाॅं. बी. एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डाॅं. आर. के. जायसवाल वैज्ञानिक द्वारा गत दिवस ग्राम गुखौर तहसील देवेन्द्रनगर में केला उत्पादक कृषक राम सखा कुषवाहा की केला फसल का अवलोकन के दौरान फसल में सिगाटोका बिमारी (पत्ती धब्बा) के लक्षण देखे गये। यह बिमारी स्यूडोसर्कोस्पोरा म्यूसीकोला फंफूद से होती है। इसके प्रकोप से पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी हो जाती है क्योकि उŸाक हरे रंग से भूरे रंग के होते है। यह रोग निचली पत्तियों पर छोटे छोटे धब्बे के रूप में दिखाई देते है फिर यह पीले या हरी पीली धारियों में बदल जाते है। धब्बे पत्तियों की दोनांे सतहांे पर दिखाई देते है और अन्त में यह धारियाॅ भूरी काली हो जाती है। धब्बों के बीच का भाग सूख जाता है। ग्रसित पौधा धीरे-धीरे सूखने लगते है। इसके नियंत्रण हेतु ग्रसित सूखी पत्तियों को काटकर अलग कर दें। जल निकास की उचित व्यवस्था एवं फसल को नींदा रहित रखें। इसके बाद फँफूदनाषक दवा कार्बेण्डाजिम (50 प्रतिषत उब्ल्यू. पी.) 200 ग्राम प्रति एकड़ तथा 12-15 दिन बाद पुनः एक बार दवा बदलते हुये मेंकोजेब (75 प्रतिषत डब्ल्यू पी.) 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का दर से घोल बनाकर छिडकाव करें। केला में इसके अलावा पनामा विल्ट, एन्थे्रक्नोज, बंची टाॅप (षीर्ष गुच्छा) एवं केले का धारी विषाणु आदि प्रमुख रोग है। केला फसल के प्रमुख कीट केला प्रकंद घुन, तना भेदक, माहू , लेसबिंग्स एवं पत्ती खाने वाली इल्ली आदि है। वैज्ञानिकों ने कृषक को केला फसल की सतत् निगरानी करने की सलाह दी और किसी भी प्रकार के कीट-व्याधियों के लक्षण दिखने पर तकनीकी सलाह लेकर कीटनाषक एवं फंफूदनाषक दवाओं का प्रयोग करना चाहिए।
समाचार क्रमांक 106-106

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