वैज्ञानिकों द्वारा मनौर मंे हरा चारा उत्पादन पर तकनीकी सलाह
पन्ना 27 अप्रैल 18/कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. बी.एस. किरार एवं डाॅ. आर.के. जायसवाल वैज्ञानिक द्वारा ग्राम मनौर में हरा चारा उत्पादक कृषक संतोष यादव के खेत पर जाकर रिजिका बाजरी हरे चाले वाली फसल के विपुल उत्पादन पर तकनीकी जानकारी दी गयी। कृषक खेत की जुताई कर बुवाई हेतु लम्बी क्यारियाँ बनाकर उनमे उर्वरक डी.ए.पी. एवं यूरिया छिड़क देता है उसके बाद बीज बोकर सिंचाई कर देता है।
कृषक को डाॅ. किरार ने बताया कि इस प्रकार बुवाई करने से डी.ए.पी. और यूरिया व्यर्थ जाता है फसल को कोई लाभ नही मिलता है और छिड़ककर बोने से बीज अधिक मात्रा में लगता है। इसलिये डी.ए.पी. 50-60 कि.ग्रा. और म्यूरेट आॅफ पोटाष 10-12 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत मंे छिड़क कर मिला देना चाहिए और बीज नारी हल से कतार से कतार की दूरी 25-30 से.मी. की दूरी पर बुवाई करना चाहिए और यूरिया 20 कि.ग्रा. प्रति एकड़ फसल बुवाई के 10-12 दिन बाद छिड़काव करे। इस चारे की प्रथम कटाई 25 दिन बाद शुरू हो जाती है। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन फसल मे 20-25 कि.ग्रा. प्रति एकड़ यूरिया का छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार कृषक एक मौसम मे 5-6 कटाई कर पषुओं को खिलाकर गर्मी मे अच्छा दुग्धोत्पादन ले सकता है। और बाजार के पषु आहार पर होने वाले व्यय को कम कर सकते है। संतोष यादव, कृषक के घर मे हरा चारा काटने हेतु चाँप कटर मषीन (हाथ से चारा काटने वाली) लगी हुयी है जिससे चारा को कुट्टी बनाकर गेहूँ को भूसा मे मिलाकर दाना खली मिलाकार सानी बनाकर खिलाया जाता है। जिससे पषुओ के दुग्धोत्पादन मे वृद्धि होती है साथ ही उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। हमारे अन्य पषु पालकों को भी यह सलाह दी जाती है कि जिनके पास सिंचाई के साधन हो तो वे कृषक भी संतोष यादव की तरह वर्ष भर हरा चारा का उत्पादन कर दुग्धोत्पादन को लाभ का व्यवसाय बना सकते है।
समाचार क्रमांक 265-1183
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